ग्रामीण भारत से मिटता हिन्दी सिनेमा!!!

छुट्टियाँ समाप्त हो गयी थी सो वापस आने के क्रम में रास्ते के कुछ दृश्य ने जहाँ पुरानी याद को ताजा किया वहीँ बदलते भारत की तस्वीर भी सामने रखी। मेरे गाँव से मधुबनी के बीच में कई ऐसे जगह हैं जहाँ की याद मेरे बचपन से जुड़ी रही है सो उन तमाम जगहों की सोंधी खुशबु को लेता हुआ बासोपट्टी पहुंचा। बस स्टैंड के समीप का एकमात्र सिनमा हाल जहाँ बचपन में पापा के साथ अमिताभ बच्चन के सिनमा को देखने मैं आया करता था। सो हाल के समीप मेरे रुकना लाजिमी था।
रुका और सिगरेट के कश लगाता हुआ सिनेमा हाल के गेट पर पहुँचा और इधर उधर घुमने के क्रम में जो अप्रत्याशित था वो सिनेमा हाल से हिन्दी फिल्मों के पोस्टर नदारद और वर्तमान में मैथिली सिनेमा का शो चलना था।




हाल में मैथिली सिनेमा और शो हाउस फुल !!!

लोगों से बातें करने के क्रम में जो लोगों का पक्ष जाना वो भी कम अप्रत्याशित नही था। कभी राजेंदर कुमार, धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन की सिनेमा के लिए दर्शकों की आपा धापी हुआ करती थी उसने मोड़ लिया और अब बस सिर्फ़ मैथिली और भोजपुरी सिनेमा लोग पसंद करते हैं। कारण जानने की कोशिश की तो लोगों ने बताया की शहरिया और फतांसी वातावरण पर आधारित हिन्दी सिनेमा से भावना गायब है जिसमे अपनत्व और परिवार की भावना महसूस ही नही होती है जबकि हमारे स्थानीय भाषा के सिनेमा से अपने परिवार और अपनत्व सा मिलता है और मनोरंजन के साथ सिनेमा से भावनात्मक लगाव तो हम फतांसी में क्यूँ जाएँ जो भारतीय सभ्यता को दूषित कर रही है।

प्रश्न उचित लगा और मैं सोचनीय हो गया। पुराने दिनों के हिन्दी सिनेमा की यादों को ताजा करते हुए अपने रास्ते आगे बढ़ गया मगर दिल में जद्दोजहद जारी की क्या हिन्दी सिनेमा ग्रामीण इलाके में समाप्त हो चुकी है।

जो भी हो स्थानीय भाषा और स्थानीय सिनेमा उद्योग के लिए ये एक अच्छी बात है और इनका भविष्य भी उगते सूरज की तरह लग रहा है।

आप क्या सोचते हैं ?

मैथिली में पढई केर लेल अतय आउ !!!

2 comments:

  1. रजनीश भाई लोग अपनी जड़ों की तरफ़ लौट रहे हैं ये सच है कि हिंदी की खड़ी बोली का रूप हम जैसे ग्रामीण परिवेश के लोगों पर जबरन थोपा सा जान पड़ता है,आपने बचपन याद दिला दिया
    जय जय भड़ास

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  2. अच्छा है भाई स्थानीय भाषा को प्रोत्साहन मिलेगा... मैं भी बुन्देलखंडी भाषा में कुछ अच्छी फिल्में देखना चाहूंगा
    जय जय भड़ास

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