इंसानों की इस बस्ती में

इंसानों की बस्ती में
हम भी थे इन्सान यहाँ
इंसानों की इस नगरी में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ
जब बसते ही इन्सान नहीं
तो हम खुद को क्यू इन्सान कहें
क्यूँ प्रेम, जलन और नफ़रत की
पीडा को हम यूँ ही सहें
इसलिए छोड़ दी हमने भी
इंसानों सी हरकत करना
क्या बस जीना ही जीवन है
तो क्या है फिर पल-पल मरना
जब होश नहीं जीवितों को
तो अब मुर्दों को फिर होश कहाँ।
इंसानों की इस बस्ती में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ
इंसानों की इस बस्ती में
अब बसते हैं इन्सान कहाँ...........
जय भड़ास जय जय भड़ास

2 comments:

  1. भाई भड़ास के मंच पर सभी इंसान ही हैं कोई देवता या राक्षस नहीं है। हमारे भीतर वो सारा मसाला है जो आपको इंसान के अंदर चाहिये, सारा प्रेम,करुणा,आपसी स्नेह....
    जय जय भड़ास

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  2. इंसानों की इस बस्ती में
    अब बसते हैं इन्सान कहाँ

    बहुत अच्छी लगी ये पँक्तियाँ। बधाई। ए मशहूर गजल की पँक्तियाँ हैं कि-

    दिल की बात लबों पर लाकर अबतक हम दुख सहते हैं।
    हमे सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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