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नेताओं का सच!
हम हिजड़ों की तो सुनो (अतीत के पन्ने से.......)
हम चार पांच लोग जैसे सोना ,भूमिका ,शबनम मौसी ,डॉक्टर भाई मिल कर लिखेंगे आज पहली बार हिजड़ों की समस्याओं के बारे में जैसे हमें डाईविंग लाईसेंस से लेकर राशन कार्ड तक नहीं मिल पाता आसानी से क्योंकि हम न तो स्त्री हैं न पुरूष और आप लोग हैं कि फालतू बातों पर बहस कर रहे हैं ।यशवंत भाई को आशीर्वादजै भड़ास
भडास..... फटी हुई है सबकी. (अतीत के पन्ने से......)
एन डी टी वी पर ब्लॉग चर्चा (अतीत के पन्ने से....)
भडास के सच को आत्मसात करने की हिम्मत किसी ने ना दिखाई । मगर दीवांग की बेबाकी बेहतरीन रही। वीरू लोगों को पता होना चाहिए की यहाँ सिर्फ़ सच उगला जाता है। किसी के गां ..........और चू ........में तेल नही लगाया जाता। चर्चा में एक बात तो साफ दिखी की कोई भी सच को स्वीकारने वाला ना था।
विशेष फ़िर लिखूंगा।
जय जय भडास।
तीन मई को मैथिली दिवस......
विद्यापति सेवा संस्थान भी इसको मनोहारी रूप देने की तैयारी कर रहा है। संस्थान से जुड़े पत्रकार और समाज सेवी डाक्टर बैजनाथ चौधरी बैजू जी के अनुसार इस कार्यक्रम में माँ वैदेही की प्रतिमा लगा कर जानकी दिवस की पूजा की जायेगी और कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे।
इसी प्रकार विभिन्न संगठनो ने भी भाई चारा से जुड़े हुए कार्यक्रम करने के संकेत दिए हैं।
नि:संदेह इस तरह के कार्यक्रम सामाजिक एकता और सौहार्द के लिए मील के पत्थर साबित होंगे।
शुभकामना सभी गणमान्यों को।
जय जय भड़ास
साभार : हेलो मिथिला
पत्रकार और उनका चरित्र ......... ? (अतीत के पन्ने से.....)
अभी मैं अपने कार्यवश मुम्बई में हूँ और पता नही कब तक मुम्बई में रुकना पड़े, नौकरी जो करनी है, सवाल पापी पेट का है। बीते कुछ पुराने दिनों की याद है कि जितने पत्रकारों की शकल देखता हूँ कुछ टीस सी उठती है की मैं कुछ नही कर पाया।
मेरी एक मित्र हैं मैं नाम नही बताऊंगा जो की भारत के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्र की मुम्बई की वरिष्ठ संवाददाता हैं। पिछले साल की बात है वह एक संवाददाता सम्मेलन में गयीं थीं। उनके साथ और भी पत्रकार होंगे। वापस लौटते समय एक अन्य वरिष्ट संवाददाता ने उनसे आग्रह किया की चलिए मैं आपको रास्ते मैं छोरता आगे चला जाऊंगा। दोनों साथ चले , कमाल है मुम्बई की टैक्सी का भी; टैक्सी के चालकों को कोई सरोकार नही होता की पीछे बैठे सीट पर हो क्या रहा है। बहरहाल उन सज्जन ने मेरी मित्र के साथ टैक्सी में भारी दुर्व्यवहार किया जिसका जिक्र मैं यहाँ नही कर सकता। मुझे दूरभास पे सूचना दी , मैं ठहरा ठेठ बिहारी बड़े तैश में आ गया। अपने मित्र को सलाह भी दी की जाओ थाने में शिकायत दर्ज करो और उस बेहूदे ,कमीने रिपोर्टर को उसके ऑफिस में चांटा लगा के आओ। मगर वो ऐसा नही कर पायीं। और सब कुछ पूर्ववत् हो गया क्यूंकि हमारी मित्र उस कुत्सित घटना को भूल जाना चाहती थीं।
आज में मुम्बई में हूँ, नोकरी ऐसी की इन महानुभावों के ही दर्शन होना होता है। बड़ी तकलीफ में हूँ क्यूंकि मुझे सारे पत्रकारों में उसी की शकल दिखती है। लगता है की काश उसने मुझे बता दिया होता तो जय भडास स्स्स्साले की में छ: पोर का बिना छिलल बांस कर की साले की सारी पत्रकारिता उसकी में घुसा देता। वैसी मेरे लिए ये इनका चरित्र कोई नया नहीं है क्योँ कि मैने देखा है कि अपने सहकर्मी के प्रति इनके दिल दिमाग मैं क्या क्या होता है, सामने से हटने की बाद उनके शरीर के व्याख्यान, मुझे हमेशा से ही उलझन मैं डालती रही कि क्या अपने आप को मित्र बताने वाला ऐसा हो सकता है, संभव है सभी जगह ये ही होता होगा मगर मुझे सदा से ही इस पत्रकार शब्द ने ज्यादा परेशान किया है. देश का चौथा स्तंभ..... आम जन कि आवाज..... जनता के लुटेरे को पकड़नेवाला.... भ्रस्ताचार के खिलाफ लिखने वाले सर्वाधिक भ्रष्ट है ये बात ठाकुर जैसे पत्रकार के आने से जनता कि नजर मैं भले ही आती है मगर ना आये तो भी हैं तो सही।
चरित्रहीन.......................?
दयित्वहीन..............?
निष्ठाहीन..............?
कलंकित पत्रकार........
इनमें से भिन्न क्या है? नेट या ऐसे ही किसी इम्तहान का सवाल...
इनमें से भिन्न क्या है?
१) रामदेव गुरू
२) आसाराम बापू गुरू
३) अफ़जल गुरू
४) मुरारी बापू गुरू
कैसा लगा आप सबको ये सवाल? भारत की आम जनता की भूल जाने की विशिष्टता के चलते इस तरह के सवाल जन्मते रहेंगे। किसी को याद है कि कामा अस्पताल के बाहर एक बुर्के वाली औरत ने भी फ़ायरिंग करी थी और आतंकवादी मराठी में बात कर रहे थे? अखबारों ने खबर में क्रिकेट की खबरें देना शुरू कर दी और शाहरुख खान की खरीदी हुई टीम के चर्चे करना छापा बस जनता भूल गयी सब कुछ......। बस अब जब आगे कुछ होगा तो याद कर लेंगे अब क्या जिंदगी भर कसाब या अफ़जल की ही चर्चा करते रहें या तेलगी की ही बात करें? भूल जाओ यार मजे करो....क्रिकेट देखो
जय जय भड़ास
संवेदना है की मर गई ?
35 साल पुरानी फिल्म 'दीवार' का दृश्य यहां के एक स्कूल में दोहरा दिया गया है।
फर्क बस इतना है कि वहां लड़के के हाथ पर लिखा गया था 'मेरा बाप चोर है'। लड़का पूरे जीवन इस अभिशाप को ढोता है। यहां एक मासूम के गाल पर 'मैं पागल हूं' लिखकर पूरे स्कूल में घुमाया गया। उसका कसूर इतना था कि वह अपने सहपाठी के साथ बात कर रहा था।
मासूमों से मारपीट, असंवेदनशील व्यवहार की बढ़ती घटनाएं किस ओर संकेत कर रही? शिक्षा प्रणाली का कसूर है ये या शिक्षक संवेदनाएं खो रहे हैं?
कहा जाता है कि गुरु का ओहदा भगवान से भी बड़ा है। लेकिन दिल्ली, हिंडौनसिटी (राजस्थान) और इंदौर की घटना को देखें तो मन में यह सवाल उठता है कि क्या अब वाकई ऐसे शिक्षकों को भी भगवान का दर्जा दिया जाना चाहिए। ताजा मामला इंदौर शहर का है, जहां कक्षा में सहपाठी छात्र से बात करने पर शिक्षक ने छात्र के गाल पर लिख दिया 'मैं पागल हूं'
हम बात कर रहे हैं दिल्ली की शन्नो और आकृति की जिन्हें स्कूल और शिक्षक के अमानवीय रवैये का शिकार होना पड़ा। इन दोनों ही लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। एमसीडी स्कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा शन्नो (11) को सिर्फ इसलिए धूप में खड़ा किया गया, क्योंकि वह अपनी शिक्षिका को ए बी सी डी नहीं सुना पाई थी। नतीजतन शन्नो की तबीयत बिगड़ गई और वह कोमा में चली गई। अंतत: उसकी मौत हो गई।
ऐसा ही एक मामला मॉडर्न स्कूल का भी है, जहां 12वीं कक्षा की एक छात्रा को स्कूल की लापरवाही के चलते अपनी जान से हाथा धोना पड़ा।
शन्नो की तरह का एक और हादसा राजस्थान के हिंडौनसिटी में भी हुआ, जहां अंग्रेजी के एक शब्द का सही अर्थ न बता पाने के कारण रुपसिंह नाम के एक छात्र को ऐसी सजा दी गई कि उसके पैरों की नसें फट गईं।
अपने दिल से पूछिए, क्या ऐसी खबर आपको बेचैन नहीं कर देती है। मासूमों के साथ हो रही ऐसी घटनाएं क्या ठीक ?
बच्चों के साथ हो रही ऐसी घटनाएं कहां तक ठीक हैं?
कसाब - जेल मे या ?????????????? ससुराल मे ?
कसाब ने इन मांगो की बात कहते हुए अपने वकील को एक पत्र लिखा है। यह खत उर्दू में लिखा गया है जिसे वकील अब्बाल काजमी ने कोर्ट में पेश किया है। कसाब को अब अपने पैसों की चिंता भी सताने लगी है और वह चाहता है कि उसके पास से जब्त पैसों को पुलिस उसके जेल अकाउंट में जमा करे।
रोना, हंसना, परिवार बनाना (अतीत के पन्ने से.......)
मेरा ये पोस्ट कहने को तो सिर्फ़ एक स्वजन मिलन कार्यक्रम जैसा था मगर सच कहें तो रिश्तों की नींव थी जो निश्चित ही बेहद मजबूती के साथ डाली गयी। मगर इस पोस्ट को डालने के बाद ही हमारी मनीषा दीदी ने एक प्यारा सा मेल मुझे कर दिया, कहने को सिर्फ़ ये का मेल है मगर मानवीय संवेदना का अथाह सागर, सच कहूं तो इसे कई बार पढ़ा और बार बार पढ़ा, अभी भी पढता हूँ और जब ये मेल आया तभी विचार की इसे भडास पर डालूँ , गुरुवार से सलाह भी लिया मगर एक छोटे भाई को भेजे इस निजी पत्र को सार्वजानिक करुँ या ना करुँ के ऊहापोह में रहा। मेल पढ़ें.......
भाई,
आपने जो तस्वीरें भड़ास पर डाली हैं उन्हें देख कर एक बार मैं रूपेश दादा से लिपट कर रो ली क्योंकि एक मेरा वो बायोलाजिकल परिवार था जो मुझे कब का भूल चुका है और एक आप लोग हैं जिनसे मेरा कोई रक्त संबंध न होने पर भी लगता है कि जन्म जन्म का साथ है। आज भाई के घर पर ही रुक गयी हूं।आपको बहुत सारा प्यार,अच्छे से नौकरी करो और खूब नाम कमाओ ताकि आपकी ये बहन आप सब पर गर्व कर सके।
प्रेम सहित
मनीषा दीदी
ये मेरी वो बहन है जो लैंगिक विकलांग है, समाज जिसे अछूत समझती है और जिम्मेदारी से भागने वाले हमारे समाज के मठाधीश का समाज के इन बच्चों के लिए कोई दायित्व नही मगर मेरे लिए ये मेरी बहन का केसा ख़त है जिसमे वर्णित संवेदना मुझे अभी के सम्पूर्ण मनुष्यों में नही नजर आती, एक छोटा सा संवाद छोटी सी मुलाक़ात मगर रिश्ते का जोड़ ऐसा की जैसे हमारी कई जन्मों की पहचान हो।
सच कहूं तो इसे सामने रखने का कार्य सिर्फ़ इसलिए की आज के समाज में सच्चे अर्थों में मेरे लिए तो मनीषा दीदी ही सबसे अपनी हैं क्यूंकि ऐसा प्रेम नि : स्वार्थ भाव मुझे नही लगता की आपको अपने घरों में भी मिलेगा।
दीदी हम आपके साथ हमेशा हैं।
आपके चरणों में इस छोटे भाई का चरणवंदन
आपका छोटा भाई
रजनीश के झा
एक भडासी हूँ (परिचय) (अतीत के पन्ने से......)
जो किसी के काम ना आ सके वो एक मुश्त गुबार हूँ।
सफलता असफलता के पैमाने मुझपे ना लगाएं क्योँकी दोनों ही मुझे पे फिट नहीं बैठते हैं।
मधुबनी, बिहार जन्मस्थान है। मगर मिथिला के सपूतों में से नहीं हूँ. दिल्ली में एक सोफ्टवेयर कंपनी में अभियंता हूँ. बनना कुछ और चाहता बन कुछ और गया, जीवन की तलाश जारी है क्योँकी भडास ख़तम नहीं हुई है। पता नहीं ये भडास किस पर है, कभी कभी लगता है की खुद पे ही सबसे ज्यादा है।
बेकार निकम्मे के कंधे पे बोझ देने के लिए शुक्रिया। गधे को भी लायक समझा, कोई वादा नहीं कोई शपथ नहीं बस अपने दिल अपने दिमाग और अपनी इमानदारी से समझोता नहीं। दद्दा और रुपेश भाई का शुक्रिया और तमाम भडासी बिरादर का आभार।
जय जय भडास
वेबपेज से निकल कर संबंध साकार होते हैं भड़ास पर....यही जिंदगी है।
अग्नि भइया आपके द्वारा डाली गई पोस्ट में चित्र में देखिये मैं भी हूं रजनीश मामा और अपने पिताजी डा.रूपेश जी के साथ नई मुंबई के वाशी रेलवे स्टेशन पर, पहचाना या नहीं?मैंने रजनीश मामा जी को बताया था कि मैं दिल्ली की रहने वाली हूं लेकिन वक्त के थपेड़े पता नहीं कहां कहां ले जाते हैं। आपने अच्छा करा जो यादों को फिर ताजगी में वापस ले आए। भड़ास का मंच ही है जिसने हम सबको आफ़लाइन और आनलाइन इतनी मजबूती से जोड़ रखा है। भड़ास बस दिमागी किच किच नहीं रह गया बल्कि एक मजबूत सामाजिक सरोकार का प्लेट्फ़ार्म बन चुका है। परिवार का विस्तार धीरे धीरे होता जा रहा है जैसे लोग समझेंगे कि भड़ास मात्र एक वेबपेज नहीं है बल्कि जिंदगी जीने का एक बेहतर तरीका है तो जुड़ते ही जाएंगे। अभी भी लोग भड़ास की कुछ विशेषताओं के कारण टिप्पणी तक करने में हिचकिचाते हैं। जिस दिन वे खुद ईमानदार हो सकेंगे सारी हिचक समाप्त हो जाएगी। रजनीश मामा जी और मेरे पिताजी डा.रूपेश श्रीवास्तव भड़ास का संचालन जिस तरह कर रहे हैं यकीन मानिये कि ये दोनो हाथों में जलते सुलगते अंगारे लेकर चलने जैसा है कि मुस्कराते रहो और दूसरों को अपना बना कर खुशियां बांटते चलो।
जय जय भड़ास
दायित्व किसका जिम्मेदार कोन ? (अतीत के पन्ने से.....)
२००५ की बात है मैं उस समय कोल्हापुर में था, छुट्टी मिली सो घर के लिए चला। ट्रेन पुणे से निकली तो अजीब सी प्रशन्नता से मन पुलकित हो गया, अपने लोगों को देख कर। हमारे बगल में एक बुजुर्ग महिला अपनी बहु और अपने पोते के साथ थी, एक ही मातृभाषा होने के कारण परिचय हो गया और सफर अपनापन के साथ अपने गति से कटने लगी। ट्रेन कब इलाहाबाद पहुंचा पता ही नही चला। यहाँ ट्रेन को कुछ देर रुकना था सो रुकी भी, हमारी बात-चीत जारी रही की दादी माँ का पोता जलेबी के लिए रोने लगा। बहरहाल मैने उनलोगों से कहा की आप रहिये मैं ले आता हूँ क्यूंकि ट्रेन के चलने का भी समय हुआ जा रहा था। मैं जब वापस आया तो मेरे कम्पार्टमेंट का माहोल ही बदला हुआ था। दादी माँ के कान खून से लथपथ थे और गले में गहरे चोट के निशान। मेरी समझ में कुछ नही आया की अभी तो सही था अभी क्या हो गया। खैर पता चला की किसी ने दादी माँ के कान और गले से उनके जेवर खींच लिए। लोगों की अपार भीड़ तमाशबीन बनी हुई। तभी ट्रेन ने सीटी मारी और चल पड़ी मैने जंजीर खींचा और ट्रेन के रुकने के बाद वहाँ मौजूद जी आर पी के सिपाही से कहा की ये दुर्घटना है और इसका ऍफ़ आर आई आप रजिस्टर करो। जवान महोदय का जवाब की ट्रेन अभी यहाँ से चली नही है सो मेरी ड्यूटी शुरू नही हुई है सो मैं कुछ नही कर सकता। मैने अपने कोच कंडक्टर को पकड़ा और सारी बातें बता कर ऍफ़ आर आई दर्ज करने को कहा तो इन साहिबान ने भी मना करते हुए गार्ड महोदय के पास जाने को कहा।
दादी माँ के बारे में बताता चलूँ की इनका पुत्र पुणे में रक्षा में किसी उच्च ओहदे पर था और बहन जी का भाई सहारा परिवार के प्रिंट या टी वी में पत्रकार थे। मैने बहन जी से कहा की आप मेरे साथ चलें और हम केस दर्ज करवा सकें वह चलने को तैयार हो गयी। मुझे उनके हिम्मत से बल मिला और हम गार्ड महोदय के पास पहुँचे । सारी बात सुनने के बाद सिवाय इसके कि हमारे गार्ड जी केस दर्ज करते उन्होंने कहा की आप प्लेटफोर्म एक पर जा कर जी आर पी ऑफिस में केस दर्ज करवा दें तब तक मैं ट्रेन को रोकूंगा। उफ्फ्फ़ इलाहबाद का स्टेशन प्लेटफोर्म बदलने में ही मेरी हालत ख़राब हो गयी मगर बहन जी की हिम्मत देख कर हम पहुंच गए जगह पर। आश्चर्य जी आर पी ऑफिस सारी बात सुनने के बाद कहते हैं की ये केस आपको ट्रेन में ही दर्ज कराना होगा यहाँ हम नही कर सकते। मन गुस्से और खिन्नता से भर गया मैने बहन जी से कहा की बेहतर है की हम एक बार स्टेशन अधीक्षक से मिल लें क्यूंकि ट्रेन के भी चले जाने की फिकर थी मगर हमारी बहाना ने दृढ़ता दिखाते हुए कहा की अब तो रपट लिखा के ही जायेंगे। हम पहुँचे स्टेशन अधीक्षक के पास और वस्तुस्थिति बताया तब तक में हमारे बहन जी के सब्र का बांध टूट गया और अधीक्षक महोदय को जिम्मेदारी और जवाबदेही का ऐसा पाठ पढाया की बेचारे बगले झांकते नजर आ रहे थे। बहरहाल स्टेशन अधीक्षक के कारण हमारी रपट लिख ली गए. मेरा नाम गवाह में था जो शायद आज भी इलाहाबाद के इस जी आर पी ऑफिस के फाइल में दर्ज होगा.
जब हम वापस आये तो ट्रेन लगी हुई थी और पहले से ही लेट चल रही दो घंटे और लेट हो चुकी थी। दिल में एक सुकून लिए जब अपने प्लेटफोर्म पर पहुंचा तो लोगो की गालियाँ ने स्वागत किया. बड़े आये समाज सेवा करने वाले साले ने दो घंटे ट्रेन यूँ ही लेट करवा दिया। आपको ये कहानी लगी हो परन्तु इस कहानी की सीख मुझे नहीं पता चल पायी। हमारे लिए कोच कंडक्टर, जी आर पी के सिपाही,गार्ड मगर इनका काम, काम के प्रति जवाबदेही और निष्ठा। जिम्मेदार कोन ये लोग या हम. हम याने की वो हम जो ट्रेन के लेट होने से गालियों की बरसात कर रहे थे क्यूंकि उनके साथ दुर्घटना नहीं हुई थी......
प्रश्न तो है पर अनुत्तरित....
शिक्षा एक बहस
हरी अनंत हरी कथा अनंता.................. (अतीत के पन्ने से....)
कहने सुनने की बहुत सारी बातें मगर अनुभव ऐसा की मानो सच में वर्षों बाद मिलन। दादा ने जो वर्णन हमरे डॉक्टर साब का किया था उसी के अनुरूप मैं भी जेहन में एक परछाई बना कर चला था। मगर अपने डॉक्टर साब तो बड़े छुपे रुस्तम निकले और मेरी सारी अवधारणा के विपरीत एक अल्ल्हड़, मस्त ,बिंदास मगर इंसानियत और मानवता के संवेदना से लबरेज युवा उर्जावान और भाड़ी के भडासी हमारे डॉक्टर रुपेश। पनवेल से घर तक और वापस घर से वाशी तक एक ऐसा युवा तुर्क मेरे साथ था जिसके बारे में आज के समाज में "कल्पना" नाम दिया जा सकता है।
घर पहुँचने पर सर्वप्रथम माता जी के दर्शन और फिर हमारी चर्चा का दौर। मैं मंत्रमुग्ध सा डॉक्टर साहब को सुनता जा रहा था और हमारी चर्चा जो की अविराम है चलती रहेगी। इसी बीच भडास माता हमारी मुनव्वर आपा, अन्नपूर्ण बनकर आयी और चली भी गयी.उनके जाने का कचोट मुझे रहा. बहरहाल हमने साथ भोजन किया और चर्चा "भडास" चालू रहा. मेरे प्रति भाई रुपेश का आत्मविश्वास खुद मेरे कदम डगमगा रहा था मगर भाई की उर्जा ने मुझे भी उर्जा का श्रोत दिया. सच में भडास की सार्थकता पर हमें विचार करना ही होगा की क्या सिर्फ भडास निकालना और इतिश्री। यक्ष प्रश्न तमाम भडासियों के लिए. परन्तु इस मिलन के दौरान जो मेरा अनुभव है वो मुझे कुछ और भी सोचने को प्रेरित करता है।
ट्रेन में मुझे एक "लैंगिक-विकलांग" मिली या यूँ कहिये की वो अपना कार्य कर रही थी और इसी दौरान मैं उन से रु-ब-रु हुआ। उनको देखते ही एक पलक मुझे हमारी मनीषा जी का ध्यान आया और मैं उनसे मुखातिब हुआ। थोरा सा परिचय और उन्होने बताया की वो मनीषा जी की बहन हैं और उनकी भी अभिरुचि लिखने में है और वो कोशिश भी कर रही है. डॉक्टर साब ने बताया की वो मोहतरमा भी पढी लिखी स्नातक हैं मगर समाज की मार उनके लिए बस ये ही साधन है. वापस लौटने तक या यूँ कहें की अभी भी मेरे जेहन में ये ही घूम रहा है की एक विकलांग को विकलांग आरक्षण, महिला को महिला आरक्षण, दलित को दलित ऐव मेव कुछ ना कुछ सभी को मगर "लैंगिक विकलांग" नाम का अभिशाप के लिए क्या............???????
सच में ये भी तो हमारे समाज का ही एक हिस्सा है, हमारे ही बच्चे हैं तो ये भेद-भाव क्यों। दिल का दर और मानसिक ऊहापोह अपने प्रश्न का जवाब खुद पता नहीं मगर ख्वाहिश इन्हें ससम्मान सम्माज में एक मुकम्मल दर्जा हो। शिक्षित, योग्य,काबिल,लायक तो फिर पर्तिस्पर्धा के पैमाने के खोटेपन का शिकार क्योँ।
प्रश्न है भडास परिवार से जो वाकई में अब बरगद हो गया है। बरगद इसलिए क्योँ की इसी की तरह हमारे भडास के सिर्फ डाल,तना,पत्ती ही नहीं अपितु जड़ें भी उसी हिसाब से जमती चली गयी है की हम आपने सार्थकता को इस वेब के पन्ने से अलग समाज के गलियारे में कब ले जाना शुरू करें की हमारी सार्थकता समाज के उन हरेक पहलू में दिखाई दे।
संग ही हमारा अनुरोध है सलाहकार मंडल के आदरणीय सदस्यौं के साथ साथ सम्पूर्ण भडास परिवार से की अपने व्यक्तिगत राय, विचार, और मशविरा जरूर दें की आगे क्या.............
ध्रतराष्ट्र बने संपादक , दुःशासन हुई पत्रकारिता और सभा में नंगी करी गयी तुम सबकी लैंगिक विकलांग बहनें (अतीत के पन्ने से.....)
अतीत का पन्ना क्या है ????
पता नही आपको सुन कर कैसा लगे मगर हर किसी का अतीत होता है, वो अतीत जो उसका बुनियाद होता है।
भड़ास की भी कुछ बुनियाद है जिसे क्रांती की आवाज कहते हैं,
विचारों की क्रांती......
और विचारों को क्रांती में परिवर्तन करने का संकल्प यानी की भड़ास।
सिर्फ़ नाम नही..... शब्द नही .... आवाज नही बल्की कुछ कर गुजरने की तमन्ना,
हसरत की लोगों के लिए कुछ कर जाएँ.... समाज को कुछ दे जाएँ......... देश के लिए मर जाएँ ......
और ये भावना ही हमें भडासी बनाता है।
ये अतीत है जब हम सब भडासी थे, हम आज भी हैं बस कुछ ने भड़ास को बेच दिया कुछ ने आत्म ह्त्या कर ली और कुछ भाग गए, कुछ भेडचाल में भीड़ के साथ हो लिए मगर भड़ास का कारवां अपने राह पर आगे को बढ़ता गया। कुछ ने नाम बदला कुछ ने नाम के बदले दाम लिए तो कुछ ने भडासी का ही सौदा करना चाहा मगर भड़ास आज भी क्रांति के पथ पर सतत अग्रसर है।
इस अतीत के पन्ने के बहाने आप दर्शन करें कुछ उन भड़ास की जो बाकायदा हम ले आए हैं बनिए को धनिया बो के।
बस एक दर्शन भड़ास का कड़ी के रूप में आपके सामने आता रहेगा......
जय जय भड़ास
एक संस्मरण............... (अतीत के पन्ने से......)
KABEERA KHADA BAZAR MEIN: भगवन को अवतार लेना है ....."हेल्प प्लीज़ "-2
भारत में होते सदा ईश्वर का अवतार।
जाना अगर विदेश तो न होगा सत्कार।।
बुरा न माने तो कहूँ रखिये खुला विचार
रचना तो रोचक लगी हिज्जे करें सुधार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
एक और ठुकने वाले कवि ............. (अतीत के पन्ने से.....)
हमारे भडास का कमाल हमारे दोस्तों का धमाल, भडासी बुजुर्गों का आशीर्वाद कि ससुरे हम भी तुकबंदी करने लगे हैं।
भैये लोग ई हमारा पहिला तुकबंदी है सो जड़ा पढ़ते चलिए। बहुत हो गया कलुआ-कलुआ ससुर के नाती ने बहुत टाइम खोटा किया सो वापस अपुन लोगों कि दुनिया में आ जाओ। जरा एक नजर इधर भी........
हमारी आदरणीय सलाहकार मनीषा दीदी को समर्पित......
जय जय भडास
जय जय भडास
लादेन और तालिबान, पकिस्तान के अस्तित्व पर एक सवालिया निशान ?
मुंबई के "हमसफ़र" ट्रस्ट के लोग होमोसेक्सुल प्रदर्शनकारियों के लिये बांग्लादेशियों की सहायता ले रहे हैं
अरे कमीने इंसान सीधे क्यों नहीं लिखता कि तेरी इच्छा क्या है अगर कोई पुरुष या स्त्री खाना बनाना चाहता है या साड़ी या पतलून पहनना चाहता है तो इस बात पर तो कानूनी रोक नहीं है तो व्यर्थ के प्रदर्शन की क्या आवश्यकता है, अरे षंढ! सीधे लिख पोस्टर में कि तू खुद अपनी गलीज़ इच्छाओं की पूर्ति के लिये इतने नाटक रचा रहा है। तुझे जो करना है या करवाना है कर लेकिन कानूनी मान्यता की आड़ में क्यों भारतीयता की मिट्टी पलीद करना चाहता है। आश्चर्य है कि कोई भी धार्मिक संगठन न हिंदू न मुसलमान इन हरामियों को क्यों नहीं रोकता? क्या इनसे डरते हैं या फिर कोई अलग बात है??? ऐसे हजारों सवाल दिमाग में आ जाते हैं जब भी कोई रंगा पुता बांग्लादेशी बहुरूपिया सामने आकर भाग जाता है।
जय जय भड़ास
जिंदगी
मेरी आकांछा .
ज़िन्दगी से जंग जारी हैबिना किसी शिकवा व शिकायत के
जियें जा रहा हूँ
इस उम्मीद से
की कुछ पद चिह्न छोड़ सकूं
पद चिह्न ज़िन्दगी के साथ संघर्ष का
पद चिह्न आज की हकीकत का
जो कल लोगो को कहानियाँ सुनाये
जो आज बीत रही है
जिससे लोगो की चेतना में बदलाव आए
यह कोई संघर्ष गाथा नही होगी
यह कहानी होगी
एक आम आदमी की ज़िन्दगी की
जिसे उसने जिया ज़द्दोज़हद में ।
प्रशांत भगत
खबरिया चैनल का उठता स्तर.....गिरती पत्रकारिता !!!
न्यूज ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिशन (एनबीए) ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद इंडिया टीवी को दोषी पाया और उस पर एक लाख रुपये जुर्माना लगा दिया। इसके साथ ही इंडिया टीवी को कहा गया कि वो इस आधारहीन और झूठी खबर को प्रसारित करने के लिए चैनल पर माफीनामा भी प्रसारित करे।
न्यूज ब्रॉडकॉस्टिंग एसोसिशन (एनबीए) ने यह पाया कि इंडिया टीवी ने इस खबर में तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया। एनबीए ने इंडिया टीवी को कहा था कि वह 1 लाख रूपये एक महीने के भीतर जमा कर दे और अपने चैनल के टिकर (पट्टी) पर किसी भी दिन रात 8 से 9 के बीच खेद प्रकट करे। यह खेद संदेश कम-से-कम पाँच बार चलाया जाए और संदेशों के बीच 12 मिनट का अन्तराल होना चाहिए। लेकिन इंडिया टीवी ने बजाय इस नियामक संस्था की बात मानने के एक लाख जुर्माना लगाए जाने के विरोध में आज न्यूज संगठन से ब्राडकास्टिंग से अपनी सदस्यता वापस ले ली। संगठन को लिखे पत्र में इंडिया टीवी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रोहित बंसल ने कहा कि हम एनबीए के पक्षपातपूर्ण रवैये के खिलाफ कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए अपनी सदस्यता वापस लेते हैं। उल्लेखनीय है कि सभी खबरिया चैनलों के प्रतिनिधियों द्वारा आपसी सहमति से नेशनल ब्राडकास्टिंग एसोसिएशन (एनबीए) के गठन के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा को इसका प्रमुख बनाया गया था। इंडिया टीवी भी इसका सदस्य बना था।
एनबीए की स्थापना चैनलों द्वारा स्व-नियमन के उद्देश्य से अक्टूबर, 2008 में की गई थी। वर्तमान में एनबीए के सदस्यों में 14 ब्रॉडकास्टर हैं। वैसे न्यूज़ और करंट अफेयर्स से जुड़े देश भर के 31 चैनल इसके सदस्य हैं। इसके निदेशकों में टीवी टुडे के जी।कृष्णन, आईबीएन 18 ब्रॉडकास्ट लिमिटेड के समीर मानचंदा, एनडीटीवी के के.वी.एल. नारायण राव, टाईम्स ग्लोबल के चिंतामणि राव, जी न्यूज़ लिमिटेड के वरुण दास, स्टार न्यूज़ के शाजी ज़मा और इनडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस के रोहित बंसल हैं।
इंडिया टीवी को उसकी सनसनीखेज पत्रकारिता महंगी पड़ती जा रही है। एक और इंडिया टीवी अपनी दो दो कौड़ी की खबरों से अपनी टीआरपी बढ़ाने का खेल खेल रहा है, दूसरी ओर माफी भी मांग रहा है और गुर्रा भी रहा है। खबर है कि इंडिया टीवी ने दाउदी बोहरा धर्म समुदाय के सबसे बड़े धर्म गुरू को तालिबानी आतंकवादी दिखाने के बाद लिखित में माफी भी मांग ली है। इंडिया टीवी ने एक और गुल खिलाया कि जिस वीडियों में वह चार जेहादियों को तालिबानी कह कर बार बार दिखा रहा था, वे तालिबानी नहीं बल्कि जम्मू के स्थानीय आतंकवादी थे, और वे आंतकवादी चाहते थे कि उनको टीवी चैनल एक खूंख्वार आतंकवादी के रूप में पेश करे ताकि वे अपने आकाओं को बता सकें कि वे भी भारत के बड़े आतंकावदियों में गिने जाते हैं। इस तरह ऐसा लगता है कि भारतीय खबरिया चैनलों के लिए आतंकवादियों को प्रचार देने का ही काम रह गया है।
ऐसा ही एक और मामला सामने आया है कि काले कपडे पहनकर दहाड़ दहाड़ कर शनि के नाम से लोगों को डराने वाले दाती महाराज ने जब इंडिया टीवी से रिश्ता तोड़ लिया और जब दाती महाराज न्यूज 24 चैनल अपनी दुकान चलाने लगे, इसके बाद भी इंडिया टीवी पर दाती महाराज कई दिनों तक लाईव दिखते रहे। इंडिया टीवी दाती महाराज के पुराने एपिसोड को लाईव और नए एपिसोड के रूप में दर्शकों को परोसता रहा। यही हाल इंडिया टीवी की जनता की अदालत का है इस अदालत में बरसो से एक जैसे चेहरे देख देखकर लोग बोर ही नहीं हो चुके हैं बल्कि इसके आने का संगीत शुरु होते ही लोग चैनल बदल लेते हैं।
ऐसा ही एक कारनामा इंडिया टीवी कई बार कर चुका है। गुजरात के एक हार्डवेअर इंजीनियर ने मोबाईल हैकिंग में महारत हासिल कर ली थी, इंडिया टीवी इस इंजीनियर के जरिए कई जाने माने लोगों के फोन हैक करके उनके नंबर से दूसरे लोगों को फोन लगाकर एक चमत्कार की तरह इस खबर को की बार दिखा चुका था। इसमें फिल्म निर्माता महेश भट्ट को इंडिया टीवी के एंकर सुबीर चौधरी के हैक किए गए फोन से फोन किया गया था। यह तो भला हो सुबीर चौधरी का कि वे इस चैनल से चले गए नहीं तो दर्शकों को यह खबर जाने कितनी बार देखना पड़ती।
साभार : - हिन्दी मीडिया
बीमारी हालत में भी शमा दी’ लापता बच्चों सतीश देवाडिगा और रफ़ीउद्दीन के लिए मुंबई आ गयीं....
जय जय भड़ास
अरे बालक!क्या करने का इरादा है?
हा..हा..हा...
वो ये भूल गया कि हम भड़ासी हैं दिल चुरा लेते हैं,आत्मा तक चुराने का साहस रखते हैं जब उसने भड़ास की हत्या कर दी तो हम सब भड़ासियों की समेकित भड़ास प्रसव पीड़ा से शिशु भड़ास का जन्म हुआ,जोकि अधिक शक्तिशाली होने के साथ अधिक भावुक है। भड़ास और भड़ासियों के अतीत से अगर आप कुछ ला रहे हैं तो भड़ास परिवार में जुड़ने वाले नए लोग जान पाएंगे कि भड़ास मात्र एक चूतियों की भीड़ नहीं है बल्कि एक ऐसा मंच है जो कि सामाजिक और राष्ट्रीय के साथ साथ मानवीय सरोकारों पर विचार करते हुए दिशा व दशा का मनन करता है और अधिक बेहतर जीवन के विकल्प तलाशता है; हम सिर्फ़ समस्याओं की तरफ़ उंगली नहीं उठाते बल्कि हल भी खोजते हैं और न सिर्फ़ खोज कर चुप हो जाते हैं बल्कि उसे लागू भी कराने का जतन करते हैं.....
जय जय भड़ास
चलिए निकालिए अपनी अपनी भडास या भर दीजिये हास.....
इसलिए आज यानि रविवार से शनिवार तक मैं बहस के लिए एक विषय आपके सामने रख रहा हूँ। और हाँ आपने जो भी है उसे एक अलग पोस्ट में कहें , शनिवार तक जो भी जो कुछ भी कहना है वो कहें , उसका जो भी निष्कर्ष निकलेगा उसे हम एक सारांश के रूप में एक पोस्ट के रूप में रखेंगे ,इस बहस को समाचार पत्रों के माध्यम से सबके सामने रखना मेरी जिम्मेदारी ...
विषय प्रणाली :- शिक्षा संस्थान हमारे प्रणाली, शिक्षा संस्थान, हमारे शिक्षक, हर्मारे स्कूल आदि सबकुछ। जो भी आपके मन में है, कहें, मैं इस विषय पर अपनी पोस्ट जल्दी ही लिखूंगा
अतीत के पन्ने से सफर की शुरुआत......
भाई लोगों ,
भड़ास का वो सुनहरा दिन और भड़ास की आत्मा जिसने समाज को झकझोरा, एक बुनियाद रखी जल्दी ही आपलोगों के सामने आने वाला है।
बस इन्तजार कीजिये अग्निबाण का और अतीत के आईने का ।
भड़ास की परिकल्पना और सरंचना के साथ भडासी विचार और परिवार।
तो बस कुछ ही दिनों में आपके सामने होगा अतीत से निकला भड़ास।
जय जय भड़ास
प्रिय पाकिस्तान! अगली बार आतंकी भेजो तो जरा उम्र का ध्यान रखना कि सतरह का ही हो...
जय जय भड़ास
कसाब बच्चा है उसे मात्र तीन साल की सजा होगी....
जय जय भड़ास
उल्लू ?
प्यारेलाल (बांकेलाल से)- क्यों क्या हुआ?
बांकेलाल (प्यारेलाल से)- कल मैंने अपनी पत्नी को कश्मीरी सेब लाने को कहा था।
प्यारेलाल (बांकेलाल से)- तो क्या हुआ?
बांकेलाल (प्यारेलाल से)- आज कश्मीर से फोन आया कि उसने सेब खरीद लिए है।
इंसानों की इस बस्ती में
हम भी थे इन्सान यहाँ
इंसानों की इस नगरी में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ
जब बसते ही इन्सान नहीं
तो हम खुद को क्यू इन्सान कहें
क्यूँ प्रेम, जलन और नफ़रत की
पीडा को हम यूँ ही सहें
इसलिए छोड़ दी हमने भी
इंसानों सी हरकत करना
क्या बस जीना ही जीवन है
तो क्या है फिर पल-पल मरना
जब होश नहीं जीवितों को
तो अब मुर्दों को फिर होश कहाँ।
इंसानों की इस बस्ती में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ
इंसानों की इस बस्ती में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ...........
जय भड़ास जय जय भड़ास
किस का दर्द है आप के दिल मे
पर क्या हर भूखे के पेट में अनाज होता है?
wah dr साहब
आप तो कवियो को भी मात देगए
जो सोचते थे की हम ही हम है
उन को आप कुछ मजाक मे ही जस्बात दे गए ,
एक मन कर रहा है रोने का
और एक मन कर रहा है इस बात की गहराई मे जा कर
आग की चादर ओढ़ कर सोने का
आप किस किस का दर्द अपने सीने मे समाते गय
ये उमर तो बीत गई है सिर्फ़ दर्द लेन मे और दर्द लेन मे
...............................आपका पुराना भडासी अमितजैन
पृथ्वी दिवस का मजाक ...
पृथ्वी दिवस भी होली , दिवाली ,दशहरा जैसे त्योहारों की तरह खुशी का दिन और खाने पिने का दिन मान कर मनाया जाने लगा है । इसके उद्देश्य को लोग केवल उसी दिन याद रखते है । बल्कि मै तो कहुगा की घडियाली आंसू बहाते है । हमें इस बात का अंदाजा नही है की कितना बड़ा संकट आने वाला है और जब पानी सर से ऊपर चला जायेगा तो चाहकर भी कुछ नही कर सकते , अतः बुद्धिमानी इसी में है की अभी चेत जाए ।
वैश्विक अतर पर पर्यावरण को बचाने की मुहीम १९७२ के स्टाकहोम सम्मलेन से होती है । इसी सम्मलेन में पृथ्वी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई और हरेक साल ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने पर सहमती व्यक्त की गई । १९८६ के मोंट्रियल सम्मलेन में ग्रीन हाउस गैसों पर चर्चा की गई । १९९२ में ब्राजील के रियो दे जेनेरियो में पहला पृथ्वी सम्मलेन हुआ जिसमे एजेंडा २१ द्वारा कुछ प्रयास किए गए । इसी सम्मलेन के प्रयास से १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल को लागू करने की बात कही गई । इसमे कहा गया की २०१२ तक १९९० में ग्रीन हाउस गैसों का जो स्तर था , उस स्तर पर लाया जायेगा । अमेरिका की बेरुखी के कारण यह प्रोटोकाल कभी सफल नही हो पाया । रूस के हस्ताक्षर के बाद २००५ में जाकर लागू हुआ है । अमेरिका अभी भी इसपर हस्ताक्षर नही किया है । यह रवैया विश्व के सबसे बड़े देश का है , जो अपने आपको सबसे जिम्मेदार और लोकतांत्रिक देश बतलाता है । वह कुल ग्रीन हाउस गैस का २५%अकेले उत्पन्न करता है ।
अगर ऐसा ही रवैया बड़े देशो का रहा तो पृथ्वी को कोई नही बचा सकता । जिस औद्योगिक विकास के नाम पर पृथ्वी को लगातार लुटा जा रहा है , वे सब उस दिन बेकार हो जायेगे जब प्रकृति बदला लेना आरम्भ करेगी ।
गर्मी में लू और राजनीति में लालू
गर्मी में लू और राजनीति में लालू
के चर्चे हर जगह आम हैं
आखिर गर्माहट बनाए रखना और
नाक में दम करना दोनों का काम है
लू लग जाए, तो अच्छे-अच्छों को तोड़ दे
और लालू शुरू हो जाएं, तो सबके भांडे फोड़ दे
लालू जैसा, जनता के करीब कोई नहीं है
सच मानिए तो राजनीति में लालू जैसा गरीब कोई नहीं है
यह उनके चुनाव चिन्ह से ही नजर आता है
सोनिया के पास पंजा, माया के पास हाथी
अडवानी को कमल सुहाता है
और कोई जनता को लूटने साइकिल पर जाता है
लेकिन अपने लालू को 21वीं सदी में भी
लालटेन ही पसंद आता है
दुनिया में हर कोई दौलत पर मंडराता है
और अपने लालू का काम चारे से ही चल जाता है
सोम से बुध से शनि से न राहू से
लालू को चिंता और डर न काहू से
सीएम तो बन गए और बस पीएम बनने की इच्छा है
इस बार इलेक्शन में उनकी कड़ी परीक्षा है
देखते हैं लालू के लालटेन की रोशनी
कहां तक जाएगी
या घांसलेट (मिट्टी के तेल) की कमी से
लालटेन बुझ जाएगी
शिवेश श्रीवास्तव, पत्रकार, लेखक, काटूर्निस्ट
नाज
हर बात को बताने का एक अंदाज्र होता है
जब तक ठोकर न लगे बेवफाई की
हर किसी को अपने प्यार पे नाज्र होता है.........
नाज हमे भी है उन की बेवफा बातो पर
या कहिये उन की इन्ही अदाओ पर