योग बनाम भोग : एक जैसा ही दिखता है कुछ लोगों को.......

ये हैं योग गुरु श्री आयंगर जी जो की सेतुमुद्रा बता रहे हैं कि किस तरह अभ्यास करके इस आसन को सिद्ध कर लेने से बैठने वाले लोगों को मेरु रज्जू के कष्टों से मुक्ति मिल सकती है| इस मुद्रा का अभ्यास लंबे प्रयास के बाद सधता है

ये रहे हमारे वो युवा जो कि बिना किसी योगाभ्यास के ही इस सेतुमुद्रा को सिद्ध कर लेते हैं बस जरूरत रहती है आठ दस पैग व्हिस्की के मारने की........
इस संदेश को भड़ास तक हमारे पुराने मित्र श्री मिलिंद कामत जी ने भेजा है जो की ख़ुद भी दुसरे तरीके को ज्यादा महत्त्व देते हैं । उनका मानना है कि एक साधे सब सधे सब साधे सब जाए ... इस लिए बस दारु साध लीजिये जीवन सफल हो जाता है। भाई मिलिंद कामत जी बेहद सरल स्वभाव के जन्मजात भडासी हैं मुझे कंप्यूटर की शुरूआती समझ इन्ही की देन है । धन्यवाद भाई इसी तरह भड़ास लगाये लगाये रहिये।
जय जय भड़ास

गुड गोबर


जब तक
दे का
प्रत्येक नागरिक
’व्यक्तिवाद’ के
गोबर को त्याग कर
’समाजवाद’ के
गुड़ को नहीं खायेगा
आजादी का
उज्ज्वल भविष्य
गुड़ गोबर
होता ही जायेगा ।

जैन हिंदू हैं ? जैन हिंदू नहीं है? संजय बेंगाणी,अमित जैन और महावीर सेमलानी कौन हैं?????


जैनों के बारे में अब तक अनूप मंडल की तरफ़ से थोड़ा कुछ लिखा और बताया गया जिसे अनेक लोगों ने देखा और परखा भी। अब तक शायद कई लोगों ने ये भ्रम भी पाल लिया होगा कि अनूप मंडल के लोग जबरन ही जैनों के प्रति नामालूम कारणों से दुर्भावना ठाने हैं और बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, इस बारे में सबका अपना निजी मत होगा किन्तु हम अपनी बातों को मात्र तर्क नहीं बल्कि तथ्यों के आधार पर रख कर सिद्ध कर रहे हैं। खुद ही सोचिए कि जब देवताओं के गोत्र व वंश हमारी पुराण कथाओं से होकर वर्तमान हिंदू समाज में मौजूद है तो क्या दानवों के बीज नष्ट हो गए होंगे? अगर आप इस भ्रम में हैं तो आप निहायत ही जड़बुद्धि हैं ऐसा कहने में हमें कोई खेद नही है।

अब तक हम आपको बताते रहे हैं कि किस प्रकार दानव हम देवकुली मानवों के बीच हमारे जैसे होकर घुलमिल गये हैं और हमारे बीच ही रह कर हमारे संस्कार और सोच को भ्रमित और दूषित कर रहे हैं। इसके उदाहरण के तौर पर अब तक हमने दो ब्लागरों को प्रस्तुत करा था जिसमें कि अमित जैन और महावीर सेमलानी रहे, महावीर सेमलानी से उठाए गए सवालों का अब तक उत्तर तो न दिया गया बल्कि ये जरूर करा गया कि दुनिया भर की लीपापोती करके सिद्ध करना चाहा कि हम अनूप मंडल के लोग व्यर्थ ही जैनों पर राक्षस होने का आरोप लगा रहे हैं। ये इनका हमेशा का तरीका रहा है कि आपको मुद्दे से भटका देते हैं यही तो इनका राक्षसी मायाजाल है जिसे आप देख कर भी समझ नहीं पाते। आज हमने लिया है एक और इंटरनेट पर हिंदी में छाए हुए एक और जैन को जो कि है तो जैन लेकिन खुद को हिंदू बताता है लेकिन साथ ही अनीश्वरवादी होने की राक्षसी बात भी स्वभाव वश कह जाता है क्योंकि ये सत्य है कि राक्षस लोग ईश्वर के अस्तित्त्व पर विश्वास न करके अपने दानव गुरुओं, कल्पित तीर्थंकरों, जिनो पर विश्वास करते हैं(किसी भी मुसलमान या हिंदू को ये बताना कि जिन कौन होते हैं निहायत ही बचपना होगा सब जानते हैं कि ये शैतानी और पैशाचिक शक्तियां होती हैं)। संजय बेंगाणी नामक ये जैन हिंदू समाज को जातिप्रथा विहीन और अतिआधुनिक देखने की तमन्ना रखता है(मुस्लिम,बौद्ध,सिख,क्रिश्चियन,पारसी आदि समाजों में इसे दिलचस्पी नहीं है इनका अधिकाधिक रुझान हिंदू धर्म को दूषित करने में है)। जैन खुद को हिंदू कहते भी हैं लेकिन कानूनी तौर पर खुद को अल्पसंख्यक होने के लिये कोर्ट में जतन भी जारी रखते हैं, इनके मुनि चीख-चीख कर खुद को हिंदुओं से अलग बताते हैं लेकिन संजय बेंगाणी जैन मान्यताओं की वकालत में संथारा के विषय में लिखते समय न जाने क्यों सैकड़ों प्रश्नवाचक चिन्ह प्रयोग कर गए शायद ये टोटका भी इन्हें किसी जिन ने बताया होगा कि इस तरह के मुद्दे बड़े ही प्रेम और कोमलता से उठाओ और ये जताओं कि बड़े ही प्रगतिवादी विचारों के हो लेकिन ठहरे तो जन्मना जैन ही इसलिये मूल स्वभाव सामने आ ही जाता है। ये कपटाचार मात्र इस लिये करा जा रहा है कि अन्य धर्मी लोग इनसे प्रभावित हो जाएं और अपने धर्म की मान्यताओं पर भी थूकाथाकी करने लगें तब ये महाशय धीरे से पीछे सरक जाएं और अन्य धर्मों में मान्यताओं के प्रति उठापटक चालू हो जाए तब ये जैन धर्म को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध कर सकें। लीजिये प्रस्तुत हैं इनकी माया भरी हुई लेखनी का इंद्रजाल और अगर आप पूरे आलेख पढ़ना चाहें तो इनके चिट्ठे पर जाकर उसकी रेटिंग अवश्य बढ़ाएं--------------
http://www.tarakash.com/20070508250/Believes/article-baldiksha.html(बाल दीक्षा कितनी उचित?)
सती प्रथा या ऐसी ही बुराईयों के विरुद्ध कानून बन सकता है तो बाल दीक्षा के विरूद्ध क्यों नहीं.चुंकि आज ऐसा कोई कानून नहीं है इसलिए बाल दीक्षा भी अपराध नहीं है. मगर क्या बच्चो को दीक्षित करना सही है? शायद नहीं.अब देखें बाल दीक्षा दी क्यों जाती है.तर्क यह दिया जाता है की चुंकि मुमुक्षू (जो दीक्षा लेने का इच्छुक है) को एक दिन दीक्षित होना ही है तो क्यों न उसे बचपन में ही दीक्षित कर दिया जाय, इससे वह उसी माहौल में बड़ा होने की वजह से धार्मिक रिवाजो को आत्मसात कर सकेगा.वैसे तो जैन धर्म अपने तमाम शांति-अहिंसा के दावो के बावजुद अनेक पंथो(शाखाओ) में बटा हुआ है.इनमें मेरा परिचय तेरापंथ शाखा से ही ज्यादा रहा है. देखा गया है की तेरापंथ में सामान्यतः महिला मुमुक्षू को बाल दीक्षा नहीं दी जाती. उन्हे अच्छी तरह से शिक्षित करने के बाद ही दीक्षा दी जाती है. वहीं पुरूष मुमुक्षू को ज्यादा समय न देते हुए दीक्षित कर दिया जाता है. कारण शायद यह होता है की महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा आस्थावान होती है. एक बार बालिग होने पर शायद पुरूष स्त्री के मुकाबले दीक्षा लेना कम पसन्द करे. ऐसे में बचपन में ही दीक्षित कर देना सही लगता है. धर्मसंघ को जीवित रखने के लिए यह अनिवार्य जान पड़ता है.एक जैनमूनि का जीवन अत्यंत कष्टपूर्ण होता है, अतः नादानी में कोई बालक दीक्षित न हो इसका समाज जतन करे, अन्यथा कानून बने.
http://www.tarakash.com/2006092425/Believes/article-jain-santhara.html(जैन धर ?म की संथारा प ?रथा, कितनी उचित? )
संथारे तथा आत ?महत ?या में अंतर: आत ?महत ?या करने के पीछे मन में द ?वेष का भाव होता हैं या फिर घोर निराशा। ?सा हो सकता हैं अवसर मिलने पर व ?यक ?ति आत ?महत ?या का इरादा त ?याग दे तथा अपने कृत ?य पर पछतावा भी हो। जबकि संथारे में तत ?काल मृत ?य ? नहीं होती यानी सोचने सम ?ने तथा अपने उठा ? कदम पर प ?नर ?विचार करने का पर ?याप ?त समय होता है। संथारे में जीवन से निराशा तथा किसी भी प ?रकार के द ?वेष का कोई स ?थान नहीं होता। इसलि ? इसे आत ?महत ?या से अलग माना जाना चाहि ?। संथारा की त ?लना सति प ?रथा से करना भी गलत हैं, संथारा लेना हिन ?दू धर ?म के समाधि ले कर मृत ?य ? को प ?राप ?त होने जैसा है। शिवाजी महाराज के ग ?रूजी ने तथा रामदेव पीर ने समाधि ली थी। सीताजी ने भी समाधि ली थी। मेरा निजि मत हैं की धर ?म में दखल न मानते ह ? ? इस विषय पर व ?यापक चर ?चा होनी चाहि ?। अगर हम चाहते हैं की सभी का जीवन स ?खद हो तो हमें सभी के लि ? स ?खद मृत ?य ? की कामना भी करनी चाहि ?। (मेरी परदादीजी ने भी संथारा लिया था, मेरे पिताजी की मौसीजी ने भी संथारा लिया था. और जो विमलादेवी चर ?चा में हैं वे भी मेरी दूर की रिश ?तेदार हैं.)
अब आप सब देखियेगा कि काफ़ी समय तक न तो अमित जैन और न ही महावीर सेमलानी सांस लेंगे, चुप्पी साध लेने की राक्षसी कुटिलता देखियेगा। यदि बोले भी तो वाक्जाल के फंदे लेकर आएंगे जिनका हमें इंतजार है, आओ राक्षसों !!!!!!
जय नकलंक देव
जय जमीन माता
जय जय भड़ास

हिटलर क्यो बोला ?



बेचारा डर गया था .......:)

कोई तो बरसा कर भिगो दे मेरे तन मन को ,
बेटा (किसान ) मेरा भूका है ,
जो भरता है सब के पेट को ,
आज उस की भी कोई सुन लो ,
वरना हाथ मलते रह जाओगे,
जब खुदखुशी कर लेगा वो ,
न होगा वो ,
न होगा अन्न का एक दाना ,
फ़िर याद उसे करना जो हो गया है,
आज तुम सब के लिए बेगाना ,
सूखी धरती बुला रही है बारिश को ..............
कभी न कभी ये पेड़ जरूर मिलगे हमे भी , और सब भडासी इस के केले ले ले कर खाए गे , ..................:) बहुत बढ़िया पोस्ट लिखा है रजनीश भाई ने , स्वादिस्ट भी और पाचक भी .........:)

सलाम जय किसान !!

अद्भुत उपलब्धि

पुणे से ५० कि मी उत्तर जुनैर तालुका के एक किसान की इस करामाती उपलब्धि जिसमें एक ही केले के पेड़ में ४७७ केले आए,

बधाई हमारे देश के अद्भुत किसान की उपलब्धि पर और नमन हमारे देश के किसान को।

जय हिंद

भड़ासियों को आमंत्रण :-)

इस तस्वीर के दर्शन बहुतो ने किए होंगे और बहुतो ने नहीं भी मगर इस अद्भुत उपलब्धी को भड़ास पर साझा किए बिना कुछ अधुरा सा लगता है।

पुणे से ५० कि मी उत्तर जुनैर तालुका के एक किसान की इस करामाती उपलब्धी जिसमें एक ही केले के पेड़ में ४७७ केले आए,

भड़ासियों के लिए दावत का समय एक ही गुच्छे से सभी भडासी का सम्मिलित दावत सम्भव है, तो हो जाइये शुरू.


बधाई इस अद्भुत किसान कि उपलब्धी पर और नमन हमारे देश के किसान को।
जय हिंद

प्रिय भड़ासियों! भड़ास पर प्रतिबंध की हार्दिक शुभेच्छाएं

प्रिय भड़ासियों! धूर्त लोगों ने आजकल ये दस्तूर बना लिया है कि जो सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस कर रहा है उसको खामोश करने का हर संभव प्रयास करो। यदि उनका कमीनापन कहीं भी जगजाहिर करा जाए तो उसे किसी भी तरह मिटा दो चाहे सत्य बताने वाले को ही खत्म करना पड़े। भड़ास ने भी बहुत बुरे समय को झेला है, तिरस्कार और बहिष्कार से हमें रोकने की कोशिश करी गयी हैं लेकिन "कुछ तो जरूर बात है कि हस्ती नहीं मिटती सदियों से रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा" ये तो हमारे लिये नयी ऊर्जा का कार्य करता है। हमारे लिये भड़ास मात्र इंटरनेट पर एक ब्लाग नहीं बल्कि जीवनशैली है। हमने इस पर तमाम मुखौटाधारियों के असली चेहरे उजागर लोकतांत्रिक तरीके से करे और जिसके बदले में हमें मारपीट,धमकियां,पुलिस लाक अप की सैर तक झेलना पड़ा पर हम भला क्यों बदलने चले... सबकुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी सच है दुनिया वालों की हम हैं अनाड़ी..... ये गाना गुनगुनाते पुलिस वालों से भी पूछते रहे कि भाई क्या तुम जानते हो कि धर्मवीर कमीशन की रिपोर्ट किस संबंध में है। पुलिस वालों के कहने पर उन्हे बताया कि भाई लोगों ये कमीशन पुलिस की स्थिति की समीक्षा करके सुझाव देने के विषय में था और अब सुप्रीम कोर्ट के साथ ही भारत सरकार(ये आज तक न समझ आया कि कौन और क्या है?) उस आयोग की रिपोर्ट में कही गयी बातों को मानने में भयभीत है या राम जाने क्या बात है। बेचारे खाकी मामू-मुमानी जो थोड़ी देर पहले तक गरिया रहे थे चुपचाप भड़ास सुन रहे थे फिर अचानक पता चला कि हमें डरा-धमका कर छोड़ देने की बात थी मामला नहीं बनाना था सो बस इतनी खुराक हमारे लिये काफ़ी थी। हम चले भड़ास की आग लिये घर को वापस और बेचारे वो पुलिस वाले जो मुझे कल तक लतिया धमका रहे थे पछता रहे थे कि उनसे पाप हो गया एक गलत सिस्टम को मजबूरी लाचारी में फंसे होने के कारण। हमारे ऊपर इस तरह के प्रतिबंध लगाने का प्रयास जारी रहेगा लेकिन हम जुबान से नहीं दिल से बोलते हैं भड़ास धक-धक में धड़क रही है, शरीर मर सकता है विचार और जीवन शैली नहीं सो हम अजर-अमर हैं।
जय जय भड़ास

कसाब...कसाब...कसाब और भड़ास का मंच

जरा ध्यान दीजिये इन सारी बातों पर.......
मुंबई पर आतंकी हमले के आरोपी अजमल कसाब को आर्थर रोड जेल में स्थानांतरित किए जाने के बाद महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ मंत्री ने उससे जेल में मुलाकात की थी। यह जानकारी गृह विभाग से जुड़े भरोसेमंद सूत्रों ने दी है। इनके मुताबिक, इस मंत्री ने पुलिस महकमे के आला अफसरों को इस बारे में सूचित किया था। कसाब से मुलाकात के दौरान मंत्री ने अपनी पहचान भी उससे छिपाई थी।सूत्रों के अनुसार, जेल में सुरक्षा इंतजामों का जायजा लेने आए इस मंत्री ने कसाब को बताया था कि उसका देश पाकिस्तान उसे अपना नागरिक मानने को तैयार नहीं है। यह सुनने के बाद कसाब के चेहरे पर चौंकाने वाले भाव थे। मुंबई आतंकी हमलों के मुख्य आरोपी आमिर अजमल कसाब ने बुधवार को स्पेशल कोर्ट में कहा कि मुझे दुनिया वाले ही सजा दें। कसाब का कहना था कि उसका बयान किसी दबाव में नहीं दिया गया है। उन्होंने गुनाह किसी के दबाव में नहीं कबूला है।उसने कहा कि मेरे गुनाह की सजा खुदा भी माफ नहीं कर सकता और मेरी सजा यही है कि मुझे फांसी दे दी जाए। इसके पहले कसाब ने कोर्ट में कहा था कि उसे अपना गुनाह कबूल है और उसे जल्द से जल्द सुनवाई कर सजा दे दी जाए। मुंबई पर पिछले साल 26 नवंबर को हुए आतंकी हमले के आरोपी अजमल कसाब ने हमले संबंधी क्लोज सर्किट टीवी फुटेज वाली सीडी की मांग की, जिसे विशेष अदालत ने ठुकरा दिया। वकील अब्बास काजमी के मुताबिक, ‘कसाब के दिमाग में विचित्र विचार आते रहते हैं। मुझे पूरा भरोसा नहीं है कि वह सीडी शब्द का मतलब भी जानता होगा।’ पिछले हफ्ते कसाब ने विशेष कोर्ट से कहा था कि वह एक पत्र मक्का भेजना चाहता है। अभियोजन पक्ष ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान छह गवाहों से पूछताछ की थी। इसके बाद अभियोजन ने कसाब तथा उसके साथी अबू इस्माइल द्वारा सीएसटी के समीप हमले के सीसीटीवी फुटेज दिखाने का आग्रह किया था। काजमी ने इस आग्रह पर आपत्ति जताई। जब कसाब ने फुटेज की सीडी मांगी तो विशेष जज एमएल टाहिलियानी ने उससे पूछा कि वह क्यों यह सीडी चाहता है।तब कसाब ने कोई जवाब नहीं दिया। जज ने कसाब से यह भी पूछा कि क्या उसके पास जेल में सीडी प्लेयर है तो उसने नकारात्मक उत्तर दिया। इस पर जज ने कहा कि कसाब को सीडी देने से कोई मतलब नहीं निकलेगा, क्योंकि उसके पास उसे देखने का कोई साधन नहीं है।
आप इन सारी बातों का क्या मतलब समझ पा रहे हैं? इस पूरी अदालती प्रक्रिया का क्या अर्थ निकल रहा है? कौन किसे बेवकूफ़ बनाने की कोशिश कर रहा है? जनता तो रेडीमेड है आप सबका अब्बास काज़मी और अजमल कसाब के बारे में क्या ख्याल है और ये मंत्री कौन है जो कि जीजाजी से मिलने गया था कहीं ये राष्ट्र ससुर तो नहीं बनना चाहता?????? हजारों सवाल और बस एक भड़ास का मंच...........
जय जय भड़ास

भाई संजय बेंगाणी और डा.सुभाष भदौरिया जी कल मैं आपके शहर आ रहा हूं

कल सुबह २५जुलाई अहमदाबाद में होगी आज रात में हम कुछ मित्र सड़क के रास्ते आ रहे हैं देखिये अगर सब खैरियत रही और आप लोगों की नजर इस पोस्ट पर पड़ गयी तो अवश्य आप दोनो के दर्शन का सौभाग्य मिलेगा। मेरे पास आप लोगों का मोबाइल नं। नहीं है तो अपना ही लिखे दे रहा हूं यदि आप ने सम्पर्क करा तो अवश्य मिलेंगें।
मेरा नं। है -9224496555
जय जय भड़ास





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आज
न जाने क्यो मेरा दिल जल रहा है ,
कोई प्यार को कर रहा है बदनाम ,
कर के ख़ुद ही ग़लत काम ,
न जाने क्यो प्रमिका के बाप को कर रहा है बदनाम ,
आज न जाने क्यो मेरा दिल जल रहा है ,
चाहे अगर दूसरी को तो ,
क्यो कर रहा है रिस्तो को बर्बाद ,
देख कर अख़बार ,
आज मेरा दिल जल रहा है .
किसी भी साईट पर जाओ ,
दिख रहा है ,
लड़की का सिर्फ़ जिस्म ,
हया कहा गई ?,
आज न जाने क्यो मेरा दिल जल रहा है ,
कोई मुझे भी जला दो ,
न निकल सकगी भड़ास ,
न जाने क्यो मेरा दिल जल रहा है ....

क्या आप गटारी अमावस्या के बारे में जानते हैं?

मैं जब से महाराष्ट्र मे रह रहा हूं तब से यहां की परम्पराओं के बारे में जानने का कौतूहल हमेशा से रहने की वजह से पूछताछ करता ही रहता हूं। श्रावण माह के शुरू होने पर बहुत सारे लोग जो कि श्रावण को एक पवित्र माह मानते हैं वे मांसाहार और शराब बंद कर देते हैं। लेकिन राष्ट्र के अंदर महाराष्ट्र हो और उसमें कुछ "महा" न हो तो बात जमती नहीं है। श्रावण माह शुरू होने से एक दिन पहले अमावस्या होती है वह दिन एक पर्व के रूप में समाज में घुसा है और लोग इस पर्व को जोरशोर से मनाते हैं, ध्यान रहे कि ये पर्व धार्मिक नहीं होता यानि कि कोई पूजापाठ नहीं होती है। इसे मनाने का तरीका अत्यंत विचित्र है। शराब और मांसाहार करने वाले लोग इस दिन को साल में वैसा दिन मानते हैं कि इस दिन के बाद पूरा श्रावण वो सुरापान और मांसाहार से वंचित रहने वाले हैं तो इस दिन वे पूरे महीने का कोटा पूरा करने के लिये डट कर मटन मुर्गा खाते हैं और इस सीमा तक दारू पीते हैं कि तर्राट होकर सीधे गटर तक पहुंच जाएं। यही कारण है कि इस दिन को "गटारी अमावस्या" कहा जाता है। वैसे जो परम्परावादी है वो ही इस पर्व को मनाते हैं साधारण आदमी के लिये तो रोज ही गटारी अमावस्या रहती है कि बस देसी चढ़ायी और टट्टू हो कर सीधे गटर में.......। परम्पराओं का सरंक्षण करा जाना चाहिए खास तौर पर इस तरह की मूल्यवान परंपराएं तो अवश्य ही बचाई जाएं जिन पर पाश्चात्य सभ्यता का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
जय जय भड़ास

मानसिक विकलांग स्त्री के गर्भधारण के बारे में.......

बच्चे को पैदा करने की सबसे पहली कार्यवाही तो संसार की सबसे सरल कामों में गिनी जाती है अगर पुरुष के काम आने वाले सारे कलपुर्जे दुरुस्त हैं। किन्तु जब बच्चा दुनिया में आ जाता है तब मां-बाप होने की जिम्मेदारी आ जाती है। यदि माता-पिता समझदार हैं,नैतिक हैं,स्वस्थ हैं,सामाजिक हैं तो बच्चे का विकास सही कर पाएंगे अन्यथा तो "दास मलूका कह गए सबके दाता राम....."। मानसिक व शारीरिक तौर पर पूर्णतया स्वस्थ स्त्री अगर बच्चे को जन्म दे तो बात अलग है लेकिन यदि यही बच्चा एक मानसिक विकलांग स्त्री के गर्भ से बलात्कार के फलस्वरूप पैदा हुआ हो तो क्या बात सामान्य है। अब इस मामले में हमारे देश की महान न्यायपालिका कूद कर तय करेगी कि क्या सही है ध्यान रहे कि अभी हाल ही में इसी न्यायपालिका की फैक्टरी से वह निर्णय बना कर निकाला गया था जिसमें कि सारे सामाजिक नैतिक मूल्यों को बहस के आधार पर ताक़ पर रख कर हमारे विद्वान जज अंकल ने फैसला दिया कि समलैंगिक संबंध अब दंडनीय कानूनी दायरे से बाहर होंगे। सोच लो ठाकुर...... अभी क्या क्या निर्णय आने बाकी हैं अगर तुम्हें कुछ चाहिये तो सही मौसम है एक याचिका दायर कर दो हो सकता है मनचाहा फैसला हो जाए।
जय जय भड़ास

अजमल कसाब ने अपराध क्यों स्वीकारा है??????

मैं पिछले कई दिनों से गहरे सदमें में हूं कि अजमल कसाब ने ये मान लिया कि वह गुनाहगार है। पहले अब्बास काजमी जी ने उसको जो घुट्टी पिलायी थी उसके कारण वह कहता रहा कि मैंने कोई अपराध नहीं करा। इस बीच उसके वकील अब्बास काजमी को भी ये रंचमात्र भी एहसास न हुआ कि वो वकालत के नाम पर जो कर रहा है मानवता के सामने कितना बड़ा गुनाह है भले ही देश की अदालत इसे अत्यंत संवैधानिक मानती है। अचानक कसाब को सदबुद्धि मिल गयी होगी ऐसा नहीं है या अब्बास काजमी को इंसानियत का एहसास हो गया होगा या फिर उनके समुदाय ने उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया होगा बल्कि ये तो मुझे लगता है कि एक नया टोटका है इन दोनो का जो कि भारत की आम जनता को बताना चाहते हैं कि देखो हमने तो अपराध स्वीकार भी लिया तो क्या उखाड़ लोगे क्योंकि कल को फिर हो सकता है बयान बदल जाए। यदि बयान बदलने की स्थिति न होगी तो संभव है कि कुछ नया पटाखा छोड़ दिया जाएगा। मुझे अपनी संवैधानिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है।
जय जय भड़ास

बुद्धिजीवियों की बरसात.....

हर कोई व्यस्त है सलाह देने में, हर लोग एक दुसरे को समझाने में लगे हैं कि ग़लत क्या है सही क्या है......योगगुरु अब योगगुरु नही रहे राजनीतिग्य बन गए हैं, योग साधना से उनका ध्यान अचानक ही समाज के घटते सांस्कृतिक मूल्यों की तरफ़ ज्यादा दिख रहा है.....धर्मगुरु भी अब धर्म छोड़ कर सब कुछ बताते हैं....


दूसरी तरफ़ एक बाढ़ सी आ गई है पत्रकारों की, पता नही कैसे, क्यों और कब लोगों ने पत्रकारों को अधिकार सौंपा की हर वो समस्या जो कि समस्या नही है अचानक ही मुद्दा बन जाती है, वैसे इसमे कोई बुराई नही परन्तु हर वो समस्या जो की आम जिंदगी से सरोकार रखती है इन पत्रकार बंधुओं को दिखता ही नही है........आज तक ना ही देखा ना ही सुना कि किसी भी अच्छे कदम जो कि सिस्टम ने उठाये हो उनको हमारे पत्रकारों ने लोगो तक पहुंचाया हो (उस पर इनका कहना है कि ये तो सिस्टम में इनका कर्तव्य है), एक भी स्तरीय बहस चाहे वो संसद में हो या फ़िर जन साधारण के बीच हमारे पत्रकारों को फूटी आँख नही सुहाता है, परन्तु लालू जी की हर वो बात जिसमे जनसाधारण के लिए भले ही कुछ न हो 24X7 देखने और सुनने को मिलता है........


पढ़े लिखे और अनुभवी लोग जो हमारी कार्यपनाली को चलाने के लिए जिम्मेदार है कि पतलून उतारने की ज़िम्मेदारी उन लोगों ने ले रखी है जिनकी शिक्षा और समझ की जानकारी शायद ही किसी आम जन को हो, दुसरे शब्दों में अगर आप कुछ नही हैं तो एक पत्रकार तो हैं ही...


बुद्धिजीवियों की खोज जारी है.......


लेखक : रणधीर झा

बुद्धिजीवियों की बरसात.....

हर कोई व्यस्त है सलाह देने मैं, हर लोग एक दुसरे को समझाने मैं लगे हैं की ग़लत क्या है सही क्या है......
योगगुरु अब योगगुरु नही रहे राजनितिक बन गए हैं, योग साधना से उनका ध्यान अचानक ही समाज के घटते सांस्कृतिक मूल्यों की तरफ़ ज्यादा दिख रहा है.....धर्मगुरु भी अब धर्म छोड़ कर सब कुछ बताते हैं....

दूसरी तरफ़ एक बाढ़ सी आ गई है पत्रकारों की, पता नही कैसे, क्यों और कब लोगों ने पत्रकारों को अधिकार सौंपा की हर वो समस्या जो की समस्या नही है अचानक ही मुद्दा बन जाती है, वैसे इसमे कोई बुराई नही परन्तु हर वो समस्या जो की आम जिंदगी से सरोकार रखती है इन पत्रकार बंधुओं को दीखता ही नही है........आज तक ना ही देखा ना ही सुना की किसी भी अच्छे कदम जो की सिस्टम ने उठाये हो उनको हमारे पत्रकारों ने लोगो तक पहुंचाया हो (
उस पर इनका कहना है की ये तोह सिस्टम का कर्तव्य है), एक भी स्तरीय बहस चाहे वो संसद मैं हो या फ़िर जन साधारण के बीच हमारे पत्रकारों को फूटी आँख नही सुहाता है, परन्तु लालू जी की हर वो बात जिसमे जनसाधारण के लिए भले ही कुछ न हो २४ * ७ देखने और सुनने को मिलता है........

पढ़े लिखे और अनुभवी लोग जो हमारी कार्यपनाली को चलाने के लिए जिम्मेदार है की पतलून उतारने की ज़िम्मेदारी उन लोगों ने ले रखी है जिनकी सिक्क्षा और समझ की जानकारी शायद ही किसी आम जन को हो, दुसरे शब्दों मैं अगर आप कुछ नही हैं तो एक पत्रकार तो हैं ही...

बुद्धिजीवियों की खोज जारी है.......






बुद्धिजीवियों की बरसात.....

हर कोई व्यस्त है सलाह देने मैं, हर लोग एक दुसरे को समझाने मैं लगे हैं की ग़लत क्या है सही क्या है......
योगगुरु अब योगगुरु नही रहे राजनितिक बन गए हैं, योग साधना से उनका ध्यान अचानक ही समाज के घटते सांस्कृतिक मूल्यों की तरफ़ ज्यादा दिख रहा है.....धर्मगुरु भी अब धर्म छोड़ कर सब कुछ बताते हैं....

दूसरी तरफ़ एक बाढ़ सी आ गई है पत्रकारों की, पता नही कैसे, क्यों और कब लोगों ने पत्रकारों को अधिकार सौंपा की हर वो समस्या जो की समस्या नही है अचानक ही मुद्दा बन जाती है, वैसे इसमे कोई बुराई नही परन्तु हर वो समस्या जो की आम जिंदगी से सरोकार रखती है इन पत्रकार बंधुओं को दीखता ही नही है........आज तक ना ही देखा ना ही सुना की किसी भी अच्छे कदम जो की सिस्टम ने उठाये हो उनको हमारे पत्रकारों ने लोगो तक पहुंचाया हो (
उस पर इनका कहना है की ये तोह सिस्टम का कर्तव्य है), एक भी स्तरीय बहस चाहे वो संसद मैं हो या फ़िर जन साधारण के बीच हमारे पत्रकारों को फूटी आँख नही सुहाता है, परन्तु लालू जी की हर वो बात जिसमे जनसाधारण के लिए भले ही कुछ न हो २४ * ७ देखने और सुनने को मिलता है........

पढ़े लिखे और अनुभवी लोग जो हमारी कार्यपनाली को चलाने के लिए जिम्मेदार है की पतलून उतारने की ज़िम्मेदारी उन लोगों ने ले रखी है जिनकी सिक्क्षा और समझ की जानकारी शायद ही किसी आम जन को हो, दुसरे शब्दों मैं अगर आप कुछ नही हैं तो एक पत्रकार तो हैं ही...

बुद्धिजीवियों की खोज जारी है.......






बुद्धिजीवियों की बरसात.....

हर कोई व्यस्त है सलाह देने मैं, हर लोग एक दुसरे को समझाने मैं लगे हैं की ग़लत क्या है सही क्या है......
योगगुरु अब योगगुरु नही रहे राजनितिक बन गए हैं, योग साधना से उनका ध्यान अचानक ही समाज के घटते सांस्कृतिक मूल्यों की तरफ़ ज्यादा दिख रहा है.....धर्मगुरु भी अब धर्म छोड़ कर सब कुछ बताते हैं....

दूसरी तरफ़ एक बाढ़ सी आ गई है पत्रकारों की, पता नही कैसे, क्यों और कब लोगों ने पत्रकारों को अधिकार सौंपा की हर वो समस्या जो की समस्या नही है अचानक ही मुद्दा बन जाती है, वैसे इसमे कोई बुराई नही परन्तु हर वो समस्या जो की आम जिंदगी से सरोकार रखती है इन पत्रकार बंधुओं को दीखता ही नही है........आज तक ना ही देखा ना ही सुना की किसी भी अच्छे कदम जो की सिस्टम ने उठाये हो उनको हमारे पत्रकारों ने लोगो तक पहुंचाया हो (
उस पर इनका कहना है की ये तोह सिस्टम का कर्तव्य है), एक भी स्तरीय बहस चाहे वो संसद मैं हो या फ़िर जन साधारण के बीच हमारे पत्रकारों को फूटी आँख नही सुहाता है, परन्तु लालू जी की हर वो बात जिसमे जनसाधारण के लिए भले ही कुछ न हो २४ * ७ देखने और सुनने को मिलता है........

पढ़े लिखे और अनुभवी लोग जो हमारी कार्यपनाली को चलाने के लिए जिम्मेदार है की पतलून उतारने की ज़िम्मेदारी उन लोगों ने ले रखी है जिनकी सिक्क्षा और समझ की जानकारी शायद ही किसी आम जन को हो, दुसरे शब्दों मैं अगर आप कुछ नही हैं तो एक पत्रकार तो हैं ही...

बुद्धिजीवियों की खोज जारी है.......






बुद्धिजीवियों की बरसात.....

हर कोई व्यस्त है सलाह देने मैं, हर लोग एक दुसरे को समझाने मैं लगे हैं की ग़लत क्या है सही क्या है......
योगगुरु अब योगगुरु नही रहे राजनितिक बन गए हैं, योग साधना से उनका ध्यान अचानक ही समाज के घटते सांस्कृतिक मूल्यों की तरफ़ ज्यादा दिख रहा है.....धर्मगुरु भी अब धर्म छोड़ कर सब कुछ बताते हैं....

दूसरी तरफ़ एक बाढ़ सी आ गई है पत्रकारों की, पता नही कैसे, क्यों और कब लोगों ने पत्रकारों को अधिकार सौंपा की हर वो समस्या जो की समस्या नही है अचानक ही मुद्दा बन जाती है, वैसे इसमे कोई बुराई नही परन्तु हर वो समस्या जो की आम जिंदगी से सरोकार रखती है इन पत्रकार बंधुओं को दीखता ही नही है........आज तक ना ही देखा ना ही सुना की किसी भी अच्छे कदम जो की सिस्टम ने उठाये हो उनको हमारे पत्रकारों ने लोगो तक पहुंचाया हो (
उस पर इनका कहना है की ये तोह सिस्टम का कर्तव्य है), एक भी स्तरीय बहस चाहे वो संसद मैं हो या फ़िर जन साधारण के बीच हमारे पत्रकारों को फूटी आँख नही सुहाता है, परन्तु लालू जी की हर वो बात जिसमे जनसाधारण के लिए भले ही कुछ न हो २४ * ७ देखने और सुनने को मिलता है........

पढ़े लिखे और अनुभवी लोग जो हमारी कार्यपनाली को चलाने के लिए जिम्मेदार है की पतलून उतारने की ज़िम्मेदारी उन लोगों ने ले रखी है जिनकी सिक्क्षा और समझ की जानकारी शायद ही किसी आम जन को हो, दुसरे शब्दों मैं अगर आप कुछ नही हैं तो एक पत्रकार तो हैं ही...

बुद्धिजीवियों की खोज जारी है.......






बुद्धिजीवियों की बरसात.....

हर कोई व्यस्त है सलाह देने मैं, हर लोग एक दुसरे को समझाने मैं लगे हैं की ग़लत क्या है सही क्या है......
योगगुरु अब योगगुरु नही रहे राजनितिक बन गए हैं, योग साधना से उनका ध्यान अचानक ही समाज के घटते सांस्कृतिक मूल्यों की तरफ़ ज्यादा दिख रहा है.....धर्मगुरु भी अब धर्म छोड़ कर सब कुछ बताते हैं....

दूसरी तरफ़ एक बाढ़ सी आ गई है पत्रकारों की, पता नही कैसे, क्यों और कब लोगों ने पत्रकारों को अधिकार सौंपा की हर वो समस्या जो की समस्या नही है अचानक ही मुद्दा बन जाती है, वैसे इसमे कोई बुराई नही परन्तु हर वो समस्या जो की आम जिंदगी से सरोकार रखती है इन पत्रकार बंधुओं को दीखता ही नही है........आज तक ना ही देखा ना ही सुना की किसी भी अच्छे कदम जो की सिस्टम ने उठाये हो उनको हमारे पत्रकारों ने लोगो तक पहुंचाया हो (
उस पर इनका कहना है की ये तोह सिस्टम का कर्तव्य है), एक भी स्तरीय बहस चाहे वो संसद मैं हो या फ़िर जन साधारण के बीच हमारे पत्रकारों को फूटी आँख नही सुहाता है, परन्तु लालू जी की हर वो बात जिसमे जनसाधारण के लिए भले ही कुछ न हो २४ * ७ देखने और सुनने को मिलता है........

पढ़े लिखे और अनुभवी लोग जो हमारी कार्यपनाली को चलाने के लिए जिम्मेदार है की पतलून उतारने की ज़िम्मेदारी उन लोगों ने ले रखी है जिनकी सिक्क्षा और समझ की जानकारी शायद ही किसी आम जन को हो, दुसरे शब्दों मैं अगर आप कुछ नही हैं तो एक पत्रकार तो हैं ही...

बुद्धिजीवियों की खोज जारी है.......






नीतीश का एक और शिगूफा !!

शादी-विवाह या शुभ मौकों पर नांच-गाकर लोगों का दिल बहलाने वाले किन्नरों को आप जल्द ही महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जागरूक करते देखेंगे। किन्नरों को ऐसा करते देखना अपने आप में भले ही आश्चर्य करने वाला हो लेकिन बिहार सरकार इस आश्चर्य को भी साकार करने की तैयारियों में जुटी हुई है। बिहार सरकार किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अभिनव प्रयोग कर रही है। सरकार ने हाल ही में किन्नरों की सहायता से कर चोरी करने के आदि हो चुके लोगों से सफलतापूर्वक कर वसूली की है।

राज्य सरकार अब इन किन्नरों के पुनर्वास की योजना बना रही है। प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री दामोदर राउत ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि सरकार जल्द ही किन्नरों के पुनर्वास के लिए एक योजना आरंभ करेगी। उन्होंने कहा, "इस योजना पर अभी काम चल रहा है। किन्नरों के लिए पुनर्वास योजना जल्द ही साकार होगी।"

समाज कल्याण मंत्रालय के निदेशक मसूद हसन ने कहा, "किन्नरों को साक्षर बनाकर व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे उन्हें समाज में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने का मौका मिलेगा। किन्नरों को मुफ्त में यह प्रशिक्षण दिया जाएगा।"

इस संबंध में मान्यता प्राप्त गैर सरकारी संगठनों से किन्नरों के बारे में सर्वे कर विस्तृत जानकारी इकट्ठा करने के लिए आवेदन आमंत्रित करने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है।

उल्लेखनीय है कि राज्य के किन्नरों ने पिछले साल रोजगार, विवाह और बच्चा गोद लेने के अधिकार की मांग करते हुए कल्याणकारी संगठनों का गठन किया था।

किन्नरों के नेता काली हिजरा का कहना है, "हम सदियों से बहुत कुछ झेलते आ रहे हैं। हममें से अधिक गरीबी में जीते हैं। मुगल काल की तर्ज पर हम अपनी एक पहचान चाहते हैं।" उन्होंने बताया कि मुगल काल में किन्नरों को रानियों की सहयोगी बनाकर और स्त्रीगृहों की सुरक्षा का काम देकर उन्हें रोजगार दिया जाता था।

नीतीश का एक और शिगूफा !!

शादी-विवाह या शुभ मौकों पर नांच-गाकर लोगों का दिल बहलाने वाले किन्नरों को आप जल्द ही महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जागरूक करते देखेंगे। किन्नरों को ऐसा करते देखना अपने आप में भले ही आश्चर्य करने वाला हो लेकिन बिहार सरकार इस आश्चर्य को भी साकार करने की तैयारियों में जुटी हुई है। बिहार सरकार किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अभिनव प्रयोग कर रही है। सरकार ने हाल ही में किन्नरों की सहायता से कर चोरी करने के आदि हो चुके लोगों से सफलतापूर्वक कर वसूली की है।

राज्य सरकार अब इन किन्नरों के पुनर्वास की योजना बना रही है। प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री दामोदर राउत ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि सरकार जल्द ही किन्नरों के पुनर्वास के लिए एक योजना आरंभ करेगी। उन्होंने कहा, "इस योजना पर अभी काम चल रहा है। किन्नरों के लिए पुनर्वास योजना जल्द ही साकार होगी।"

समाज कल्याण मंत्रालय के निदेशक मसूद हसन ने कहा, "किन्नरों को साक्षर बनाकर व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे उन्हें समाज में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने का मौका मिलेगा। किन्नरों को मुफ्त में यह प्रशिक्षण दिया जाएगा।"

इस संबंध में मान्यता प्राप्त गैर सरकारी संगठनों से किन्नरों के बारे में सर्वे कर विस्तृत जानकारी इकट्ठा करने के लिए आवेदन आमंत्रित करने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है।

उल्लेखनीय है कि राज्य के किन्नरों ने पिछले साल रोजगार, विवाह और बच्चा गोद लेने के अधिकार की मांग करते हुए कल्याणकारी संगठनों का गठन किया था।

किन्नरों के नेता काली हिजरा का कहना है, "हम सदियों से बहुत कुछ झेलते आ रहे हैं। हममें से अधिक गरीबी में जीते हैं। मुगल काल की तर्ज पर हम अपनी एक पहचान चाहते हैं।" उन्होंने बताया कि मुगल काल में किन्नरों को रानियों की सहयोगी बनाकर और स्त्रीगृहों की सुरक्षा का काम देकर उन्हें रोजगार दिया जाता था।

पंचायत याने कि जंगल राज, पुरे देश में पंचायती राज लाओ, देश को जंगल राज बनाओ.

झज्जर। हरियाणा के झज्जर जिले में समान गोत्र की लड़की से शादी करने वाले एक युवक को पंचायत ने तुगलकी फरमान सुनाया है। पंचायत ने युवक से कहा है कि वह अपनी पत्नी को तलाक देकर उसे बहन मान ले या फिर उसका परिवार गांव छोड़ दे।

दिल्ली के एक परिवहन कंपनी में काम करने वाले रविंदर गहलोत ने चार माह पहले पानीपत के पास सिवाह गांव की रहने वाली शिल्पा से प्रेम विवाह किया था। गहलोत और शिल्पा जब एक पूजा में शामिल होने पिछले दिनों गांव आए तो उनके समान गोत्र के होने की बात गांव में फैल गई।

इसपर गांव की पंचायत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि या तो गहलोत उस लड़की को तलाक दे दे या फिर उसका परिवार रविवार तक गांव छोड़ दे। यहा तक की पंचायत ने गहलोत और उसके परिवार से बात करने वालों पर भी जुर्माना लगाने का फैसला सुनाया है।

पंचायत के इस फेतले से परेशान गहलोत ने शुक्रवार को जहर खाकर खुदकुशी करने की कोशिश की। जिला प्रशासन पीडि़त पिरवार को सुरक्षा मुहैय्या करा रहा है। झज्जर के कार्यवाहक उपायुक्त साकेत कुमार ने कहा कि प्रशासन पीड़ित परिवार को पूरी सुरक्षा मुहैया कराएगा।

उन्होंने कहा कि "किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी"। मामले पर नजर रखने के लिए ड्यूटी मजिस्ट्रेट समेत अधिकारियों की नियुक्ति की गई है।

गहलोत को रोहतक के अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उसकी हालत स्थिर है। अभी वह बयान देने की स्थिति में नहीं है। डाक्टर उसकी निगरानी कर रहे हैं।

पंचायत याने कि जंगल राज, पुरे देश में पंचायती राज लाओ, देश को जंगल राज बनाओ.

झज्जर। हरियाणा के झज्जर जिले में समान गोत्र की लड़की से शादी करने वाले एक युवक को पंचायत ने तुगलकी फरमान सुनाया है। पंचायत ने युवक से कहा है कि वह अपनी पत्नी को तलाक देकर उसे बहन मान ले या फिर उसका परिवार गांव छोड़ दे।

दिल्ली के एक परिवहन कंपनी में काम करने वाले रविंदर गहलोत ने चार माह पहले पानीपत के पास सिवाह गांव की रहने वाली शिल्पा से प्रेम विवाह किया था। गहलोत और शिल्पा जब एक पूजा में शामिल होने पिछले दिनों गांव आए तो उनके समान गोत्र के होने की बात गांव में फैल गई।

इसपर गांव की पंचायत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि या तो गहलोत उस लड़की को तलाक दे दे या फिर उसका परिवार रविवार तक गांव छोड़ दे। यहा तक की पंचायत ने गहलोत और उसके परिवार से बात करने वालों पर भी जुर्माना लगाने का फैसला सुनाया है।

पंचायत के इस फेतले से परेशान गहलोत ने शुक्रवार को जहर खाकर खुदकुशी करने की कोशिश की। जिला प्रशासन पीडि़त पिरवार को सुरक्षा मुहैय्या करा रहा है। झज्जर के कार्यवाहक उपायुक्त साकेत कुमार ने कहा कि प्रशासन पीड़ित परिवार को पूरी सुरक्षा मुहैया कराएगा।

उन्होंने कहा कि "किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी"। मामले पर नजर रखने के लिए ड्यूटी मजिस्ट्रेट समेत अधिकारियों की नियुक्ति की गई है।

गहलोत को रोहतक के अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उसकी हालत स्थिर है। अभी वह बयान देने की स्थिति में नहीं है। डाक्टर उसकी निगरानी कर रहे हैं।

एक और नेता बड़ी, अदालत याने की नेता के बड़ी होने का ठिकाना.

पाकिस्तानी समाचार चैनल 'जियो टीवी' के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि विमान अपहरण के मामले में शरीफ के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। शरीफ के खिलाफ यह मामला पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की सरकार ने दर्ज कराया था। गत 18 जून को इस मामले की सुनवाई के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

कराची की आतंकवाद-निरोधक अदालत ने अप्रैल 2000 में शरीफ को दोषी ठहराते हुए दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। शरीफ को 12 अक्टूबर 1999 को मुशर्रफ और 200 अन्य यात्रियों वाले विमान को कराची हवाई अड्डे पर उतरने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था। उसी दिन मुशर्रफ ने रक्तहीन क्रांति के जरिए शरीफ का तख्ता पलट कर दिया था।

शरीफ ने इस फैसले पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया मे कहा था कि इससे वह राहत महसूस कर रहे हैं और अपने बरी होने के लिए वह अल्लाह के शुक्रगुजार हैं। उन्होंने कहा, "अल्लाह ने सच्चाई का फैसला किया है और अब मैं दिन-रात पाकिस्तान की अवाम के लिए काम करूंगा।"

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने अदालत के फैसले पर शरीफ को बधाई दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार गिलानी ने कहा कि अदालत का फैसला लोकतंत्र का प्रमाण है जबकि जरदारी ने कहा कि इस फैसले ने शरीफ के लिए चुनावी राजनीति में कदम रखने के रास्ते खोल दिए हैं।

इससे पहले विमान अपहरण के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद 21 साल तक शरीफ के किसी सार्वजनिक पद पर आसीन होने पर रोक लगा दी गई थी और उन पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। जेल में बंद रहने के वह मुशर्रफ के साथ समझौता कर निर्वासन पर जाने को राजी हो गए थे। वर्ष 2008 के आम चुनावों में शरीफ को वतन लौटने की इजाजत मिली थी।

एक और नेता बड़ी, अदालत याने की नेता के बड़ी होने का ठिकाना.

पाकिस्तानी समाचार चैनल 'जियो टीवी' के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि विमान अपहरण के मामले में शरीफ के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। शरीफ के खिलाफ यह मामला पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की सरकार ने दर्ज कराया था। गत 18 जून को इस मामले की सुनवाई के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

कराची की आतंकवाद-निरोधक अदालत ने अप्रैल 2000 में शरीफ को दोषी ठहराते हुए दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। शरीफ को 12 अक्टूबर 1999 को मुशर्रफ और 200 अन्य यात्रियों वाले विमान को कराची हवाई अड्डे पर उतरने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था। उसी दिन मुशर्रफ ने रक्तहीन क्रांति के जरिए शरीफ का तख्ता पलट कर दिया था।

शरीफ ने इस फैसले पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया मे कहा था कि इससे वह राहत महसूस कर रहे हैं और अपने बरी होने के लिए वह अल्लाह के शुक्रगुजार हैं। उन्होंने कहा, "अल्लाह ने सच्चाई का फैसला किया है और अब मैं दिन-रात पाकिस्तान की अवाम के लिए काम करूंगा।"

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने अदालत के फैसले पर शरीफ को बधाई दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार गिलानी ने कहा कि अदालत का फैसला लोकतंत्र का प्रमाण है जबकि जरदारी ने कहा कि इस फैसले ने शरीफ के लिए चुनावी राजनीति में कदम रखने के रास्ते खोल दिए हैं।

इससे पहले विमान अपहरण के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद 21 साल तक शरीफ के किसी सार्वजनिक पद पर आसीन होने पर रोक लगा दी गई थी और उन पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। जेल में बंद रहने के वह मुशर्रफ के साथ समझौता कर निर्वासन पर जाने को राजी हो गए थे। वर्ष 2008 के आम चुनावों में शरीफ को वतन लौटने की इजाजत मिली थी।

मैं टॉयलेट में लंच - डिनर करता हूँ इसपर कानूनी मोहर लगा दें

चिकित्सक हूं तो एनल-फ़ीडिंग(गुदा मार्ग से तरल भोजन देना) के बारे में समझता हूं। जाहिर सी बात है कि भोजन करना मेरा निजी मामला है। मुझे ये इतना पसंद है कि कुछ मत पूछिये। मैं अपने मुंह को बस बकबकाने के लिये ही रखना चाहता हूं और अपना पिछवाड़ा खाना खाने के लिये। थोड़ी सी चबाने में दिक्कत होगी क्योंकि पीछे दांत नहीं है लेकिन एक अच्छी बात है कि दांतों में अन्नकण नहीं फंसेंगे और न ही दांतों में सड़न होगी, टूथपेस्ट और टूथब्रश का खर्चा भी बचेगा। हो सकता है कि कुछ पुराने ख्यालातों के दकियानूसी लोगों को ये बात पसंद न आए और लगे कि बात अननेचुरल सी है परन्तु उन्हें नहीं पता है कि नेचर में "स्टार फिश" नामक समुद्री जीव में कुदरत ने भोजन करने और पचने के बाद निकलने का एक ही रास्ता बना या है अब आप उसे मुंह कह लें या गां...., ये आपकी श्रद्धा है। इस तरह मैंने तार्किक तौर पर सिद्ध कर दिया कि कुदरत में ऐसा होता है यानि मेरी पसंद अननेचुरल तो हरगिज नहीं है। बस सामान्य लोगों से थोड़ी भिन्न है। अतः भारत सरकार से निवेदन है कि वह मुझे इस किस्म का अकेला प्राणी मानते हुए "अति अल्पसंख्यक" घोषित कर दे और मुझे किसी भी दंड का पात्र न माना जाए। इस बात को जैसे ही कानूनी मान्यता मिलेगी हमारे भारतीय राजनेता जो कि मुंह का अधिकांश उपयोग बकबक करने में ही करते हैं मेरी इस जमात में शामिल हो जाएंगे। हो सकता है कि बाई जी अंजली गोपालन जो कि "नाज़ फाउंडेशन" की संस्थापक हैं उनकी हम पर नजर पड़ जाए और वे हमें भी किसी तरह अपनी दया के लायक समझ लें।
जय जय भड़ास

भारत सरकार की जानकारी में भारतीय साइबर स्पेस में मात्र एक ही पोर्न वेबसाइट है

सविता भाभी कार्टून अश्लील वेबसाइट भारतीय सरकार द्वारा नए कानूनों की कि अधिकारियों खतरनाक वेबसाइटों ब्लॉक करने की अनुमति पहला लक्ष्य, मुंबई में पिछले साल के आतंकवादी हमलों के बाद पारित, seductress काल्पनिक गृहिणी की है अवरुद्ध कर दिया गया है। सविता भाभी साइट दैनिक कार्टून स्ट्रिप्स की श्रृंखलाबद्ध पोर्न है। सविता भाभी भारतीय मूल के एक ब्रिटिश उद्यमी पुनीत अग्रवाल द्वारा बनाया गया था । सविता भाभी की वेबसाइट से पहले भारत में 60 लाख दर्शकों एक महीने के बारे में उनमें से 70 प्रतिशत भारत से आकर्षित कर रहा था उसे अवरुद्ध किया जा रहा है। भारत सरकार ने सविता भाभी की साइट को ब्लॉक करने के लिए इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के आदेश दिए, यह कानून की सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के अंतर्गत हैं।  सरकार का कहना है कि "इस संप्रभुता या भारत की अखंडता, रक्षा और राज्य 'की सुरक्षा या कि" विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को' खतरे में पड़ धमकी वेबसाइटों पर प्रतिबंध की अनुमति देता है. क्या कई कि कैसे पर्याप्त छाती, तंग साड़ी और शरारती मुसकान, सविता भाभी - एक कार्टून charector, भारत की पहली और एकमात्र ऑनलाइन कार्टून पॉर्न स्टार, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है? जबकि परंपरागत कट्टर पोर्नोग्राफी साइटों को अप्रतिबंधित उपयोग की अनुमति देने के लिए जारी रखने कैसे न्यायोचित भारत सरकार के निर्णय सविता भाभी वेबसाइट काली है? वहाँ या भारतीय अधिकारियों को बहुत कुछ करना है तो बस बहुत ज्यादा कर रहे हैं? शायद हो सकता है कि बाकी पोर्न साइट्स वालों से जो उगाही ये अधिकारी करते होंगे पुनीत अग्रवाल ने देने से मना कर दिया होगा।
जय जय भड़ास

आओ सब एक साथ मिले

सोचो सोचो

दोस्तों किसी भी विवाद को तुंरत ख़तम करने के लिए , क्यो न हम सभी भडासी भाई सप्ताह के एक दिन नेट पर एक ही समय दस्तक दे , और यदि सम्व्भव हो तो सभी याहू messanger के द्वारा आपस मे लाइव चेट कर ले , साथ मे आपस मे बाते तो सुन ही संकते है यदि आप सभी सहमत है तो बताये

एक सच ये भी है










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सिर्फ़ परचार केलिए भी सब होता है /

यार लड़ते ही रहोगे या कुछ ......................

मुन्नाभाईः बापू.....बोले तो अपुन को आज कल एक प्राब्लम हो गएला है...
बापू :बोलो मुन्ना, दिल खोल के बोलो...

मुन्नाभाई: अपुन को आज कल ..... बोले तो ऑरकुट पर कोई स्क्रैप नहीं करता...
...साला सब लोग गायब हो गयेले हैं!!

बापू: ऐसे नहीं बोलते मुन्ना। मेरे पास इस का हल है. रास्ता मुश्किल है लेकिन जीत पक्की है.
मुन्ना भाई :जल्दी बोलो ना बापू, अगर तुमको कान्फीडेंस है तो अपुन ज़रुर करेगा।

बापू: तो सुनो..... तुम स्क्रैप करते रहो.... तब तक करते रहो.... जब तक तुम्हे कोई स्क्रैप नहीं करता.
कभी तो उनका ह्रदय परिवर्तन होगा. वो भी तुम्हे सक्रैप करेगा....

क्या कोई कुतिया,बकरी या सुअरिया मुझसे शादी करना चाहती है?

नाज़ फाउंडेशन की संस्थापक बाई जी अंजली गोपालन इतनी करुणा से भरी हैं कि भड़ासी उन्हें ंडवत प्रणाम करना चाहते हैं। परेशानी बस इतनी है कि बाई जी की करुणा का क्षेत्र मात्र प्राणियों की जांघों के बीच के कलपुर्ज़े ही हैं। बाई जी को विषमलैंगिक संबंधों में कुछ खासियत नहीं प्रतीत होती है। इसलिये उन महान लोगों पर अपनी करुणा बरसा दी जो कि पिछाड़ी के उल्टे तवे पर आमलेट बनाना पसंद करते हैं। बाई जी को उन मासूम युवतियों पर भी गजब का नाज़ है जो कि आपस में ही "न सूत न कपास जुलाहे से लट्ठम लट्ठा" वाली तर्ज़ पर यौन-मशक्कत(ये शब्द हिंदी और उर्दू के नाजायज़ संबंधों की पैदाइश है) करती रहती हैं। मुझे बेकार में ही गलतफ़हमी है कि बाईजी के महान व्यक्तित्त्व की फ़ाउंडेशन भी विषमलैंगिक नहीं है जिसपर उन्हें इतना नाज़ है कि उन्होंने नाज़ फाउंडेशन ही बना लिया इन बातों पर नाज़ करते बैठने के लिये। इनकी याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट के हाल ही में समलैंगिकता के पक्ष में दिए गए फ़ैसले से बाई जी काफ़ी उत्साहित हैं। हो सकता है कि इसी उत्साह में आकर बाई जी अगली याचिका पशु-प्रेमियों के लिये कोर्ट में डाल दें। न...न....न....; आप गलत मत समझिये ये पशुप्रेमी मेनका गांधी के पशुप्रेमियों से थोड़े अलग होंगे। ये वो पशुप्रेमी होंगे जो कि अपनी यौन कुंठा के निराकरण के लिये पशुओं का प्रयोग करते हैं। हो सकता है कि विद्वान वकीलों की दलीलों से प्रभावित होकर जज अंकल फैसला सुना दें कि जब हमारे देश का कानून उन मासूम पशुओं को मारकर खा जाने से नहीं रोकता तो फिर उनकी मारने या उनसे मरवाने(क्या??? ये तो आप सब बखूबी जानते हैं इसलिये नहीं लिख रहा) में क्या आपत्ति है, जब हत्या अपराध नहीं है तो बलात्कार अपराध कैसे हो जाएगा? इसलिये मैं सोच रहा हूं कि अब जब खूसट हो चला हूं तो कोई पचास-पचपन साल की लड़की(हा...हा...हा... लड़की!!!) भी शादी को हामी भरे तो उसकी नजर मेरे ३५०० रु. की जमापूंजी के सेविंग बैंक एकाउंट पर ही होगी लेकिन अगर कोई कुतिया,बकरी या सुअरिया शादी की इच्छुक होगी तो वह मात्र आश्रय और भोजन चाहेगी। अंजली बाई जी! क्या आपकी नजरों में कोई कुतिया,बकरी या सुअरिया है(गधी या घोड़ी तो अपने बस की न होगी भाई....) तो भड़ास पर अवश्य सूचित करें। शादी तय होते ही सारे भड़ासियों को बारात का न्योता भी देना है तो जरा समय दे दीजियेगा।
जय जय भड़ास

सडांध भरी है न जाने कहा कहा

अपने बदन का मैल तो
मैं साफ़ कर लूँगा धो कर
अपने सड़े हुए अंग को भी
अलग कर सकता हूँ
अपने शरीर से
पर मस्तिष्क की सड़ाँध
का क्या करूँ??
न तो धो सकता इसे
और न ही यह
किसी आप्रेशन से
अलग हो सकती है
बस इस सड़ाँध से
मैं कर सकता हूँ
कोरे पन्ने ही
काले-पीले
जिससे तुम्हें
कुछ तो आभास हो
मन की सड़ाँध का !

लो क सं घ र्ष !: औसत का खेल

मुझे इस बात का जरा भी भान न था कि मैं अपने लिए एक मोटरसाइकल नहीं, एक नई मुसीबत मोल ले रहा हूं। खैर, जो होना था सो हो गया। यह हम जैसे आम आदमी का मूलमंत्र है। मोटरसाइकल मैंने अपनी सहुलियत के लिए ली थी। कही आने-जाने में आसानी होती। समय की बचत सो अलग। मोटरसाइकल पर बैठ कर मेरी गतिशीलता में वृद्धि होती। इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए, मैंने एक मोटसाइकल खरीदी। अभी उसे ले कर घर आता नहीं हूं कि मेरे पड़ोसी पूछ उठाते हैं,‘‘ कितने का एवरेज कंपनी वाले क्लेम कर रहे है।’’ पड़ोसी का मतलब गाड़ी के माइलेज से था। उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा,‘‘ कंपनी वाले जितना बताए उससे दस-बीस किलोमीटर कम मान कर चलना चाहिए, भाईसाहब।’’ पहले दिन से ही यह सवाल ‘ क्या एवरेज दे रही है!’ मेरे पीछे लग गया। मैं जहाँ जाता, यह सवाल मुझसे टकरा जाता। कभी सीधे-सीधे , तो कभी एक लंबी भूमिका के बाद। कभी यह मेरी गाड़ी के पीछे-पीछे आता, तो कभी मुझसे पहले ही पहुंच जाता। गाड़ी लेने के बाद शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब यह सवाल ‘ क्या एवरेज दे रही है ’ मुझ पर न दागा गया हो। मेरा जवाब सिर्फ इतना होता,‘‘पता नहीं’’। मेरा जवाब सुनकर लोग मुझ पर शक करते। जबकि मैं अपने जानिब उन्हें सही कहता । कुछ दिन बाद मेरी हालत यह हो गई, जैसे ही कोई ‘ क्या एवरेज दे रही है ’ पूछता, मुझे सांप सूंघ जाता। गाड़ी चलाने को मजा फुर्र हो जाता। नई-नई गाड़ी लाने के उत्साह के समंदर को, यह सवाल एक पल में खाली कर देता। आखिर,, मैंने ठान लिया कि गाड़ी का एवरेज पता करके छोडूंगा। फिर शुरू हुआ मेरा एवरेज पता लगाने का एक अंतहीन सिलसिला। जिसने मेरी मानसिक शांति को हर लिया। गाड़ी में कितना पेट्रोल है ! गाड़ी कितने किलोमीटर चली ! कल कितने का एवरेज दिया ! आज कितने का एवरेज है ! एक-एक बात का, मैं हिसाब रखने लगा। गाड़ी जब अधिक एवरेज देती, तो खुशी का ठिकाना न रहता। मगर अगले दिन का कम एवरेज मेरे कल की खुशी को ठिकाने लगा देता। एवरेज कम आने पर पेट्रोल की गुणवत्ता कभी मेरे निशाने पर होती, तो कभी शहर का टैªफिक। एवरेज कम आने के कारणों में भिन्नता हो सकती थी, मगर एवरेज अधिक आने का सारा श्रेय सिर्फ और सिर्फ मेरी गाड़ी चलाने की कुशलता को जाता। उन दिनों मेरी हालत देखकर आप मुझे एवरेज का मारा कह सकते थे। एवरेज यानी औसत। इस शब्द ने पहले कभी मेरा घ्यान नहीं खींचा था। मोटरसाइकिल लेने के बाद औसत को लेकर मैं बुरी तरह से उलझ गया। हालांकि मोटरसाइकिल से मेरा स्नेह बराबर बना रहा, मगर औसत ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं उसके बारे में कुछ सोचूं। कुछ सवाल मेरे जहन में उठने लगे। मसलन, इसकी उत्पति कैसे हुई ! अविष्कारक कौन है ! औसत प्रचलन में कैसे आया ! औसत मुझे बड़ा ही चमत्कारी लगा, जब इसके विषय में मैं सोचने लगा। आखिर क्यों, नितिनियंता इस एक शब्द का काफी इस्तेमाल करते हैं। मैंने इसके उत्पति के बारे में कल्पना की; -


बहुत समय पहले, किसी राज्य में एक राजा राज करता था। जो निरंकुश और विलासी था। प्रजा की भलाई छोड़, वो सुरा-सुंदरी में डूबा रहता। राज्य का सारा कार्यभार उसके कुछ चापलूस मंत्री चलाते । राजा की अकर्मण्यता और उदासीनता के चलते प्रजा की हालत दयनीय हो गई। जब स्थिति असहनीस हो गई, तब प्रजा ने विद्रोह कर दिया। उसने चारों तरफ से महल को घेर लिया। तब राजा ने घबराकर अपने मंत्रियों से अपातकालीन मंत्रणा की। राजा ने बदहवाशी में अपने मंत्रियों से कहा,‘‘ ऐसा कोई उपाय निकालो जिससे यह आसन्न संकट टल जाए। नहीं तो आज हम सब मारे जाएंगे। अगर प्रजा ने महल पर कब्जा करने की ठान ली, तो उसको हमारी सेना भी नहीं रोक पाएंगी।’’ तभी एक बूढा मंत्री मुस्कुराया। उसने कुछ सोच लिया था। वो राजा से बोला,‘‘ महाराज, आप चिंता न करें। मैंने एक ऐसा उपाय निकाला है कि प्रजा उल्टे पांव लौट जाएंगी।’’ राजा को सहसा विश्वास नहीं हुआ। परन्तु बूढे़ मंत्री के कहने पर, वो महल के बाहर आया। उसने देखा कि प्रजा नारे लगा रही, ‘ हम भूखे है हमंे रोटी दो !’ ‘हम नंगे है हमे कपडे़ दो !’ बूढ़ा मंत्री बोला, ‘‘भूखे हो तो रोटी खाओ। नंगे हो तो कपड़े मोल लो।’’ इस पर प्रजा चिल्लाई,‘‘ हम कहां से खरीदे ! हमारे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है।’’ तभी बूढ़े मंत्री ने एक कागज का टुकड़ा निकाला और बोला,‘‘झूठ बोलते हो तुम सब, यह देखो इस कागज पर स्पष्ट लिखा है कि राज्य के प्रत्येक व्यक्ति के पास दस सोने के मोहरे है।’’ प्रजा अचरज में पड़ गयी। भला ये कैसे हो सकता है ! बूढ़ा मंत्री न जाने क्या बक रहा है ! प्रजा अभी कुछ कहती कि बूढ़ा मंत्री बोला,‘‘ इघर देखो, अभी मैं तुम सब को कुछ दिखाता हूं।’’ तब उसने राजकोष में जमा कुल मोहरों में राज्य की समस्त प्रजा से भाग दे दिया। चमत्कार ! सबके हिस्से में दस-दस मोहरंे आ गई। हिस्सेदारों में मंत्रियों के साथ राजा भी शामिल था।‘‘ मगर वो मोहरें हमें नहीं दिखती ! वो मोहरें है कहां!’’ प्रजा ने बूढे़ मंत्री से कहा। ‘‘ तुम सब के दिखने न दिखने से क्या होता है ! कागज पर तो दिख रही है न! अब सारे यहां से भाग जाओ , नहीं तो हाथियों से कुचलवा दूंगा।’’ बूढ़ा मंत्री गरजा। कागज में तो सबके हिस्से दस-दस मोहरें दिख रही थी। यह देख, प्रजा भुनभुनाते हुए लौट गई। तब बूढे़ मंत्री ने राजा से कहा,‘‘ देखा, महाराज औसत का खेल !’’ इस प्रकार औसत ने प्रजा के अंसतोष को असंमजस में डाल दिया और राजा का सिंहासन सुरक्षित रखा। तभी से औसत प्रचलन में आ गया और आज भी औसत हमारे निति नियंताओं का प्रिय बनकर उनके गोद में बैठा हुआ हैं।


अनूप मणि त्रिपाठी
ई- 5003 , सेक्टर - 12
राजाजी पुरम,लखनऊ
मो. न. 09956789394

धरती बचाओ अभियान का पत्र


डी.एस. पंवार
कर एवं बीमा सलाहकार
स्वामी अनूप दास का तुच्छ चरणसेवक

भारत के कुछ राम काव्य


आर्य धर्म के रक्षक, मानवता के त्राता, प्रजाप्राण लोकनायक श्रीराम भारत-भूमि के कण-कण में रमे हुए हैं। समय की विषम एवं दुराक्रांत स्थितियों ने श्रीराम को उत्पन्न किया, तब से लेकर हर युग के संक्रांति काल में उनका आदर्श और प्रेरक जीवन कवि-प्रतिभा के गर्भ से पुनः-पुनः अवतीर्ण होकर जनमानस को सत्पथ दिखलाता आ रहा है।

यह माना जाता है कि आदिकवि महर्षि वाल्मीकि से अनेक शताब्दियों पूर्व ही रामकथा को लेकर आख्यान-काव्य की रचना होने लगी थी किंतु, उस साहित्य के अप्राप्य होने से वाल्मीकि कृत रामायण को ही प्राचीनतम उपलब्ध रामकाव्य माना जाता है। इसकी रचना संभवतः ईसा-पूर्व चौथी शताब्दी के अंत में हुई। अधिक समय तक मौखिक रूप में प्रचलित रहने के कारण इसका रूप स्थिर नहीं रह सका और रामकथा के प्रारंभिक विकास के साथ-साथ इसमें परिवर्तन व परिवर्धन होता रहा। अनेक विद्वानों का यह भी मत है कि वाल्मीकि ने चारणों के गाथागीति के रूप में लोक प्रचलित वीराख्यान को ही प्रबंध का रूप देकर रामायण महाकाव्य की रचना की।

रामकथा और रामकाव्य के नायक राम के व्यक्तित्व में कितनी ऐतिहासिकता और कितनी कवि-कल्पना है, यह कहना बहुत कठिन है। परंतु, इस बात मे कोई संदेह नहीं है कि वाल्मीकि के महाकाव्य 'रामायण' ने ही सर्वप्रथम महामानव राम को लोकनायकत्व प्रदान किया। राम का जो गौरवपूर्ण चरित्र जगविख्यात है, उसका श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही है। उनके बाद रामकाव्य की परंपरा को आगे बढ़ाया जयदेव, कालिदास और तुलसीदास आदि महान कवियों ने। उन्होंने वाल्मीकि रामायण की ही कथावस्तु का अपनी-अपनी शैली में उपयोग कर रामोपाख्यान प्रस्तुत किए। हिंदी और संस्कृत साहित्य की इस रामकाव्य परंपरा ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र को और अधिक व्यापक बनाया।

रामकथा ने प्रत्येक कवि को प्रभावित किया है। इसीलिए आज विश्व की लगभग प्रत्येक भाषा में रामकथा उपलब्ध है। विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाओं का प्रथम महाकाव्य या सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य ग्रंथ प्रायः कोई रामायण ही है। इसके अतिरिक्त बहुत-सी अन्य रचनाएँ भी रामकथा से संबंधित है। कुछ महत्वपूर्ण अहिंदी भाषी रामकाव्यों का संक्षिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत है।




पउम चरिउ

लगभग छठी से बारहवीं शती तक उत्तर भारत में साहित्य और बोलचाल में व्यवहृत प्राकृति की उत्तराधिकारिणी भाषाएँ अपभ्रंश कहलाईँ। अपभ्रंश के प्रबंधात्मक साहित्य के प्रमुख प्रतिनिधि कवि थे- स्वयंभू (सत्यभूदेव), जिनका जन्म लगभग साढ़े आठ सौ वर्ष पूर्व बरार प्रांत में हुआ था। स्वयंभू जैन मत के माननेवाले थे। उन्होंने रामकथा पर आधारित पउम चरिउ जैसी बारह हज़ार पदों वाली कृति की रचना की। जैन मत में राजा राम के लिए पद्म शब्द का प्रयोग होता है, इसलिए स्वयंभू की रामायण को 'पद्म चरित' (पउम चरिउ) कहा गया। इसकी सूचना छह वर्ष तीन मास ग्यारह दिन में पूरी हुई। मूलरूप से इस रामायण में कुल 92 सर्ग थे, जिनमें स्वयंभू के पुत्र त्रिभूवन ने अपनी ओर से 16 सर्ग और जोड़े। गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरित मानस' पर महाकवि स्वयंभू रचित 'पउम चरिउ' का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है।




असमी रामायण

लगभग सातवीं शताब्दी में असमिया साहित्य के प्रथम काल के सबसे बड़े कवि माधव कंदलि ने कछारी राजा महामाणिक्य के प्रोत्साहन से 14 वीं शताब्दी में वाल्मीकि रामायण का सरल अनुवाद असमिया छंद में किया। एक गीति कवि दुर्गावर ने १६वीं शती में लौकिक वातावरण में गेय छंद में गीति-रामायण की रचना की। असमिया साहित्य के द्वितीय काल (वैष्णवकाल में) माधव कंदलि द्वारा अनूदित रामायण का कुछ अंश खो जाने के कारण इस काल के एक प्रमुख कवि और साहित्यकार शंकरदेव ने उत्तर कांड को पुनः अनूदित किया। शंकरदेव ने ही 'रामविजय' नामक नाटक की भी रचना की।



उड़िया रामायण

उड़िया-साहित्य के प्रथम प्रतिनिधि कवि सारलादास ने 'विलंका रामायण' की रचना की। अर्जुनदास ने 'राम विभा' नाम से रामोपाख्यान प्रस्तुत किया। परंतु, कवि बलरामदास द्वारा रचित रामायण उड़ीसा का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ माना जाता है।

बलरामदास की 'जगमोहन रामायण' अपने अनूठे प्रसंगों के लिए भी विख्यात है। उनकी यह कृति 'दक्षिणी रामायण' भी कहलाती है। इसके बाद १९वीं शती में आधुनिक युग में फकीर मोहन सेनापति ने 'रामायण' का पद्यानुवाद किया।



कन्नड़ः पंप रामायण

दक्षिण भारत की पाँच भाषाओं में से एक है- कन्नड़। कन्नड़ साहित्य के सन 950 से 1150 तक के पंप युग में एक अत्यंत प्रसिद्ध कवि हुए नागचंद्र, जिन्होंने 'पंप भारत' का अनुसरण करते हुए रामायण की रचना की। रामचंद्रचरित पुराण अथवा पंप रामायण कन्नड़ की उपलब्ध रामकथाओं में सबसे प्राचीन है।

तत्पश्चात 15वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के 'कुमार व्यास काल' में नरहरि अथवा कुमार वाल्मीकि नामक एक कवि ने वाल्मीकि रामायण के आधार पर तोरवे रामायण की रचना की। कन्नड़ साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति के रूप में यह आज भी जानी जाती है। इसी युग की अंतिम उन्नीसवीं शती में देवचंदर नामक एक जैन कवि ने 'रामकथावतार' लिखकर जैन रामायण की परंपरा को आगे बढ़ाया। इस शती के अंत में मुद्दण नामक एक अत्यंत सफल कवि ने अद्भूत रामायण नामक सरस काव्य-कृति की रचना की।



कश्मीरी रामायण

तेरहवीं सदी में कश्मीरी भाषा में साहित्य सृजन आरंभ हुआ। सन 1750 से 1900 के मध्य के प्रेमाख्यान काल में प्रकाश राम ने रामायण की रचना की। 18वीं शती के अंत में दिवाकर प्रकाण भट्ट ने भी 'कश्मीरी रामायण' की रचना की।



गुजराती रामायण

14वीं शती में आशासत में गुजराती में रामलीला विषयक पदावली की रचना की। फिर 15वीं शती में भालण ने सीता स्वयंवर अथवा राम-विवाह नामक रामकाव्य प्रस्तुत किया। गुजराती साहित्य में यही प्राचीनतम रामकाव्य माने जाते हैं। वर्तमान में समूचे गुजरात में १९वीं शताब्दी की गिरधरदास 'रामायण' सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है।



तमिल रामायण

तमिल भाषा द्रविड़ भाषा परिवार की प्राचीनतम भाषा मानी जाती है और महर्षि अगस्त्य इसके जनक कहे जाते हैं। तमिल साहित्य के प्रबंधकाल में आज से लगभग 12 सौ वर्ष पूर्व चक्रवर्ती महाकवि कंबन हुए, जिन्होंने 'कंब रामायण' नामक प्रबंध काव्य की रचना की। कुछ विद्वान कंबन और उनकी रामायण को १२वीं शताब्दी का मानते हैं और यह भी माना जाता है कि महाकवि कंबन गोस्वामी तुलसीदास से कम से कम चार सौ वर्ष पूर्व हुए थे।




तेलुगू साहित्य के दूसरे पुराण युग (सन 1050 से १1500 तक) में सबसे पहले रंगनाथ रामायण (13वीं शती) और फिर भास्कर रामायण(१४वीं शती) की रचना हुई। भास्कर रामायण को तेलुगू का सबसे कलात्मक रामकाव्य माना जाता है। तेलुगू साहित्य के स्वर्ण युग (प्रबंध युग) में अनुवादों की परंपरा रुक गई और कवियों की रुचि मौलिक प्रबंध लिखने की ओर बढ़ी। उसी क्रम में तेलुगू की चार महिला रामायणकारों ने अपनी-अपनी कृतियाँ प्रस्तुत कीं। ये थीं- मधुरवाणी की 'रघुनाथ रामायण', शीरभु सुभद्रमांबा की 'सुभद्रा रामायण', चेबरोलु सरस्वती की 'सरस्वती रामायण' तथा मोल्ल की 'मोल्ल रामायण'। 16वीं शताब्दी में मोल्ल नामक कुम्हारिन द्वारा रचित 'मोल्ल रामायण' जनसाधारण में अत्यधिक लोकप्रिय है।

तेलुगू साहित्य की सर्वप्रथम कवयित्री आतुकूरि मोल्ल तुलसीदास से लगभग 200 वर्ष पूर्व हुई थीं। अपने गुरु गोपवरम के श्रीकंठ मल्लेश की कृपा से मोल्ल कविता करना सीख गई। राज्याश्रय के लिए शिव और राम भक्त मोल्ल के पास भी निमंत्रण आया था परंतु उन्होंने उसे विनयपूर्वक अस्वीकार कर दिया। मोल्ल कहती थीं कि वे तो प्रभु रामचंद्र के कहने से उनका गुणगान करती है और उसे उन्हीं के चरणों में समर्पित कर देती हैं। 'मोल्ल रामायण' का अब हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है।



पंजाबी रामायण

सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी न केवल धर्म गुरु थे वरन वे एक महान संत, योद्धा और कवि भी थे। उनके द्वारा रचे गए कुल 11 ग्रंथों में से एक 'रामावतार' को गोविंद रामायण कहा जाता है। पंजाबी भाषा की यह महान रचना संभवतः सन 1698 में पूर्ण हुई थी। गुरु जी की रामकथा में धर्म युद्ध के घाव का भाव ही खूब उजागर हुआ है। 'गोविंद रामायण' से कुल 864 छंद है जिनमें 400 से अधिक छंदों में केवल यूद्ध का ही वर्णन है।


बंगाली रामायण

तुलसीदास से एक शताब्दी पूर्व बंगला के संत कवि पंडित कृत्तिवास ओझा ने 'रामायण पांचाली' नामक रामायण की रचना की। 15वीं शताब्दी में रचित यह रामायण बंगला जनजीवन का कंठहार है। पाँच साल में उन्होंने अपने इस अमर ग्रंथ को पूरा किया।

बंगाली रामकाव्य की कुछ अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं- नित्यानंद आचार्य (अद्भुताचार्य) की आश्चर्य रामायण, कविचंद्र कृत अंगद रायबार, रघुनंदन गोस्वामी कृत राम रसायन तथा चंद्रावती की रामायण गाथा। बंगाल के एक क्षेत्र विशेष में चंद्रावती की रामकथा के पद बेहद लोकप्रिय हैं।



मराठी रामायण

महाराष्ट्र में पैठण नामक स्थान में जन्मे संत एकनाथ गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे। उन्होंने काशी में तुलसीदास जी से भेंट की थी। उन्होंने 'भावार्थ रामायण' की रचना की थी। जिसे वह पूर्ण नहीं कर पाए और इसे पूरा किया उनके शिष्य गाववा ने।



मलयालम रामायण

चौदहवीं शताब्दी में 'रामायण' के युद्ध कांड की कथा के आधार पर प्राचीन तिरुवनांकोर के राजा ने रामचरित नामक काव्य ग्रंथ की रचना की। इसे मलयालम भाषा का प्रथम काव्य ग्रंथ माना जाता है। इसी शती में कवि राम प्पणिकर ने गेय छंदों में 'कणिश्श रामायण' की रचना की। इसके बाद रामकथा-पाट्ट रचा गया। फिर वाल्मीकि रामायण के अनुवाद के रूप में 'केरल वर्मा रामायण' की रचना हुई। मलयालम भाषा के सर्वाधिक लोकप्रिय राम काव्य के रूप में सन 1600 के लगभग एजुत्त चन द्वारा 'अध्यात्म रामायण' का अनुवाद प्रस्तुत किया गया।

अहिंदी भाषी रामकाव्य में 'रावणवहो' (रावण वध) महाराष्ट्री प्राकृत भाषा का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना कश्मीर के राजा प्रवरसेन द्वितीय ने की थी। प्राकृत साहित्य की इस अनुपम रचना का संस्कृत भाषा में सेतुबंध के नाम से अनुवाद हुआ।



नेपाली रामायण

१९वीं शताब्दी में कवि भानुभट्ट ने नेपाली भाषा में संपूर्ण रामायण लिखी। इस रामायण का आज नेपाल में वही मान है, जो भारत में तुलसीकृत रामचरितमानस का है।



अन्य रामायण

  • इस बात के प्रमाण भी उपलब्ध हैं कि मुगल शासनकाल में रामायण का फारसी भाषा में अनुवाद हुआ। राम कथा साहित्य की एक प्रसिद्ध रचना 'तोरवे रामायण' है, जिसकी रचना १६वीं शती में तोरवे नामक ग्राम के निवासी नरहरि द्वारा की गई।

यदि इन सब को भी झुठला सकते हो तो फ़िर बताओ हम तुम्हरे आत्मा की शान्ति के लिए और जानकारी आप को दे देगे - / क्या ये सारे रामायण भी जैनियो ने ही लिखी है , या इन सब मे मौजूद विरोधाभाष भी जैनियो ने ही किया है ?

आपका भाई -अमित जैन ...........:)

राक्षसों का एक और दुष्टतापूर्ण तरीके से प्रयोग करी जाने वाली चाल

राक्षसों का एक और दुष्टतापूर्ण तरीके से प्रयोग करी जाने वाली चाल आज आप सबके सामने लायी जा रही है। भड़ास के संचालन मंडल व वरिष्ठ भड़ासी भी इस बारे में ध्यान दें ताकि इन राक्षसों की काली करतूतें जाहिरी तौर पर आप सब समझ सकें। आप सब बखूबी जानते हैं कि जब कोई भी बंदा "ब्लागर" पर अपने ब्लाग को बनाता है तो उसे गूगल का एकाउंट धारक होना चाहिये वरना ये संभव ही नहीं है और जब आप इस एकाउंट के द्वारा कहीं भी टिप्पणी देते हैं तो यदि आपने अवरोधित नहीं कर रखा है तो आपका गूगल का ब्लागर प्रोफ़ाइल दिखता है जिसमें आपका फोटो आदि रहता है।
अमित जैन नामक राक्षस द्वारा लिखी पोस्ट्स पर इसके समर्थन में आपको जितनी भी टिप्पणियां मिली वे ९९% फ़र्जी हैं क्योंकि इनके साथ आप देखिए वही तरीका अपनाया जा रहा है जो कि भड़ास के माडरेटर डा.रूपेश श्रीवास्तव को बदनाम करने के लिये एक वरिष्ठ ब्लागर श्री सुरेश चिपलूणकर को लेकर अपनाया गया था। आप अमित जैन की पोस्ट अहिंसा का मतलब में जिन अभिषेक मिश्रा,स्निग्धा और राज ने टिप्पणियां दी हैं वो अपने ब्लागर एकाउंट से टिप्पणी नहीं कर रहे उनका मुखौटा लगा कर ये कर्म राक्षस लोग कर रहे हैं ताकि लोगों को लगे कि ये लोग तो बड़े भोले हैं और इनके समर्थन में बहुत सारे लोग हैं। एक एक करके खुलेगी तुम्हारी करतूतें राक्षसों, बहुत कुकर्म कर लिये तुम लोगों ने अहिंसा की नौटंकी सजा कर। इस पोस्ट के प्रकाशित होने पर टिप्पणियों के नमूने दिये जाएंगे गौर फ़रमाइयेगा।
अनूप मंडल
जय जय भड़ास
जय नकलंक