तस्वीरों दिनों घर गया था वापसी में ट्रेन पटना से पुणे एक्सप्रेस थी जिस से मुझे मनमाड़ उतरना था, ट्रेन अपने निर्धारित समय पर मनमाड़ पहुँच भी गयी तो उतरते समय संतोष था की अब घर सही समय पर पहुँच जाऊंगा।
ट्रेन से बाहर निकला तो मनमाड़ से औरंगाबाद के लिए पहले टिकट लेना था सो प्रवेश द्वार की तरफ़ बढ़ा, धीरे धीरे कदम बढाते हुए टिकट काउंटर की और बढ़ चला।
तस्वीरों को देख कर इस धोखे में ना जाइयेगा कि ये लोग सामने कड़ी ट्रेन से उतरने वाले यात्री हैं अपितु ये वो भागने वाले लोग हैं जिन्हें रात के दो बजे अचानक से प्लेटफोर्म बदल कर ट्रेन पकड़नीहै।
जय हो
ट्रेन से बाहर निकला तो मनमाड़ से औरंगाबाद के लिए पहले टिकट लेना था सो प्रवेश द्वार की तरफ़ बढ़ा, धीरे धीरे कदम बढाते हुए टिकट काउंटर की और बढ़ चला।
टिकिट काउंटर पर एक अधेड़ सी महिला थी, और मेरे आगे एक लम्बी सी लाइन जिसमें मैं सबसे पीछे खड़ा था और देख रहा था टिकिट देने वाली उस महिला कर्मचारी का लोगों के साथ वर्ताव और व्यवहार।
अमूमन जब द्वितीय श्रेणी के लिए टिकिट की लाइन होती है तो भाडा कम होने के करण छुट्टे के लिए परेशानी होती है, और इस परेशानी का शिकार कर्मचारी के साथ यात्री भी होते हैं। जब सफर का समय रात के १२ बजे से ज्यादा हो जाए तो खुदरा पैसे के लिए
मगर टिकिट देने वाली महिला तो किसी आतंकी सरीखे व्यवहार कर रही थी और टिकिट लेने वाले को क्षुद्र नजरिये से देखते हुए खूब झाड़ लगा रही थी। थका हुआ था बहस के मूड में नही था और शुक्र की छुट्टे पैसे साथ में थे सो टिकिट ले प्लेटफोर्म पर आ गया। ट्रेन के आने की उद्घोषणा हो रही थी।
सो मैं भी ट्रेन के इन्तजार मैं इधर उधर
सो मैं भी ट्रेन के इन्तजार मैं इधर उधर
टहलने लगा कुछ देर के बाद क्रमश: ट्रेन के विलंब होने की सूचना आगे बढती चली गई, और मन का कोफ्त बढ़ता चला गया।
अचानक सूचना प्रसारित की गयी की मेरी ट्रेन जो की ४ नंबर प्लेटफोर्म पर आने वाली थी ६ नंबर प्लेटफोर्म पर आ चुकी है। ट्रेन के इन्तजार में उनींदी हो रहे यात्री अचानक से हड़बडाये और ट्रेन को पकड़ने की जल्दी में लुढ़कते पड़कते धक्कामुक्की के साथ अपने ट्रेन में जा पहुंचे। इस प्रक्रिया में कितने गिरे कितनो को चोट आई और कितनो ने अपना समान गंवाया का कोई हिसाब नही।
नयी रेल मंत्री के आने के बाद मेरी कई यात्राओं में से एक यह यात्रा थी और भारतीय रेल के व्यवस्था में निरंतर गिराव का गवाह में जरूर बनना चाहुगा। जहाँ ट्रेन में सुविधा सुरक्षा और
भोजन का क्रमशः गिराव हुआ है वहीँ स्टेशन की इस
कुव्य्वास्थ ने भी रेल मंत्री के प्रशासनिक क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाया।
कुव्य्वास्थ ने भी रेल मंत्री के प्रशासनिक क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाया।
जरुरी नही की मीडिया में आती ख़बर से ही हम किसी के बारे में एक राय बना लें अपितु अपने अनुभव और संस्मरण ही हमारे लिए काफी होते हैं जो मीडिया की दरबारी ख़बर को देख कर अन्यास ही दोनों के लिए वितृष्णा के भाव ले आते हैं कि क्या ये ही लोकतंत्र के सिपाही और आवाज हैं।
तस्वीरों को देख कर इस धोखे में ना जाइयेगा कि ये लोग सामने कड़ी ट्रेन से उतरने वाले यात्री हैं अपितु ये वो भागने वाले लोग हैं जिन्हें रात के दो बजे अचानक से प्लेटफोर्म बदल कर ट्रेन पकड़नीहै।
जय हो
4 comments:
भाई गनीमत समझिये कि गाड़ी पटरी बदल कर दूसरे प्लेटफ़ार्म पर आयी गर सड़क पर आ जाती तो भी आप क्या कर सकते थे? अभी हाल ही में मुंबई में जो दुर्घटना हुई और हमारे डा.रूपेश जी के मोटरमैन मित्र स्व. रामचंद्रन के साथ जो हुआ उसके बारे में रेल प्रशासन क्या कर रहा है आप जानते हैं, बस वही पुराना ’ब्लेम-गेम’......
जो हो जाए वह कम ही है
जय जय भड़ास
सही कहा भड़ास माता आपने,
जय जय भड़ास
रजनीश भाई आपकी बात से पूर्ण सहमति है कि लोकतंत्र में सिपाही नियुक्त नहीं होते बल्कि खुद ही जन्मजात होते हैं। हमारी सबकी जिम्मेदारी कम नहीं है किसी भी तरह।
जय जय भड़ास
Rajneesh ji,
lekh padha...aise anubhavon mai khud guzar chuki hun, aur khoob samajh saktee hun, ki, yaatriyon ka kya haal hua hoga...!
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