आया हैं सावन आई राखियाँ
मैं न जा पाई चली गई सखियाँ
भइया को याद करे बरस रही आखियाँ
सावन में याद आए बचपन की बतियाँ
राखी के रेशम धागे गिन न पाऊं
बचपन की यादे कैसे बिसराऊं
कही बरसे सावन कही बरसे आखियाँ
कुछ भूली बिसरी याद आयी सखीयाँ
भाई बहन का निर्मल प्यार
यही होता अनमोल उपहार
मैं न जा पाई चली गई सखियाँ
भइया को याद करे बरस रही आखियाँ
सावन में याद आए बचपन की बतियाँ
राखी के रेशम धागे गिन न पाऊं
बचपन की यादे कैसे बिसराऊं
कही बरसे सावन कही बरसे आखियाँ
कुछ भूली बिसरी याद आयी सखीयाँ
भाई बहन का निर्मल प्यार
यही होता अनमोल उपहार
1 comment:
दीदी सुंदर कविता है सामयिक है वरना लोग तो भड़ास पर भूल ही गए थे कि आज रक्षा बंधन है।
Post a Comment