झूठ...

पुरा झूठ यहाँ है ....:)

किस्मत ही खराब है...

किसकी जाने के लिए यहाँ http://wwwdarddilka.blogspot.com/पुरा मामला पढ़े

नेताओं का सच!

एक बार कई नेता बस में जा रहे थे तभी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। वहीं से एक किसान गुजर रहा था। उसने एक-एक कर सभी नेताओं का अंतिम संस्कार कर दिया। थोड़ी देर में वहां पुलिस आई और उसने किसान से पूछा- क्या इस दुर्घटना में सभी नेता मारे गए थे। किसान बोला - कुछ लोग बोल तो रहे थे कि अभी वे जिंदा है पर नेता लोग सच कहां बोलते हैं।

हम हिजड़ों की तो सुनो (अतीत के पन्ने से.......)

आप सब लोगों को मेरा प्रणाम ,मेरा नाम मनीषा है और मैं डॉक्टर रूपेश की दोस्त हूं । लोग हमें हिजड़ा कहते हैं लेकिन डॉक्टर भाई कहते हैं कि हम लैंगिक विकलांग हैं । उन्होंने बताया कि आपके ब्लाग पर आदमी - औरत की बात लेकर बहस हो रही है अगर डॉक्टर रूपेश भाई की अरह हम लोग भी आप सब भड़ासियों की नजर में इंसान हैं तो जरा हिम्मत करके हमारी चर्चा करिए । डॉक्टर भाई ने हम लोग को कम्प्यूटर सिखाया ,हिन्दी लिखना और टाइप करना सिखाया और मदद किया कि ब्लाग क्या होता है ये बताया अभी आप लोग से रिक्वेस्ट है कि हमारी बात को भड़ास के द्वारा लोगों तक पहुंचाइये । हमारा ब्लाग हैadhasach.blogspot.com



हम चार पांच लोग जैसे सोना ,भूमिका ,शबनम मौसी ,डॉक्टर भाई मिल कर लिखेंगे आज पहली बार हिजड़ों की समस्याओं के बारे में जैसे हमें डाईविंग लाईसेंस से लेकर राशन कार्ड तक नहीं मिल पाता आसानी से क्योंकि हम न तो स्त्री हैं न पुरूष और आप लोग हैं कि फालतू बातों पर बहस कर रहे हैं ।यशवंत भाई को आशीर्वादजै भड़ास

भडास..... फटी हुई है सबकी. (अतीत के पन्ने से......)




कल शाम रुपेश भाई का फ़ोन आया कि भाई भडासी जरा १० बजे एन डी टी वी देख लियो ब्लॉग पर सच उगलने वालों से फटने वालों की ब्लॉग पर चर्चा है ।


इन्तेजार की घड़ी खत्म हुई और एन डी टी वी का न्यूज़ पॉइंट शुरू हो गया। मेहमान क्या कमाल के थे। मेहमानों को देखकर एक बात साफ दिखा की ये समाचार चैनल या तो पूर्वाग्रह से पीड़ित है या अपने भविष्य को लेकर आतंकित। ब्लॉग पे चर्चा और सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लोग का मोड्रेटर दिखा ही नही, पहली नजर में तो मुझे शक सा हुआ कि क्या ये वाकई ब्लॉग पर ही चर्चा है। क्योँ कि बात शुरु


बच्चन साब से की गयी, आमिर खान पर गयी और फिल्मी धुन गुनगुनाती नजर आयी।


बहरहाल ब्लॉग पे चर्चा शुरु हुई और एन डी टी वी के अविनाश अपनी रिपोर्ट के साथ हाजिर थे, महाराज जी ये बताओ तुम्हारी स्क्रिप्ट तुम्हारी रिपोर्ट साफ कह रही थी की या तो तुम्हें ब्लॉग को टारगेट और अपने लाला , गुरु जी को अपने चुतिये ब्लोगोर गेस्ट को खुश करने को भडास को गरियाने को कहा गया है। जहाँ स्क्रीन पे सिर्फ भडास और सिर्फ भाडासियों का पोस्ट्स, बात-चीत किसी और की हद तो तब हो गयी जब सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लोग के मोडेरेटर के नाम कहीं नहीं दिखाई दिए, भाई लोगों वैसी हमारे मोडेरेटर को तुम्हारे दिखाने ना दिखाने से कोई फर्क नहीं पड़ता मगर एक बात तो तय है की मीडिया और पत्रकारिता सचमुच में तेल लेने चली गयी है। टीवी पत्रकारिता हो या ब्लोग सभी की शकल से जो जाहिर हो रहा था कि भडास , भडासी ये चुतिये कि जमात ऐसा कैसे हो गया कि ये वहाँ पहुंच गए जहाँ से इन लोगों को अपने अस्तित्व कि चिंता होने लगी ।


अपने आका और लाला को तेल लगाने वाले ये पत्रकारिता के दुर्योधन , चिंताओं से घिर गए हैं। चिंता है इन्हें अपने अस्तित्व कि क्योँ कि इनकी विश्वसनीयता संदेह के दायरे में है चिंता है इन्हें एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी से जो इनके लिए चुनोती बन चुका है क्यूंकि इनमें जो सच दिखाने कि सुनाने कि कहने कि ताकत नहीं है वोह हम भडासी बे हिचक कह सकते हैं और कह रहे हैं. इनके लिए हम चुतिये हैं क्योँ कि ये लाला का भला चाहते हैं और हम अपने भडास से चुतियों को उसका कर्तव्य याद दिलाते हैं.


जय जय भडास


एन डी टी वी पर ब्लॉग चर्चा (अतीत के पन्ने से....)

आखिरकार ब्लॉग चर्चा सुरु हो ही गई। न्यूज़ पॉइंट के अपने कार्यक्रम में एन डी टी वी के दीवांग भी थे । चर्चा अच्छी थी परन्तु ब्लॉग से डरे हुए लोगों की छाप साफ दिखाई दी ।



भडास के सच को आत्मसात करने की हिम्मत किसी ने ना दिखाई । मगर दीवांग की बेबाकी बेहतरीन रही। वीरू लोगों को पता होना चाहिए की यहाँ सिर्फ़ सच उगला जाता है। किसी के गां ..........और चू ........में तेल नही लगाया जाता। चर्चा में एक बात तो साफ दिखी की कोई भी सच को स्वीकारने वाला ना था।



विशेष फ़िर लिखूंगा।



जय जय भडास।

तीन मई को मैथिली दिवस......

आगामी तीन मई को मिथिला दिवस मानाने की तैयारी चल रही है। हालांकि तीन मई को माँ जानकी नवमी भी है और इसी तिथि को ध्यान में रख कर मिथिलावाशी इस दिवस को मिथिला दिवस के रूप में मनाने की तैयारी कर रहे हैं। इस दिवस के मद्देनजर मिथिलांचल की राजधानी दरभंगा में जोर शोर से तैयारी चल रही है। इस उपलक्ष्य में विभिन्न सांस्कृतिक और अन्य कार्यक्रम के आयोजन की तैयारी जोरों पर है।

विद्यापति सेवा संस्थान भी इसको मनोहारी रूप देने की तैयारी कर रहा है। संस्थान से जुड़े पत्रकार और समाज सेवी डाक्टर बैजनाथ चौधरी बैजू जी के अनुसार इस कार्यक्रम में माँ वैदेही की प्रतिमा लगा कर जानकी दिवस की पूजा की जायेगी और कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे।

इसी प्रकार विभिन्न संगठनो ने भी भाई चारा से जुड़े हुए कार्यक्रम करने के संकेत दिए हैं।

नि:संदेह इस तरह के कार्यक्रम सामाजिक एकता और सौहार्द के लिए मील के पत्थर साबित होंगे।

शुभकामना सभी गणमान्यों को।

जय जय भड़ास

साभार : हेलो मिथिला

पत्रकार और उनका चरित्र ......... ? (अतीत के पन्ने से.....)

मित्रों विशेषकर पत्रकार मित्रों माफ़ करना मगर क्या करूं भडास है सो निकाल रहा हू। किसी से मित्रता नही किसी से बैर नही मगर चेहरे से अनभिज्ञ भी नही। बात कर रहा हूँ पत्रकार की सो कसम भडास की सच ही कहूँगा क्यूंकि झूठे लोगों के बाड़े में सच कहने का बीड़ा मैने नही उठाया है मगर भडासी हूँ और भडास निकलना है। लिखने से पहले कह दूँ की आईने मैं मैंने अपनी तस्वीर पहले देखी है फ़िर लिख रहा हू।



अभी मैं अपने कार्यवश मुम्बई में हूँ और पता नही कब तक मुम्बई में रुकना पड़े, नौकरी जो करनी है, सवाल पापी पेट का है। बीते कुछ पुराने दिनों की याद है कि जितने पत्रकारों की शकल देखता हूँ कुछ टीस सी उठती है की मैं कुछ नही कर पाया।

मेरी एक मित्र हैं मैं नाम नही बताऊंगा जो की भारत के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्र की मुम्बई की वरिष्ठ संवाददाता हैं। पिछले साल की बात है वह एक संवाददाता सम्मेलन में गयीं थीं। उनके साथ और भी पत्रकार होंगे। वापस लौटते समय एक अन्य वरिष्ट संवाददाता ने उनसे आग्रह किया की चलिए मैं आपको रास्ते मैं छोरता आगे चला जाऊंगा। दोनों साथ चले , कमाल है मुम्बई की टैक्सी का भी; टैक्सी के चालकों को कोई सरोकार नही होता की पीछे बैठे सीट पर हो क्या रहा है। बहरहाल उन सज्जन ने मेरी मित्र के साथ टैक्सी में भारी दुर्व्यवहार किया जिसका जिक्र मैं यहाँ नही कर सकता। मुझे दूरभास पे सूचना दी , मैं ठहरा ठेठ बिहारी बड़े तैश में आ गया। अपने मित्र को सलाह भी दी की जाओ थाने में शिकायत दर्ज करो और उस बेहूदे ,कमीने रिपोर्टर को उसके ऑफिस में चांटा लगा के आओ। मगर वो ऐसा नही कर पायीं। और सब कुछ पूर्ववत् हो गया क्यूंकि हमारी मित्र उस कुत्सित घटना को भूल जाना चाहती थीं।
आज में मुम्बई में हूँ, नोकरी ऐसी की इन महानुभावों के ही दर्शन होना होता है। बड़ी तकलीफ में हूँ क्यूंकि मुझे सारे पत्रकारों में उसी की शकल दिखती है। लगता है की काश उसने मुझे बता दिया होता तो जय भडास स्स्स्साले की में छ: पोर का बिना छिलल बांस कर की साले की सारी पत्रकारिता उसकी में घुसा देता। वैसी मेरे लिए ये इनका चरित्र कोई नया नहीं है क्योँ कि मैने देखा है कि अपने सहकर्मी के प्रति इनके दिल दिमाग मैं क्या क्या होता है, सामने से हटने की बाद उनके शरीर के व्याख्यान, मुझे हमेशा से ही उलझन मैं डालती रही कि क्या अपने आप को मित्र बताने वाला ऐसा हो सकता है, संभव है सभी जगह ये ही होता होगा मगर मुझे सदा से ही इस पत्रकार शब्द ने ज्यादा परेशान किया है. देश का चौथा स्तंभ..... आम जन कि आवाज..... जनता के लुटेरे को पकड़नेवाला.... भ्रस्ताचार के खिलाफ लिखने वाले सर्वाधिक भ्रष्ट है ये बात ठाकुर जैसे पत्रकार के आने से जनता कि नजर मैं भले ही आती है मगर ना आये तो भी हैं तो सही।

चरित्रहीन.......................?

दयित्वहीन..............?

निष्ठाहीन..............?

कलंकित पत्रकार........

इनमें से भिन्न क्या है? नेट या ऐसे ही किसी इम्तहान का सवाल...

आने वाले समय में करीब दो साल बाद NET या ऐसे ही किसी इम्तहान में सामान्य ज्ञान की परीक्षा में कुछ इस तरह का प्रश्न होगा----
इनमें से भिन्न क्या है?
१) रामदेव गुरू
२) आसाराम बापू गुरू
३) अफ़जल गुरू
४) मुरारी बापू गुरू
कैसा लगा आप सबको ये सवाल? भारत की आम जनता की भूल जाने की विशिष्टता के चलते इस तरह के सवाल जन्मते रहेंगे। किसी को याद है कि कामा अस्पताल के बाहर एक बुर्के वाली औरत ने भी फ़ायरिंग करी थी और आतंकवादी मराठी में बात कर रहे थे? अखबारों ने खबर में क्रिकेट की खबरें देना शुरू कर दी और शाहरुख खान की खरीदी हुई टीम के चर्चे करना छापा बस जनता भूल गयी सब कुछ......। बस अब जब आगे कुछ होगा तो याद कर लेंगे अब क्या जिंदगी भर कसाब या अफ़जल की ही चर्चा करते रहें या तेलगी की ही बात करें? भूल जाओ यार मजे करो....क्रिकेट देखो
जय जय भड़ास

संवेदना है की मर गई ?

35 साल पुरानी फिल्‍म 'दीवार' का दृश्‍य यहां के एक स्‍कूल में दोहरा दिया गया है।

फर्क बस इतना है कि वहां लड़के के हाथ पर लिखा गया था 'मेरा बाप चोर है'। लड़का पूरे जीवन इस अभिशाप को ढोता है। यहां एक मासूम के गाल पर 'मैं पागल हूं' लिखकर पूरे स्‍कूल में घुमाया गया। उसका कसूर इतना था कि वह अपने सहपाठी के साथ बात कर रहा था।

मासूमों से मारपीट, असंवेदनशील व्‍यवहार की बढ़ती घटनाएं किस ओर संकेत कर रही? शिक्षा प्रणाली का कसूर है ये या शिक्षक संवेदनाएं खो रहे हैं?

कहा जाता है कि गुरु का ओहदा भगवान से भी बड़ा है। लेकिन दिल्‍ली, हिंडौनसिटी (राजस्‍थान) और इंदौर की घटना को देखें तो मन में यह सवाल उठता है कि क्‍या अब वाकई ऐसे शिक्षकों को भी भगवान का दर्जा दिया जाना चाहिए। ताजा मामला इंदौर शहर का है, जहां कक्षा में सहपाठी छात्र से बात करने पर शिक्षक ने छात्र के गाल पर लिख दिया 'मैं पागल हूं'

हम बात कर रहे हैं दिल्‍ली की शन्‍नो और आकृति की जिन्‍हें स्‍कूल और शिक्षक के अमानवीय रवैये का शिकार होना पड़ा। इन दोनों ही लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। एमसीडी स्‍कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा शन्‍नो (11) को सिर्फ इसलिए धूप में खड़ा किया गया, क्‍योंकि वह अपनी शिक्षिका को ए बी सी डी नहीं सुना पाई थी। नतीजतन शन्‍नो की तबीयत बिगड़ गई और वह कोमा में चली गई। अंतत: उसकी मौत हो गई।

ऐसा ही एक मामला मॉडर्न स्‍कूल का भी है, जहां 12वीं कक्षा की एक छात्रा को स्‍कूल की लापरवाही के चलते अपनी जान से हाथा धोना पड़ा।

शन्‍नो की तरह का एक और हादसा राजस्‍थान के हिंडौनसिटी में भी हुआ, जहां अंग्रेजी के एक शब्‍द का सही अर्थ न बता पाने के कारण रुपसिंह नाम के एक छात्र को ऐसी सजा दी गई कि उसके पैरों की नसें फट गईं।

अपने दिल से पूछिए, क्‍या ऐसी खबर आपको बेचैन नहीं कर देती है। मासूमों के साथ हो रही ऐसी घटनाएं क्‍या ठीक ?

बच्‍चों के साथ हो रही ऐसी घटनाएं कहां तक ठीक हैं?

कसाब - जेल मे या ?????????????? ससुराल मे ?

मुंबई हमलों के आरोपी अजमल आमिर कसाब ने इत्र, टूथपेस्ट और उर्दू अखबार की मांग की है। इसके साथ ही कसाब ने कोर्ट से जेल के कॉरीडोर में घूमने की अनुमति भी मांगी है।

कसाब ने इन मांगो की बात कहते हुए अपने वकील को एक पत्र लिखा है। यह खत उर्दू में लिखा गया है जिसे वकील अब्बाल काजमी ने कोर्ट में पेश किया है। कसाब को अब अपने पैसों की चिंता भी सताने लगी है और वह चाहता है कि उसके पास से जब्त पैसों को पुलिस उसके जेल अकाउंट में जमा करे।

रोना, हंसना, परिवार बनाना (अतीत के पन्ने से.......)

कुछ दिन पूर्व मैने अपनी एक संस्मरण की पोस्ट डाली थी, मुंबई में भडास परिवार के मिलन से लेकर नए और अबूझ लेकिन अपने से रिश्तों की दास्ताँ थी, रुपेश भाई का प्यार तो मुनव्वर आप का स्नेह, हरभुशनभाई का आत्मिक व्यवहार मगर सबसे जुदा हमारी मनीषा दीदी का प्रेम ऐसा की जैसे वो हमारी माँ हो या बड़ी बहन या फ़िर ऐसा रिश्ता की अधिकार के साथ हम एक दुसरे पर लाड प्यार या फ़िर गुस्सा भी कर सकें।



मेरा ये पोस्ट कहने को तो सिर्फ़ एक स्वजन मिलन कार्यक्रम जैसा था मगर सच कहें तो रिश्तों की नींव थी जो निश्चित ही बेहद मजबूती के साथ डाली गयी। मगर इस पोस्ट को डालने के बाद ही हमारी मनीषा दीदी ने एक प्यारा सा मेल मुझे कर दिया, कहने को सिर्फ़ ये का मेल है मगर मानवीय संवेदना का अथाह सागर, सच कहूं तो इसे कई बार पढ़ा और बार बार पढ़ा, अभी भी पढता हूँ और जब ये मेल आया तभी विचार की इसे भडास पर डालूँ , गुरुवार से सलाह भी लिया मगर एक छोटे भाई को भेजे इस निजी पत्र को सार्वजानिक करुँ या ना करुँ के ऊहापोह में रहा। मेल पढ़ें.......



भाई,

आपने जो तस्वीरें भड़ास पर डाली हैं उन्हें देख कर एक बार मैं रूपेश दादा से लिपट कर रो ली क्योंकि एक मेरा वो बायोलाजिकल परिवार था जो मुझे कब का भूल चुका है और एक आप लोग हैं जिनसे मेरा कोई रक्त संबंध न होने पर भी लगता है कि जन्म जन्म का साथ है। आज भाई के घर पर ही रुक गयी हूं।आपको बहुत सारा प्यार,अच्छे से नौकरी करो और खूब नाम कमाओ ताकि आपकी ये बहन आप सब पर गर्व कर सके।

प्रेम सहित

मनीषा दीदी



ये मेरी वो बहन है जो लैंगिक विकलांग है, समाज जिसे अछूत समझती है और जिम्मेदारी से भागने वाले हमारे समाज के मठाधीश का समाज के इन बच्चों के लिए कोई दायित्व नही मगर मेरे लिए ये मेरी बहन का केसा ख़त है जिसमे वर्णित संवेदना मुझे अभी के सम्पूर्ण मनुष्यों में नही नजर आती, एक छोटा सा संवाद छोटी सी मुलाक़ात मगर रिश्ते का जोड़ ऐसा की जैसे हमारी कई जन्मों की पहचान हो।

सच कहूं तो इसे सामने रखने का कार्य सिर्फ़ इसलिए की आज के समाज में सच्चे अर्थों में मेरे लिए तो मनीषा दीदी ही सबसे अपनी हैं क्यूंकि ऐसा प्रेम नि : स्वार्थ भाव मुझे नही लगता की आपको अपने घरों में भी मिलेगा।

दीदी हम आपके साथ हमेशा हैं।

आपके चरणों में इस छोटे भाई का चरणवंदन

आपका छोटा भाई

रजनीश के झा

एक भडासी हूँ (परिचय) (अतीत के पन्ने से......)

ना किसी के आँख का नूर हूँ, ना किसी के दिल का करार हूँ।

जो किसी के काम ना आ सके वो एक मुश्त गुबार हूँ।



सफलता असफलता के पैमाने मुझपे ना लगाएं क्योँकी दोनों ही मुझे पे फिट नहीं बैठते हैं।



मधुबनी, बिहार जन्मस्थान है। मगर मिथिला के सपूतों में से नहीं हूँ. दिल्ली में एक सोफ्टवेयर कंपनी में अभियंता हूँ. बनना कुछ और चाहता बन कुछ और गया, जीवन की तलाश जारी है क्योँकी भडास ख़तम नहीं हुई है। पता नहीं ये भडास किस पर है, कभी कभी लगता है की खुद पे ही सबसे ज्यादा है।



बेकार निकम्मे के कंधे पे बोझ देने के लिए शुक्रिया। गधे को भी लायक समझा, कोई वादा नहीं कोई शपथ नहीं बस अपने दिल अपने दिमाग और अपनी इमानदारी से समझोता नहीं। दद्दा और रुपेश भाई का शुक्रिया और तमाम भडासी बिरादर का आभार।



जय जय भडास

वेबपेज से निकल कर संबंध साकार होते हैं भड़ास पर....यही जिंदगी है।

बांए से दांए: डा.रूपेश श्रीवास्तव, श्री रजनीश के.झा, मनीषा नारायण एवं स्वयं मैं दिव्या रूपेश
अग्नि भइया आपके द्वारा डाली गई पोस्ट में चित्र में देखिये मैं भी हूं रजनीश मामा और अपने पिताजी डा.रूपेश जी के साथ नई मुंबई के वाशी रेलवे स्टेशन पर, पहचाना या नहीं?मैंने रजनीश मामा जी को बताया था कि मैं दिल्ली की रहने वाली हूं लेकिन वक्त के थपेड़े पता नहीं कहां कहां ले जाते हैं। आपने अच्छा करा जो यादों को फिर ताजगी में वापस ले आए। भड़ास का मंच ही है जिसने हम सबको आफ़लाइन और आनलाइन इतनी मजबूती से जोड़ रखा है। भड़ास बस दिमागी किच किच नहीं रह गया बल्कि एक मजबूत सामाजिक सरोकार का प्लेट्फ़ार्म बन चुका है। परिवार का विस्तार धीरे धीरे होता जा रहा है जैसे लोग समझेंगे कि भड़ास मात्र एक वेबपेज नहीं है बल्कि जिंदगी जीने का एक बेहतर तरीका है तो जुड़ते ही जाएंगे। अभी भी लोग भड़ास की कुछ विशेषताओं के कारण टिप्पणी तक करने में हिचकिचाते हैं। जिस दिन वे खुद ईमानदार हो सकेंगे सारी हिचक समाप्त हो जाएगी। रजनीश मामा जी और मेरे पिताजी डा.रूपेश श्रीवास्तव भड़ास का संचालन जिस तरह कर रहे हैं यकीन मानिये कि ये दोनो हाथों में जलते सुलगते अंगारे लेकर चलने जैसा है कि मुस्कराते रहो और दूसरों को अपना बना कर खुशियां बांटते चलो।
जय जय भड़ास

दायित्व किसका जिम्मेदार कोन ? (अतीत के पन्ने से.....)

बंधू अभी मुम्बई में हूँ सो रोज ही यहाँ के लोकल रेल की सवारी का आनद लेता हूँ। कल दादर स्टेशन पे ऐसा कुछ देखा की एक पुरानी घटना की याद ताजा हो आयी।

२००५ की बात है मैं उस समय कोल्हापुर में था, छुट्टी मिली सो घर के लिए चला। ट्रेन पुणे से निकली तो अजीब सी प्रशन्नता से मन पुलकित हो गया, अपने लोगों को देख कर। हमारे बगल में एक बुजुर्ग महिला अपनी बहु और अपने पोते के साथ थी, एक ही मातृभाषा होने के कारण परिचय हो गया और सफर अपनापन के साथ अपने गति से कटने लगी। ट्रेन कब इलाहाबाद पहुंचा पता ही नही चला। यहाँ ट्रेन को कुछ देर रुकना था सो रुकी भी, हमारी बात-चीत जारी रही की दादी माँ का पोता जलेबी के लिए रोने लगा। बहरहाल मैने उनलोगों से कहा की आप रहिये मैं ले आता हूँ क्यूंकि ट्रेन के चलने का भी समय हुआ जा रहा था। मैं जब वापस आया तो मेरे कम्पार्टमेंट का माहोल ही बदला हुआ था। दादी माँ के कान खून से लथपथ थे और गले में गहरे चोट के निशान। मेरी समझ में कुछ नही आया की अभी तो सही था अभी क्या हो गया। खैर पता चला की किसी ने दादी माँ के कान और गले से उनके जेवर खींच लिए। लोगों की अपार भीड़ तमाशबीन बनी हुई। तभी ट्रेन ने सीटी मारी और चल पड़ी मैने जंजीर खींचा और ट्रेन के रुकने के बाद वहाँ मौजूद जी आर पी के सिपाही से कहा की ये दुर्घटना है और इसका ऍफ़ आर आई आप रजिस्टर करो। जवान महोदय का जवाब की ट्रेन अभी यहाँ से चली नही है सो मेरी ड्यूटी शुरू नही हुई है सो मैं कुछ नही कर सकता। मैने अपने कोच कंडक्टर को पकड़ा और सारी बातें बता कर ऍफ़ आर आई दर्ज करने को कहा तो इन साहिबान ने भी मना करते हुए गार्ड महोदय के पास जाने को कहा।

दादी माँ के बारे में बताता चलूँ की इनका पुत्र पुणे में रक्षा में किसी उच्च ओहदे पर था और बहन जी का भाई सहारा परिवार के प्रिंट या टी वी में पत्रकार थे। मैने बहन जी से कहा की आप मेरे साथ चलें और हम केस दर्ज करवा सकें वह चलने को तैयार हो गयी। मुझे उनके हिम्मत से बल मिला और हम गार्ड महोदय के पास पहुँचे । सारी बात सुनने के बाद सिवाय इसके कि हमारे गार्ड जी केस दर्ज करते उन्होंने कहा की आप प्लेटफोर्म एक पर जा कर जी आर पी ऑफिस में केस दर्ज करवा दें तब तक मैं ट्रेन को रोकूंगा। उफ्फ्फ़ इलाहबाद का स्टेशन प्लेटफोर्म बदलने में ही मेरी हालत ख़राब हो गयी मगर बहन जी की हिम्मत देख कर हम पहुंच गए जगह पर। आश्चर्य जी आर पी ऑफिस सारी बात सुनने के बाद कहते हैं की ये केस आपको ट्रेन में ही दर्ज कराना होगा यहाँ हम नही कर सकते। मन गुस्से और खिन्नता से भर गया मैने बहन जी से कहा की बेहतर है की हम एक बार स्टेशन अधीक्षक से मिल लें क्यूंकि ट्रेन के भी चले जाने की फिकर थी मगर हमारी बहाना ने दृढ़ता दिखाते हुए कहा की अब तो रपट लिखा के ही जायेंगे। हम पहुँचे स्टेशन अधीक्षक के पास और वस्तुस्थिति बताया तब तक में हमारे बहन जी के सब्र का बांध टूट गया और अधीक्षक महोदय को जिम्मेदारी और जवाबदेही का ऐसा पाठ पढाया की बेचारे बगले झांकते नजर आ रहे थे। बहरहाल स्टेशन अधीक्षक के कारण हमारी रपट लिख ली गए. मेरा नाम गवाह में था जो शायद आज भी इलाहाबाद के इस जी आर पी ऑफिस के फाइल में दर्ज होगा.

जब हम वापस आये तो ट्रेन लगी हुई थी और पहले से ही लेट चल रही दो घंटे और लेट हो चुकी थी। दिल में एक सुकून लिए जब अपने प्लेटफोर्म पर पहुंचा तो लोगो की गालियाँ ने स्वागत किया. बड़े आये समाज सेवा करने वाले साले ने दो घंटे ट्रेन यूँ ही लेट करवा दिया। आपको ये कहानी लगी हो परन्तु इस कहानी की सीख मुझे नहीं पता चल पायी। हमारे लिए कोच कंडक्टर, जी आर पी के सिपाही,गार्ड मगर इनका काम, काम के प्रति जवाबदेही और निष्ठा। जिम्मेदार कोन ये लोग या हम. हम याने की वो हम जो ट्रेन के लेट होने से गालियों की बरसात कर रहे थे क्यूंकि उनके साथ दुर्घटना नहीं हुई थी......



प्रश्न तो है पर अनुत्तरित....

शिक्षा एक बहस

आज भी किसी भी देश के लिए ये सबसे बड़ी उपलब्धि होती है की उसके सारे लोग शिक्षित हों, और इस लिहाज से अफ़सोस के साथ यही कहना पड़ता है की हम लाख कोशिशों , न जाने कितनी योजनाओं , कितना पैसा, और कितना सारा श्रम के बावजूद आज भी सिर्फ़ पचास प्रतिशत के आसपास हैं, और जो हालत हैं उसे देख कर तो ये लगता भी नहीं है की निकट भैविश्य में हम किसी भी तरह सरवोछ प्रतिशत तक पहुँच सकेंगे।लेकिन इससे अलग एक और विचारणीय पहलू ये है की क्या सचमुच ही जो पढ़ लिख गए हैं उन्हें हम शिक्षित मान लें। दरअसल मेरे कहने का मकसद ये है की इन आकडों पर नजर डालिए, आज घर टूटने यानि तलाक का प्रतिशत सबसे ज्यादा पढ़े लिखे परिवारों में ज्यादा है, अपराध की दर भी ग्रामीण क्षेत्रों , जहाँ निरक्षरता ज्यादा है वहां कम है और शहरों में ज्यादा है, आत्महत्या की दर सबसे अधिक उसी राज्ये की है जिस राज्ये के साक्षरता दर सबसे अधिक है । साक्षर्ती के साथ स्वाभाविक रूप से भ्रष्टाचार, मर्यादाहीनता, उछ्स्न्ख्लता, और वे सब दोष भी समाज को कमिल रहे हैं जो नहीं मिलने चाहिए। इसके अलावा, शिक्षा आज ख़ुद एक नियायामत न होकर विशुद्ध व्यापार बन कर रह गयी है। और दुःख की बात तो ये है की चाहे तरीका अलग हो मगर सरकारी और निजी शिक्षा संस्थान दोनों ही आज औचित्यहीन, से बन गए हैं। हमारे शिक्षक कभी देश के प्रबुध्ह वर्ग के अगुवा हुआ करते थे, आजादी की लड़ाई और उसका महत्व यदि अगली पीढी को समझ में आया था तो वो सिर्फ़ इन्ही के कारण, आज के हालातों में उनसे कोई बड़ी अपेक्षा करना तो बेमानी होगा, किंतु जो भी जितना पारिश्रमिक उन्हें मिल रहा है उसके अनुरूप तो उनके दायित्व निर्वहन की अपेक्षा की ही जा सकती है ।दरअसल अब समय आ गया है की हमें अपनी पूरी शिक्षा प्रणाली, शिक्षा पद्धत्ति, बरसों से चली आ रही किताबों , पढाने के तरीकों , और उस पढ़ाई की सार्थकता पर नए सिरे से सोचना और समझना होगा। आज यदि हम इतिहास पढ़ रहे हैं तो अच्छी बात है, किंतु क्या ये जरूरी है की पही कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर तक हम उन्ही अध्यायों के बार बार पढ़ते रहे, और उसके बाद उस ज्ञान का कोई औचित्य नहीं हो कम से कम रोजगार पाने के लिए तो नहीं ही। आज भी क्यूँ नहीं हमारे बच्चे अपनी शुरुआती कक्षाओं में ये तय कर सकते की उन्हें, आगे जाकर चित्रकार बनाना है, या मकेनिक, कोई खिलाड़ी बनना है या लेखक, और फ़िर उसी के अनुरूप उसकी आगी की पढ़ाई हो। ये ठीक है की बुनियादी शिक्षा तो सबक लिए अनिवार्य होनी चाहिए मगर उसके बाद के निर्णय ख़ुद उस बच्चे के।मगर दिक्कत ये है की जिस देश में देश के संचालकों का शिक्षित होना कोई जरूरी नहीं है उस देश में पढ़ाई की अहमियत कोई जबरन क्यूँ समझे।इन हालातों में तो मुझे यही लगता है की यदि आप चाहते हैं की आपकी अगली पीढी संस्कारवान हो, कम से कम उतनी तो जरूर ही की वो इस देश की इस समाज की और ख़ुद आपकी अहमियत समझे, और आपको अपने बुढापे में बेघर कर देने जैसी नौबत में न पहुचाये तो स्कूली शिक्षा के साथ उनमें वो संस्कार लाने की कोशिश करें जो देश को एक बेहतर भैविश्य दे सके

हरी अनंत हरी कथा अनंता.................. (अतीत के पन्ने से....)

:-(सोमवार का दिन हमारा रुपेश भाई से भरत-मिलन का दिन था। मैं ये नाम इस लिए दे रहा हूँ क्यूंकि इसे हमारे दादा ने भरत-मिलन कहा। मैं इस मिलन की चर्चा करता शब्दों को ढूंढ रहा था की हमारे भाई ने पहले ही सब कह दिया मगर वो उनके मन की बात थी और मुझे भी अपना अनुभव अपने इस परिवार से साझा करना था। सो कर रहा हूँ।



कहने सुनने की बहुत सारी बातें मगर अनुभव ऐसा की मानो सच में वर्षों बाद मिलन। दादा ने जो वर्णन हमरे डॉक्टर साब का किया था उसी के अनुरूप मैं भी जेहन में एक परछाई बना कर चला था। मगर अपने डॉक्टर साब तो बड़े छुपे रुस्तम निकले और मेरी सारी अवधारणा के विपरीत एक अल्ल्हड़, मस्त ,बिंदास मगर इंसानियत और मानवता के संवेदना से लबरेज युवा उर्जावान और भाड़ी के भडासी हमारे डॉक्टर रुपेश। पनवेल से घर तक और वापस घर से वाशी तक एक ऐसा युवा तुर्क मेरे साथ था जिसके बारे में आज के समाज में "कल्पना" नाम दिया जा सकता है।



घर पहुँचने पर सर्वप्रथम माता जी के दर्शन और फिर हमारी चर्चा का दौर। मैं मंत्रमुग्ध सा डॉक्टर साहब को सुनता जा रहा था और हमारी चर्चा जो की अविराम है चलती रहेगी। इसी बीच भडास माता हमारी मुनव्वर आपा, अन्नपूर्ण बनकर आयी और चली भी गयी.उनके जाने का कचोट मुझे रहा. बहरहाल हमने साथ भोजन किया और चर्चा "भडास" चालू रहा. मेरे प्रति भाई रुपेश का आत्मविश्वास खुद मेरे कदम डगमगा रहा था मगर भाई की उर्जा ने मुझे भी उर्जा का श्रोत दिया. सच में भडास की सार्थकता पर हमें विचार करना ही होगा की क्या सिर्फ भडास निकालना और इतिश्री। यक्ष प्रश्न तमाम भडासियों के लिए. परन्तु इस मिलन के दौरान जो मेरा अनुभव है वो मुझे कुछ और भी सोचने को प्रेरित करता है।



ट्रेन में मुझे एक "लैंगिक-विकलांग" मिली या यूँ कहिये की वो अपना कार्य कर रही थी और इसी दौरान मैं उन से रु-ब-रु हुआ। उनको देखते ही एक पलक मुझे हमारी मनीषा जी का ध्यान आया और मैं उनसे मुखातिब हुआ। थोरा सा परिचय और उन्होने बताया की वो मनीषा जी की बहन हैं और उनकी भी अभिरुचि लिखने में है और वो कोशिश भी कर रही है. डॉक्टर साब ने बताया की वो मोहतरमा भी पढी लिखी स्नातक हैं मगर समाज की मार उनके लिए बस ये ही साधन है. वापस लौटने तक या यूँ कहें की अभी भी मेरे जेहन में ये ही घूम रहा है की एक विकलांग को विकलांग आरक्षण, महिला को महिला आरक्षण, दलित को दलित ऐव मेव कुछ ना कुछ सभी को मगर "लैंगिक विकलांग" नाम का अभिशाप के लिए क्या............???????



सच में ये भी तो हमारे समाज का ही एक हिस्सा है, हमारे ही बच्चे हैं तो ये भेद-भाव क्यों। दिल का दर और मानसिक ऊहापोह अपने प्रश्न का जवाब खुद पता नहीं मगर ख्वाहिश इन्हें ससम्मान सम्माज में एक मुकम्मल दर्जा हो। शिक्षित, योग्य,काबिल,लायक तो फिर पर्तिस्पर्धा के पैमाने के खोटेपन का शिकार क्योँ।



प्रश्न है भडास परिवार से जो वाकई में अब बरगद हो गया है। बरगद इसलिए क्योँ की इसी की तरह हमारे भडास के सिर्फ डाल,तना,पत्ती ही नहीं अपितु जड़ें भी उसी हिसाब से जमती चली गयी है की हम आपने सार्थकता को इस वेब के पन्ने से अलग समाज के गलियारे में कब ले जाना शुरू करें की हमारी सार्थकता समाज के उन हरेक पहलू में दिखाई दे।



संग ही हमारा अनुरोध है सलाहकार मंडल के आदरणीय सदस्यौं के साथ साथ सम्पूर्ण भडास परिवार से की अपने व्यक्तिगत राय, विचार, और मशविरा जरूर दें की आगे क्या.............

ध्रतराष्ट्र बने संपादक , दुःशासन हुई पत्रकारिता और सभा में नंगी करी गयी तुम सबकी लैंगिक विकलांग बहनें (अतीत के पन्ने से.....)

गुस्सा और दुःख इतना ज्यादा है कि लग रहा है खूब जोर से चिल्लाऊं । जब तक भड़ास से नहीं जुड़ी थी यकीन मानिए कि शर्म क्या होती है पता ही नहीं था लेकिन डा.रूपेश श्रीवास्तव ने मुझे अपनी बहन बना कर मेरी जिन्दगी में इतना ज्यादा बदलाव ला दिया है कि जब मेरे और मेरी ही जैसी दूसरी लैंगिक विकलांग बहनों के सारे कपड़े उतरवा कर परेड करवाई गई तो एक पल को लगा कि लोकल ट्रेन से कट कर जान दे दूं लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के सामने मेरे डा.भाई का चेहरा आ गया जो हमेशा मुझे हिम्मत दिलाते रहते हैं कि दीदी एक दिन ऐसा जरूर आएगा कि ये लोग जो आपको इंसान नही समझते अपने करे पर शर्मिंदा होंगे ; फिर एक-एक करके मेरे सामने मेरे भाई पंडित हरे प्रकाश,यशवंत दादा,मनीष भाई,चंद्रभूषण भाई सामने आने लगे और मैं फिर पूरी ताकत से अन्याय का सामना करने के लिये खड़ी हो गयी हूं । मुंबई से प्रकाशित होने वाले मराठी दैनिक वार्ताहर और उर्दू दैनिक इन्कलाब ने एक खबर छापी जिसकी हैडिंग उन्होंने महज सनसनी फैलाने के लिये ऐसी रखी कि लोग उस खबर को चटखारे लेकर पढ़ें ,जरा आप सब खबर के हैडिंग पर ध्यान दीजिये "हिजड़े द्वारा लोकल ट्रेन के लेडीज़ कम्पार्टमेंट में महिला से बलात्कार की कोशिश" । बस फिर क्या था बड़ी-बड़ी वारदातें हो जाने के बाद भी कुम्भकर्ण की तरह से सोने वाली मुंबई पुलिस का लैंगिक विकलांग लोगों पर कहर टूट पड़ा । हम सफर करें तो ट्रेन के किस डिब्बे में अगर पुरुषों के साथ जाएं तो सुअर किस्म के लोग जिस्म रगड़ने का बहाना देखते हैं ,कुत्सित यौन मानसिकता के नीच पुरुष भीड़ का बहाना कर के सीने और नितंबों पर हाथ लगाते हैं ,हमारे हाथॊं को पकड़्ते हैं पर हमें तो शर्म नहीं आनी चाहिए और न ही हमें गुस्सा आना चाहिये इन कमीनों की हरकत पर क्योंकि शर्म तो नारी का गहना होती है और हम तो न नारी हैं न नर । महिलाओं के डिब्बे में जाओ तो कुछ सुरक्षित महसूस होता था लेकिन इस सभ्य समाज के मुख्यधारा की पत्रकारिता के इस हथियार ने हमें यहां से उखाड़ कर बेदखल कर दिया है । ध्यान दीजिये कि अगर कोई अपराधी किस्म का इंसान बुर्का पहन कर ऐसी नीच हरकत करता तो क्या ये पत्रकार और संपादक महोदय ये हैडिंग बनाते कि एक मुसलमान महिला ने दूसरी महिला के साथ बलात्कार करने की कोशिश करी ,नहीं ,ऐसा तो वे हरगिज़ नही करते क्योंकि इस बात से सनसनी नहीं फैल पाती लेकिन एक हिजड़े के बारे में ऐसा लिखा तो सबका ध्यान जाएगा । अरे कोई तो इन गधे की औलादों को समझाए कि अगर हिजड़ा है तो बलात्कार क्या पैर के अंगूठे से करेगा ,वो तो महज एक अपराधी था जो हिजड़े का वेश बना कर आया था । संपादक की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वो ये देखे कि ऐसी खबर का क्या परिणाम होगा । अब मुझे समझ में आ रहा है कि देश में जातीय दंगों को फैलाने में मीडिया का क्या रोल रहता है ,अगर किसी ने मौलाना का वेश बना कर किसी को गोली मार दी तो ये पहले मरने वाले को देखेंगे कि क्या वो हिंदू था और फिर खबर बनाएंगे कि मुसलमान ने हिंदू की हत्या कर दी फिर भले पूरे देश में जातीय दंगों की आग भड़क कर सब स्वाहा हो जाए । हिजड़े को निशाना बना कर खबर छाप दी और चालू हो गया पुलिस का धंधा ,सब को नंगा करके परेड कराई गई ताकि देखा जा सके किसके जननांग कितने विकसित हैं या क्या है हिजड़े की कमर के नीचे और टांगो के बीच में ? इन कमीने पत्रकारों को अगर इतनी ही चिंता है तो क्यों नहीं अपनी ताकत इस्तेमाल करके जेंडर आईडेंटीफ़िकेशन का कानून बनाने के लिये सरकार पर दबाव बनाते ? कम से कम हमें भी तो ये पता चल जाएगा कि हम किस डिब्बे में यात्रा करें । किसी पत्रकार ने रेलवे पुलिस से यह नहीं पूछा कि जब हर महिला डिब्बे में एक रेलवे पुलिस का सुरक्षाकर्मी तैनात रहता है तो जब वो अपराधी बलात्कार की कोशिश कर रहा था तो क्या वो पुलिस वाला तमाशा देख रहा था या अपनी अम्मा के साथ सोने गया था , क्या यात्रियों की सुरक्षा की रेलवे की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? मैने नीच पुलिस वालों के हाथॊं को अपने जिस्म पर रेंगते हुए महसूस किया ,ये सुअर किसी गंदी दिमागी बीमारी के मरीज जान पड़े मुझे सारे के सारे । क्या मेरी इस अस्तित्व की लड़ाई में मेरे भड़ासी भाई-बहनें साथ हैं ये सवाल आप सब से है ,नाराज मत होइएगा कि ये क्या होली के रंग में तेज़ाब मिला रही है लेकिन बात ही ऐसी है । मेरे भाई डा।रूपेश अभी आधी रात को भी मेरे साथ हैं कि कहीं शर्मिन्दगी से मैं कुछ गलत निर्णय न ले लूं इस लिये जबरदस्ती मुझे पकड़ कर अपने घर ले आए हैं । होली मनाइए लेकिन अपनी इस बदकिस्मत बहन के बारे में भी सोचियेगा ।

अतीत का पन्ना क्या है ????

अतीत का पन्ना...........

पता नही आपको सुन कर कैसा लगे मगर हर किसी का अतीत होता है, वो अतीत जो उसका बुनियाद होता है।
भड़ास की भी कुछ बुनियाद है जिसे क्रांती की आवाज कहते हैं,

विचारों की क्रांती......

और विचारों को क्रांती में परिवर्तन करने का संकल्प यानी की भड़ास।

सिर्फ़ नाम नही..... शब्द नही .... आवाज नही बल्की कुछ कर गुजरने की तमन्ना,

हसरत की लोगों के लिए कुछ कर जाएँ.... समाज को कुछ दे जाएँ......... देश के लिए मर जाएँ ......

और ये भावना ही हमें भडासी बनाता है।

ये अतीत है जब हम सब भडासी थे, हम आज भी हैं बस कुछ ने भड़ास को बेच दिया कुछ ने आत्म ह्त्या कर ली और कुछ भाग गए, कुछ भेडचाल में भीड़ के साथ हो लिए मगर भड़ास का कारवां अपने राह पर आगे को बढ़ता गया। कुछ ने नाम बदला कुछ ने नाम के बदले दाम लिए तो कुछ ने भडासी का ही सौदा करना चाहा मगर भड़ास आज भी क्रांति के पथ पर सतत अग्रसर है।

इस अतीत के पन्ने के बहाने आप दर्शन करें कुछ उन भड़ास की जो बाकायदा हम ले आए हैं बनिए को धनिया बो के।

बस एक दर्शन भड़ास का कड़ी के रूप में आपके सामने आता रहेगा......

जय जय भड़ास

एक संस्मरण............... (अतीत के पन्ने से......)

अभी कुछ दिनों पूर्व में मुंबई में था, वहां से चलने की बारी आयी तो अपने परिवार से मिलने की तमन्ना भी सबसे पहले। डॉक्टर साब को बताया तो डॉक्टर साहब ने कार्यक्रम भी तय कर दिया। जगह था नवी मुंबई का वाशी स्टेशन जहाँ हमारा परिवार मेरे लिए जमा था और मैं अपने आप में लाखों खुशियों को समेटे इस परिवार की सन्निकटता महसूस कर रहा था।





मनीषा दीदी रुपेश भाई को इडली खिला रहीं हैं




दीदी इडली मेरे लिए भी !!!!!!!


दीदी का मातृत्व भाव और मैं भावःविह्वल और आह्लादित डॉक्टर साब



न्याय के लिए दो सिपाही हुए साथ



दो भडासी मंथन करते हुए



हमारी आपा और आपा के दो नौनिहाल रजनीश और रुपेश



ये एक छोटा सा भड़ास परिवार मिलन समय था कहने सुनने को बहुत कुछ जो बाद में मगर पहले इन्तेजार कीजिये की इडली के साथ वाला साम्भर कहाँ गया।जारी रहेगा.................


KABEERA KHADA BAZAR MEIN: भगवन को अवतार लेना है ....."हेल्प प्लीज़ "-2

KABEERA KHADA BAZAR MEIN: भगवन को अवतार लेना है ....."हेल्प प्लीज़ "-2

भारत में होते सदा ईश्वर का अवतार।
जाना अगर विदेश तो न होगा सत्कार।।

बुरा न माने तो कहूँ रखिये खुला विचार
रचना तो रोचक लगी हिज्जे करें सुधार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

एक और ठुकने वाले कवि ............. (अतीत के पन्ने से.....)

मित्रों,

हमारे भडास का कमाल हमारे दोस्तों का धमाल, भडासी बुजुर्गों का आशीर्वाद कि ससुरे हम भी तुकबंदी करने लगे हैं।

भैये लोग ई हमारा पहिला तुकबंदी है सो जड़ा पढ़ते चलिए। बहुत हो गया कलुआ-कलुआ ससुर के नाती ने बहुत टाइम खोटा किया सो वापस अपुन लोगों कि दुनिया में आ जाओ। जरा एक नजर इधर भी........


हमारी आदरणीय सलाहकार मनीषा दीदी को समर्पित......


मेरी भी कलम के दिल में लाखों
कविताएं और गज़लें भरी हैं
तुकबंदी के कुत्ते भौंक रहे हैं
तभी तो बाहर निकलने से डरी हैं
लटका, पटका, झटका, खटका की
तुकबंदियां तुम्हें खुश कर रही हैं
भावनाएं अपनी ही चमड़ी को
उधेड़ उसमें भुस भर रही हैं
कांपते हाथों से गिरी दवात की
बिखरी स्याही, समेटे लाखों गज़लें
बगुले तुक के तुक्कों से आगे हैं
हंस सहमें से झांकते फिरते बगलें हैं


जय जय भडास
जय जय भडास

लादेन और तालिबान, पकिस्तान के अस्तित्व पर एक सवालिया निशान ?

पाकिस्तान की स्वात घाटी में तालिबान के बढ़ते साम्राज्‍य को अब और ज्‍यादा ताकत मिल सकती है, अगर अल-कायदा प्रमुख ओसमा बिन लादेन ने उनका आमंत्रण स्‍वीकार कर लिया। वो इसलिए क्‍योंकि पाकिस्‍तान की स्‍वात घाटी में बसे तालिबानियों ने लादेन को वहां बसने का आमंत्रण दिया है। तालिबान ने कहा है कि ओसामा बिन लादेन सहित सउदी अरबिया और अन्य अरब देशों के लड़ाके अगर स्‍वात घाटी में बसना चाहें तो उनका स्‍वागत है।

तालिबान प्रवक्ता मुस्लिम खान ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि उनका समूह अरब मूल के उन लड़ाकों का स्वागत करेगा, जो अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना के खिलाफ युद्ध में हिस्सा लेना चाहेंगे। तालिबान प्रवक्‍ता ने कहा है कि उनका संगठन ऐसे लड़ाकों की पूरी मदद और हिफाज़त करने को तैयार है। ओसामा बिन लादेन भी यहां आ सकते हैं। निश्चितरूप से, एक भाई की तरह वे जहां भी रहना चाहे रह सकते हैं। मुस्लिम खान के इस बयान ने पाकिस्तान के होश फाकता कर दिये हैं। हालांकि उनके मंसूबों को नाकामयाब करने के लिए पाकिस्‍तान के सूचना मंत्री कमर जमान कारिया ने कहा कि उनके देश में लादेन जैसे लोगों को कभी भी पनाह नहीं लेने दी जाएगी।


दक्षिण एशियाई मामलों के एक अमेरिकी विशेषज्ञ का मानना है कि कुख्यात आतंकवादी संगठन अलकायदा और तालिबान के शीर्ष नेता पाकिस्तान में छिपे हुए हैं, इसलिए आतंकवाद को शिकस्त देने के लिए पाकिस्तान पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में भारत,पाकिस्तान और दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ डेनियल मार्की ने कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी रणनीति के उद्देश्य संकीर्ण हैं, इसलिए दक्षिण एशिया में अमेरिका के हितों को नुकसान हो रहा है। मार्की ने कहा, "पिछले दो वर्षो में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सुरक्षा हालात खराब हुए हैं। पश्तून बहुल इलाकों में अलकायदा और तालिबान की सक्रियता बढ़ी है, वहीं दोनों देशों के गैर-पश्तून इलाकों में कई भारत विरोधी चरमंपथी तत्व और युद्घ नेता सक्रिय हैं। चिंता की बात यह है कि तालिबान और अलकायदा के अधिकांश बड़े नेता पाकिस्तान में पनाह लिए हुए हैं और वे वहां से अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। अमेरिकी प्रशासन के लिए उपयुक्त यही है कि वह पाकिस्तान पर ज्यादा फोकस करे।"

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी का कहना है कि पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसियों के मुताबिक़ ओसामा बिन लादेन की मौत हो चुकी है। इस्लामाबाद में पत्रकारों से बातचीत में ज़रदारी ने कहा कि ओसामा बिन लादेन को ढूँढ़ने के लिए अमरीकियों के पास तो बेहतर साधन हैं मगर उन्हें भी लादेन के ठिकाने का कोई अंदाज़ा नहीं है।
इसके बाद ज़रदारी का कहना था, "हमारी अपनी ख़ुफ़िया एजेंसियाँ भी ऐसा ही मानती हैं कि अब वो नहीं रहा, उसकी मौत हो चुकी है।" उन्होंने इस दौरान ये नहीं बताया कि वह इस नतीजे पर कैसे पहुँचे हैं और उन्होंने ये कहा कि वह इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते हैं।
जबकी पाकिस्तानी प्रधान मंत्री के बायाँ को देखें तो विरोधाभास लगता है की उन्होंने जरदारी के बयान से अपने आप को अनभिग्य बताया।
तालिबान का पाकिस्तान में बढ़ता हस्तक्षेप और पाकिस्तानी परमाणु बम पर उसकी नजर भारत के लिए चिंता जनक तो है ही पुरे विश्व पर एक काली छाया है। पकिस्तान की राजनीति जिस तरह से तालिबान के हांथ की कठपुतली हो चुकी है, पाकिस्तानी आवाम के लिए भी इराक़ और अफगानिस्तान वाला ख़तरा मंडरा रहा है। क्या राजनैतिक महत्वाकांक्षा से परे लोकतंत्र और आम लोगों के लिए फ़िर से एक दुखदायी युद्ध की घंटी है ?
विकलांग हो चुका पकिस्तान कहीं मानवता के लिए कोढ़ तो नही बन रहा ??
अनकही यक्ष प्रश्न के साथ जारी है .......


मुंबई के "हमसफ़र" ट्रस्ट के लोग होमोसेक्सुल प्रदर्शनकारियों के लिये बांग्लादेशियों की सहायता ले रहे हैं

आज मैंने एक अंग्रेजी समाचार पत्र में पढ़ा और चित्र भी देखा कि अशोक राव कवि और उनके गुर्गे जो कि मुंबई में "हमसफ़र" नाम का एक एन.जी.ओ. चलाते हैं जो कि भारत में पूरी ताकत और धन बल से इस बात के लिये प्रयास कर रहा है कि हमारे देश में भी समलैंगिकता को कानूनन मान्य कर दिया जाए। इन लोगों ने अब एक दुष्टता करना शुरू कर दिया है कि जो बांग्लादेशी पुरुष स्त्रियों के कपड़े पहन कर लाली-पाउडर लगा कर हिजड़े बन कर भीख मांगते और लोगों को तंग करते हैं ये हमसफ़र ट्रस्ट वाले अब उनकी सहायता लेने लगे हैं। कुछ समय पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें कि मैंने लैंगिक विकलांगों पर पुलिसिया अत्याचार की बात बताई थी कि किस तरह हम सब को निर्वस्त्र करके परेड कराई गयी थी ये देखने के लिये कि हम सचमुच लैंगिक विकलांग हैं या नहीं क्योंकि अखबारों की सुर्खियों में आया था कि हिजड़े द्वारा लोकल ट्रेन में महिला से बलात्कार का प्रयास करा गया, धन्य हैं ऐसे पत्रकार और उनकी पत्रकारिता और उनसे भी ज्यादा महान हैं मुंबई पुलिस। अब आप देखिये कि हमसफ़र ट्रस्ट ने सीधे इन बहुरूपियों को पोस्टर पकड़ा कर एक प्रदर्शन करा दिया और मीडिया के लोग भी मसाले की तलाश में पहुंच गये फोटो खींच कर स्टोरी कवर करने। जब कि सच तो ये है कि समलैंगिकता एक निहायत ही निजी सत्य है जिसे कोई सामने लाने में एक अपराध बोध से ग्रस्त रहता है लेकिन चूंकि अशोकराव कवि को तो नेता बनना है इसलिये जब मुंबई से ऐसा कोई सामने नहीं आता तो अब इसने बांग्लादेशी बहुरूपियों की मदद लेनी शुरू कर दी है। उन कमीनों ने अपने हाथ में पोस्टर ले रखे थे जिस पर अंग्रेजी में लिखा था कि मैं खाना बनाना चाहता हूं, मैं साड़ी पहनना चाहता हूं लेकिन मैं एक लड़का हूं, मैं वैसे रहना चाहता हूं जैसा मैं हूं।
अरे कमीने इंसान सीधे क्यों नहीं लिखता कि तेरी इच्छा क्या है अगर कोई पुरुष या स्त्री खाना बनाना चाहता है या साड़ी या पतलून पहनना चाहता है तो इस बात पर तो कानूनी रोक नहीं है तो व्यर्थ के प्रदर्शन की क्या आवश्यकता है, अरे षंढ! सीधे लिख पोस्टर में कि तू खुद अपनी गलीज़ इच्छाओं की पूर्ति के लिये इतने नाटक रचा रहा है। तुझे जो करना है या करवाना है कर लेकिन कानूनी मान्यता की आड़ में क्यों भारतीयता की मिट्टी पलीद करना चाहता है। आश्चर्य है कि कोई भी धार्मिक संगठन न हिंदू न मुसलमान इन हरामियों को क्यों नहीं रोकता? क्या इनसे डरते हैं या फिर कोई अलग बात है??? ऐसे हजारों सवाल दिमाग में आ जाते हैं जब भी कोई रंगा पुता बांग्लादेशी बहुरूपिया सामने आकर भाग जाता है।
जय जय भड़ास

जिंदगी

मेरी आकांछा .

ज़िन्दगी से जंग जारी है
बिना किसी शिकवा शिकायत के
जियें जा रहा हूँ
इस उम्मीद से
की कुछ पद चिह्न छोड़ सकूं
पद चिह्न ज़िन्दगी के साथ संघर्ष का
पद चिह्न आज की हकीकत का
जो कल लोगो को कहानियाँ सुनाये
जो आज बीत रही है
जिससे लोगो की चेतना में बदलाव आए
यह कोई संघर्ष गाथा नही होगी
यह कहानी होगी
एक आम आदमी की ज़िन्दगी की
जिसे उसने जिया ज़द्दोज़हद में

प्रशांत भगत

खबरिया चैनल का उठता स्तर.....गिरती पत्रकारिता !!!

रजत शर्मा इन दिनों अपने चैनल को भूत-प्रेतों से दूर लेजाकर इसको विश्वसनीय बनाने में लगे हैं और इसका हुलिया बदलना चाहते हैं। अब चैनल का हुलिया बदले या न बदले मगर वे खुद लंदन जाकर अपने गंजे सिर पर केशारोपण करवाकर अपना हुलिया जरुर बदल चुके हैं। अब खबर यह आई है कि इंडिया टीवी द्वारा अमरीका की की एक शोधार्थी फरहाना अली को अमेरिकी जासूस बताकर इसका इंटरव्यू प्रसारित कर दिया। इसको लेकर फरहाना ने खबरिया चैनलों की नियामक संस्था न्यूज ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिशन (एनबीए) में शिकायत की थी। इस संस्था का गठन सभी खबरिया चैनलों ने मिलकर इस उद्देश्य से किया है कि अगर कोई खबरिया चैनल किसी तरह की आपत्तिजनक खबर प्रसारित करता है तो कोई भी दर्शक इसके खिलाफ शिकायत कर सकता है।


न्यूज ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिशन (एनबीए) ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद इंडिया टीवी को दोषी पाया और उस पर एक लाख रुपये जुर्माना लगा दिया। इसके साथ ही इंडिया टीवी को कहा गया कि वो इस आधारहीन और झूठी खबर को प्रसारित करने के लिए चैनल पर माफीनामा भी प्रसारित करे।

न्यूज ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिशन (एनबीए) ने यह पाया कि इंडिया टीवी ने इस खबर में तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया। एनबीए ने इंडिया टीवी को कहा था कि वह 1 लाख रूपये एक महीने के भीतर जमा कर दे और अपने चैनल के टिकर (पट्टी) पर किसी भी दिन रात 8 से 9 के बीच खेद प्रकट करे। यह खेद संदेश कम-से-कम पाँच बार चलाया जाए और संदेशों के बीच 12 मिनट का अन्तराल होना चाहिए। लेकिन इंडिया टीवी ने बजाय इस नियामक संस्था की बात मानने के एक लाख जुर्माना लगाए जाने के विरोध में आज न्यूज संगठन से ब्राडकास्टिंग से अपनी सदस्यता वापस ले ली। संगठन को लिखे पत्र में इंडिया टीवी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रोहित बंसल ने कहा कि हम एनबीए के पक्षपातपूर्ण रवैये के खिलाफ कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए अपनी सदस्यता वापस लेते हैं। उल्लेखनीय है कि सभी खबरिया चैनलों के प्रतिनिधियों द्वारा आपसी सहमति से नेशनल ब्राडकास्टिंग एसोसिएशन (एनबीए) के गठन के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा को इसका प्रमुख बनाया गया था। इंडिया टीवी भी इसका सदस्य बना था।

एनबीए की स्थापना चैनलों द्वारा स्व-नियमन के उद्देश्य से अक्टूबर, 2008 में की गई थी। वर्तमान में एनबीए के सदस्यों में 14 ब्रॉडकास्टर हैं। वैसे न्यूज़ और करंट अफेयर्स से जुड़े देश भर के 31 चैनल इसके सदस्य हैं। इसके निदेशकों में टीवी टुडे के जी।कृष्णन, आईबीएन 18 ब्रॉडकास्ट लिमिटेड के समीर मानचंदा, एनडीटीवी के के.वी.एल. नारायण राव, टाईम्स ग्लोबल के चिंतामणि राव, जी न्यूज़ लिमिटेड के वरुण दास, स्टार न्यूज़ के शाजी ज़मा और इनडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस के रोहित बंसल हैं।

इंडिया टीवी को उसकी सनसनीखेज पत्रकारिता महंगी पड़ती जा रही है। एक और इंडिया टीवी अपनी दो दो कौड़ी की खबरों से अपनी टीआरपी बढ़ाने का खेल खेल रहा है, दूसरी ओर माफी भी मांग रहा है और गुर्रा भी रहा है। खबर है कि इंडिया टीवी ने दाउदी बोहरा धर्म समुदाय के सबसे बड़े धर्म गुरू को तालिबानी आतंकवादी दिखाने के बाद लिखित में माफी भी मांग ली है। इंडिया टीवी ने एक और गुल खिलाया कि जिस वीडियों में वह चार जेहादियों को तालिबानी कह कर बार बार दिखा रहा था, वे तालिबानी नहीं बल्कि जम्मू के स्थानीय आतंकवादी थे, और वे आंतकवादी चाहते थे कि उनको टीवी चैनल एक खूंख्वार आतंकवादी के रूप में पेश करे ताकि वे अपने आकाओं को बता सकें कि वे भी भारत के बड़े आतंकावदियों में गिने जाते हैं। इस तरह ऐसा लगता है कि भारतीय खबरिया चैनलों के लिए आतंकवादियों को प्रचार देने का ही काम रह गया है।

ऐसा ही एक और मामला सामने आया है कि काले कपडे पहनकर दहाड़ दहाड़ कर शनि के नाम से लोगों को डराने वाले दाती महाराज ने जब इंडिया टीवी से रिश्ता तोड़ लिया और जब दाती महाराज न्यूज 24 चैनल अपनी दुकान चलाने लगे, इसके बाद भी इंडिया टीवी पर दाती महाराज कई दिनों तक लाईव दिखते रहे। इंडिया टीवी दाती महाराज के पुराने एपिसोड को लाईव और नए एपिसोड के रूप में दर्शकों को परोसता रहा। यही हाल इंडिया टीवी की जनता की अदालत का है इस अदालत में बरसो से एक जैसे चेहरे देख देखकर लोग बोर ही नहीं हो चुके हैं बल्कि इसके आने का संगीत शुरु होते ही लोग चैनल बदल लेते हैं।

ऐसा ही एक कारनामा इंडिया टीवी कई बार कर चुका है। गुजरात के एक हार्डवेअर इंजीनियर ने मोबाईल हैकिंग में महारत हासिल कर ली थी, इंडिया टीवी इस इंजीनियर के जरिए कई जाने माने लोगों के फोन हैक करके उनके नंबर से दूसरे लोगों को फोन लगाकर एक चमत्कार की तरह इस खबर को की बार दिखा चुका था। इसमें फिल्म निर्माता महेश भट्ट को इंडिया टीवी के एंकर सुबीर चौधरी के हैक किए गए फोन से फोन किया गया था। यह तो भला हो सुबीर चौधरी का कि वे इस चैनल से चले गए नहीं तो दर्शकों को यह खबर जाने कितनी बार देखना पड़ती।

साभार : - हिन्दी मीडिया



बीमारी हालत में भी शमा दी’ लापता बच्चों सतीश देवाडिगा और रफ़ीउद्दीन के लिए मुंबई आ गयीं....

आज जब मैंने हमारी शमा दी’ को फोन करके बस यूं ही हाल जानना चाहा तो उनका फोन रिसीव ही न हुआ। मुझे लगा कि शायद किसी काम में व्यस्त होंगी तो बाद में फोन कर लूंगा लेकिन करीब एक घंटे बाद उनका फोन आया। उनसे बात करने पर उनकी आवाज से साफ़ पता चल रहा था कि वे स्वस्थ नहीं हैं जब कई बार पूछा तब उन्होंने बताया कि वे सचमुच बीमार हैं लेकिन उनकी करुणा और प्रेम इस स्तर का है कि बीमारी हालत में लापता बच्चों सतीश देवाडिगा और रफ़ीउद्दीन की जानकारी लेने के लिये मुंबई चली आयीं। अब जब वे मुंबई में ही हैं और अस्वस्थ हैं तो भड़ास परिवार का फर्ज़ है कि उन्हें मिलने अवश्य जाए ताकि परिवार का प्रेम अधिक मुखर हो कर सबके सामने आए। मैं खुद शाम को उनसे मिलने सांताक्रुज जा रहा हूं। आप लोग उन्हें फोन न करें क्योंकि अभी डाक्टर ने उन्हें इंजेक्शन दिया है और वे आराम कर रही हैं इसलिये मैं भी शाम को जा रहा हूं। आने के बाद मैं स्वयं उनके स्वास्थ्य की सूचना आप सबको दूंगा।
जय जय भड़ास

अरे बालक!क्या करने का इरादा है?

अरे बालक!क्या करने का इरादा है? कुछ old is gold लेकर आने वाले हो क्या? अच्छा है अगर कुछ पुराना माल लेकर आ रहे हो उसमें पुरानी मदिरा की तरह ही गहरा नशा होगा। मुझे याद हैं भड़ास के वो दिन जब हम सब कस कर लिख रहे थे लेकिन अफ़सोस इस बात का रहा कि हम अपनी धुन में ये न समझ पाए कि तकनीकी अधिकारों का दुरुपयोग करके एक कुटिल लालची आदमी हम सबकी भावनाओं को बेंच देगा और हमें बेदखल कर देगा।
हा..हा..हा...
वो ये भूल गया कि हम भड़ासी हैं दिल चुरा लेते हैं,आत्मा तक चुराने का साहस रखते हैं जब उसने भड़ास की हत्या कर दी तो हम सब भड़ासियों की समेकित भड़ास प्रसव पीड़ा से शिशु भड़ास का जन्म हुआ,जोकि अधिक शक्तिशाली होने के साथ अधिक भावुक है। भड़ास और भड़ासियों के अतीत से अगर आप कुछ ला रहे हैं तो भड़ास परिवार में जुड़ने वाले नए लोग जान पाएंगे कि भड़ास मात्र एक चूतियों की भीड़ नहीं है बल्कि एक ऐसा मंच है जो कि सामाजिक और राष्ट्रीय के साथ साथ मानवीय सरोकारों पर विचार करते हुए दिशा व दशा का मनन करता है और अधिक बेहतर जीवन के विकल्प तलाशता है; हम सिर्फ़ समस्याओं की तरफ़ उंगली नहीं उठाते बल्कि हल भी खोजते हैं और न सिर्फ़ खोज कर चुप हो जाते हैं बल्कि उसे लागू भी कराने का जतन करते हैं.....
जय जय भड़ास

चलिए निकालिए अपनी अपनी भडास या भर दीजिये हास.....

जैसा की मैंने अभी हाल में एक अन्य चिट्ठे में सब से गुजारिश की है की जब यहाँ हम सब कुछ न कुछ लिख और पढ़ ही रहे हैं तो क्यूँ न इसके साथ साथ कुछ उन मुद्दों पर भी बात की जाए जो आज देश, समाज, विश्व के लिए चुनौती बने हुए हैं। और जाहिर है की इस तरह की बातें जब बहस के रूप के ,परिचर्चा के रूप में आती हैं तो उनें एक दिशा और सार्थकता मिल जाती है। अब चूँकि मैं ख़ुद इस इतने बड़े मंच का सदस्य हूँ तो सोचा की क्यूँ न यहें से शुरात की जाए, वैसे ये सिर्फ़ मेरा विचार है , और आपकी सहमती तथा सहयोग के बिना तो कुछ भी सम्भव नहीं होगा, ।

इसलिए आज यानि रविवार से शनिवार तक मैं बहस के लिए एक विषय आपके सामने रख रहा हूँ। और हाँ आपने जो भी है उसे एक अलग पोस्ट में कहें , शनिवार तक जो भी जो कुछ भी कहना है वो कहें , उसका जो भी निष्कर्ष निकलेगा उसे हम एक सारांश के रूप में एक पोस्ट के रूप में रखेंगे ,इस बहस को समाचार पत्रों के माध्यम से सबके सामने रखना मेरी जिम्मेदारी ...



विषय प्रणाली :- शिक्षा संस्थान हमारे प्रणाली, शिक्षा संस्थान, हमारे शिक्षक, हर्मारे स्कूल आदि सबकुछ। जो भी आपके मन में है, कहें, मैं इस विषय पर अपनी पोस्ट जल्दी ही लिखूंगा

अतीत के पन्ने से सफर की शुरुआत......

भाई लोगों ,

भड़ास का वो सुनहरा दिन और भड़ास की आत्मा जिसने समाज को झकझोरा, एक बुनियाद रखी जल्दी ही आपलोगों के सामने आने वाला है।

बस इन्तजार कीजिये अग्निबाण का और अतीत के आईने का ।

भड़ास की परिकल्पना और सरंचना के साथ भडासी विचार और परिवार।

तो बस कुछ ही दिनों में आपके सामने होगा अतीत से निकला भड़ास।

जय जय भड़ास

प्रिय पाकिस्तान! अगली बार आतंकी भेजो तो जरा उम्र का ध्यान रखना कि सतरह का ही हो...

आज की राष्ट्रदामाद श्री अजमल कसाब जी और सरकारी वकील श्री उज्ज्वल निकम जी के पक्ष पर खूब सोच समझ कर एक विचार दिमाग में आ रहा है जो कि मैं हमारे आदरणीय पड़ोसी राष्ट्रों पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि को एक मुफ़्त सलाह के रूप में दे रहा हूं। इस विषय पर बहुत संभव है कि ये हमारी सरकार की देश की बेलगाम बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के लिये कंडोम के इस्तेमाल की सलाह के जैसी ही कोई योजना हो कि यदि आप हमारे देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिये अपने मुल्क से आतंकवादी भेज कर सहायता करना चाहें तो इस बात का ध्यान रखिये कि उम्र अट्ठारह साल से कम ही हो ताकि हम उन्हें राष्ट्रदामाद बना कर उनकी खातिरदारी करें और मात्र तीन साल बाद ससम्मान वापस आपके देश भेज दिया जाए ताकि वे हवाई जहाज हाईजैकिंग आदि जैसे थोड़े बड़े कामों में सहयोग कर सकें जिसके बदले में हमारे प्रधानमंत्री या अन्य जिम्मेदार सत्ताधारी आपके आतंकियों को सप्रेम आपको देने जा सकें। मेहरबानी करके इस बात का अवश्य ध्यान रखें एक बार फिर से कि अगली खेप में जो आतंकवादी भेजें उनकी उम्र सतरह साल के आस पास ही हो। इस तरह हमारी जनसंख्या का नियंत्रण भी आसानी से होता रहेगा।
जय जय भड़ास

कसाब बच्चा है उसे मात्र तीन साल की सजा होगी....

आज मैं फिर घूम फिर कर राष्ट्रदामाद श्री अजमल कसाब जी के बारे में बकबकाऊंगा। चूंकि श्री कसाब जी ने कहा है कि वे अभी नाबालिग हैं यानि कि उन्होंने जो कुछ भी करा वह महज उनका बचपना था इसलिये हे भारत के न्यायकर्ताओं मेरे जैसे मासूम बच्चे के साथ आप सब जरा अक्ल से काम लें वरना यदि आपने मुझे कड़ी सजा दी तो मेरे सुधरने की गुंजाइश जो कि आपके कानून के अनुसार है वह खत्म हो जाएगी। आप सब अपने कानून की इज़्ज़त करते हुए मेरे बचपने के बारे में सोचिये। मेरे लिये कल से दुध्धू की बाटली जेल में भेजवाया करो और साथ मे एक दो एक्स्ट्रा निप्पल भी ताकि अगर मै अपने दूध के दांत से निप्पल चबा डालूं तो बोतल से दूध लीक न होने लगे। श्री उज्ज्वल निकम जो कि सरकारी वकील हैं उन्होंने बताया है कि यदि कसाब बच्चा है तो उसे मात्र तीन साल की सजा होगी। ऐसा सिर्फ़ हमारे देश के संविधान में ही संभव है।
जय जय भड़ास

उल्लू ?

बांकेलाल (प्यारेलाल से)- यार मैं सोचता था कि इस दुनिया में सिर्फ मैं ही उल्लू हूं।
प्यारेलाल (बांकेलाल से)- क्यों क्या हुआ?
बांकेलाल (प्यारेलाल से)- कल मैंने अपनी पत्नी को कश्मीरी सेब लाने को कहा था।
प्यारेलाल (बांकेलाल से)- तो क्या हुआ?
बांकेलाल (प्यारेलाल से)- आज कश्मीर से फोन आया कि उसने सेब खरीद लिए है।

इंसानों की इस बस्ती में

इंसानों की बस्ती में
हम भी थे इन्सान यहाँ
इंसानों की इस नगरी में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ
जब बसते ही इन्सान नहीं
तो हम खुद को क्यू इन्सान कहें
क्यूँ प्रेम, जलन और नफ़रत की
पीडा को हम यूँ ही सहें
इसलिए छोड़ दी हमने भी
इंसानों सी हरकत करना
क्या बस जीना ही जीवन है
तो क्या है फिर पल-पल मरना
जब होश नहीं जीवितों को
तो अब मुर्दों को फिर होश कहाँ।
इंसानों की इस बस्ती में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ
इंसानों की इस बस्ती में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ...........
जय भड़ास जय जय भड़ास

किस का दर्द है आप के दिल मे

हर धड़कन में एक राज़ होता है...
पर क्या हर भूखे के पेट में अनाज होता है?

wah dr साहब
आप तो कवियो को भी मात देगए
जो सोचते थे की हम ही हम है
उन को आप कुछ मजाक मे ही जस्बात दे गए ,
एक मन कर रहा है रोने का
और एक मन कर रहा है इस बात की गहराई मे जा कर
आग की चादर ओढ़ कर सोने का
आप किस किस का दर्द अपने सीने मे समाते गय
ये उमर तो बीत गई है सिर्फ़ दर्द लेन मे और दर्द लेन मे
...............................आपका पुराना भडासी अमितजैन

पृथ्वी दिवस का मजाक ...

२२ अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया गया हर साल इसी दिन को मनाया जाता है पृथ्वी को बचाने की तरकीब बनाई जाती है लोगो में जागरूकता फैलाई जाती है कई कार्यक्रम होते है बंद कमरों में पृथ्वी की स्थिति पर चर्चा होती है सेमिनारों में जानकार लोग जीवन को बचाने सम्बंधित बड़ी बड़ी बातें करते है ये बातें २३ अप्रैल को भुला दी जाती है और फ़िर अगले २२ अप्रैल का इन्तजार शुरू हो जाता है
पृथ्वी दिवस भी होली , दिवाली ,दशहरा जैसे त्योहारों की तरह खुशी का दिन और खाने पिने का दिन मान कर मनाया जाने लगा है इसके उद्देश्य को लोग केवल उसी दिन याद रखते है बल्कि मै तो कहुगा की घडियाली आंसू बहाते है हमें इस बात का अंदाजा नही है की कितना बड़ा संकट आने वाला है और जब पानी सर से ऊपर चला जायेगा तो चाहकर भी कुछ नही कर सकते , अतः बुद्धिमानी इसी में है की अभी चेत जाए
वैश्विक अतर पर पर्यावरण को बचाने की मुहीम १९७२ के स्टाकहोम सम्मलेन से होती है इसी सम्मलेन में पृथ्वी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई और हरेक साल जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने पर सहमती व्यक्त की गई १९८६ के मोंट्रियल सम्मलेन में ग्रीन हाउस गैसों पर चर्चा की गई १९९२ में ब्राजील के रियो दे जेनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मलेन हुआ जिसमे एजेंडा २१ द्वारा कुछ प्रयास किए गए इसी सम्मलेन के प्रयास से १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल को लागू करने की बात कही गई इसमे कहा गया की २०१२ तक १९९० में ग्रीन हाउस गैसों का जो स्तर था , उस स्तर पर लाया जायेगा अमेरिका की बेरुखी के कारण यह प्रोटोकाल कभी सफल नही हो पाया रूस के हस्ताक्षर के बाद २००५ में जाकर लागू हुआ है अमेरिका अभी भी इसपर हस्ताक्षर नही किया है यह रवैया विश्व के सबसे बड़े देश का है , जो अपने आपको सबसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक देश बतलाता है वह कुल ग्रीन हाउस गैस का २५%अकेले उत्पन्न करता है
अगर ऐसा ही रवैया बड़े देशो का रहा तो पृथ्वी को कोई नही बचा सकता जिस औद्योगिक विकास के नाम पर पृथ्वी को लगातार लुटा जा रहा है , वे सब उस दिन बेकार हो जायेगे जब प्रकृति बदला लेना आरम्भ करेगी

गर्मी में लू और राजनीति में लालू



गर्मी में लू और राजनीति में लालू
के चर्चे हर जगह आम हैं
आखिर गर्माहट बनाए रखना और
नाक में दम करना दोनों का काम है
लू लग जाए, तो अच्छे-अच्छों को तोड़ दे
और लालू शुरू हो जाएं, तो सबके भांडे फोड़ दे
लालू जैसा, जनता के करीब कोई नहीं है
सच मानिए तो राजनीति में लालू जैसा गरीब कोई नहीं है
यह उनके चुनाव चिन्ह से ही नजर आता है
सोनिया के पास पंजा, माया के पास हाथी
अडवानी को कमल सुहाता है
और कोई जनता को लूटने साइकिल पर जाता है
लेकिन अपने लालू को 21वीं सदी में भी
लालटेन ही पसंद आता है
दुनिया में हर कोई दौलत पर मंडराता है
और अपने लालू का काम चारे से ही चल जाता है
सोम से बुध से शनि से न राहू से
लालू को चिंता और डर न काहू से
सीएम तो बन गए और बस पीएम बनने की इच्छा है
इस बार इलेक्शन में उनकी कड़ी परीक्षा है
देखते हैं लालू के लालटेन की रोशनी
कहां तक जाएगी
या घांसलेट (मिट्टी के तेल) की कमी से
लालटेन बुझ जाएगी
शिवेश श्रीवास्तव, पत्रकार, लेखक, काटूर्निस्ट

नाज

हर ध्‍ड्रकन में एक राज्र होता है
हर बात को बताने का एक अंदाज्र होता है
जब तक ठोकर न लगे बेवफाई की
हर किसी को अपने प्यार पे नाज्र होता है.........
नाज हमे भी है उन की बेवफा बातो पर
या कहिये उन की इन्ही अदाओ पर

चुनाव, नक्सल आतंकवाद, लोकतंत्र, और आम जनता !!!!


चुनाव के आते ही नक्सल आतंक बढ़ जाता है, सरकार की सारी व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है और नक्सली अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहते हैं। बीच में पिसते हैं वो आम जन जो ना ही सरकार, पुलिस प्रशासन और ना ही नक्सलियों पर भरोसा करते हैं मगर उनकी जिन्दगी ही इन घुनों के बीच पिसने जैसी हो गयी है।

लाल सलाम या रक्त रंजित भारत, देश का नासूर !


पहले दौर के मतदान से पूर्व भी नक्सलियों ने अपनी मर्जी चलायी और सरकार को धत्ता बताया, दुसरे दौर के मतदान से पहले भी कल नक्सलियों ने जम कर तूफ़ान मचाया और एक बार फ़िर से प्रश्न छोर गया की सरकार प्रशाशन पुलिस और व्यवस्था कहाँ है? किसके लिए है ?


बिहार के औरंगाबाद जिले के देव ब्लॉक ऑफिस की बिल्डिंग को विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया और गया में आठ ट्रकों को आग के हवाले कर दिया। रात करीब 50-60 की संख्या में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)के नक्सली देव देव ब्लॉक ऑफिस की परिसर में आए और बिल्डिंग को विस्फोटक से उड़ा दिए।


झारखण्ड के पलामू के बरवाडीह में नक्सलियों द्वारा बारूदी सुरंग विस्फोट के जवाब में पुलिस कार्रवाई में पांच ग्रामीण मारे गए थे। इसके विरोध में नक्सलियों ने बुधवार से झारखंड और बिहार में बेमियादी बंद का आह्वान किया


नक्सलियों ने झारखंड और बिहार में मंगलवार की रात से तांडव मचाना शुरू कर दिया है। ट्रेन पर कब्जा करने से पहले मंगलवार देर रात नक्सलियों ने पलामू में उंटारी रोड स्टेशन और वहीं के एक स्कूल की बिल्डिंग को उड़ा दिया। विस्फोट के कारण उंटारी स्टेशन पर सिग्नल व्यवस्था ध्वस्त हो गई है।


नक्सलियों ने औरंगाबाद जिले के देव ब्लॉक ऑफिस की बिल्डिंग को विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया। गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र में मंगलवार रात नक्सलियों ने आठ ट्रकों को आग के हवाले कर दिया। नक्सलियों ने एक ट्रक ड्राइवर को गोली मारकर हत्या भी कर दी।


पूर्वी सिंहभूम जिले के अंतर्गत बोटा गांव में मतदानकर्मियों पर हमला किया। माओवादियों ने जिले के बांसडेरा क्षेत्र में चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की। घंटे भर चले मुठभेड़ के सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के प्रयास को नाकामयाब कर दिया। पलामू जिले के एक स्टेशन और रेल लाइन को गुरुवार को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया। नक्सलियों ने रेल लाइन को उड़ा दिया।


नक्सलवाद पर राज्यों और केंद्र सरकार में हमेशा से मतभेद रहे है। केंद्र सरकार इसे सामाजिक समस्या मानकर इसके मानवीय हल की बात पर जोर देती रही है जबकि प्रभावित राज्यों का कहना है कि नक्सलवाद को राष्ट्रीय समसया मानकर इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समग्र रणनीति बनानी चाहिए क्योंकि देश के तीन चौथाई राज्य इस समस्या की गिरफ्त में है। सरकारों के मतभेद का पूरा लाभ नक्सली उठा रहे है और आम जन का इस क्रस्दी को झेलना मज़बूरी मगर सरकारों के मतभेद का खामियाजा हम कब तक भुगतते रहेंगे ?


भड़ास का यक्ष प्रश्न जारी है ?