आया हैं सावन आई राखियाँ
मैं न जा पाई चली गई सखियाँ
भइया को याद करे बरस रही आखियाँ
सावन में याद आए बचपन की बतियाँ
राखी के रेशम धागे गिन न पाऊं
बचपन की यादे कैसे बिसराऊं
कही बरसे सावन कही बरसे आखियाँ
कुछ भूली बिसरी याद आयी सखीयाँ
भाई बहन का निर्मल प्यार
यही होता अनमोल उपहार
मैं न जा पाई चली गई सखियाँ
भइया को याद करे बरस रही आखियाँ
सावन में याद आए बचपन की बतियाँ
राखी के रेशम धागे गिन न पाऊं
बचपन की यादे कैसे बिसराऊं
कही बरसे सावन कही बरसे आखियाँ
कुछ भूली बिसरी याद आयी सखीयाँ
भाई बहन का निर्मल प्यार
यही होता अनमोल उपहार
दीदी सुंदर कविता है सामयिक है वरना लोग तो भड़ास पर भूल ही गए थे कि आज रक्षा बंधन है।
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