आज दिल उदास है

जान सको तो जान लो
बस एक बार ग़म क्या है पहेचान लो .
जी तो लेते है सभी खुशी में भी यारो ,
कभी तो दो आँसू पलकों पे सजा लो ,
दर्द में तुम भी बह जावो गे एक दिन आँखों का खरा पानी बनकर ,
कभी तो किसी ग़म के मारे को गले से तो लगा लो ........................

बिट्टू ....

बिट्टू उसका नाम है । बारहवीं क्लास में है । मेरा छोटा भाई है । उसकी मैथ काफी अच्छी है । मुझसे तो वह है काफी छोटा लेकिन हमलोग खुलकर बात करते है । मेहनत करने से खासकर पढ़ाई में कभी भी जी नही चुराता है । उसकी यही आदत मुझे काफी पसंद है । क्रिकेट का बड़ा शौकीन है .....बताता है की जब इंडिया २००३ के वर्ल्ड कप में हार गई थी तो काफी रोया था । अब उतनी दीवानगी नही है फ़िर भी काफी आंकडें जानता है । इसी तरह उसे फिल्मों का भी शौक है ....उसने लगभग सारी फिल्म देख ली है । कई बार तो हम लोग कई कलाकारों को नही पहचान पाते है तो उससे मदद लेनी पड़ती है ।
गाँव में उसकी छवि पढाकू किस्म के छात्र की तरह रही है । बहुत बातूनी भी है ...खैर दिल्ली में आने के बाद यह आदत काफी कम हो गई है । मैथ बनाने बैठता है तब उसे दुनिया का ख़याल नही रहता । पढ़ाई में न सही पर दुसरे कामों में काफी भुलक्कड़ किस्म का लड़का है । कोई काम कह देने पर हाँ कर बाद में भूल जाता है ।
आज तो उसने हद ही कर दी कुकर में चावल बैठाया और पानी डालना भूल मैथ लगाने बैठ गया बाद में चावल उतारा तो चावल राख हो चुका था । उम्मीद है की धीरे धीरे इस तरह की आदतें सुधर जायेगी । अभी ऐसा भी हो सकता है की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से ये प्रोब्लम हो । कभी कभी एक थिंकर की तरह खोया रहता है । बाद में वापस आता है । ऐसा भी सुनाने में आया है की अपने मित्रों के बिच नेता टाइप की इमेज बना रखीहै ।
जो भी हो अभी उसको आई आई टी की तैयारी करवानी है । शुरुआत कर भी दिया है । उम्मीद है ....आगे जरुर कामयाब होगा ।

नीतिश बाबु 'नंगा' हो जाइए यही वक्त है



राजेश चंद्रा 'देश-काल' नाम से ब्लॉग चलाते हैं...तेवर और लेखन का अंदाज अच्छा है।आज एक तरफ बिहार ही नहीं पूरा देश चुनावी बयार में बह रहा है वहीं राजेश ने फिर दुखती रग पर इस पोस्ट के माध्यम से हाथ रख दिया है:-

भीमनगर बराज से १०-१२ किलोमीटर दूर कुशहा में पूर्वी कोशी तटबंध के करीब १००० मीटर तक ध्वस्त हो जाने से बिहार के सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, कटिहार और खगडिया जिले में भीषण तबाही हुई है। सुपौल जिले के वीरपुर, बसंतपुर, बलुआबाज़ार, बिसनपुर, बसमतिया, राघोपुर, सिमराही, करजाइन, हृदयनगर, सीतापुर, नरपतगंज, प्रतापगंज आदि इलाकों में जान-माल की भारी क्षति हुई है। पाँच लाख से भी ज़्यादा लोग विगत दस दिनों से बाढ़ में फंसे हुए हैं, हजारों लोग पानी के तेज़ बहाव में बह गए हैं- हजारों लापता हैं। वीरपुर और इसके आसपास के इलाकों में लोगों के घरों में औसतन १० फीट से ज़्यादा पानी भरा हुआ है। यहाँ की अधिकांश आबादी खेती-किसानी पर निर्भर थी और लगभग सभी घरों में माल-मवेशी थे। इस बाढ़ में कितने मवेशी डूबे या मरे हैं इसका हिसाब लगाने की कोई कोशिश अभी नहीं हुई है। अभी तो इंसानी लाशों को ही गिनना बाकी है।
खास बात यह है कि अन्य सभी पिछली सरकारों की तरह नीतीश की सरकार भी बाढ़ को बिहार में कमाई करने का सबसे बड़ा और सुरक्षित जरिया मानती है। सभी जानते हैं कि बिहार बाढ़ का पर्याय है और यहाँ हर साल कहीं न कहीं बाढ़ आती है। जानकार लोग तो यह भी कहते हैं कि बिहार में हर साल बाढ़ आती नहीं बल्कि लाई जाती है ताकि यहाँ के हुक्मरान, सरकारी अमले, नेता-मंत्रीगण, पत्रकार, बाबू लोग जमकर अपनी सात पुश्तों के लिए बसंत बुन सकें। पुलिस और गुंडे मिलकर बाढ़ में घिरे घरों में घुसकर लोगों के खून-पसीने की कमाई जमकर लूटते हैं और हर सफेदपोश बगुले तक उनका हिस्सा पहुचाते हैं। तटबंध अगर नहीं टूट रहे हों तो तोड़ दिए जाते हैं, पुल ऐसे बनाये ही जाते हैं जो थोड़ा सा भी दबाव न झेल सकें। बाढ़ आती है- तो सारे जिम्मेदार बिलों में छिप जाते हैं बाबू से लेकर मुख्यमंत्री तक। सारा का सारा मीडिया मुख्यमंत्री और सत्ता की नंगी गोद में चिपटकर लौलीपौप चाभने लगता है। उसे भी आदमी की चीखें सुनाई नहीं देती। तबाही जितनी होगी कमाई भी उसी अनुपात में होगी। सो जब तक दबा सकते हो बाढ़ की ख़बरों को दबाओ, घरों को उजड़ने दो, इंसानों को मरने दो। फिक्र क्या है, यहाँ तो चित भी अपनी है और पट भी अपनी। पहले बाढ़ की होली खेलेंगे फ़िर राहत की दीवाली मनाएंगे। क्या स्टेट है अपना बिहार भी- मज़े करो नीतीश जी आपके पौ-बारह हैं ...........वरना मुख्यमंत्री की कुर्सी में और भला धरा ही क्या है?
ये बाढ़-वाढ़ सब विरोधियों की साजिश है जनता की चुनी हुई अबतक की सबसे जिम्मेदार सरकार को बदनाम करने की साजिश। जब नीतीश जी विपक्ष में थे तब भी विपक्ष की साजिश से ही बिहार में बाढ़ आती थी। खैर नीतीश बाबू(ये बाबुओं की जो प्रजाति है इसने बहुत नाम कमाया है) ने एक नया तुक्का छोड़ा है। उनका कहना है कि नेपाल के इलाक़े में स्थित तटबंध को मज़बूत करने के लिए इंजीनियर भेजे गए थे लेकिन स्थानीय लोगों ने उन्हें सहयोग नहीं दिया। इधर विपक्षी दलों का आरोप है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी नाकामी छिपाने के लिए ये बयान दे रहे हैं। दरअसल बाढ़ से पहले ही तटबंध का जायजा लेने के लिए टीम भेजी गई थी जिसने कहा था कि तटबंध टूटने का ख़तरा नहीं है। क्यों कहते कि खतरा है- यह तो आ बैल मुझे मार वाली बात हो जाती। भइया बड़े भाग मुख्यमंत्री पद पावा..........पिछली बार निगोड़ी लक्ष्मी आते-आते रह गयी थी। मुझे क्या लल्लू समझ रखा है ? अगर ये साबित भी हो जाए कि मुझे इस तबाही का पहले से पता था ....तो क्या उखाड़ लोगे ?
बीबीसी हिन्दी की वेबसाइट पर यह ख़बर दी गयी है कि समय पर राहत नहीं पहुँचने के कारण प्रभावित लोगों में भारी रोष है। सहानुभूति जताने पहुँचे एक विधायक पर लोग टूट पड़े और उनका एक हाथ टूट गया। इसी तरह पटना से विशेष प्रतिनिधि के तौर पर पहुँचे दो अधिकारियों को भी लोगों ने खदेड़ दिया और पुलिस वालों पर भी लोगों का गुस्सा फूटा। गुरुवार को सेना के हेलीकॉप्टर की मदद से खाने की सामग्री पहुँचाने की कोशिश की गई लेकिन सिर्फ़ दो सौ पैकेट गिराए गए। आम जनता में गुस्से को देखते हुए सरकार के प्रवक्ता पिछले दो दिनों से कह रहे थे कि अब राहत और बचाव कार्य में सेना की मदद ली जाएगी। लेकिन राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव आरके सिंह ने बीबीसी को बताया कि सेना के किसी जवान को राहत कार्य में नहीं लगाया गया है। आपदा विभाग का कहना है कि राज्य में बाढ़ से अब तक 40 लोगों की जानें गई हैं और 11 ज़िले के 900 गाँव इसकी चपेट में हैं।
...............जितने मुंह उतनी बातें...........सत्ता इसीका तो फायदा उठाती है। सच को अफवाह और अफवाह को सच बनाती है। वास्तव में अबतक न तो प्रशासन और न ही सरकार ने लोगों की सुधि लेने की कोशिश की है। इतनी भयावह बाढ़ में जो लाखों लोग ऊँची जगहों पर बीवी बाल बच्चों को लिए इस आस में पल गिन रहे हैं कि कोई तो आएगा उनके पास नए जीवन का संदेश लेकर ....कोई तो उनके भूखे बच्चों को सूखी रोटी का एक टुकडा देगा ......कोई तो बताएगा कि पास वाले गाँव में उनके स्वजन-सम्बन्धियों में से कितने लोग जीवित बच रहे हैं....कौन बताये इन निरीह लोगों को कि तुम्हारी जिंदगियों की कीमत इन हुक्मरानों के लिए कुछ भी नहीं है...कि तुम्हारी कराहों और बेबसियों से वे अपने और अपनी समस्त पीढियों के लिए बसंत बुनेंगे। कि इसी दिन के लिए तो वे अपनी आत्माओं को वेश्या बनाते रहते हैं।
....यही वक़्त है...अपनी किस्मत चमकाने का, कुछ कर जाने का यही वक़्त है नीतीश जी ..........अपने मतलब का वक़्त पहचानने की आपकी कला का लोहा तो जयप्रकाश बाबू भी मानते थे...बड़ी पारखी नज़र थी उनकी!....इस बाढ़ उत्सव के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...आपके बच्चे जियें.....

बेगुसराय एस पी पी. कन्नन:दूध की रखवाली में बिल्ली


'' बोलूंगा तो बोलेगा कि बोलता है''

मगर चुप रहा भी नहीं जाता है जी ...जब ऊँचे ओहदे पर बैठे व्यक्ति की मनोदशा को देखता हूँ तो उबाल आ जाता है। मगर क्या करूँ सिस्टम को तो बदल नहीं सकता हूँ हाँ थोडी भडास निकल जाती है तो मन को सुकून मिल जाता है. ये तस्वीर जो आप देख रहे हैं यह बेगुसराय जिला के आरक्षी अधीक्षक पी कन्नन कि है जो नीतिश कि सुशासन कि सरकार को दिन दहारे शर्मिन्दा कर रहे हैं मगर न तो यह सरकार को दिख रही है और न ही जिला के उन पत्रकारों को जिन्होंने चमचागिरी को ही अपना पेशा मान लिया है. खैर बात काम कि करते हुए यह बता देना चाहता हूँ जनाब जब जिला में पदस्थापित हुए तो ''नया जोगी के गांड में जट्टा'' कि तरह आनन् फानन में प्रेस विज्ञप्ति जारी करवा दिया कि बेगुसराय रेलवे स्टेशन में रात में उतरने वाले यात्री को कहीं चोर छीन न ले इसलिए जिला प्रशासन एक बस और पांच गार्ड की तैनाती कि जायेगी. अखबार वाले भाई लोगों ने इसे जम कर छापा और उनकी तारीफ़ के पुल बाँध दिये कि देखो नए आरक्षी अधीक्षक कितने बेहतर हैं कि आते के साथ ही जनता कि सुध लेने लगे. मगर परिणाम जानते हैं मुश्किल से दस दिन भी यह कवायद नहीं चली और आज यात्री जैसे पहले असुरक्षित थे आज और भी हो गए हैं. खैर यह तो एक छोटा नमूना था अब आगे सुनिए पिछले आरक्षी अधीक्षक अमित लोधा ने जिला में भ्रमण करने वाली और नियमित पेट्रोलिंग करने वाली आरक्षियों कि एक टीम गठित कि थी जिसे टाइगर मोबाइल नाम देकर अपराध नियंत्रण में काफी हद तक सफल भी हुए थे और शहरी क्षेत्र कि जनता को काफी राहत भी मिला था क्यूंकि जब भी कोई घटना होती या नियमित पेट्रोलिंग कि बात आती तो यह दल पूर्ण रुपें सक्षम था मगर इस साहब का दिमाग देखिये इन्होने इस दल को हटा कर शहर वासी को असुरक्षा के माहौल में दाल दिया. चलिए इसे भी छोटी सी बात ही समझिये ॥अधिकाँश ब्लोगर को पता होगा कि बेगुसराय पुलिस का अपना ब्लोग्साईट पूर्ववर्ती एस पी ने बनवाया था जिसके अपेक्षित परिणाम भी मिलने लगे थे मगर जब से यह जनाब आये हैं अपडेट के बिना ब्लॉग इंटरनेट पर सड रहा है जिस कि प्रतिक्रया लोगों ने जम कर देना शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं ये साहब दक्षिण भारत के हैं जो एक सिपाही से लेकर दरोगा तक के साथ अंग्रेजी में ही बात करते हैं क्यूंकि हिंदी इन्हें समझ में आता ही नहीं है. आम लोग जब गुहार लगाने जाते हैं तो हिंदी नहीं जानने के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. यहाँ तक कि प्रेस कोंफेरेंस में भी साहब जम कर अंग्रेजी बोलते हैं और हमारे भाई लोग मुंह ताकते रह जाते हैं. इसे भी आप छोटा नमूना समझिये अब देखिये जब ये साहब आये तो तुंरत सभी थाने का निरिक्षण कर के दरोगा को निर्देश दे दिया कि अपने अपने थाना परिसर में घेरा बना कर एक बंदूकधारी को तैनात कर दो जो पहरेदारी करेगा लेकिन यह भी मुश्किल से एक सप्ताह चला थानेदार ने तो घेरा बना दिया पहरेदार को भी तैनात कर दिया मगर आज आ कर देखिये अब न तो वह घेरा है और न ही वह पहरेदार. अब ज़रा अन्दर कि तरफ चलते हैं ...एस पी कार्यालय चाहे वह बिहार का कोई भी जिला हो आप को दावे के साथ बता दूँ कि हर क्राइम मीटिंग में सभी थानेदार एकमुश्त रकम एस पी कार्यालय के बाबुओं को देते हैं ताकि वहां से यह जानकारी मिले कि साहब का औचक निरिक्षण कब है और उनके फाइल के प्रति नरमी बरती जाए भले ही अदालत डायरी मांग-मांग कर थक क्यूँ न जाए. तो इस स्थिति को आप क्या कहेंगे ..एक तरफ नीतिश सरकार सुशासन का भ्रम दे रही है दूसरी तरफ उनके ऐसे अधिकारी आम जनता के साथ खुले आं मजाक कर रहे हैं. खैर ज्यादा क्या बताऊँ...क्या यह काफी नहीं है?

धमकी ............................

कस्टमर ( पुलिस से ) - मुझे फोन पर धमकियां मिल रही है।
पुलिस ( कस्टमर से )- कौन है जो आपको धमकियां दे रहा है ?
कस्टमर ( पुलिस से )- टेलिफोन वाले बोल रहे हैं बिल नहीं भरोगे तो काट दूंगा।

ट्रक ड्राइवर हत्याकांड:साहेबपुर कमाल की पुलिस ने पार कर दी हैवानियत की हद


पिछले कुछ दिनों पूर्व बेगुसराय जिला मुख्यालय से लगभग तीस किलोमीटर पूरब एन एच ३१ पर अवस्थित साहेबपुर कमाल थाना क्षेत्र के बोलबम पेट्रोल पम्प के समीप उत्तरप्रदेश के ट्रक ड्राइवर की ह्त्या ने इस थाना को कलंकित कर के रख दिया. पिछले बीस पच्चीस वर्षों के इतिहास में इस तरह की कोई भी घटना नहीं होने के कारण अचानक इस घटना की सुचना मिलते ही आम लोगों में उबाल आगया. बताया जाता है की लगभग चार-पांच की संख्या में आये हुए अपराधियों ने ट्रक ड्राइवर से अस्सी हजार रुपये लुटने के बाद उनकी गोली मार कर ह्त्या कर दी. लोकसभा चुनाव धमक के ऐन मौके पर हुए इस ह्त्या ने स्थानीय पुलिस की नींद उडाकर रख डाली. हत्यारों के गिरहबान तक पहुँच पाने में असफल रही साहेब पुर कमाल पुलिस ने अपनी खीज मिटाने के लिए दो लाइन होटल संचालकों को धर दबोचा और फिर उन पर ऐसे जुल्म किये गए जिसकी कल्पना से देह सिहर उठता है. निरीह और गरीब लोगों के साथ बेरहमी से पेश आने वाली साहेब पुर कमाल पुलिस के प्रति आम लोगों में घोर आक्रोश व्याप्त है. सहरसा जिला से विस्थापित वीरेंदर कुमार बोल बम पेट्रोल पम्प पर एक छोटी सी दूकान चलाता है जहाँ चाय नाश्ते के साथ हल्का-फुल्का भोजन बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण करता है. हत्याकांड की रात यह दूकानदार करीब नौ बजे अपनी दूकान बंद कर के अपने घर चला जाता है.हत्या रात के लगभग दो बजे घटती है. सुबह जब पुलिस महकमा पुरे लाव-लश्कर के साथ घटना स्थल पर पहुँचती है तो हत्यारे तक पहुँचने की बात तो दूर वह इस गरीब आदमी को उठाकर थाने ले जाती है और फिर वहां शुरू होता है पुलिसिया नंगा नृत्य जिसमे बेदर्दी से पीटा जाता है वीरेंद्र. अपने शारीर पर उभरे जख्म को दिखाते हुए यह व्यक्ति फफक पड़ता है और न्याय की गुहार लगाता है की जब मैं इस घटना में शामिल ही नहीं था तो फिर पुलिस ने मेरे साथ ऐसा अत्याचार क्यूँ किया. वैसे यहाँ yah बता देना उचित होगा की घटना के तीन चार दिनों में ही असली हत्यारे पकड़ में तो आ जाते हैं लेकिन साहेब पुर कमाल की पुलिस ने इस व्यक्ति के साथ जो जुल्म और अन्याय किया उसका जिम्मेवार कौन होगा.सिर्फ वीरेंदर ही नहीं बल्कि आस पास के अन्य दूकान दार भी पुलिस की इस दरिंदगी से सहमे हुए हैं. बकौल लाइन होटल संचालक बलबीर सिंह "पुलिस अगर सतर्क रहती तो yah घटना होती ही नहीं,क्यूंकि अधिकाँश सिपाही ही ट्रक से पैसे वसूलने ट्रक का पीछा करते हैं जिससे अपराधियों को भी मौका मिल जाता है." बहरहाल रंजन कुमार के नेत्रित्व में अब तक तो थाना पर आम लोगों का विशवास तो जरुर था मगर इस घटना ने उनकी प्रशासनिक कार्य कुशलता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
रिपोर्ट:-मनीष राज

जरा एक नजर "छिछोरे" पर तो डालिये....

भड़ासी भाई बहनो मैंने भी एक नया प्रयोग करा है जरा आप लोग नजर मार कर बताएं कि कैसा लगा
आप सबकी समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी। ये टीन-एज के लोगों का ब्लाग है और इसका नाम रखने की प्रेरणा मुझे मेरी एक सड़ी सी बेकार टीचर से मिली जो हमेशा अजीब से सम्बोधनों से बच्चों को बुलाती है जैसे कि अरे ए छिछोरे, ओए लौंडे..... वगैरह जबकि मैं एक इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ता हूं। मुझे तो छिछोरा शब्द काफ़ी आकर्षक लगा ऐसा लगता है कि इसमें ’छिपा हैं कोई शरारती सा छोरा’ जो दुनिया बदल सकता है अगर आपनी पर आ जाए।
http://www.chhichhore.tk यानि कि छिछोरे.....

जय जय भड़ास

अम्बरीश अग्निहोत्री : एक और सफ़ेदपोश बेनक़ाब हुआ भड़ास पर.....

ये तस्वीर किसकी है पता नहीं क्योंकि हिंदुस्तान के सिरदर्द संजय सेन तो किसी की भी तस्वीर उठा कर फर्जी प्रोफ़ाइल बना लेने में माहिर हैं पता नहीं तस्वीर वाला बंदा जीवित भी हैं या नहीं? बेचारा संजय सेन तिलमिलाया बौखलाया और पगलाया सा गालियां दे रहा है लेकिन इतना साहस नहीं है कि सामने आकर गालियां दे सके उसके लिये चारित्रिक मजबूती और आत्मबल चाहिये जो कि इन खोखली हड्डी वाले सफ़ेदपोशों में है ही नहीं। मैं गालियां देता हूं लेकिन वो गालियां कड़वी दवा की तरह होती हैं जो इन जैसे लोगों के लिये हैं जिन्हें धूर्तता, लालच, पाखंड और दिखावे की गम्भीर बीमारी है।
संजय सेन गालियां दे रहा है लेकिन मुंह छिपा कर तो बस इस जड़बुद्धि को इतना बताना है कि दुष्ट बालक! तुम गालियां दे ही नहीं पा रहे हो क्योंकि हमें गालियां देकर तुम यशवंत को तेल लगाने का प्रयास मात्र कर रहे हो वो हमें क्या टट्टी खिलायेगा, हगने के लिये पेट में चारा होना चाहिए और उसकी खुद की फटी पड़ी है किराये के घर में रह कर कर्जे की कार लेकर वो तुम जैसे चूतियों को प्रभावित कर सकता है मैं तो उसकी हालत जानती हूं बेटा, मनीष राज और डा.रूपेश श्रीवास्तव से बेहतर भला यशवंत को कोई क्या जानेगा न वो और न ही मनीषराज कभी भी निजी बातों पर नहीं गए क्योंकि हमारा यशवंत से मात्र सैद्धांतिक विरोध है कोई शत्रुता नहीं है। हम हिजड़ो को वो क्या खिलाएगा बल्कि तुझे और उस जैसे आत्मा के षंढ़ों को धंधा करके बैठा कर खिला सकते हैं
ये रहा इन शराफ़त अली अम्बरीश अग्निहोत्री बने संजय सेन का प्रोफ़ाइल जिसमें साफ़ पता चलता है कि बेटा की नैतिकता और अक्ल का क्या स्तर है, अबे ढक्कन के.... हंसी आती है तेरी कुबुद्धि पर कम से कम ये बेचारा तस्वीर वाला बेचता क्या है झूठ ही सही लिख तो देता लेकिन तुम सोचते हो कि सबको उल्टे उस्तरे से मूड़ लोगे, इस बार तुम्हारा पाला एक भड़ासी डाक्टर से पड़ा है किसी हज्जाम से नहीं.... एक ऐसा डाक्टर जो शस्त्र और शास्त्र दोनो से बराबर सरोकार रखता है, आपरेशन ही नहीं पोस्टमार्टम भी कर सकता है। इस कीड़े का प्रोफ़ाइल इस लिंक पर देखिये---
http://www.blogger.com/profile/09362757254883435708
जय जय भड़ास






निगाहों में उसकी हवस दिखी.....

निगाहों में उसकी हवस दिखी
बच कर निकल आई
ये हवस तुक्छ बदन की ,
जिंदगी को तार तार करती रही
वह खोजता रहा एक बदन
उस पर दाग लगाने की
याद आई वो रात तब रो पड़ी
निहागो में उसकी हवस दिखी

मोहब्बत का वो चिराग
लगता है बुझ गया
जिससे दुनिया रोशन होनी थी
याद आई वो रात तब रो पड़ी
अब अंधेरे से लगता है डर
उजाले में भी नही मिला कही चैन
नही दीखता वो प्यार
सुना लगे सारा आसमान
मै थक कर बैठ गई
फ़िर याद आई वो रात
मै रो पड़ी

आडवानी का नया पैंतरा, अमेरिका का तरीका अपनाओ !!!

आगामी लोकसभा चुनावी घोषणा और विभिन्न पार्टियों से प्रचारित विवाद मानों भारतीय लोकतंत्र की यही पहचान है। या तो विवादित प्रताशी या फ़िर प्रत्याशियों का विवाद खड़ा करना लोकतंत्र में चार चाँद लगाना है।

एन डी ऐ के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवानी जो विगत पाँच साल तक सरकार का अमेरिकी होने का आरोप लगाते रहे आज अमेरिका का तर्ज चाहते है।

क्या बहुरूपिये हैं। !!!!



सबसे बड़ा बहुरुपिया और नौटंकी। कभी राम तो कभी जिन्ना !!!
जोश और उन्माद तो देखिये कि अपने प्रत्याशियों के धार्मिक विवादित बयान पर चुप्पी साधे देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार चाहते हैं की दुसरे उम्मीदवार से सीधे टी वी पर अमेरिकी तर्ज पर बहस करें और टी वी चैनल को मानों लौटरी लग गयी हो आख़िर मामला टी आर पी का है और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार सो बहस को सर्वाधिक टी आर पी मिलना तय है।

क्षद्मता की हद क्या नेता और क्या पत्रकारिता जो जानते हैं की भारतीय राजनैतिक संरचना में इस तरह की बात कोरी कल्पना है, ना ही भारत दो पार्टियों का देश और ना ही यहाँ सैधांतिक रूप से पार्टी से जुड़े राजनेता। पार्टी का बनना और नेता का पार्टी बदलना हमारे लोकतंत्र की विशेषता है और जहां कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत का दावा ही नही कर सकता वहां इस तरह की बात कर क्या ये हमारे लोकतंत्र का मजाक उडा रहे हैं ?

अगर वास्तविकता में ये लोकतंत्र के पक्षधर हैं, लोक तक पहुंचना चाहते हैं तो क्या प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का चुनाव अमेरिकी तर्ज पर होना इन लोगों को हजम होगा ?
कोई भी राजनेता सम्पूर्ण भारत में अपनी प्रधानमन्त्री की दावेदारी रख कर वोट की अपील कर सकता है?

नि : संदेह नही और ये सभी पार्टी और नेताओं के साथ प्रधानमंत्री के दावेदार और मीडिया को पता है तो क्या ये एक शिगूफा है ?

लोकतंत्र की जड़ से ही अनजान ये लोग जो वोट के लिए लोगों में वैमनष्यता फैलाते हैं, अपराधी उम्मीदवार बनते हैं और नेता उसका बचाव करते हैं, पत्रकार हों या नेता कानून की लुंज पुंज होने से सभी बचते हैं और दुहाई सिर्फ़ लोकतंत्र की देते हैं।

आडवानी जी क्या आप भारत में दो दलों की राजनीति को मान्यता देंगे ?

क्या आप सम्पूर्ण भारत में कहीं भी चुनाव लड़ने का माद्दा रखते हैं ?

प्रश्न अनुत्तरित है ?

आडवानी का नया पैंतरा, अमेरिका का तरीका अपनाओ !!!

आगामी लोकसभा चुनावी घोषणा और विभिन्न पार्टियों से प्रचारित विवाद मानों भारतीय लोकतंत्र की यही पहचान है। या तो विवादित प्रताशी या फ़िर प्रत्याशियों का विवाद खड़ा करना लोकतंत्र में चार चाँद लगाना है।
एन डी ऐ के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवानी जो विगत पाँच साल तक सरकार का अमेरिकी होने का आरोप लगाते रहे आज अमेरिका का तर्ज चाहते है।
क्या बहुरूपिये हैं। !!!!

सबसे बड़ा बहुरुपिया और नौटंकी। कभी राम तो कभी जिन्ना !!!

जोश और उन्माद तो देखिये कि अपने प्रत्याशियों के धार्मिक विवादित बयान पर चुप्पी साधे देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार चाहते हैं की दुसरे उम्मीदवार से सीधे टी वी पर अमेरिकी तर्ज पर बहस करें और टी वी चैनल को मानों लौटरी लग गयी हो आख़िर मामला टी आर पी का है और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार सो बहस को सर्वाधिक टी आर पी मिलना तय है।
क्षद्मता की हद क्या नेता और क्या पत्रकारिता जो जानते हैं की भारतीय राजनैतिक संरचना में इस तरह की बात कोरी कल्पना है, ना ही भारत दो पार्टियों का देश और ना ही यहाँ सैधांतिक रूप से पार्टी से जुड़े राजनेता। पार्टी का बनना और नेता का पार्टी बदलना हमारे लोकतंत्र की विशेषता है और जहां कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत का दावा ही नही कर सकता वहां इस तरह की बात कर क्या ये हमारे लोकतंत्र का मजाक उडा रहे हैं ?
अगर वास्तविकता में ये लोकतंत्र के पक्षधर हैं, लोक तक पहुंचना चाहते हैं तो क्या प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का चुनाव अमेरिकी तर्ज पर होना इन लोगों को हजम होगा ?
कोई भी राजनेता सम्पूर्ण भारत में अपनी प्रधानमन्त्री की दावेदारी रख कर वोट की अपील कर सकता है?
नि : संदेह नही और ये सभी पार्टी और नेताओं के साथ प्रधानमंत्री के दावेदार और मीडिया को पता है तो क्या ये एक शिगूफा है ?
लोकतंत्र की जड़ से ही अनजान ये लोग जो वोट के लिए लोगों में वैमनष्यता फैलाते हैं, अपराधी उम्मीदवार बनते हैं और नेता उसका बचाव करते हैं, पत्रकार हों या नेता कानून की लुंज पुंज होने से सभी बचते हैं और दुहाई सिर्फ़ लोकतंत्र की देते हैं।
आडवानी जी क्या आप भारत में दो दलों की राजनीति को मान्यता देंगे ?
क्या आप सम्पूर्ण भारत में कहीं भी चुनाव लड़ने का माद्दा रखते हैं ?
प्रश्न अनुत्तरित है ?

सांप्रदायिक तत्वों क muh पर tamache की जरुरत

गीता की कसम खा कर बीजेपी के योवा नेता वरुण गाँधी हिंदू मुस्लिम सम्प्रदाय की भावनावो को भड़काने में ही अपना हित साधना चाहते है। यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है की एसे साम्प्रदायिक तत्यों को हमें यानि जनता को झेलना पड़ रहा है। इन्हे गाँधी नेहरू परिवार का वरिष् कहा जाए या ९० के दवार में राम मन्दिर के नाम पैर साम्प्रदायिक माहौल बनने वाले आडवानी की परम्परा का वाहक युआ नेता।

बीजेपी को जब कोई मुद्दा नही सुझाता है तो चुनाव के पहेले धर्म आधारित राजनीत शुरू कर देती है। वर्तमान में नरेन्द्र मोदी, विनय कटियार, प्रवीन तोगडिया जैसे नेता साम्प्रदायिक षड्भावना विगाडकर सत्ता का शुख भोगना चाहते है। हलाकि बीजेपी के वरिस्ट नेता लाल कृष्ण आडवानी, मुरलीमनोहर जोशी, उमा भरती, कल्याण सिंह आदि नेता भी दूध के धुले नही है ।

वरुण गाँधी के इतिहाश पर नजर डाली जाय तो पता चलता है की इन्होने लन्दन स्कूल ऑफ़ इकनॉमिक से कानून और अर्थ शाश्र्त की पढाये की है । इनकी रास्ट्रीय सुरक्षअ और कविता पर किताब भी आयी है की इतना पढाकू ब्यक्ति साम्प्रदायिक है ।

जाहिर है की देश के नेता यह जान चुके है की चुनाव में जितने का सबसे अचूक मंत्र " साम्प्रदायिक " है । वरुण गाँधी ने पिली भीत में अभी तक तीन "हिंदू सम्मलेन " को संबोधित कर चुके है । इन्ही समेलानो के जरिये वे अपनी चुनावी वैतरणी पर करना चाहते है। बीजेपी का चुप रहना एइश वातकी और इशारा करता है की उशकी तरफ से मूक सहमति है । इतना ही नही गाँधी परिवार का माहैल विगाडानेका पुरानअ इतिहाश रहा है ।

लोक तंत्र का कला इतिहाश एमर्जंची इश्का उद्धरण वना है । जनता को यह पुरी तरह से समझाना होगा की राजनीत के ईएन शौदगरों से कैसे बचा जाय और चुनाव में अपनी कड़ी प्रतिक्रिया से अमन विगाडाने walo के muh पर जोरदार tamacha jadana hoga।

राजीव माहेश्वरी एक और पाखंडी

अबे कीड़े डा.रूपेश की लिखी इस पोस्ट को देख ताकि तुझे पता चले कि तेरा बाप संजय सेन कल तक इसी गाली देने वाले डाक्टर की प्रशंसा करता था अगर लालची बनिये ने पोस्ट हटा दी हो तो चित्र में देख.......
http://bhadas.blogspot.com/2008/12/blog-post_7113.html
अगर आप सबको इन जैसे सफ़ेदपोश हरामी ब्लागर मिलते हैं तो उनके लिंक हमें बताएं ताकि उन्हें भड़ास के द्वारा नंगा करा जा सके, हम तो बुरे कहे गये लोग हैं ही लेकिन तुम पाखंडियों की शराफ़त की धोती जरूर फाड़ेंगे कमीनो......।
इस धूर्त को इसके आगंतुक मेहमान गब्बर लगते हैं

आज मेरे मन में एक विचार आया है कि मुखौटाधारी पाखंडियों की हम अपने पेज पर बाकायदा लिंक लगायें और दुनिया को बताते चलें कि कौन कितना लोकतांत्रिक सोच रखता है। इन्हें हम इनके कमीनेपन के अनुसार क्रमबद्ध करें। यशवंत सिंह और संजय सेन की जमात का एक और कीड़ा लालच की संडास से निकल कर आया है इसने टिप्पणी करी थी जिसे हमारे माडरेटर ने बेखौफ़ प्रकाशित करी है बस उन लोगों की टिप्पणियां प्रकाशित नहीं होतीं जिनके मां-बाप ने नाम तो रखा है पर उन्हें बताने में लज्जा आती है। लीजिये राजीव माहेश्वरी नामके एक और पाखंडी का चेहरा सामने आया है जो डा.साहब को नामर्दी की दवा बेचने की सलाह देते हुए संजय सेन जैसे भड़वे की वकालत कर रहा है। अरे चांडाल! धूर्त! हम सब भड़ासी पागल ही तो हैं अब होने को क्या बचा है आइना दिखा देने वाले को पागल ही कहा जाता है हमें स्वीकार है कि हम सब पागल हैं तुम सब समझदारी का बलगम चाटते रहो। पाखंडी! अगर तुझ नामर्द की दवा तो हम भड़ासी मुफ़्त में कर रहे हैं देखिये इस कीड़े की टिप्पणी........
डा.रूपेश श्रीवास्तव मेने दोनों ब्लॉग देखे है. पर जिस तरह की भाषा / गुस्से का आप प्रयोग कर रहे है. इस का कोएई अच्छा सन्देश नही जाता . येशा लगता है "हिंदुस्तान का दरद" आपके बारे में सही कहा रहा है. आप ने कही भी उनकी बात का खंडन नही किया है ........सिर्फ और सिर्फ गालिया दी है. गाली देने से मन हल्का हो सकता है ...... दिमाग नहीं ....इस लेख को पड़कर लगता है की आप या तो पागल है या फिर हो जायेगे. अगर इन सब से बचाना है तो ब्लागबाजी छोड़कर नामर्दी की दवाई बेचो मेरे भाई.जय भडास ....जय भडास
ये है वो पाखंडी जो अपनी बात खाने में यकीन रखता है

जय जय भड़ास







मैं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं यदि बदनाम करना हो ही तो झूठे गवाह और सबूत तक पैदा कर लिये जाते हैं

मैं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं जो कि हरभूषण के नाम से कानून के बारे में लिखा करता हूं और कभी कभी लीगल रिफ़ार्म्स की भी बात कर दिया करता हूं। मैं इस बात को हर तरह से कहने और लिख कर देने को तैयार हूं इसीलिये आज इस वैश्विक मंच पर लिख रहा हूं कि सत्यतः डॉ. रूपेश श्रीवास्तव मैं ही हूं। जिसे भी कोई शिकवा-शिकायत हो मुझसे बताए कि कब मैं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव ने उससे हजारों रुपये ले लिये हैं लेकिन अगर बदनाम करना हो ही तो झूठे गवाह और सबूत तक पैदा कर लिये जाते हैं ये बात मुझसे ज्यादा कौन जानता है। जिसे जो कहना हो कहो मैंने तो कह दिया कि मैं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं।
जय जय भड़ास

आज मैं छाती ठोंक कर कहता हूं कि मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव

मैं एक लम्बे समय तक अपराधी जीवन में रहा और खूब दुनिया देखी, जो लोग डॉ. रूपेश श्रीवास्तव को बदनाम कर रहे हैं उन जैसे ही लोग समाज में सफ़ेदपोश बन कर छिपे रहते हैं और अपराध हम जैसे नासमझों से कराते हैं। आज मैं छाती ठोंक कर कहता हूं कि मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव, जिससे जो बुरा करते बने कर ले। महाराष्ट्र ही नहीं आसपास के कई राज्यों की पुलिस को एक जमाने में छकाता रहा हूं लेकिन अब सारे अपराधों की सजा काट कर सामान्य जीवन जी रहा हूं ये याद रखना कि हाथी कितना भी बूढ़ा हो जाए सियार और लोमड़ी से बड़ा ही रहता है इस डॉ. रूपेश श्रीवास्तव का उत्तर तुम्हें तुम्हारे घर पर मिल सकता है चाहो तो आजमा लो.....। मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव
जय जय भड़ास

यहाँ है डॉक्टर रुपेश......

अरे क्या हो रहा है यहाँ पर कौन है जो डॉक्टर रुपेश को जानना चाहता है भाई अगर कोई शक रह गया हो तो गुफरान सिद्दीकी को ज़रूर याद रखिये यकीन मानिये डॉक्टर रुपेश कोई इन्सान नहीं वरन एक विचार बन चुके हैं और विचार तो जिसके मन में आ गया समझो वही डॉक्टर रुपेश हैं तो किसी को अभी कोई शक नहीं होना चाहिए वैसे एक बात बताता हूँ .....डॉक्टर रुपेश श्रीवास्तव मै हूँ कोई शक हो तो अपना मेल आई डी मेरे को भेज दो यकीन हो जायेगा ......................,
जय जय भड़ास

मैं हूँ डाक्टर रुपेश श्रीवास्तव !!!

मैं हूं डॉ। रूपेश श्रीवास्तव, क्या इन घटिया लोगों के दुष्प्रचार कर देने से उन पर कोई प्रभाव पड़ेगा। हरगिज नहीं बस जो सूखे पत्ते हैं वो टूट जाएंगे लेकिन नई कोंपलें फूटेंगी क्रान्ति और बदलाव की।
मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव....
जय जय भड़ास

मैं तो सिर्फ़ डाक्टर रुपेश हूँ !!!

मैं तो सिर्फ़ डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूँ,
क्या इन लोगों के दुष्प्रचार कर देने से उन पर कोई प्रभाव पड़ेगा। हरगिज नहीं बस जो सूखे पत्ते हैं वो टूट जाएंगे लेकिन नई कोंपलें फूटेंगी क्रान्ति और बदलाव की।
मैं हूं डॉ रूपेश श्रीवास्तव....
जय जय भड़ास

मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव

अपुन कोई अग्निबाण वान नही है, साला हम है डाक्टर रुपेश श्रीवास्तव, चल संजय सेन अपने बाप यशवंत को बता की यहाँ साला सब रुपेश ही है, और हाँ एक बात और जो यशवंत को पता है तू भी कर लेना अपने बापू से की कैसे भडासी एक हुंकार भरता है तो सामने वाले की क्या क्या गीली हो जाती है।

हम ही हैं रुपेश हम ही हैं भड़ास
जय जय रुपेश
जय जय भड़ास

मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव और मेरी भाषा ऐसी है

मैं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं जो कि आयुषवेद नाम का आयुर्वेद की मुफ़्त सलाह देने वाला और मात्र उत्पादन मूल्य पर दवाएं उपलब्ध कराने का काम करता हूं लेकिन चूंकि मेरे पास कोई डिग्री वगैरह तो है नहीं तो आयुषवेद पर सवालों के जवाब देने से पहले संजय सेन के बाप को फोन करके दवाएं पूंछता हूं तब पोस्ट लिखता हूं और रही बात चवन्नी का चूरन भेजने की तो मैं तो संजय सेन की सलाह पर कई लोगों के पैसे भी खा जाता हूं और चूरन तक नहीं भेजता। मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव। साले खबीस की औलाद यशवंत सिंह थोड़ा और तेल लगा ताकि वह मूते तो तुझे दो चार बूंद चाटने को मिल जाएं। मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव और मेरी भाषा ऐसी है कि तुझ जैसे हरामियों का पिछवाड़ा फट कर तालाब बन जाए, लिख इस बात को अपने भड़वों की जमात जोड़े हुए हिंदुस्तान के सिरदर्द पर......।
जय जय भड़ास

जिसमें ये आग है ही नहीं वो डॉ. रूपेश श्रीवास्तव कैसे हो सकता है?

अरे चूतिया हिंदी के मुखौटाधारियों क्यों ब्लागिंग में हग रहे हो बस इतनी सी बात है तो बताये दे रहा हूं कि मैं अजय मोहन शर्मा नही हूं बल्कि डॉ. रूपेश श्रीवास्तव ही हूं क्योंकि ये तो वो शख्सियत है जो कमोबेश हर भड़ासी के भीतर आग सुलगाए रहती है सही कि सही और गलत को गलत कहने की.......। जिसमें ये आग है ही नहीं वो डॉ. रूपेश श्रीवास्तव कैसे हो सकता है?
जय जय भड़ास

मैं ही डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं जो कि बुर्का में लिखती हूं

अरे भाई लोगों मैं ही डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं जो कि बुर्का में लिखती और सबकी हवा तंग करती रही हूं। किसी को कोई तकलीफ़ है क्या मेरे इस नाम से? मैं ही डॉ. रूपेश श्रीवास्तव हूं इस बात में किसी को कोई शक शुबहा नहीं रहना चाहिये।
जय जय भड़ास

ये सब एक ही इंसान है यानि कि डॉ. रूपेश श्रीवास्तव

मैं आज पहली बार इस असली आई.डी. से बता रहा हूं कि सच तो ये है कि असल में डॉ. रूपेश श्रीवास्तव मैं ही हूं बल्कि मैं तो कहुंगा कि भड़ास के मंच पर एक ही शख्स है जो कि इस नाम से लिखता है चाहे वह व्योम श्रीवास्तव हो या कशिश गोस्वामी या फ़ायर ओनली फ़ायर या फ़ाइट फ़ार राइट वगैरह ये सब एक ही इंसान है यानि कि डॉ.रूपेश श्रीवास्तव।
जय जय भड़ास

मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव इसमें कोई संदेह नहीं है।

संजय सेन हो या कशिश गोस्वामी सबके लिये एक ही सच बता रहा हूं कि डॉ। रूपेश श्रीवास्तव मैं ही हूं। शरीर से बूढ़ा और कमजोर लगता हूं और उम्र बहत्तर साल हो गयी है यानि कि तुम कहोगे कि इसे तो सठियाए हुए ही बारह साल हो गये इस लिए ऐसा कह रहा है लेकिन बच्चों हकीकत यही है कि मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव इसमें कोई संदेह नहीं है।

जय जय भड़ास

मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव

क्या शक है किसी को जो इतना ड्रामा करने की जरूरत है उस मुखौटाधारी पाखंडी दल्ले को ? अरे मूर्ख मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव, तुझे कोई शक नहीं होना चाहिये। वह ही तो हैं जो हम सबके अधूरे शरीरों में आत्मा बन कर हमें जिन्दा रखे है इसीलिये तो तू जान ले ढकोसलेबाज कि मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव।
जय जय भड़ास

मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव....

मैं कहता हूं कि मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव, क्या इन घटिया लोगों के दुष्प्रचार कर देने से उन पर कोई प्रभाव पड़ेगा। हरगिज नहीं बस जो सूखे पत्ते हैं वो टूट जाएंगे लेकिन नई कोंपलें फूटेंगी क्रान्ति और बदलाव की। मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव....
जय जय भड़ास

मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव

मैं भी तो डॉ. रूपेश श्रीवास्तव ही हूं बस चेहरा और जिस्म अलग है वरना किसमें दम है कि सारे समाज के पाखंड को लात मार कर एक हिजड़े को गले से लगा ले, मैं कहती हूं कि मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव जिसे कोई शक हो वह मुंबई आकर मुझसे मिल ले। बता दूंगी कि सच्चाई क्या है कि डॉ. रूपेश श्रीवास्तव मर्द है या औरत या फिर हिजड़ा .......। मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव, मैं ही हूं जो अर्धसत्य ( http://adhasach.blogspot.com) नाम का ब्लाग चला रही हूं।
जय जय भड़ास

डॉ. रूपेश श्रीवास्तव मैं ही हूं

कौन कहता है कि मुनव्वर सुल्ताना का कोई असल वजूद है मैं ही तो हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव। वो तो मात्र एक विचार है जो हर उस व्यक्ति में है जो सच्चा है और सच के हक़ में लड़ने का साहस रखता है जैसे अमर शहीद भगत सिंह हुआ करते थे। आज मैं इस आभासी संसार में खुल कर एलान करती हूं कि असली डॉ. रूपेश श्रीवास्तव मैं ही हूं। लंतरानी नामक ब्लाग http://merilantrani.blogspot.com मैं ही तो लिख रही हूं यकीन करिये मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव.......
जय जय भड़ास

मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव

आज एक कमीने ने अपनी हरकत से बताया कि उसकी क्या औकात है। वो क्या हिंदी के भेड़चाल चलने वाले ब्लागरों को बताएगा कि कौन हैं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव, मैं सबके सामने बताती हूं कि मैं हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव...... और मैं ही नहीं हर वो मेरे जैसी लड़की जो ब्लागर भले ही न हो पर बेखौफ़ होकर घर से निकल पाती है क्योंकि जानती है कि एक भाई है जिसके बदन में रीढ़ की हड्डी है बहनों की रक्षा कर सकता है उनके सम्मान की रक्षा के लिये जान दे सकता है। घरों में बैठ कर शराफ़त का मुखौटा लगा कर ब्लागिंग के क्षेत्र में अपने आप को शरीफ़ बताने वालों कभी घर से बाहर आकर लड़की को छेड़ते किसी गुंडे का हाथ रोक कर देखो...... सिर्फ़ कंप्यूटर पर पिटपिटाने से कोई डॉ. रूपेश श्रीवास्तव नहीं बन जाता, साम्प्रदायिक दंगे फैलाने वालों के सामने खड़े हो सको इतना गूदा है हड्डियों में??????? आज मैं कहती हूं सारे लोगों के सामने कि मैं ही हूं डॉ. रूपेश श्रीवास्तव। अरे गलीज़ के कीड़ों! तुम अगर हज़ार जन्म भी ले लो तब भी रूपेश का र भी न पैदा कर पाओगे अपने भीतर....
जय जय भड़ास

मीडिया माफ़िया यशवंत सिंह को तेल लगाते संजय सेन सागर...

मात्र कुछ समय पहले तक हिंदुस्तान के (सिर)दर्द संजय सेन के विचार स्वयं को मीडिया माफ़िया मानने वाले चिरकुट यशवंत सिंह के बारे में क्या विचार थे खुद ही देख लीजिये और अब क्या हैं वो आप देख रहे हैं कारण साफ़ है कि दोनो में सांठ-गांठ हो गयी है अब कोई दिक्कत नहीं है।
यशवंत सिंह की क्या नैतिकता है ये तो उसके लेखन से दुनिया को पता है लेकिन जो बेचारे इस पाखंडी को नहीं जानते उनके लिये प्रस्तुत है उसकी हड्डियों के खोखलेपन का एक नमूना.......
संपादकीय नैतिकता की उम्मीद मत करिये और लोभी बनियों की कोई नैतिकता होती ही नहीं जैसा कि संजय सेन ने कर दिखाया है।

मेरे बारे में कशिश गोस्वामी(न जाने किस गरीब लड़की की तस्वीर लगा कर प्रोफ़ाइल बनाया है,जीवित भी है या नहीं?) के नाम से लिखने वाले पोकल संजय सेन को एक हिट मिल दीजिए ताकि उसके घर में चूल्हा जलता रहे वरना बेचारे को क्या-क्या करना पड़ता है किसे किसे तेल लगाना पड़ता है। उसकी लिंक नीचे की पोस्ट में है जरूर जाकर मेरी प्रशंसा पढ़िये और आनंदित होइये कि जब आप किसी मुखौटाधारी का मुखौटा नोच लेते हैं तो वह कैसे सच खुलने पर बिलबिलाता है गालियां देता है....
जय जय भड़ास

डा.रूपेश श्रीवास्तव ने मुखौटाधारियों को रगेदा तो बिलबिलाना रोना जारी है


कशिश गोस्वामी भड़ासियों की फ़ेहरिस्त में खुद शामिल है और मेरे बारे में दूसरे ब्लाग पर प्रशंसा लिख रही है अगर ये बेवकूफ़ भड़ास पर भी इस आलेख को लिखे तो मैं हरगिज न हटाउंगा, लेकिन एक पोकल हड्डी के सियार में इतना साहस नहीं होता है तो वो जीवन भर ऐसा न कर पाएगा, इन ढक्कनों की सदस्यता तो तब ही समाप्त होगी जब ये खुद ही भड़ास छोड़ कर पिछले पाखंडी की तरह भाग जाएंगे। चिरकुट! तेरी पोस्ट की लिंक मैं खुद लगा रहा हूं ताकि लोग जान सकें कि तू कितने पानी में है और तेरी क्या औकात है, तुझमें गाली देने का साहस कहां है कि तू गलत बात का विरोध भी कर सके मैं तो ठोंकने तक का दम रखता हूं कीड़े! गाली तो दूर है कभी मौका लगे तो ये भी दिखा दूंगा कि निरा शास्त्र वाला चिकित्सक नहीं हूं सर्जरी ही नहीं पोस्टमार्टम भी कर सकता हूं और तेरे जैसे नासूरों के लिये तो जरूर शस्त्र उठाउंगा।
आप देखिये कि संजय सेन जो कि खुद मानता है कि वह हिंदुस्तान का (सिर)दर्द है और मुर्दा हो चुकी भड़ासblog के नाम बदल-बद्ल कर परेशान हो चुके लालची बनिया यशवंत सिंह भड़ास के सही अस्तित्व में आ जाने से कैसे बौखलाए हुए हैं कि वो कशिश गोस्वामी जो कि खुद ही संजय सेन का एक फर्जी परिचय है,बेचारे में खुद अपने नाम से लिखने का साहस तो है नहीं इसलिये कभी व्योम श्रीवास्तव बनता है और कभी कशिश गोस्वामी, अरे पाजी! अपना नाम तो बदल लेकिन बाप का भी बदले ले रहा है। मेरी भाषा तो तुम जैसे नीच और पापी, मुंहचोर लोगों की फ़ाड़ने के लिये ही है सर्जरी का टूल है वो बेटा...। तेरी सहलाने वाले भी मुझसे परिचित कहां हैं उनमें साहस कहां है सच का सामना करने का इसलिए तू उस चूतियम सल्फ़ेट की हड्डियों वाले लालची बनिये को तेल लगा और वो तुझे मूत न पीने देगा बेटा किस गलतफ़हमी में है तू?
इस लिंक पर जाकर मेरी प्रशंसा में लिखा आलेख अवश्य पढ़िये जो कि फर्जी आई.डी. से लिखा गया है कशिश गोस्वामी नामक ब्लागर की असलियत ये तस्वीरें खोल रही हैं कि ये किन सिद्धांतो को मानती हैं(ये संजय सेन चिरकुट ही है और मुझे लिखता है कि मैं १००-१५० फर्जी नामों से लिखता हूं, सही ही है मेरे एक करोड़ ब्लाग हैं जिन्हें मैं दस लाख नामों से लिखता हूं, अरे चिंदीचोर तुझमें है बूता..???)
भड़ास से बदल कर नाम भड़ासblog क्यों करना पड़ा ये पूंछने का साहस है किसी में?
अरे दलिन्दरों! जिन बेचारों को जरूरत है आयुषवेद की वो तुम चूतियों के रोकने से कहां रुकेंगे, तुम ऐसे ही तेल-चटाई का धंधा करते रह जाओगे जीवन भर... लगता है बच्चों ने ट्यूशन आना भी बंद कर दिया है। कशिश गोस्वामी हो या व्योम श्रीवास्तव के नाम से लिखो तुम्हारी चड्ढी तो बेटा हम भड़ास पर उतार कर दुनिया को दिखाएंगे कि सही मायनों में "हिजड़ा" कौन है?
अबे ढक्कन! दम है तो जैसे मैंने भड़ास4मीडिया का लिंक लगा रखा है जैसे उठाईगीर-लुक्खों का पुलिस स्टेशन में लगाते हैं वैसे तू भी भड़ास का लिंक लगा कर रख फिर देख कि तेरी क्या औकात है...
हंसी आ रही है तेरे गोबर पर अबे चूतिये अगर इतना पढ़ाई-लिखाई के समय स्कूल में लिखा होता तो आज दो रोटी के लिये यशवंत सिंह जैसे चिरकुट को तेल न लगाना पड़ता।
हा..हा..हा...
जय जय भड़ास




हिंदू नववर्ष पर महाराष्ट्र का पर्व "गुडी पाड़वा"

हिंदू नववर्ष के अवसर पर राजनेता भला क्यों मौका चूकते तो सबने अपने-अपने हिंदुओं के नजदीक होने का प्रमाण देने के लिये भरपूर कोशिश जारी रखी, झांकिया दर्शाती शोभायात्राएं स्कूलों से लाए गये बच्चे जो शायद आज घर पर रहना चाहते होंगे लेकिन मजबूरी है कि स्कूल कांग्रेस के भूतपूर्व सांसद का है तो फिर......
आखिर बूढ़े हो तो क्या....? खाते नहीं हो क्या? चलो खुशी... दिखाओ हमारा राज्य है
बेचारे स्कूली बच्चे मेकअप में रंगे शिवाजी बने बच्चे को शर्बत नहीं मिला क्योंकि नकली दाढ़ी-मूंछ गीली होकर खराब हो जाएंगी
नीचे चलने वालों को तो शर्बत भी मिल गया.....हमें तो कुछ भी नहीं..... ट्रक में सामान की तरह लादे गये बच्चे.......
ये सारा ड्रामा करा गया कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की तरफ़ से.......
बहुत सारी तस्वीरें ली जा सकती थीं लेकिन मन भड़ास में उलझ गया। करीब एक लाख रुपए से अधिक के पटाखे जला डाले, दो हजार से अधिक लोगों की भीड़ जुटा डाली, जय भवानी-जय शिवाजी के साथ साथ मस्जिद के सामने से सैकड़ों भगवा ध्वज लिये हिंदू जनजाग्रति सभा के लोगों ने नारा लगाया ’जो हमसे टकराएगा चूर चूर हो जाएगा’..... इससे आप समझ सकते हैं कि मेरी मनोस्थिति कैसी हो गयी होगी कि ये नववर्ष का उल्लास है या मात्र भीड़ तंत्र का प्रयोग करके शक्ति प्रदर्शन करने का तरीका????? कल को हिजरी संवत के शुरू होने के दिन मुस्लिम नेता अपनी बारात लेकर निकलेंगे और मंदिर के सामने यही सब दोहराएंगे और फिर बस........... दिमाग खराब कर दिया..... बेकार ही गया मैं उधर चूतियों के बीच... :(
जय जय भड़ास

शादी और सावधानी ......................???????????



शादी करो मगर याद रखो ये बाते पहले .....................

मुंबई के प्रशिक्षित भिखारी बच्चे

आपको मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर ऐसे भीख मांगते हजारों बच्चे मिल जाएंगे जो कि आपसे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि आप उनके चाचा या मामा हो जिनसे पैसे मांगना उनका हक है। आइसक्रीम वाले के पीछे लग कर सबने आइसक्रीम तो पा ली अब धंधे पर लगा जाए क्योंकि शाम को हिसाब देना होता है शायद यही चर्चा चल रही है इन लड़कियों में आइसक्रीम का मजा लेते हुए......

नेता कौन और कैसा ? ( एक व्यंग)

राष्ट्रिय राज मार्ग का यह दृश्य बयां कर रहा है हमारी राजनितिक भूमिका को । क्या ये ही स्थिति हमारे लोकतंत्र का नही है ? गडेरिया नेता और उसके साथ भेड़ का भीड़ !!!!


देश का नेतृत्व, आम जन का साथ आम जन का हाथ



नेता कौन ? कैसा? ( एक व्यंग)

राष्ट्रिय राज मार्ग का यह दृश्य बयां कर रहा है हमारी राजनितिक भूमिका को । क्या ये ही स्थिति हमारे लोकतंत्र का नही है ?
गडेरिया नेता और उसके साथ भेड़ का भीड़ !!!!
देश का नेतृत्व, आप जन का साथ आम जन का हाथ
जय जय भड़ास !

शाकाहार क्यो //?

ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि शाकाहार से कैंसर से रक्षा में मदद मिल सकती है.

अध्ययन के अनुसार शाकाहारी लोगों में मांसाहारी लोगों की तुलना में कैंसर के बहुम कम मामले देखे गए.

ये अध्ययन ब्रिटेन में 52,700 पुरुषों और महिलाओं पर किया गया, जिनकी उम्र 20 से 89 वर्ष के बीच थी.

एक अमरीकी जनरल में ये अध्ययन प्रकाशित हुआ है और शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन को काफ़ी अहम माना है.

अध्ययन करने वाली टीम ने लोगों को तीन समूहों में बांटा और मांस खाने वाले, मछली खाने वाले और शाकाहारियों का समूह बनाया.

कैंसर

अध्ययन में पाया गया है कि मछली खाने वालों और शाकाहारियों में मांस खाने वालों की तुलना में कैंसर के कम मामले पाए गए.

ये एक दिलचस्प अध्ययन है, ये इस बात के संकेत दे रहा है कि मछली और शाकाहारियों में कैंसर का ख़तरा कम हो सकता है. इसलिए हमे इसे सावधानी के साथ देखने की ज़रूरत है
प्रोफ़ेसर टिमके

हालाँकि इस अध्ययन के अनुसार शाकाहारियों में कोलोरेक्टल कैंसर के अधिक मामले देखे गए.

शोधकर्ता इस नतीजे से चकित हैं क्योंकि ये पहले के अध्ययन के उलट हैं.

पहले के अध्ययन के अनुसार कोलोरेक्टल कैंसर की मांस खाने वालों में अधिक संभावना रहती है.

अध्ययन टीम के प्रमुख प्रोफ़ेसर टिमके का कहना है कि इससे पहले किसी भी अध्ययन में आहार को इस तरह से प्रमुखता नहीं दी गई थी जिसकी वजह से बहुत सारा भ्रम है.

उनका कहना था, " ये एक दिलचस्प अध्ययन है, ये इस बात के संकेत दे रहा है कि मछली और शाकाहारियों में कैंसर का ख़तरा कम हो सकता है. इसलिए हमे इसे सावधानी के साथ देखने की ज़रूरत है."

उनका कहना था, " ये अध्ययन इस बात का समर्थन नहीं करता कि शाकाहारियों में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले कम पाए जाते हैं. इसलिए मैं समझता हूँ कि मांस इसके लिए कैसे ज़िम्मेदार हो सकता है. इस सिलसिले में सावधानी पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. "

उन्होंने स्पष्ट किया है कि कैंसर और आहार के बीच संबंध स्थापित करने वाले इस अध्ययन पर और काम करने की आवश्यकता जो कि एक मुश्किल कार्य है.


साभार जाल तंत्र

गाँव की एक भोर, भारत की तस्वीर !!!

गाँव में था, सो सुबह सुबह उठाना मजबूरी इस मज़बूरी ने प्रकृति की कुछ छटा दिखायी जिसने बचपन को ताजा किया, आप से साझा कर रहा हूँ शायद आपने भी इस भारत को देखा हो ?



गाँव की सुबह, सूर्योदय से पहले ही घरों से निकलता धुंआ मानो सूर्य देव के लिए धुनी रमाई हो !


सुबह हुई, काका ने बैल को निकला खलिहान में बाँधा


खलिहान से आम के मन्न्जरों के बीच से सूर्य नमस्कार !!!



सुबह और दैनिक कार्यक्रम की शुरुआत, ठंडी में भी बर्फ बेचने के लिए निकला बेचन !



चाचा का टायर गाड़ी चली हाट



दादा जी खलिहान में पोते और नाती के साथ



सुबह हुई और दूध वाला दूध लेकर चला हाट



अड़हड़ की बलि से झलकती प्रकृति की छटा निराली


कोशिश की इन तस्वीरों से गाँव को दिखाने की, पसंद ना आए तो भी करना नमस्कार इस भारत को

इन्द्रप्रश्थ(दिल्ली) में अर्जुन का अस्तित्व खतरे में!

दिल्ली !!! हमारे देश की राजधानी, चमचमाती कोलतार की काली पट्टी पर सरपट दौड़ती रंग-बिरंगी गाडियां! सत्ता-विपक्ष और आम आदमी का केन्द्र-बिन्दु जहाँ से सबको कुछ न कुछ उम्मीद जरुर रहती है। दिल्ली के बारे में सैकड़ों कहानिया और किम्वदंतियां सुनने को मिल ही जाती हैं। सरकारी इमारतों और एतिहासिक साछ्यों की समृद्ध विरासत का नाम है दिल्ली! दिल्ली के बारे में ये भी कहा जाता है की दिल्ली का कोई भी अपना नही है और दिल्ली सबकी है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो दिल्ली के दिल के बहुत करीब हैं और सैकड़ों सालों से चुपचाप दिल्ली की शान में चार-चाँद लगा रहे हैं। मगर आज वे ही उपेक्षित और तिरस्कृत हो चुके हैं। वातावरण और हरियाली को मुख्य मुद्दा मानते हुए आधुनिक दिल्ली की नीव रखी गई थी। दुनिया भर के पर्यटक और अपने देश के लोग दिल्ली की हरियाली पर रीझ से जाते हैं। मगर आज यही हरियाली खतरे में पड़ चुकी हैं। सरकार नए-नए प्लांट लगाने की फिराक में करोड़ों तो लुटा रही है , मगर पुरानी चीजों को सहेज पाने में पुरी तरह असमर्थ दिख रही हैं। आपको ज्ञात होगा की दिल्ली एक वेल-प्लान्ड शहर है जिसके हर चौराहे, सड़क और गलियां पुरी योजना के साथ बनाये गए थे। और इन्ही में से एक है दिल्ली की हरियाली ....आप नई दिल्ली की सड़कों पर निकलिए तो आपको यह आभास हो जाएगा क्यूंकि हर सड़क पर लगाये गए पेडो की जात एक ही है। आप मुथुरा रोड पर निकलिए तो दोनों तरफ़ आपको जामुन के पेड़ ही नज़र आएंगे, सुप्रेम कोर्ट रोड पर निकलिए तो इमली ही इमली नज़र आयेगी, मतलब ये है की हर सड़क पर लगभग एक ही तरह के पेड़ लगाये गए हैं। इन्ही में से एक है अर्जुन नामक पेड़ जिसके बारे में ये कहा जाता है की ये बहुत ही औषधीय पौधा है। लेकिन आज से समय में इसी अर्जुन पेड़ का अस्तित्व खतरे में हैं। क्यूंकि ये पुरी लाइन सूखनेके कगार पर पहुँच चुकी हैं। स्थानीय लोग बताते हैं की अर्जुन की छाल ह्रदय रोगियों के लिए लाभकारी हैं , बस फिर क्या था हर दूसरा आदमी अर्जुन की छाल को छिलता चला गया और आज आलम ये है की अर्जुन ख़ुद बीमार पड़ गया है या यूँ कहिये की मरने के कगार पर पहुँच चुका है। आम लोगों की तरह ही सरकार और महानगरपालिका भी इस पर कोई ध्यान नही दे रही है। अब वह दिन भी दूर नही जब दिल्ली से अर्जुन का जनाजा निकल जाएगा और सरकारी विभाग इसके मरने पर भी करोड़ों की चपत लगायेगा। लेकिन हमारी गुजारिश आम दिल्ली वासियों से है की अपने अर्जुन को बचाएँ !!!! अर्जुन को शायद वर्षों से पानी भी नही दिया गया है..लेकिन शहरी राईस न जाने कितना पानी अपनी गाड़ियों पर उडेल देते हैं..और ह्रदय रोग होने पर बेचारे अर्जुन की छाल को नोच डालते हैं , पर क्या उनका कर्तव्य ये नही बनता की एक गिलास पानी अर्जुन की जड़ों में डाल दे जिससे आने वाले समय में अर्जुन मुस्कुराते हुए अपनी छाल उतरवा सके!~!!
जय भड़ास जय जय भड़ास

चलू गामक भोर के याद करू आ गाम सय भय आऊ !!!

गाम सय अयला बहुत दिन भय गेल मुदा याद अखन धरि ओहिना अइछ जखन जखन ई फोटो के देखैत छी तय बस मोन होइत अइछ जे गाम परा जाई मुदा की करू ई संभव नही। देखैत देखैत एक दिन विचार जे ई फोटो सय गामक लोग के कनि गाम सय घुमा फिर दियैन आ संगे ध्यान तमाम ओहि लोक सभ सय जे हमर मिथिला आ मिथिलावाशी के लेल किछु कय सकैत छैथ।

बाहर कोनो क्रियाकलाप होय मुदा गाम जाइते सभ गोटे के दैनिक कार्यक्रम वापस गाम जेना भय जाइत छैन्ह, हमहूँ अहि सय इतर नहि। भोरे उठलहुं तय भोरका आनंद मोबाईल संगे विदा भय गेलहुं कोठा पर आ ताहि ठाम सय लेलहुँ किछु भोरका फोटो। निश्चय अहुं के गामक दृश्य यैह होयत से देखि कय विचार जरुर देब।





चिन्वारक धुंआ आर दालान पर बाबा-कक्का के दिनका काजक शुरुआत


सूर्योदय सय पुर्वहि लोगक चिनवार सय उठैत धुंआ, गामक विशिष्ट पहिचान !!!


भोर भेल, काका रद के खुट्टा सय बान्है लेल अयलाह खरिहानबटेसरी माय चलल काज पर !!!


सूरज उगल नहि मगर फुलचनमा विदा भेल बर्फ के डिब्बा लय कय नेना भुटका के लेल बर्फ बेचबाक वास्ते !!!



सुरजक पहिल दर्शन आमक मंजर, बस मोन जे देखैत रही अद्भुत प्रकृति !!!



लियह भगवानक प्रसन्न चित मुखक दर्शन सेहो भेल, अहुं करू !!!


माइंजन के टायरगाड़ी विदा भेल हाट, बिल्टू काका लगबैत सानी, मंगल बाबा चलला खेत !!!


बाडी में फ़ुलाइत आमक मज्जर गमका रहल थीक सौंसे दलान !!!


अनिल काका पोता नाती के लय कय विदा भेला बाडी !!!


मुखिया पट्टी वाली बौकू के संगे दूध लय कय विदा भेलीह!!!


भोरका काल खरिहान में राहारिक फ़ुलाइत फूल !!!!


अड़हुलक फूल अपन यौवन में, देखि कय याद करू गीत..........

लाले लाले अड़हुल के माला चढ़ौलहुं ...........


चंद्रमणि के ई गीत, अड़हुल के फूल आ भोरका काल से भगवती के अलावे किछु अन्य सुझितो तय नहि अइछ।

फोटो के बहाने गामक के एक टा छोट यात्रा छल, विचार सय अवगत कराऊ।

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