मटुक भाई और जूली बहन का वास्ता जिन लोगों से पड़ा होगा वे काफ़ी बनावटी किस्म के लोग होंगे

भाई ! सच तो ये है कि अब तक मटुक भाई और जूली बहन का वास्ता जिन लोगों से पड़ा होगा वे काफ़ी बनावटी किस्म के लोग होंगे। अंदर से लिबलिबे और बाहर से ठोस दिखाने का जतन करते हुए। भड़ासी अपनी कमियों खामियों को स्वीकारते हैं और उन्हें दूर करने के लिए अपने बूते भर प्रयत्न करने हैं,जीर्ण गली हुई सोच को भस्म करके उस राख को तन पर मल कर औघड़ी तरीके से जिंदगी जीते हैं। हम घोषित बुरे लोग हैं। भड़ास का एक अपना निजी दर्शन है जो सबके गले से आसानी से क्यों उतरेगा? मेरा तो कहना है कि यदि हम उल्टी भी करें तो वो किसी के खाने के काम आ जाए तब तो सार्थकता है अन्यथा तो बस हवाई बकैती ही रहेगी। दिल दिमाग में अटकी बातें उगल कर रचनात्मकता की ओर बढेंगे और ये एकल प्रयास न रह कर समेकित हो तो आनंद सहत्रगुणित हो जाएगा, जीवन का हर पल आनंदोत्सव है। खेत की मेड़ पर बैठ कर पसीने से भीगी फटी बनियान निचोड़ते किसान बीड़ी सुलगाते हुए जब गन्ने के सरकारी खरीदी मूल्य के बारे में सरकार को गरियाए या एक प्राथमिक पाठशाला की अध्यापिका शिक्षा के "सरकारी माफ़िया" को दबी जुबान में मासिक पाली के दिनों में पोलियों ड्राप्स या जनगणना में ड्यूटी लगा देने पर कोसे; भड़ास वो आवाज़ है वैश्विक मंच पर..... पुरज़ोर उस दबी जुबान को दहाड़ में बदलते हुए ताकि उनकी चूले हिल जाएं जो शोषण,दोहन,दलन कर रहे हैं। मटुक भाई से निवेदन है कि स्पष्टतः हम लोगों के पास सुन्दर शब्द नहीं हैं बातों को कह पाने के लिये जो है वह अनगढ़ है, ऊबड़-खाबड़ है,कोई सौन्दर्य नहीं है इसलिये यदि अब प्रेम के साथ अन्य सामाजिक सरोकारों को भी ले कर आगे चलें तो भला हो। शब्दों में एक दूसरे की टांग खींच कर क्या हासिल होने वाला है ये तो आनलाइन घोषित "चूतियापा" है जिंदगी आफ़लाइन भी घटित होती है जीवन वर्चुअल नहीं फिजिकल है। अब बाहर आइये और भड़ास को जिंदगी में जिएं। आशा है कि दीनबंधु भाई ने जो भी लिखा है उसे आप सहज भाव से स्वीकारेंगे ये हम शब्द-सुदामाओं के मुट्ठी भर चावल हैं कि हम थोड़े कुत्ते हैं, थोड़े कमीने हैं...... इस चावल में कुछ कंकड़ भी हैं या शायद कंकड़ों के बीच कुछ चावल भी हैं। नागफ़नी के फूलों से भड़ासी भोले किस्म के गदहे हैं ये स्वीकारा है हमने।
सादर
जय जय भड़ास

4 comments:

Suman said...

काफ़ी बनावटी किस्म के लोग होंगे।saty hai

अजय मोहन said...

डा.साहब, एक बात कहना चाहता हूं कि जूली बहन और मटुक भाईसाहब जब से भड़ास पर दिखे हैं बेचारे बचाव की मुद्रा में डंडा लिये ही खड़े दिखे। पता चल रहा है कि वे अब तक उबर नहीं पाए हैं पूरी उम्मीद है कि भड़ास का दर्शन समझ पाने के बाद अब शायद वे यहां न ही आएं। उन्होंने जो मोर्चा खोल रखा है वह कम से कम भड़ास के विरुद्ध तो प्रतीत नहीं होता इन अर्थों में......
जय जय भड़ास

Aftab said...

सत्य वचन महाराज....
जय जय भड़ास

Anonymous said...

Juli and MatukNath both are the chracterless , This is against our society , They have extra marital affair, which is not acceptable.

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