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आज दिल उदास है
बस एक बार ग़म क्या है पहेचान लो .
जी तो लेते है सभी खुशी में भी यारो ,
कभी तो दो आँसू पलकों पे सजा लो ,
दर्द में तुम भी बह जावो गे एक दिन आँखों का खरा पानी बनकर ,
कभी तो किसी ग़म के मारे को गले से तो लगा लो ........................
बिट्टू ....
गाँव में उसकी छवि पढाकू किस्म के छात्र की तरह रही है । बहुत बातूनी भी है ...खैर दिल्ली में आने के बाद यह आदत काफी कम हो गई है । मैथ बनाने बैठता है तब उसे दुनिया का ख़याल नही रहता । पढ़ाई में न सही पर दुसरे कामों में काफी भुलक्कड़ किस्म का लड़का है । कोई काम कह देने पर हाँ कर बाद में भूल जाता है ।
आज तो उसने हद ही कर दी कुकर में चावल बैठाया और पानी डालना भूल मैथ लगाने बैठ गया बाद में चावल उतारा तो चावल राख हो चुका था । उम्मीद है की धीरे धीरे इस तरह की आदतें सुधर जायेगी । अभी ऐसा भी हो सकता है की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से ये प्रोब्लम हो । कभी कभी एक थिंकर की तरह खोया रहता है । बाद में वापस आता है । ऐसा भी सुनाने में आया है की अपने मित्रों के बिच नेता टाइप की इमेज बना रखीहै ।
जो भी हो अभी उसको आई आई टी की तैयारी करवानी है । शुरुआत कर भी दिया है । उम्मीद है ....आगे जरुर कामयाब होगा ।
नीतिश बाबु 'नंगा' हो जाइए यही वक्त है
राजेश चंद्रा 'देश-काल' नाम से ब्लॉग चलाते हैं...तेवर और लेखन का अंदाज अच्छा है।आज एक तरफ बिहार ही नहीं पूरा देश चुनावी बयार में बह रहा है वहीं राजेश ने फिर दुखती रग पर इस पोस्ट के माध्यम से हाथ रख दिया है:-
भीमनगर बराज से १०-१२ किलोमीटर दूर कुशहा में पूर्वी कोशी तटबंध के करीब १००० मीटर तक ध्वस्त हो जाने से बिहार के सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, कटिहार और खगडिया जिले में भीषण तबाही हुई है। सुपौल जिले के वीरपुर, बसंतपुर, बलुआबाज़ार, बिसनपुर, बसमतिया, राघोपुर, सिमराही, करजाइन, हृदयनगर, सीतापुर, नरपतगंज, प्रतापगंज आदि इलाकों में जान-माल की भारी क्षति हुई है। पाँच लाख से भी ज़्यादा लोग विगत दस दिनों से बाढ़ में फंसे हुए हैं, हजारों लोग पानी के तेज़ बहाव में बह गए हैं- हजारों लापता हैं। वीरपुर और इसके आसपास के इलाकों में लोगों के घरों में औसतन १० फीट से ज़्यादा पानी भरा हुआ है। यहाँ की अधिकांश आबादी खेती-किसानी पर निर्भर थी और लगभग सभी घरों में माल-मवेशी थे। इस बाढ़ में कितने मवेशी डूबे या मरे हैं इसका हिसाब लगाने की कोई कोशिश अभी नहीं हुई है। अभी तो इंसानी लाशों को ही गिनना बाकी है।
खास बात यह है कि अन्य सभी पिछली सरकारों की तरह नीतीश की सरकार भी बाढ़ को बिहार में कमाई करने का सबसे बड़ा और सुरक्षित जरिया मानती है। सभी जानते हैं कि बिहार बाढ़ का पर्याय है और यहाँ हर साल कहीं न कहीं बाढ़ आती है। जानकार लोग तो यह भी कहते हैं कि बिहार में हर साल बाढ़ आती नहीं बल्कि लाई जाती है ताकि यहाँ के हुक्मरान, सरकारी अमले, नेता-मंत्रीगण, पत्रकार, बाबू लोग जमकर अपनी सात पुश्तों के लिए बसंत बुन सकें। पुलिस और गुंडे मिलकर बाढ़ में घिरे घरों में घुसकर लोगों के खून-पसीने की कमाई जमकर लूटते हैं और हर सफेदपोश बगुले तक उनका हिस्सा पहुचाते हैं। तटबंध अगर नहीं टूट रहे हों तो तोड़ दिए जाते हैं, पुल ऐसे बनाये ही जाते हैं जो थोड़ा सा भी दबाव न झेल सकें। बाढ़ आती है- तो सारे जिम्मेदार बिलों में छिप जाते हैं बाबू से लेकर मुख्यमंत्री तक। सारा का सारा मीडिया मुख्यमंत्री और सत्ता की नंगी गोद में चिपटकर लौलीपौप चाभने लगता है। उसे भी आदमी की चीखें सुनाई नहीं देती। तबाही जितनी होगी कमाई भी उसी अनुपात में होगी। सो जब तक दबा सकते हो बाढ़ की ख़बरों को दबाओ, घरों को उजड़ने दो, इंसानों को मरने दो। फिक्र क्या है, यहाँ तो चित भी अपनी है और पट भी अपनी। पहले बाढ़ की होली खेलेंगे फ़िर राहत की दीवाली मनाएंगे। क्या स्टेट है अपना बिहार भी- मज़े करो नीतीश जी आपके पौ-बारह हैं ...........वरना मुख्यमंत्री की कुर्सी में और भला धरा ही क्या है?
ये बाढ़-वाढ़ सब विरोधियों की साजिश है जनता की चुनी हुई अबतक की सबसे जिम्मेदार सरकार को बदनाम करने की साजिश। जब नीतीश जी विपक्ष में थे तब भी विपक्ष की साजिश से ही बिहार में बाढ़ आती थी। खैर नीतीश बाबू(ये बाबुओं की जो प्रजाति है इसने बहुत नाम कमाया है) ने एक नया तुक्का छोड़ा है। उनका कहना है कि नेपाल के इलाक़े में स्थित तटबंध को मज़बूत करने के लिए इंजीनियर भेजे गए थे लेकिन स्थानीय लोगों ने उन्हें सहयोग नहीं दिया। इधर विपक्षी दलों का आरोप है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी नाकामी छिपाने के लिए ये बयान दे रहे हैं। दरअसल बाढ़ से पहले ही तटबंध का जायजा लेने के लिए टीम भेजी गई थी जिसने कहा था कि तटबंध टूटने का ख़तरा नहीं है। क्यों कहते कि खतरा है- यह तो आ बैल मुझे मार वाली बात हो जाती। भइया बड़े भाग मुख्यमंत्री पद पावा..........पिछली बार निगोड़ी लक्ष्मी आते-आते रह गयी थी। मुझे क्या लल्लू समझ रखा है ? अगर ये साबित भी हो जाए कि मुझे इस तबाही का पहले से पता था ....तो क्या उखाड़ लोगे ?
बीबीसी हिन्दी की वेबसाइट पर यह ख़बर दी गयी है कि समय पर राहत नहीं पहुँचने के कारण प्रभावित लोगों में भारी रोष है। सहानुभूति जताने पहुँचे एक विधायक पर लोग टूट पड़े और उनका एक हाथ टूट गया। इसी तरह पटना से विशेष प्रतिनिधि के तौर पर पहुँचे दो अधिकारियों को भी लोगों ने खदेड़ दिया और पुलिस वालों पर भी लोगों का गुस्सा फूटा। गुरुवार को सेना के हेलीकॉप्टर की मदद से खाने की सामग्री पहुँचाने की कोशिश की गई लेकिन सिर्फ़ दो सौ पैकेट गिराए गए। आम जनता में गुस्से को देखते हुए सरकार के प्रवक्ता पिछले दो दिनों से कह रहे थे कि अब राहत और बचाव कार्य में सेना की मदद ली जाएगी। लेकिन राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव आरके सिंह ने बीबीसी को बताया कि सेना के किसी जवान को राहत कार्य में नहीं लगाया गया है। आपदा विभाग का कहना है कि राज्य में बाढ़ से अब तक 40 लोगों की जानें गई हैं और 11 ज़िले के 900 गाँव इसकी चपेट में हैं।
...............जितने मुंह उतनी बातें...........सत्ता इसीका तो फायदा उठाती है। सच को अफवाह और अफवाह को सच बनाती है। वास्तव में अबतक न तो प्रशासन और न ही सरकार ने लोगों की सुधि लेने की कोशिश की है। इतनी भयावह बाढ़ में जो लाखों लोग ऊँची जगहों पर बीवी बाल बच्चों को लिए इस आस में पल गिन रहे हैं कि कोई तो आएगा उनके पास नए जीवन का संदेश लेकर ....कोई तो उनके भूखे बच्चों को सूखी रोटी का एक टुकडा देगा ......कोई तो बताएगा कि पास वाले गाँव में उनके स्वजन-सम्बन्धियों में से कितने लोग जीवित बच रहे हैं....कौन बताये इन निरीह लोगों को कि तुम्हारी जिंदगियों की कीमत इन हुक्मरानों के लिए कुछ भी नहीं है...कि तुम्हारी कराहों और बेबसियों से वे अपने और अपनी समस्त पीढियों के लिए बसंत बुनेंगे। कि इसी दिन के लिए तो वे अपनी आत्माओं को वेश्या बनाते रहते हैं।
....यही वक़्त है...अपनी किस्मत चमकाने का, कुछ कर जाने का यही वक़्त है नीतीश जी ..........अपने मतलब का वक़्त पहचानने की आपकी कला का लोहा तो जयप्रकाश बाबू भी मानते थे...बड़ी पारखी नज़र थी उनकी!....इस बाढ़ उत्सव के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...आपके बच्चे जियें.....
बेगुसराय एस पी पी. कन्नन:दूध की रखवाली में बिल्ली
धमकी ............................
पुलिस ( कस्टमर से )- कौन है जो आपको धमकियां दे रहा है ?
कस्टमर ( पुलिस से )- टेलिफोन वाले बोल रहे हैं बिल नहीं भरोगे तो काट दूंगा।
ट्रक ड्राइवर हत्याकांड:साहेबपुर कमाल की पुलिस ने पार कर दी हैवानियत की हद
जरा एक नजर "छिछोरे" पर तो डालिये....
आप सबकी समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी। ये टीन-एज के लोगों का ब्लाग है और इसका नाम रखने की प्रेरणा मुझे मेरी एक सड़ी सी बेकार टीचर से मिली जो हमेशा अजीब से सम्बोधनों से बच्चों को बुलाती है जैसे कि अरे ए छिछोरे, ओए लौंडे..... वगैरह जबकि मैं एक इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता हूं। मुझे तो छिछोरा शब्द काफ़ी आकर्षक लगा ऐसा लगता है कि इसमें ’छिपा हैं कोई शरारती सा छोरा’ जो दुनिया बदल सकता है अगर आपनी पर आ जाए।
http://www.chhichhore.tk यानि कि छिछोरे.....
जय जय भड़ास
अम्बरीश अग्निहोत्री : एक और सफ़ेदपोश बेनक़ाब हुआ भड़ास पर.....
निगाहों में उसकी हवस दिखी.....
बच कर निकल आई
ये हवस तुक्छ बदन की ,
जिंदगी को तार तार करती रही
वह खोजता रहा एक बदन
उस पर दाग लगाने की
याद आई वो रात तब रो पड़ी
निहागो में उसकी हवस दिखी
मोहब्बत का वो चिराग
लगता है बुझ गया
जिससे दुनिया रोशन होनी थी
याद आई वो रात तब रो पड़ी
अब अंधेरे से लगता है डर
उजाले में भी नही मिला कही चैन
नही दीखता वो प्यार
सुना लगे सारा आसमान
मै थक कर बैठ गई
फ़िर याद आई वो रात
मै रो पड़ी
आडवानी का नया पैंतरा, अमेरिका का तरीका अपनाओ !!!
एन डी ऐ के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवानी जो विगत पाँच साल तक सरकार का अमेरिकी होने का आरोप लगाते रहे आज अमेरिका का तर्ज चाहते है।
क्या बहुरूपिये हैं। !!!!
क्षद्मता की हद क्या नेता और क्या पत्रकारिता जो जानते हैं की भारतीय राजनैतिक संरचना में इस तरह की बात कोरी कल्पना है, ना ही भारत दो पार्टियों का देश और ना ही यहाँ सैधांतिक रूप से पार्टी से जुड़े राजनेता। पार्टी का बनना और नेता का पार्टी बदलना हमारे लोकतंत्र की विशेषता है और जहां कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत का दावा ही नही कर सकता वहां इस तरह की बात कर क्या ये हमारे लोकतंत्र का मजाक उडा रहे हैं ?
अगर वास्तविकता में ये लोकतंत्र के पक्षधर हैं, लोक तक पहुंचना चाहते हैं तो क्या प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का चुनाव अमेरिकी तर्ज पर होना इन लोगों को हजम होगा ?
कोई भी राजनेता सम्पूर्ण भारत में अपनी प्रधानमन्त्री की दावेदारी रख कर वोट की अपील कर सकता है?
नि : संदेह नही और ये सभी पार्टी और नेताओं के साथ प्रधानमंत्री के दावेदार और मीडिया को पता है तो क्या ये एक शिगूफा है ?
लोकतंत्र की जड़ से ही अनजान ये लोग जो वोट के लिए लोगों में वैमनष्यता फैलाते हैं, अपराधी उम्मीदवार बनते हैं और नेता उसका बचाव करते हैं, पत्रकार हों या नेता कानून की लुंज पुंज होने से सभी बचते हैं और दुहाई सिर्फ़ लोकतंत्र की देते हैं।
आडवानी जी क्या आप भारत में दो दलों की राजनीति को मान्यता देंगे ?
क्या आप सम्पूर्ण भारत में कहीं भी चुनाव लड़ने का माद्दा रखते हैं ?
प्रश्न अनुत्तरित है ?
आडवानी का नया पैंतरा, अमेरिका का तरीका अपनाओ !!!
सांप्रदायिक तत्वों क muh पर tamache की जरुरत
गीता की कसम खा कर बीजेपी के योवा नेता वरुण गाँधी हिंदू मुस्लिम सम्प्रदाय की भावनावो को भड़काने में ही अपना हित साधना चाहते है। यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है की एसे साम्प्रदायिक तत्यों को हमें यानि जनता को झेलना पड़ रहा है। इन्हे गाँधी नेहरू परिवार का वरिष् कहा जाए या ९० के दवार में राम मन्दिर के नाम पैर साम्प्रदायिक माहौल बनने वाले आडवानी की परम्परा का वाहक युआ नेता।
बीजेपी को जब कोई मुद्दा नही सुझाता है तो चुनाव के पहेले धर्म आधारित राजनीत शुरू कर देती है। वर्तमान में नरेन्द्र मोदी, विनय कटियार, प्रवीन तोगडिया जैसे नेता साम्प्रदायिक षड्भावना विगाडकर सत्ता का शुख भोगना चाहते है। हलाकि बीजेपी के वरिस्ट नेता लाल कृष्ण आडवानी, मुरलीमनोहर जोशी, उमा भरती, कल्याण सिंह आदि नेता भी दूध के धुले नही है ।
वरुण गाँधी के इतिहाश पर नजर डाली जाय तो पता चलता है की इन्होने लन्दन स्कूल ऑफ़ इकनॉमिक से कानून और अर्थ शाश्र्त की पढाये की है । इनकी रास्ट्रीय सुरक्षअ और कविता पर किताब भी आयी है की इतना पढाकू ब्यक्ति साम्प्रदायिक है ।
जाहिर है की देश के नेता यह जान चुके है की चुनाव में जितने का सबसे अचूक मंत्र " साम्प्रदायिक " है । वरुण गाँधी ने पिली भीत में अभी तक तीन "हिंदू सम्मलेन " को संबोधित कर चुके है । इन्ही समेलानो के जरिये वे अपनी चुनावी वैतरणी पर करना चाहते है। बीजेपी का चुप रहना एइश वातकी और इशारा करता है की उशकी तरफ से मूक सहमति है । इतना ही नही गाँधी परिवार का माहैल विगाडानेका पुरानअ इतिहाश रहा है ।
लोक तंत्र का कला इतिहाश एमर्जंची इश्का उद्धरण वना है । जनता को यह पुरी तरह से समझाना होगा की राजनीत के ईएन शौदगरों से कैसे बचा जाय और चुनाव में अपनी कड़ी प्रतिक्रिया से अमन विगाडाने walo के muh पर जोरदार tamacha jadana hoga।
राजीव माहेश्वरी एक और पाखंडी
http://bhadas.blogspot.com/2008/12/blog-post_7113.html
अगर आप सबको इन जैसे सफ़ेदपोश हरामी ब्लागर मिलते हैं तो उनके लिंक हमें बताएं ताकि उन्हें भड़ास के द्वारा नंगा करा जा सके, हम तो बुरे कहे गये लोग हैं ही लेकिन तुम पाखंडियों की शराफ़त की धोती जरूर फाड़ेंगे कमीनो......।
ये है वो पाखंडी जो अपनी बात खाने में यकीन रखता है
जय जय भड़ास
मैं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं यदि बदनाम करना हो ही तो झूठे गवाह और सबूत तक पैदा कर लिये जाते हैं
जय जय भड़ास
आज मैं छाती ठोंक कर कहता हूं कि मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव
जय जय भड़ास
यहाँ है डॉक्टर रुपेश......
जय जय भड़ास
मैं हूँ डाक्टर रुपेश श्रीवास्तव !!!
मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव....
जय जय भड़ास
मैं तो सिर्फ़ डाक्टर रुपेश हूँ !!!
क्या इन लोगों के दुष्प्रचार कर देने से उन पर कोई प्रभाव पड़ेगा। हरगिज नहीं बस जो सूखे पत्ते हैं वो टूट जाएंगे लेकिन नई कोंपलें फूटेंगी क्रान्ति और बदलाव की।
मैं हूं डॉ रूपेश श्रीवास्तव....
जय जय भड़ास
मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव
हम ही हैं रुपेश हम ही हैं भड़ास
जय जय रुपेश
जय जय भड़ास
मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव और मेरी भाषा ऐसी है
जय जय भड़ास
जिसमें ये आग है ही नहीं वो डॉ. रूपेश श्रीवास्तव कैसे हो सकता है?
जय जय भड़ास
मैं ही डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं जो कि बुर्का में लिखती हूं
जय जय भड़ास
ये सब एक ही इंसान है यानि कि डॉ. रूपेश श्रीवास्तव
जय जय भड़ास
मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव इसमें कोई संदेह नहीं है।
संजय सेन हो या कशिश गोस्वामी सबके लिये एक ही सच बता रहा हूं कि डॉ। रूपेश श्रीवास्तव मैं ही हूं। शरीर से बूढ़ा और कमजोर लगता हूं और उम्र बहत्तर साल हो गयी है यानि कि तुम कहोगे कि इसे तो सठियाए हुए ही बारह साल हो गये इस लिए ऐसा कह रहा है लेकिन बच्चों हकीकत यही है कि मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव इसमें कोई संदेह नहीं है।
जय जय भड़ास
मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव
जय जय भड़ास
मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव....
जय जय भड़ास
मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव
जय जय भड़ास
डॉ. रूपेश श्रीवास्तव मैं ही हूं
जय जय भड़ास
मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव
जय जय भड़ास
मीडिया माफ़िया यशवंत सिंह को तेल लगाते संजय सेन सागर...
यशवंत सिंह की क्या नैतिकता है ये तो उसके लेखन से दुनिया को पता है लेकिन जो बेचारे इस पाखंडी को नहीं जानते उनके लिये प्रस्तुत है उसकी हड्डियों के खोखलेपन का एक नमूना.......
डा.रूपेश श्रीवास्तव ने मुखौटाधारियों को रगेदा तो बिलबिलाना रोना जारी है
हिंदू नववर्ष पर महाराष्ट्र का पर्व "गुडी पाड़वा"
शादी और सावधानी ......................???????????
शादी करो मगर याद रखो ये बाते पहले .....................
मुंबई के प्रशिक्षित भिखारी बच्चे
नेता कौन और कैसा ? ( एक व्यंग)
नेता कौन ? कैसा? ( एक व्यंग)
शाकाहार क्यो //?
ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि शाकाहार से कैंसर से रक्षा में मदद मिल सकती है. अध्ययन के अनुसार शाकाहारी लोगों में मांसाहारी लोगों की तुलना में कैंसर के बहुम कम मामले देखे गए. ये अध्ययन ब्रिटेन में 52,700 पुरुषों और महिलाओं पर किया गया, जिनकी उम्र 20 से 89 वर्ष के बीच थी. एक अमरीकी जनरल में ये अध्ययन प्रकाशित हुआ है और शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन को काफ़ी अहम माना है. अध्ययन करने वाली टीम ने लोगों को तीन समूहों में बांटा और मांस खाने वाले, मछली खाने वाले और शाकाहारियों का समूह बनाया. कैंसर अध्ययन में पाया गया है कि मछली खाने वालों और शाकाहारियों में मांस खाने वालों की तुलना में कैंसर के कम मामले पाए गए.
हालाँकि इस अध्ययन के अनुसार शाकाहारियों में कोलोरेक्टल कैंसर के अधिक मामले देखे गए. शोधकर्ता इस नतीजे से चकित हैं क्योंकि ये पहले के अध्ययन के उलट हैं. पहले के अध्ययन के अनुसार कोलोरेक्टल कैंसर की मांस खाने वालों में अधिक संभावना रहती है. अध्ययन टीम के प्रमुख प्रोफ़ेसर टिमके का कहना है कि इससे पहले किसी भी अध्ययन में आहार को इस तरह से प्रमुखता नहीं दी गई थी जिसकी वजह से बहुत सारा भ्रम है. उनका कहना था, " ये एक दिलचस्प अध्ययन है, ये इस बात के संकेत दे रहा है कि मछली और शाकाहारियों में कैंसर का ख़तरा कम हो सकता है. इसलिए हमे इसे सावधानी के साथ देखने की ज़रूरत है." उनका कहना था, " ये अध्ययन इस बात का समर्थन नहीं करता कि शाकाहारियों में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले कम पाए जाते हैं. इसलिए मैं समझता हूँ कि मांस इसके लिए कैसे ज़िम्मेदार हो सकता है. इस सिलसिले में सावधानी पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. " उन्होंने स्पष्ट किया है कि कैंसर और आहार के बीच संबंध स्थापित करने वाले इस अध्ययन पर और काम करने की आवश्यकता जो कि एक मुश्किल कार्य है. साभार जाल तंत्र |
गाँव की एक भोर, भारत की तस्वीर !!!
सुबह और दैनिक कार्यक्रम की शुरुआत, ठंडी में भी बर्फ बेचने के लिए निकला बेचन !
इन्द्रप्रश्थ(दिल्ली) में अर्जुन का अस्तित्व खतरे में!
जय भड़ास जय जय भड़ास
चलू गामक भोर के याद करू आ गाम सय भय आऊ !!!
बाहर कोनो क्रियाकलाप होय मुदा गाम जाइते सभ गोटे के दैनिक कार्यक्रम वापस गाम जेना भय जाइत छैन्ह, हमहूँ अहि सय इतर नहि। भोरे उठलहुं तय भोरका आनंद मोबाईल संगे विदा भय गेलहुं कोठा पर आ ताहि ठाम सय लेलहुँ किछु भोरका फोटो। निश्चय अहुं के गामक दृश्य यैह होयत से देखि कय विचार जरुर देब।
लाले लाले अड़हुल के माला चढ़ौलहुं ...........
चंद्रमणि के ई गीत, अड़हुल के फूल आ भोरका काल से भगवती के अलावे किछु अन्य सुझितो तय नहि अइछ।
फोटो के बहाने गामक के एक टा छोट यात्रा छल, विचार सय अवगत कराऊ।