भारतीयता कोई बिहार से सीखे


महाराष्ट्रा की घटनाओं से बिहार के लोगों को गहरी तकलीफ पहुँची हैकुछ अरसा पहले बिहार विधानसभा के साझा सम्मलेन में कुछ विधायकों ने "मराठी राज्यपाल वापस जाओ" के नारे लगाएबिहार के लोगों की पीड़ा को समझा जा सकता है, लेकिन यह कार्रवाई बिहार की परम्परा और संस्कृति के अनुरूप नही थीबिहार की अपनी खामियां हैं, लेकिन भारतीयता के पैमाने पर उसने जो मिसाल कायम की है, वह काबिले तारीफ हैइस पर चल कर ही यह देश खुश रह सकता है
बिहार को कई बातों के लिए नीची नजर से देखा जाता हैउसकी गरीबी और पिछडापन का मजाक उदय जाता हैउसके जातिवाद को बुराई की मिशाल बताया जाता हैलेकिन सच यह भी है की प्रांतवाद या क्षेत्रवाद के कीटाणु इस राज्य में कभी घुस नही पाये
बिहारी अस्मिता हमेशा राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ी रहीहजार वर्षों तक पाटलिपुत्र इस भूभाग का राजधानी रहा और पाटलिपुत्र का इतिहास ही देश का इतिहास बन गयाराजा जनक, दानी कर्ण,भगवान् महावीर, भगवान् बुद्ध, राजनायिक चाणक्य, सम्राट चन्द्रगुप्त मोर्य, अजातशत्रु, अशोक महान, सेनापति पुष्यमित्र शुंग, दार्शनिक अश्वघोष, रसायन शास्त्र के जनक नागार्जुन, चिकित्सक जीवक और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट जैसे महापुरुष इस धरती पर हुए जिनसे भारत को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली
इस परम्परा पर कौन गर्व नही करता? क्या इसे बिहारी परम्परा कहा जायेगा? भारतीय राष्ट्रवाद की परम्परा बिहार में आधुनिक समय में भी जारी रही
आजादी के बाद कोयले और लोहे पर मालभाडा समानीकरण की नीति को बिहार ने बिना किसी ऐतराज के स्वीकार कर लियाइस कदम से बिहार की इकोनोमी की कमर टूट गयीसमान खर्च पर लोहे और कोयले की दुसरे राज्यों तक धुलाई की सुविधा का असर यह हुआ कि उद्योगों को बिहार आने की जरुरत ही नही पड़ीवे दुसरे राज्यों में लगते गएबिहार के संसाधन ख़ुद उसके काम नही आएगौरतलब है कि कॉटन के लिए यह नीति लागू नही की गयी
एक और उदाहरण लीजियेदिसम्बर १९४७ में बिहार विधानसभा में इस मुद्दे पर बहस चल रही थी कि दामोदर घटी परियोजना में बिहार को शामिल होना चाहिए या नहीएक-एक कर कई सदस्यों ने कहा कि इस परियोजना से बाढ़ बचाव और बिजली उत्पादन का फायदा पुरा का पुरा बंगाल को मिलेगा, जबकि डूब और विस्थापन का खतरा बिहार को उठाना पड़ेगाइस तर्क का जवाब सरकारी पक्ष के पास नही था
सिंचाई मंत्री को जवाब देना था, लेकिन उनकी जगह मुख्यामंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा खड़े हुएउन्होंने कहा, अभी १५ अगस्त को देश आजाद हुआ है, हम सबने अखंड भारत के प्रति वफादारी की क़समें खाई है, लेकिन उसे हम इतनी जल्द भूल गएअगर इस परियोजना से बंगाल के लोगों को फायदा पहुँच रहा है, तो क्या ग़लत है? वे भी उतने ही भारतीय हैं, जितने कि बिहार के लोग
बिहार ने अगर ख़ुद को भारतीय अस्मिता के साथ एक ना कर दिया होता, तो क्या वहां से इतनी बड़ी तादाद में गैर-बिहारी-सांसद बनते? आजादी की लड़ाई के दौरान १९२२ में परिषद् के चुनाव लड़ने के मुद्दे पर कोंग्रेस बंट गयी थीगया अधिवेशन में भाग लेने आए जयकर और नटराजन जैसे नेता जब अपने राज्यों से कांग्रेस कमिटी के प्रतिनिधि नही चुने जा सके, तो बाबु राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें बिहार से निर्वाचित करायायह सिलसिला चलता रहा
संविधान सभा में सरोजिनी नायडू बिहार से चुनी गयीआजादी के बाद जे. बी. कृपलानी, मीनू मसानी, मधु लिमये, जोर्ज फर्नांडिस, रविन्द्र वर्मा, मोहन सिंह ओबेरॉय आदि को बिहार ने अपना नुमाइंदा चुनाइंद्रकुमार गुजराल भी यहीं से राज्यसभा में पहुंचेक्या बिहार में प्रांतवाद इसलिए नही है कि उसका सारा ध्यान जातिवाद में लगा रहता है
कुछ लोग ऐसा तर्क दे सकते हैं, लेकिन ऐसा कहना बिहार के साथ अन्याय होगाअखिल भारतीय सेवाओं के जो अफसर बिहार में तैनात है, वे मानते हैं कि उनके साथ कोई भेदभाव नही किया जाताएक मायने में बाहरी होना उनके पक्ष में जाता है, क्यौंकी वे जातिगत समीकरणों से अलग रह पाते हैं
ख़ुद महाराष्ट्र की परम्परा भी ओछे प्रांतवाद के ख़िलाफ़ हैयह राज्य समाज सुधारकों, संतों और समाजवादियों का गढ़ रहा हैबाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे महान नेताओं ने राष्ट्रवाद का पाठ पढायातिलक ने पुरे देश से धन इकठ्ठा कर डेक्कन एजुकेशन सोसायटी की १८८४ में स्थापना कीतब से आज तक सोसायटी के पैम्पलेट के कवर पर यह साफ़ लिखा होता है कि जाति, धर्म, भाषा या प्रान्त के नाम पर कोई भेदभाव नही किया जायेगासोसायटी की स्थापना में उन्हें गोखले और गोपाल गणेश आगरकर का सक्रिय समर्थन मिलामहर्षी कर्वे जैसे शिक्षाविद भी इससे जुड़ेपुणे का मशहूर फर्गुशन कॉलेज उसी सोसायटी की देन है
गोखले ने ही गाँधी से कहा था कि देश में कुछ करना चाहते हो तो देश को समझो और देश में घुमोबहरहाल, ये मिशालें पेश करने का मकसद यह है कि हम क्षेत्रवाद राष्ट्रवाद को समझेंयाद कीजिये कि ब्रिटेन की प्राइम मिनिस्टर मार्गरेट थैचर और रूस के प्रेजिडेंट मिखाइल गोर्वाचोव ने भारत से सबक लेने को कहा था, जहाँ इतनी विभीन्नता के बीच लोग साथ-साथ रहते आयें हैं
अब अगर हम इस बात को भूलकर राज्यों के बीच फर्क देखने लगें, तो भारत का क्या होगा? हमें भारतीय राष्ट्रवाद से अपने टूटते तारों को फ़िर जोड़ना होगा
इस देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद सदियों से रहा है, भले ही राजनायिक राष्ट्रवाद हाल की बात होहमारे यहाँ सात नदियों को पूजने की परम्परा रही हैये नदियाँ सारे देश में फ़ैली थीशंकराचार्य ने देश के चारों कोने में पीठों की स्थापना की थी
आधुनिक समय में राजनितिक राष्ट्रवाद की अवधारणा पैदा हुई, जिसके तहत हमने आजादी की लड़ाई लडीहमारी खुशकिस्मती है कि सांस्कृतिक और राजनीतिक भारत का नक्शा लगभग एक जैसा हैभाषाई आधार पर प्रान्तों का गठन काफी बाद की घटना है, लेकिन हमने इसे इतना तूल दे दिया है कि यह हमारे ट्रेंड से बाहर निकलने के लिए हमें क्या करना चाहिए, इस पर सभी को विचार करना होगा


लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं और ये लेख नव भारत टाईम्स के सम्पादकीय का है, इस लेख से कुछ ऐसे पहलु पर प्रकाश पड़ता है जिस से संभवत: बहुत सारे स्थानीय भी अनजान हैं। राष्ट्रवाद को समर्पित यह लेख तमामुं लोगों के लिए जिन्होंने इसे दैनिक में नही पढा.

साभार: नव भारत टाइम्स
लेखक : सुधांशु रंजन (वरिष्ट पत्रकार)

4 comments:

Vivek Gupta said...

बहुत बढ़िया | आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

धन्यवाद,
आपको भी सपरिवार दीपावली की ढेरक सुभकामना,

Anonymous said...

hi,
first of all pardon me for not writing in hindi as my typing in hindi is not good.
i fully agree that bihar has a great history but what matters is present situation.Everybody knows that in socio economic parameters its situation is very bad.but why?
i think the main reason is decades of bad politics in the state,castiesm,corruption,law and order(crime is rampant in society),
flight of middle class,also the upper class due to which there is no check on politicians and criminals,also the frequent floods,
one more thing that i find is value system in society is totally failed.also over population(10 crore)
how can we solve all this problem?
i feel only god can save bihar now!

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

मित्र अनाम महोदय.
अगर आप अपनी पहचान के साथ सामने आयें तो आपके सारे समस्याओं पर मैं रोशिनी डालूँगा,
अनाम बनें और गुमनाम अहमियत के लायक नही होते हैं.

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