चिठ्ठा चर्चा

मेरा दिल कहता है कि मुझसे सभी जबलपुरिया ब्लॉगर अपरिहार्य कारणों से एकाएक नाराज हो गए है खैर कोई बात नही...एक ब्लॉगर की गन्दी हीन भावना और राजनीति/साजिश के चलते मुझे ब्लॉग जगत में दफ़न करने की तैयारी चल रही है कि मै ब्लागिंग बंद कर दूँ ....आगे देख जाएगा .....पर मेरी आवाज तो दबा नही सकते है मात्र मेरी छबि जरुर ख़राब कर रहे है .....कभी मैंने किसी को कुछ ग़लत लिखा नही है ,,,यह सभी अच्छी तरह से जानते है मैंने ब्लागजगत में किसी के ऊपर टीका टिप्पणी नही की है . करीब ढाई वर्षो से मै निस्वार्थ भाव से अपने शहर और सभी सुधिजनो की भावना के अनुरूप कर रहा हूँ और आप सभी का निरंतर स्नेह प्यार मिल रहा है जिसके कारण मै ब्लागिंग जगत में जीवित हूँ और आप सभी से आशा करता हूँ कि भविष्य में आपका स्नेह मुझे लगातार मिलता रहेगा.

शहर के सुधिजनो का स्नेह न मिले
पर आपके प्यार स्नेह का आकाक्षी हूँ
लोग चाहेंगे कुछ और भी अंट शंट
रोक न पाएंगे मेरी कलम की धार को.

आज बसंत पंचमी को मेरे मन में विचार आया क्यो न अपने बाहर के ब्लॉगर भाई बहिनों के ब्लॉग की चिठ्ठा चर्चा कर लूँ . आप सभी को बाँट रहा हूँ


स्वप्नलोक - बसंत पंचमी पर भाई विवेक सिह जी ने शतक पूरा किया बधाई खूब लिखे ....

सीमा गुप्ता जी की पोस्ट "फर्ज निभाने को है"
तन्हाइयों ने फ़िर
बीज तेरी यादो के रोपे
मन के बंजर खलिहानों मे
घावो की पनीरी अंकुरित हुई
..... सीमाजी की रचना में दर्द का एहसास होता है ...देखे "कुछ लम्हे"

प्रमोद रंजन जी "संशयात्मा"
कहते है . निराला की जयंती पर यह प्रश्‍न स्वभाविक है कि आज उन्हें कैसे पढ़ा जाए, उनके साहित्य में मूल रूप से किन मूल्यों की स्थापना दिखती है? बहुत ही विचारणीय मुद्दे की बात उकेरी है ....

हिन्दी काव्य मंच....भाई मनोरिया जी कहते है
फैशन की दुनिया में जबरदस्त कमाल है
अल्पता और लघुता से आया हुआ भूचाल है
आगे आगे देखिये हर काम माइक्रो हो जायेगे जी .......

डाक्टर विजय तिवारी "किसलय" की कलम से - डॉ श्री राम ठाकुर "दादा" का स्मरण आते ही एक सरल और सहज व्यक्तित्व कि छवि मानस पटल पर उभर आती है. मुझे विश्वास है कि उन्हें जानने वाला हर एक शख्स ऐसा ही सोचता होगा . व्यक्तित्व और कृतित्व के मिले जुले प्रतिफल ने ही उन्हें साहित्य के प्रतिष्ठित स्थान तक पहुँचाया है। । भाई तिवारी जी आपने अपनी पोस्ट में श्री राम ठाकुर "दादा" का उल्लेख कर उनकी यादे जेहन में फ़िर से तरोताजा कर दी . दादा श्री राम ठाकुर देश के प्रसिद्द व्यंगकार और कवि थे जिनकी व्यंग्य लेखन का कोई सानी नही है .

तस्लीम का जादू - भाई बताये ये कौन सी पहेली बूझो तो जाने नही बूझे तो विजेताओं को बधाई जरुर दे . .....

दिल की बात" में डाक्टर अनुराग आर्य जी ने कुछ इस तरह से अपने भाव व्यक्त किए
अपने अपने तर्कों से गुजरते हुए ......भाई जी अहंकारी ही सम्मान न पाकर आहत होता है ........

"पत्रकार के सम्मान में जूते की कलाकृति" दादा राज भाटिया जी 'पराया देश' में कहते है ........जूता प्रसिध्ध हो गया है ....इरान में बस जूते का स्मारक बनना और शेष है

चलते चलते इन्हे भी परखे एक लाइना....


गाँव देहात में सरस्वती पूजा .....
चमचो को चरण स्पर्श नेताओँ को वंदन जांच की चिता पर लोकतंत्र का चंदन मकरंद भैय्या कह रहे है यहाँ टपका मारे जी
झूठा सच फोटो लगाओ और फोटो उतारो
मोहन जी का मन तिड़क कर है वाह भाई ऐसा ...क्यो
भावना जी मीठा भात भूल गई क्या मीठा भात खास ही दिन बनता है
देश का क्या होगा हमारे भाई योगेन्द्र जी ऐसा सोच रहे है जैसन चल रहा है वैसन ही चलेगा ....
ये है इंडिया मेरी जान ....सचिन मिश्रा क्या करे आवाम जब नींद की गोली न दे रही हो साथ .....
हमारा रतलाम जहाँ वरिष्ट नागरिको को फेक्चर कराने की पूर्ण व्यवस्था है .......की एक बार तोड़ दो तो दुबारा न आए एक कटाक्ष


चिठ्ठा चर्चा को विराम देते हुए
सभी ब्लॉगर भाई बहिनों को बसंत पंचमी पर्व की हार्दिक शुभकामना

महेन्द्र मिश्र,जबलपुर.

मेरा नया ब्लॉग प्राकर्तिक चिकित्सा पर

बड़े दिनों से देख रहा था की कोई जानकारी नेट पर प्राकर्तिक चिकित्सा के विषय मे हिन्दी मे है की नही ,
पर बड़ी ही मायूसी हाथ लगी /
फ़िर आज डॉ रुपेश मिश्रा जी का E।T.G का लेख पढ़ा , मन मई अत्यन्त गलानी का अहसाह हुआ की DR DESH BANDHU BAJPAI आयुर्वेदिक खोज का किसी भी डॉ को नही पता था / फिर सोचा सायद यही स्थिति प्राकर्तिक चिकित्सा की भी है / मैंने एक छोटा सा प्रयास किया है इस चिकित्सा जानकारी को आप सभी से बाटने का / सहयोग पूर्ण रूप से चाहुगा / इस का लिंक है http://naturalupchar.blogspot.com/

आरोग्य मेले में E.T.G.यानि इलैक्ट्रोत्रिदोषग्राम के विषय में किसी चिकित्सक जानकारी ही नहीं है

मुंबई, देश की आर्थिक राजधानी में आयुष से संबंधित मंत्रालय ने आयुर्वेद(A), योग एवं नेचुरोपैथी(Y), यूनानी(U), सिद्धा(S), होम्योपैथी(H) के विकास के लिये ३० जन. से २ फर. तक आरोग्य मेला लगाया हुआ है। सरकार अपनी नीतियों के तहत इस तरह के विकास कार्यक्रमों पर चाहे वह भाषा के विकास हेतु पुस्तक मेले हों या स्वास्थ्य व आरोग्य जागरूकता के लिए ऐसे आरोग्य मेले हों ,करोड़ों रुपए व्यय करती है। आज मैं इरादा कर के गया था कि वहां जिन वैद्य, चिकित्सकों और हक़ीमों ने मुफ़्त स्वास्थ्य परीक्षण के नाम पर अपनी दुकान सजा रखी है उनकी क्लास लेना है कि आप देह में कफ-पित्त-वात की स्थिति का क्या कागजी प्रमाण दे सकते हैं; इस पर सभी बगलें झांकने लगे और कन्नी काट कर व्यस्तता का ढोंग रचाने लगते थे। यूनानी पंडाल में मौजूद डाक्टर मुनव्वर ए. काजिमी जो कि जे.जे. अस्पताल में किसी विषय पर शोध कर रहे हैं, उनसे जब मैने बात करी तो मैं हतप्रभ रह गया जब उन्होंने यूनानी और आयुर्वेद को साइंस मानने से ही इंकार कर दिया; वे कहते रहे मैं सुनता रहा कि वे किस तरह आधुनिक ऐलोपैथी की पैथोलाजी और उसके पैमानों से किस कदर प्रभावित हैं कि आयुर्वेद और यूनानी पर सवालिया निशान लगाते रहे। जब मैंने ऐसे कई लोगों से बात कर ली तो मैं समझ गया कि E.T.G.यानि इलैक्ट्रोत्रिदोषग्राम के विषय में इन लोगों से चर्चा करना मूर्खता है क्योंकि इन्होंने आंखों पर ऐलोपैथी का चश्मा चढ़ा रखा है और मजबूरी में आयुर्वेद या यूनानी से जुड़े हैं। लेकिन मैं एक प्रण कर चुका हूं कि आयुर्वेद और योग को गौरव दिलाने के लिये पातंजलि योगपीठ वाले बाबा रामदेव की तरह आयुर्वेद और योग के प्रमाणन के लिये ब्लड टैस्ट या ई.सी.जी. का सहारा नहीं लूंगा क्योंकि यह तो एक तरह से दोहरा मापदंड है कि उपचार के लिए आयुर्वेद और योग और पैथोलाजी और लाभ के प्रमाण के लिये ऐलोपैथी की मोहताजी........।

जय जय भड़ास

ब्लाग को हटा देना ब्लागर की सांकेतिक आत्महत्या.....लालागिरी का राक्षस जीने नहीं देता

ब्लाग्स क्यों मर जाते हैं और उस ब्लाग का जन्मदाता ब्लागर बिना ब्लाग के कैसे जीवित रहता होगा ये कई बार सोचा क्योंकि मैंने अपने ब्लाग जीवन में कई बहुत बेहतरीन लोगों को ब्लाग बना कर लिखते देखा है। मुझे कभी नहीं भूलती कई बातें जो कि मेरे ही नहीं बल्कि अपने ब्लाग बेहया के द्वारा सभी के प्रिय बन गये थे हरदिल अजीज श्री जे.पी.नारायण; कई बातें जैसे ..."खबर खबर खबराते बंदर कूद पड़े लंका के अंदर" या फिर "खबर सुनाते संता बंता हरि अनंत हरिकथा अनंता"........। इसी तरह "हमारा देश तुम्हारा देश" नाम से ब्लाग बनाया हमारे प्रिय और एक जमाने में पंखों वाली भड़ास के मुख्य संरक्षक(ये बात दीगर है कि ब्लागिंग में संरक्षक,आरक्षक,परिरक्षक जैसे पदों का कोई महत्त्व नहीं रहता ये मात्र माडरेटर द्वारा दिया लालीपाप होता है जिसे लेखक किस्म के लोग पाकर बहुत खुश रहते हैं) श्री हरे प्रकाश उपाध्याय, जिनकी कविता "बुराई के पक्ष में" अब तक हम सबको याद है। ऐसे ही न जाने कितने ब्लाग और ब्लागर पैदा होते हैं और बस चुपचाप मर जाते हैं सायबर संसार में। वजह है एक मात्र कि जब एक लेखक या पत्रकार ब्लाग के क्षेत्र में विचारों की जुताई-बोवाई करने लगता है उसे पता चल जाता है कि ये तो मेरा ही खेत है मैं यहां जो चाहे बो सकता हूं कोई रोक-टोक नहीं है तो बेचारा कभी तुलसी का पौधा रोपता है कभी पीपल और बरगद लगाता है लेकिन फिर एक दिन जब बाजार के राक्षस यानि वणिक लालाजी को ये पता चलता है कि उसका कर्मचारी ब्लागिंग करके स्वतंत्र विचारों को अभिव्यक्त कर रहा है तो राक्षस को लगता है कि कहीं ये अपनी पीड़ाएं न बताने लगे और शोषण की पोल न खोलने लगे........ बस इसी के चलते बाध्य कर दिया जाता है कलम को और इस कदर सता लिया जाता है कि बेचारा ब्लागर अपनी पारिवारिक-सामाजिक मजबूरियों और रोजीरोटी की समस्या के चलते बलात ही ब्लागिंग से मन मार कर हट जाता है और अपने ब्लाग को डिलीट करके एक सांकेतिक आत्महत्या कर लेता है जो कि शायद उसके स्वतंत्र जीवन का प्रतीक रहा होगा। ऐसे ही अगर ये बाजार का राक्षस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बलि लेता रहेगा तो फिर हो चुकी सत्य की अभिव्यक्ति क्योंकि लाला गर्दन पर लात रखे जो खड़ा रहता है।
जय जय भड़ास

मुंबई का सच !!!!!!!

जब अक्खा दुनिया सोती है तो मुंबई जागता है, ऐसा मुंबई वाले कहते हैं । मुंबई से जो बाहर रहते हैं वो इसे सुनते हैं और मानते हैं, मगर इनके जागने का क्या कारण है...... इनका मायानगरी होना, मायानगरी की चमक दमक, ग्लेमर को लुभाती रात या फ़िर कुछ और
दुनिया सोये या जगे, माया का पता लग सके.....
मायानगरी की माया तो ट्रेन है



मुंबई के स्टेशन बन्दों की दरगाह


लाइफलाइन यानी मुंबईरेल और स्टेशन यानी पल पल का जीवन

मुंबई का सच, रात को जगते ये माली कि मुंबई को दिन में खुशबू दे सकें।
ये एक सच उनके लिए जो मुंबई कि माया में जा के खो जाना चाहते हैं मगर हकीकत से अनजान। क्या इन तस्वीरों को हम अपने जीवन से आत्मसात कर सकते हैं ? क्या सरकार, प्रशासन के साथ आम जन के कर्त्तव्य की सीमा रेखा से परे हैं ?विचार विचार और सिर्फ विचार नहीं मित्र कार्य की दरकार है और ये मुंबई की कहानी नहीं हमारे हिन्दुस्तान की जुबान है. विकसित भारत, शक्तिशाली भारत, अणु और परमाणु वाला भारत मगर जिसकी रीढ़ की हड्डी ये तस्वीरें हैं. हमारे देश की हमारी तस्वीर।

लाइलाज ब्लोगेरिया की दवा की खोज

ब्लोगेरिया से बचने की दवा की खोज,सब ब्लॉगर मे जश्न का माहोल

सारा देश ब्लोगेरिया की चपेट में है यह रोग मानसिक हलचल से शुरु होता हुआ मोहल्ला ,भड़ास ब्लॉग,फुरसतिया जी को अपनी चपेट में ले चुका है यही नही ,अब इसकी पकड़ में न केवल बढे ब्लॉगर है बल्कि हम जैसे छोटे ब्लागरों को भी ब्लोगेरिया अपनी चपेट में ले चुका है !इस भयानक बीमारी से निपटने के लिए हिन्दुस्तान चिटठा सरकार ने एक टीम बनाई थी जिसने इस भयानक बीमारी से निपटने की लिए एक दवाई बनाई है !!कितनी कारगार है यह दवाई देखने की लिए क्लीक करें !!!और बताइए की इस टीम का यह प्रयाश आपको कैसा लगा!!

ब्लोगेरिया से बचने की दवा की खोज,सब ब्लॉगर मे जश्न का माहोल

आज बहुत खुश हु ,४ देसों के राजाओ की बात भी बताउगा......... हसने वाले पर १०० rs जुरमाना किया जायगा

एक बार अटलबिहारी,
मुशर्रफ़,
मल्लिका शेरावत और
मार्गरेट थेचर,
एक साथ ट्रेन मे सफ़र कर रहे थे।
. ट्रेन एक सुरंग के अन्दर से गुजरी,
घना अन्धेरा छा गया।
अटल को पता नही क्या सूझी,
उसने अपने हाथ को चूमकर एक जोरदार आवाज निकाली
और एक जोरदार झापड़ मुशर्रफ़ के रसीद कर दिया।
सभी ने झापड़ की आवाज को सुना।
ट्रेन जब सुरंग से बाहर निकली,
सबने देखा,
मुशर्रफ़ अपने गाल को सहला रहा था,
सभी ने अलग अलग सोचा:
मुशर्रफ़ सोच रहा था,
अटल ने मल्लिका को किस किया होगा,
गलती से झापड़ मुझे पड़ गया।
मल्लिका सोच रही थी,
हो सकता है मुशर्रफ़ ने मेरे को किस
करने के चक्कर मे मार्गरेट थैचर को किस कर दिया हो
इसलिए पिटा।
मार्गरेट सोच रही थी,
ये मुशर्रफ़ भी ना,
गलत जगह हाथ डाल देता है,
मुझे किस करता तो,
कम से कम,
झापड़ तो ना पड़ता ।
अटल सोच रहा था :
अबकि बार सुरंग आएगी तो फिर से करूंगा।

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piles का इलाज अब सम्भव है

एक बार, एक प्रेमी-प्रेमिका एक साथ यात्रा कर रहे थे,
नीचे वाली सीट पर बैठकर प्रेम की बाते कर रहे थे।
प्रेमिका ने प्रेमी से बोला,
“मेरे को हाथ मे दर्द है।”
प्रेमी ने हाथ को चूमकर बोला,
अब ठीक हो जाएगा।
फिर थोड़ी देर मे प्रेमिका ने दोबारा बोली,
“मेरे गाल मे दर्द है।”
प्रेमी ने गाल को चूमकर, कहा “अब ठीक हो जाएगा”।
इतनी देर मे ऊपर वाली सीट से एक बुड्डा बोला :

“बेटा, पाइल्स(बावासीर) का भी इलाज करते हो क्या?”

मेरा नया नाम......................

आज मेरा नया नामकरण संस्कार मेरी बहन मनीषा ने किया है ,

अमित जोकपीडिया

किरपया भविष्य मे मुझे इसी नाम से जाना जाय

................................................signature अमित

भड़ास को जनता की आस से जोड़ा जाय....

पिछले कुछ महीनों से भड़ास पर अजीब सा माहौल चल रहा था। ये दौर था नक्कालों के चेहरे से नकाब उतरने के बाद होने वाले तमाशे का। पोक्केट के पिछले जेब में कई बैंकों का क्रेडिट कार्ड रखने की हसरत पलने वाले नाकारा लोगों से जब असली भडासियों की भड़ास नही झेली गई तो उन्होंने भाई लोगों की सदस्यता समाप्त कर दी। अच्छा हुआ जो ऐसे लोगों से पिंड छुटा। औरों की तो नही जानता लेकिन मैं बहुत खुस हुआ जब मेरे भाईसाहेब और रास्ता दिखने वाले गुरूजी जी की सदस्यता समाप्त हुई। क्यूंकि - कह कबीर कैसे निभे केर बेर को संग। इनको ये नही पता है की उन्होंने कितना महान काम किया है । आज भड़ास का पता देखकर अछ्च्छा लगा की चलो अब कुछ ऐसा हो गया जो नकलचियों को जरुर खटकेगा। भैय्या अपनी तो सुकून की नींद होने वाली है ..लेकिन बस आज रात तक..क्यूंकि हमें अपनी ऑंखें खुली रखनी है उनके लिए जिनकी आँखों पर परदा पड़ चुका है। हमें जागना है उनके लिए जिन्हें नशा देकर सोने की आदत डाली जा रही है। हमें सचेत रहना है , उनके लिए जिन्हें बात-बात पर बरगलाया जा रहा है। हमें आवाज बनानी है उनकी जिनकी आवाज को हमेशा उन्सुना कर दिया जाता है। जाहिर सी बात ये ऐसे लोग हैं जो हमारे देश की धड़कन हैं। वे किसान हैं , गरीब हैं, बेबुस और लाचार हैं। हम भड़ास को इनके नजदीक ले जायेंगे और चाहेंगे की ये भड़ास भारत की भड़ास बने। मैं अपील करता हूँ सभी ब्लॉग के पाठकों से , ब्लोगरों से की वे इस भड़ास को आम जनता की आस से जोडें तभी हमारा उद्देश्य कुछ हद पुरा होगा। ईमानदारी और सच्चाई से किया गया हर प्रयत्न अपनी मंजिल तक जरुर पहुचता है ऐसा मेरा विश्वास है....
अंत में रजनीश भाई को ह्रदय से साधुवाद देता हूँ ..भड़ास को भड़ास बनाने में।
जय भड़ास जय जय भड़ास

मेरी पहली पोस्ट.....

ये इस चिट्ठे पर मेरी पहली पोस्ट है, और खुशी इस बात की है की आज भड़ास में भी एक नयी भडास निकल कर सामने आयी है, वैसे भी क्या फर्क पड़ता है , ये तो तय है की जितना बकवास मैं अपने अन्य ब्लॉग पर लिखता हूँ चाहकर भी उससे अलग इस पर थोड़े ही लिखूंगा, अजी आदत जो हो गयी है , खैर गोली मारिये मेरी आदतों को...

दरअसल आज समस्या ये है की, मेरे छोटे से पुत्र ने जिसने की आजकल पिक्चर देखने का शौक बना लिया है, आते ही मुझे हीरो बनने पर तुल जाता है, कभी सिंग बनाता है तो कभी किंग। मैं उसे अफ़सोस के साथ कहता हूँ की अबे हीरो तो मुझे तू बना देता है मेरी हीरोइन के बारे में कुछ सोचता करता नहीं है, उसका जवाब होता है पापा वो मेरी टेंसन नहीं है। मैं तो सिर्फ़ ये चाहता हूँ की आप हीरो की तरह लगें। मैने शुक्र मनाया की उसने दोस्ताना नहीं देखी....
मगर गजनी देख ली , अजी देख क्या ली, गौर से देख ली, और आमिर के सारे प्लेट्स, पट्टियां, और शौकर गिन कर आ गया, आपने आदत के मुताबिक मुझे gajnई बनाने पर तुल भी गया।
अब ये तो मेरी शराफत और पुत्र मोह ही था की बाल कटाने से लेकर , सर पर बाई पास बनवाने से लेकर अंतडियां दिखाने के तक के सारे काम मैंने कर लिए, बीवी को आसिम भी मान लिया, अलबता परेशानी तो ये हो गयी है की अब मुझे वो दुश्मन नहीं मिल रहा जो मेरी हीरोइन , यानि श्रीमती जी को मार सके, अजी मार क्या, टक्कर भी मार sake और मेरा गजनी बन सके।
अब इस बौडी को लिए घूम रहा हूँ, जब तक पुत्र अगली पिक्चर न देख ले, वैसे चांदनी चौक तू चाईना, का रिस्क मैंने नहीं लिया है, वरना चीन की दीवारों पर न दौड़ना पड़े.

भड़ास का नया यु आर एल, अब भड़ास का पता लिखना आसान।

www.bharhaas.blogspot.com के साथ www.bhadas.tk अब अपने भड़ास का आसान पता है।
दोस्तों, भड़ास अपनी आत्मा और चिंतन के साथ नए पते के साथ सामने आया, हमने नए भड़ास में विचारों के माध्यम से आम लोगों की आत्मा को जोड़ने का प्रयास किया। जहन पंखे वाले भड़ास लाला जी की दुकानमें तेल साबुन की तरह लेखकों की भावना और सम्मान बेचने की जगह बनता जा रहा है वहीँ विचारों की आजादी और स्वतन्त्रता के साथ सबको अपनी बात बिना किसी हस्तक्षेप के रखने के साथ उस पर विचार कर सम्मिलित प्रयास का सार्थक मंच बनने की हमारी कोशिश जारी है।
पंखे वाले भड़ास जो लोगों के विचार का बलात्कार कर bhadas4media और pradhanjii.com नामक दुकान खोलने की जुगत के साथ भडासियों का भरपूर उपयोग कर रहा है ने ही विचार की क्रांति के इस नये भड़ास को जन्म दिया जिसने भड़ास को जिया और मूर्त रूप दिया वो भड़ास की आत्मा के साथ पंखे को छोर धरातल पर आ गए।
हमने भड़ास के आसान यु आर एल आपके सामने रखे हैं जिससे आप सीधे भड़ास के पन्ने पर जा सकते हैं।
जय जय भड़ास

आशिकी की इबादत में यार की ही यादे होती है

यूँ बेवजह किसी का दिल दुखाया नही करते है
उन्हें सताया नही करते जो अपने करीबी होते है.

आशिकी की इबादत में यार की ही यादे होती है
कितना भी चाहे हो गम से घबराया नही करते है.

प्यार एक से होता है जनाब प्यार बार बार नही
चेहरे पर हो हँसी तो नजरे जरुर दौडाया करते है.

मेरी मोहब्बत के सामने यूँ ही चाँदनी शर्मा रही है
बेपनाह मोहब्बत के सामने न चिराग जलाओ यारो

मेरी मोहब्बत के सामने चाँद की रोशनी फीकी है
इस रोशनी के आगे मुझे चिराग की जरुरत नही है.

शादी से पहले हनिमून

बॉस - अरे सुमित !
फिर 5 दिन की छुट्टी ?
पिछले 1 साल में तुमने न जाने कितनी बार छुट्टियां ली हैं।
कभी सगाई ,
कभी हनिमून ,
बच्चे की बीमारी ,
कभी नामकरण ...
अब क्या है ?
राहुल - जी कल मेरी शादी है। ...........
http://wwwdarddilka।blogspot।com/ इस पर भी नजर रखना

आजकल प्रेम का मतलब सेक्स तक ही क्यों सीमित है ?

अगर किसी के पास कोई जवाब है तो बताओ

आयुर्वेदज्ञ / आयुर्वेद के चिकित्सक / आयुष चिकित्सक स्वयम नहीं चाह्ते कि आयुर्वेद में कुछ नया हो


आयुर्वेद के क्षेत्र में गधे पंजीरी खा रहे हैं ये बात सत्य है और ये बात सिद्ध हो रही है आदरणीय डा.देशबंधु बाजपेयी के इस कथन से जो कि उनके ब्लाग पर चुभ रहा है कांटे की तरह आयुर्वेद के छद्मनेताओं को........

इसे पढ करके चौंकियेगा नहीं, सही बात और सत्य वचन यही हैं कि आयुर्वेद के नेता, आयुर्वेद के धुरन्धर विद्वान , आयुर्वेद के कर्ताधर्ता, आयुर्वेद के धाकड़ और जड़ीले भाई लोग, बिल्कुल नहीं चाहते कि कोई नया आविष्कार आयुर्वेद जैसे विज्ञान के लिये किया जाय । Electro Tridosha Graphy, ETG जैसी तकनीक को सामन्य जन और आप लोग भले ही महान आविष्कार बता रहे है , इन आयुर्वेद के नेताओं को यह सब "कूड़ा" नजर आ रहा है, जिसका मूल्य "दो कौड़ी" भी नही है और यह तकनीक "कूड़े कचरे के डिब्बे मे फेकने लायक" है । और तो और यह कोई वैज्ञानिक तकनीक भी नहीं है तथा इसका कोई वैज्ञानिक महत्व भी नहीं है और इससे विज्ञान जगत को कोई फायदा भी नहीं होने वाला ।

गुरुदेव आप की जीवन शैली से प्रेरणा मिलती है संघर्ष को सतत जारी रखने की...
जय जय भड़ास

नारी, नग्नता और हमारा समाज

संवादघर ( www.samwaadghar.blogspot.com) में नारी की दैहिक स्वतंत्रता व सामाजिक उपयोगिता पर जो बहस चल रही है वह रोचक तो है हीबहुत महत्वपूर्ण भी है । एक ऐसा एंगिल जिससे अभी तक किसी ने इस विषय पर बात नहीं की हैमैं सुधी पाठकों के सम्मुख रख रहा हूं !  बहस को और उलझाने के लिये नहीं बल्कि सुलझाने में मदद हो सके इसलिये !


 

नारी देह के डि-सैक्सुअलाइज़ेशन (de-sexualization) की दो स्थिति हो सकती हैं ।  पहली स्थिति है - जहरीला फल चखने से पहले वाले आदम और हव्वा की -जो यौन भावना से पूर्णतः अपरिचित थे और शिशुओं की सी पवित्रता से ईडन गार्डन में रहते थे।  ऐसा एक ही स्थिति में संभव है - जो भी शिशु इस दुनिया में आये  उसे ऐसे लोक में छोड़ दिया जाये जो ईडन गार्डन के ही समकक्ष हो । वहां यौनभावना का नामो-निशां भी न हो ।  "धीरे धीरे इस दुनिया से भी यौनभावना को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाना है" - यह भी लक्ष्य हमें अपने सामने रखना होगा ।



 यदि यह संभव नहीं है या  हम इसके लिये तैयार नहीं हैं तो दूसरी स्थिति ये हो सकती है कि हम न्यूडिस्ट समाज की ओर बढ़ें और ठीक वैसे ही रहें जैसे पशु पक्षी रहते हैं ।   सुना हैकुछ देशों में - जहां न्यूडिस्ट समाज के निर्माण के प्रयोग चल रहे हैंवहां लोगों का अनुभव यही है कि जब सब पूर्ण निर्वस्त्र होकर घूमते रहते हैं तो एक दूसरे को देख कर उनमें यौन भावना पनपती ही नहीं ।  "सेक्स नग्नता में नहींअपितु कपड़ों में है" - यही अनुभव वहां आया है ।  इस अर्थ में वे पशु-पक्षियों की सेक्स प्रणाली के अत्यंत निकट पहुंच गये हैं ।   प्रकृति की कालगणना के अनुसारमादा पशु-पक्षी जब संतानोत्पत्ति के लिये शारीरिक रूप से तैयार होती हैं तो यौनक्रिया हेतु नर पशु का आह्वान करती हैं और गर्भाधान हो जाने के पश्चात वे यौनक्रिया की ओर झांकती भी नहीं । पूर्णतः डि-सैक्सुअलाइज़ेशन की स्थिति वहां पाई जाती है ।  पशु पक्षी जगत में मादा का कोई शोषण नहीं होताकोई बलात्कार का भी जिक्र सुनने में नहीं आता । मादा या पुरुष के लिये विवाह करने का या केवल एक से ही यौन संबंध रखने का भी कोई विधान नहीं है।  उनकी ज़िंदगी मज़े से चल रही है ।  ये बात दूसरी है कि पशु - पक्षी समाज आज से दस बीस हज़ार साल पहले जिस अवस्था में रहा होगा आज भी वहीं का वहीं है ।  कोई विकास नहींकोइ गतिशीलता नहीं -भविष्य को लेकर कोई चिंतन भी नहीं ।



 हमारे समाज के संदर्भ में देखें तो कुछ प्राचीन विचारकोंसमाजशास्त्रियों का मत है कि यौनभावना का केवल एक उपयोग है और वह है - 'संतानोत्पत्ति। उनका कहना है कि प्रकृति ने सेक्स-क्रिया  में आनन्द की अनुभूति केवल इसलिये जोड़ी है कि जिससे  काम के वशीभूत नर-नारी  एक दूसरे के संसर्ग में आते रहें और सृष्टि आगे चलती चली जाये ।  विशेषकर स्त्री को मां बनने के मार्ग में जिस कष्टकर अनुभव से गुज़रना पड़ता हैउसे देखते हुए प्रकृति को यह बहुत आवश्यक लगा कि यौनक्रिया अत्यंत आनंदपूर्ण हो जिसके लालच में स्त्री भी फंस जाये ।  एक कष्टकर प्रक्रिया से बच्चे को जन्म देने के बाद मां अपने बच्चे से कहीं विरक्ति अनुभव न करने लगे इसके लिये प्रकृति ने पुनः व्यवस्था की -बच्चे को अपना दूध पिलाना मां के लिये ऐसा सुख बना दिया कि मां अपने सब शारीरिक कष्ट भूल जाये । विचारकों का मानना है कि मां की विरक्ति के चलते बच्चा कहीं भूखा न रह जायेइसी लिये प्रकृति ने ये इंतज़ाम किया है ।


 

 सच तो ये है कि सृष्टि को आगे बढ़ाये रखने के लिये जो-जो भी क्रियायें आवश्यक हैं उन सभी में प्रकृति ने आनन्द का तत्व जोड़ दिया है।  भूख लगने पर शरीर को कष्ट की अनुभूति होने लगती है व भोजन करने पर हमारी जिह्वा को व पेट को सुख मिलता है।  अगर भूख कष्टकर न होती तो क्या कोई प्राणी काम-धाम किया करता ! क्या शेर कभी अपनी मांद से बाहर निकलताक्या कोई पुरुष घर-बार छोड़ कर नौकरी करने दूसरे शहर जाता ?



पर लगता है कि हमें न तो ईडन गार्डन की पवित्रता चाहिये और न ही पशु-पक्षियों के जैसा न्यूडिस्ट समाज का आदर्श ही हमें रुचिकर है ।  कुछ लोगों की इच्छा एक ऐसा समाज बनाने की है जिसमे यौन संबंध को एक कप चाय से अधिक महत्व न दिया जाये । जब भीजहां पर भीजिससे भी यौन संबंध बनाने की इच्छा होयह करने की हमें पूर्ण स्वतंत्रता होसमाज उसमे कोई रोक-टोकअड़ंगेबाजी न करे ।  यदि ऐसा है तो हमें यह जानना लाभदायक होगा कि ये सारी रोक-टोकअड़ंगे बाजी नारी के हितों को ध्यान में रख कर ही लगाई गई हैं ।  आइये देखें कैसे ?



 पहली बात तो हमें यह समझना चाहिये कि समाज को किसी व्यक्ति के यौन संबंध में आपत्ति नहीं हैनिर्बाध यौन संबंध में आपत्ति है और इसके पीछे वैध कारण हैं !  हमारे समाजशास्त्रियों ने दीर्घ कालीन अनुभव के बाद ये व्यवस्था दी कि यौन संबंध हर मानव की जैविक आवश्यकता है अतः हर स्त्री - पुरुष को अनुकूल आयु होने पर यौन संसर्ग का अवसर मिलना चाहिये ।    चूंकि सेक्स का स्वाभाविक परिणाम संतानोत्पत्ति हैइसलिये दूसरी महत्वपूर्ण व्यवस्था यह की गयी कि संतान के लालन पालन का उत्तरदायित्व अकेली मां का न होकर माता - पिता का संयुक्त रूप से हो । यह व्यवस्था केवल मानव समाज में ही है ।  बच्चे का लालन पालन करनाउसे पढ़ाना लिखानायोग्य बनाना क्योंकि बहुत बड़ी और दीर्घकालिक जिम्मेदारी है जिसमें माता और पिता को मिल जुल कर अपनी अपनी भूमिका का निर्वाह करना होता हैइसलिये विवाह संस्था का प्रादुर्भाव हुआ ताकि स्त्री पुरुष के संबंध को स्थायित्व मिल सकेसमाज उनके परस्पर संबंध को पहचाने और इस संबंध के परिणाम स्वरूप जन्म लेने वाली संतानों को स्वीकार्यता दे। स्त्री-पुरुष को लालच दिया गया कि बच्चे का लालन-पालन करके पितृऋण से मुक्ति मिलेगीबच्चे को योग्य बना दोगे तो गुरुऋण से मुक्ति मिलेगी|   विवाह विच्छेद को बुरा माना गया क्योंकि ऐसा करने से बच्चों का भविष्य दांव पर लग जाता है । जो स्त्री-पुरुष इस दीर्घकालिक जिम्मेदारी को उठाने का संकल्प लेते हुएएक दूसरे के साथ जीवन भर साथ रहने का वचन देते हुए विवाह के बंधन में बंधते हैंउनको समाज बहुत मान-सम्मान देता हैउनके विवाह पर लोग नाचते कूदते हैंखुशियां मनाते हैंउनके प्रथम शारीरिक संबंध की रात्रि को भी बहुत उल्लासपूर्ण अवसर माना जाता है ।  उनको शुभकामनायें दी जाती हैंभेंट दी जाती हैं ।  उनके गृहस्थ जीवन की सफलता की हर कोई कामना करता है ।



 दूसरी ओर,  जो बिना जिम्मेदारी ओढ़ेकेवल मज़े लेने के लियेअपने शारीरिक संबंध को आधिकारिक रूप से घोषित किये बिनाक्षणिक काम संतुष्टि चाहते हैं उनको समाज बुरा कहता हैउनको सज़ा देना चाहता है क्योंकि ऐसे लोग सामाजिक व्यवस्था को छिन्न विच्छिन्न करने का अपराध कर रहे हैं ।



 अब प्रश्न यह है कि ये व्यवस्था व्यक्ति व समाज की उन्नति मेंविकास में सहयोगी है अथवा व्यक्ति का शोषण करती है ?  दूसरा प्रश्न ये है कि कोई पुरुष बच्चों के लालन-पालन का उत्तरदायित्व उठाने के लिये किन परिस्थितियों में सहर्ष तत्पर होगा ?  कोई स्त्री-पुरुष जीवन भर साथ साथ कैसे रह पाते हैं ? जो स्थायित्व और बच्चों के प्रति जिम्मेदारी कीवात्सल्य की भावना पशु-पक्षी जगत में कभी देखने को नहीं मिलतीवह मानव समाज में क्यों कर दृष्टव्य होती है?

 


 जब कोई स्त्री पुरुष एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हुएएक दूसरे के साथ सहयोग करते हुएसाथ साथ रहने लगते हैं तो उनके बीच एक ऐसा प्रेम संबंध पनपने लगता है जो उस प्यार मोहब्बत से बिल्कुल अलग है - जिसका ढिंढोरा फिल्मों मेंकिस्से-कहानियों मेंउपन्यासों में पीटा जाता है। एक दूसरे के साथ मिल कर घर का तिनका-तिनका जोड़ते हुएएक दूसरे के सुख-दुःख में काम आते हुएबीमारी और कष्ट में एक दूसरे की सेवा-सुश्रुषा करते हुएस्त्री-पुरुष एक दूसरे के जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं । वे एक दूसरे को "आई लव यू"कहते भले ही न हों पर उनका प्यार अंधे को भी दिखाई दे सकता है ।  यह प्यार किसी स्त्री की कोमल कमनीय त्वचासुगठित देहयष्टिझील सी आंखों को देख कर होने वाले प्यार से (जो जितनी तेज़ी से आता हैउतनी ही तेज़ी से गायब भी हो सकता हैबिल्कुल जुदा किस्म का होता है।   इसमे रंग रूप,शारीरिक गुण-दोष कहीं आड़े नहीं आते।  इंसान का व्यवहारउसकी बोलचाल,उसकी कर्तव्य-परायणतासेवाभावसमर्पणनिश्छलतादया-ममता ही प्यार की भावना को जन्म देते हैं। ये प्रेम भावना पहले स्त्री-पुरुष के गृहस्थ जीवन को स्थायित्व देती हैफिर यही प्रेम माता-पिता को अपने बच्चों से भी हो जाता है। यह प्यार बदले में कुछ नहीं मांगता बल्कि अपना सर्वस्व दूसरे को सौंपने की भावना मन में जगाता है।


        

 ये सामाजिक व्यवस्था तब तक सफलतापूर्वक कार्य करती रहती है जब तक स्त्री-पुरुष में से कोई एक दूसरे को धोखा न दे ।  पुरुष को ये विश्वास हो कि जिस स्त्री पर उसने अपने मन की समस्त कोमल भावनायें केन्द्रित की हैंजिसे सुख देने के लिये वह दिन रात परिश्रम करता हैवह उसके अलावा अन्य किसी भी व्यक्ति की ओर मुंह उठा कर देखती तक नहीं है।  स्त्री को भी ये विश्वास हो कि जिस पुरुष के लिये उसने अपना समस्त जीवन समर्पित कर दिया हैवह कल उसे तिरस्कृत करके किसी और का नहीं हो जायेगा ।  बच्चों का अपने माता - पिता के प्रति स्नेह व आदर भी माता-पिता के मन में अपनी वृद्धावस्था के प्रति सुरक्षा की भावना जगाता है ।



 "पुरुष भी स्त्री के साथ बच्चे के लालन-पालन में बराबर का सहयोग दे" -इस परिकल्पनाव इस हेतु बनाई गई व्यवस्था की सफलताइस बात पर निर्भर मानी गयी कि पुरुष को यह विश्वास हो कि जिस शिशु के लालन-पालन का दायित्व वह वहन कर रहा हैवह उसका ही हैकिसी अन्य पुरुष का नहीं है। इसके लिये यह व्यवस्था जरूरी लगी कि स्त्री केवल एक ही पुरुष से संबंध रखे ।  कोई स्त्री एक ही पुरुष की हो कर रहने का वचन देती है तो पुरुष न केवल उसके बच्चों का पूर्ण दायित्व वहन करने को सहर्ष तत्पर होता हैबल्कि उस स्त्री को व उसके बच्चों को भी अपनी संपत्ति में पूर्ण अधिकार देता है।  इस व्यवस्था के चलतेयदि कोई पुरुष अपने दायित्व से भागता है तो ये समाज उस स्त्री को उसका हक दिलवाता है ।



 स्त्री ने जब एक ही पुरुष की होकर रहना स्वीकार किया तो बदले में पुरुष से भी यह अपेक्षा की कि पुरुष भी उस के अधिकारों में किसी प्रकार की कोई कटौती न करे ।  दूसरे शब्दों में स्त्री ने यह चाहा कि पुरुष भी केवल उसका ही होकर रहे ।  पुरुष की संपत्ति में हक मांगने वाली न तो कोई दूसरी स्त्री हो न ही किसी अन्य महिला से उसके बच्चे हों ।



 शायद आप यह स्वीकार करेंगे कि यह सामाजिक व्यवस्था न हो तो बच्चों के लालन पालन की जिम्मेदारी ठीक उसी तरह से अकेली स्त्री पर ही आ जायेगी जिस तरह से पशुओं में केवल मादा पर यह जिम्मेदारी होती है । चिड़िया अंडे देने से पहले एक घोंसले का निर्माण करती हैअंडों को सेती हैबच्चों के लिये भोजन का प्रबंध भी करती है और तब तक उनकी देख भाल करती है जब तक वह इस योग्य नहीं हो जाते कि स्वयं उड़ सकें और अपना पेट भर सकें । बच्चों को योग्य व आत्म निर्भर बना देने के बाद बच्चों व उनकी मां का नाता टूट जाता है । पिता का तो बच्चों से वहां कोई नाता होता ही नहीं ।



इसके विपरीतमानवेतर पशुओं से ऊपर उठ कर जब हम मानव जगत में देखते हैं तो नज़र आता है कि न केवल यहां  माता और पिता - दोनो का संबंध अपनी संतान से हैबल्कि संतान भी अपनी जन्मदात्री मां को व पिता को पहचानती है ।  भारत जैसे देशों में तो बच्चा और भी अनेकानेक संबंधियों को पहचानना सीखता है - भाईबहिनताऊताईचाचा - चाचीबुआ - फूफा,मामा - मामीमौसा - मौसीदादा - दादीनाना - नानी से अपने संबंध को बच्चा समझता है और उनकी सेवा करनाउनका आदर करना अपना धर्म मानता है ।  ये सब भी बच्चे से अपना स्नेह संबंध जोड़ते हैं और उसके शारीरिक,मानसिकबौद्धिक और आर्थिक विकास में अपने अपने ढंग से सहयोग करते हैं ।



 बात के सूत्र समेटते हुए कहा जा सकता है कि यदि कोई स्त्री या पुरुष सेक्स को"महज़ चाय के एक कपजैसी महत्ता देना चाहते हैंउन्मुक्त सेक्स व्यवहार के मार्ग में समाज द्वारा खड़ी की जाने वाली बाधाओं को वह समाज की अनधिकार चेष्टा मानते हैंयदि उन्हें लगता है कि उनको सड़क परकैमरे के सामनेमंच पर नग्न या अर्धनग्न आने का अधिकार हैऔर उनका ये व्यवहार समाज की चिंता का विषय नहीं हो सकता तो इसका सीधा सा अर्थ है कि वह इस सामाजिक व्यवस्था से सहमत नहीं हैंइसे शोषण की जनक मानते हैं और इस व्यवस्था से मिलने वाले लाभों में भी उनको कोई दिलचस्पी नहीं है ।  यदि स्त्री यह विकल्प चाहती है कि वह गर्भाधानबच्चे के जन्मफिर उसके लालन-पालन की समस्त जिम्मेदारी अकेले ही उठाए और बच्चे का बीजारोपण करने वाले नर पशु से न तो उसे सहयोग की दरकार हैन ही बच्चे के लिये किसी अधिकार की कोई अपेक्षा है तो स्त्री ऐसा करने के लिये स्वतंत्र है । बसउसे समाज द्वारा दी जाने वाली समस्त सुख-सुविधाओं को तिलांजलि देनी होगी । वह समाज की व्यवस्था को भंग करने के बाद समाज से किसी भी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा भी क्यों रखे ? अस्पतालडॉक्टरनर्सदवायेंकपड़ेकॉपी-किताबस्कूल,अध्यापकनौकरीव्यापार आदि सभी सुविधायें समाज  ही तो देता है ।  वह जंगल में रहेअपना और अपने बच्चे का नीड़ खुद बनायेउसक पेट भरने का प्रबंध स्वयं करे।  क्या आज की नारी इस विकल्प के लिये तैयार है?



 यदि समाज द्वारा दी जा रही सेवाओं व सुविधाओं का उपयोग करना है तो उस व्यवस्था को सम्मान भी देना होगा जिस व्यवस्था के चलते ये सारी सुविधायें व सेवायें संभव हो पा रही हैं । सच तो ये है कि शोषण से मुक्ति के नाम पर यदि हम अराजकता चाहते हैं तो समाज में क्यों रहेंसमाज सेसमाज की सुविधाओं से दूर जंगल में जाकर रहें न !  वहां न तो कोई शोषणकर्ता होगा न ही शोषित होगा ! वहां जाकर चार टांगों पर नंगे घूमते रहोकौन मना करने आ रहा है ?


 सुशान्त सिंहल

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मोर-मोर मौसेरे भाई : वणिक श्री यशवंत सिंह और वणिक शिरोमणि अविनाश दास

जैसा कि मेरे ऊपर एक आरोप है कि मैं सच को सच और झूठ को झूठ कहने में नहीं डरता हूं, इस आरोप से मुक्त होने के लिये आजकल डरने का भरपूर अभ्यास कर रहा हूं। अब किसी बनिये को बनिया कहने या चोर को चोर और छिछोरे को छिछोरा कहने से पहले एक करोड़ बार सोच लेता हूं कि कहीं पुलिस घर पर आकर हड्डियों का झांझ-मंजीरा न बजा दे। इसलिये अगर डरने में कोई कमी रह गयी हो तो माफ़ करते हुए बता दीजियेगा। मैं अपने आक्रांताओं को सहस्त्र कोटि नमन करता हूं। मुझे अब तक याद है कि कठपिंगल नाम से अविनाश बाबू ने जो कर्म(कुकर्म लिखना चाहता था पर अब डरने के अभ्यास के अंतर्गत ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचूंगा) करा था जैसे कि किसी के निजी जीवन में कूद कर आक्षेप लगाना और उसे हिंदी ब्लागिंग में स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराना। इससे जब यशवंत दादा(अभी भी दादा ही कहूंगा क्योंकि वे मेरे भड़ास जीवन में बड़े भाई जैसे हैं उनसे ही सीखा है कि छल,प्रपंच,कपट को किस तरह से मुखौटे में छिपाया जाता है ताकि आप भदेस और अपने से लगें) उबिया गये तो हम भड़ासियों ने अविनाश दास के मोहल्ले पर खुला हमला कर दिया था उसने यशवंत दादा और मुझ पर कीचड़ फेंका था तो हम सबने उस पर गोबर(मानव से लेकर सुअर तक का) फेंक कर हिसाब चुका लिया था। इस दौरान यशवंत दादा ने मादर-फ़ादर की श्रेणी की अनेकानेक नवीनतम गालियां ईजाद करके अविनाश को गरिआया था। यकीन मानिये कि तब उस पन्ने पर मुर्दा हो चुकी भड़ास को अच्छी खासी (कु)ख्याति हासिल हो गयी थी। अब मुर्दे को नहला-धुला कर सौ-डेढ़ सौ पंखे लगा दिये हैं ताकि सड़ांध न आये उस मरी भड़ास में, भाट और चारण मुर्दे की प्रशंसा कर रहे हैं, छद्म ब्राह्मण शुद्धिकरण कर रहे हैं पूर्वकाल में दी गयी गालियों पर मंत्रादि मार कर साफ कर रहे हैं। इस पूरे मुद्दे को ताना-बाना से लेकर गाना-बजाना तक नाम से लिखने वाले हिंदी के स्वनाम धन्य ब्लागर विराट रूप देकर पंखों वाली भड़ास को प्रसिद्धि की सिद्धि करा रहे थे। अब जब यशवंत दादा ने अपना मुखौटा सहज ही हटा कर अपना असली चेहरा दिखा दिया है तो अब समझ में आने लगा है कि अरे ये चेहरा तो अविनाश दास से कितना मिलता-जुलता है। अविनाश मोहल्ला में अपनी सविता भाभी जी(एक अत्यंत गलीज़ किस्म की पोर्न वेबसाइट) को प्रोत्साहित करके अधिकतम प्रकाश हासिल करने का टोटका अपना रहे हैं वहीं यशवंत दादा ने भी कुछ ऐसा ही अंदाज अपनाया लेकिन यहां प्रसिद्धि व धन का समीकरण कुछ अलग था। अविनाश बाबू ने भाभी जी का पल्लू पकड़ कर ख्याति हासिल करने का रास्ता अपनाया है और यशवंत दादा ने भड़ासियों के मनोभावों और उनकी संवेदना को गठरी में बांध कर उस गठरी के वजन से भड़ास4मीडिया बना लिया और भड़ासियों की भावनाओं के टके करा लिये, भुना लिया उन भावनाओं को जो कि हम भड़ासियों ने बस ऐसे ही सहज भदेस दर्शन के प्रभाव में आकर जाहिर करी थीं। मुझे लगता है कि अगर इन दोनो के डी.एन.ए. का गहन अध्ययन करा जाए तो यकीन मानिये कि इनके क्रोमोसोम्स मिलते जुलते ही प्राप्त होंगे।
जय जय भड़ास

जय मराठी

आज २६ जनवरी है .भारत का एक महत्वपूर्ण दिन है . किंतु आज सुबह ध्वजारोहन के समय लोग "हिन्दी है हम , वतन है हिन्दुसितन हमारा " गा रहे थे . किंतु मराठी लोगो को यह गाना चाहिए था की "मराठी है हम , वतन है सतारा ,सांगली ,मुंबई हमारा .जय महाराष्ट्र जय मराठी .
जय भड़ास

स्वास्थ्य और तालियां बजाना

आज गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है तो रात भर से हमारी बस्ती में लोग गड्ढ़ा खोदना, लोहे का पाइप लगाना उसमें राष्ट्र ध्वज बांधना और फूल-झंडियां-मिठाई ना जाने क्या क्या......। वहीं जब इन इंतजामों में लगे उत्साही युवकों और स्थानीय नेताओं को देखते हुए सुबह हो गयी रोज की तरह से नजदीक ही बड़ी इमारतों में रहने वाले करी तीस-चालीस बुजुर्ग एकत्र होकर हंसने का अभ्यास करने लगे। कहते हैं कि इसके पीछे सांइटिफ़िक कारण रहते हैं कि हंसी चाहे झूठी हो या सच्ची लाभकारी रहती है। आज इन बुजुर्गों ने एक नया अभ्यास शुरू करा और वो था जोर-जोर से विभिन्न लय पर तालियां पीटना......। जब मैंने साहस करके अभ्यास कराने वाले दादाजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि बेटा ताली बजाने से हाथ के एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स सक्रिय बने रहते हैं और शरीर व मन का स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है। मेरी कमाठीपुरा(मुंबई ही नहीं एशिया का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया) में रहकर देह व्यवसाय करने वाली एक बहन ने मुझसे तुरंत पूछा कि मनीषा ! क्या मैं भी तालियां बजाया करूं दवाएं लेने के साथ ही? वो एच.आई.वी. पाजिटिव है, मेरे पास उसकी बात का उत्तर नहीं है । कितनी तालियां बजाएं हम स्वतंत्रता दिवस से गणतंत्र दिवस तक तालियां ही तो पीटते रहते हैं हम सब......... लेकिन मन है कि स्वस्थ होने के लिये तालियां छोड़ना चाहता है। हम कभी तालियां नहीं बजाना चाहते चाहे कोई भी कारण क्यों न हो। कोई शुभेच्छा नहीं निकल रही गणतंत्र दिवस के लिये मन खिन्न है।

जय जय भड़ास

अश्लीलता का अड्डा बना अविनाश का ''मोहल्ला''

मोहल्ला ने फैलाई अश्लीलता ?
मोहल्ला ने फैलाई अश्लीलता ? देश का बहुचर्चित ब्लॉग मोहल्ला कुछ और चर्चित होना चाहता था सो हो भी गया लेकिन इसका सीधा लाभ अश्लीलता फैलाने वाली वेबसाइट सविताभाभी।कॉम को पहुँच गया !और इसके साथ साथ मोहल्ले के संपादक अविनाश जीको भी गलियां सुनने मिली
आगे की ख़बर के लिए देखे
मोहल्ला ने फैलाई अश्लीलता ?
जय जय भड़ास...जय हिन्दुस्तान जय यंगिस्तान

लव-कुश के अवतार म.न.से. प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना के कार्यकारी प्रमुख उद्धव ठाकरे

मैं भी जाकर मातोश्री आवास के बाहर लगे इस बड़े से चित्र में भगवान श्री राम के कलियुगी अवतार कहे गये बाल ठाकरे के दर्शन कर आया। अब मन में कुछ सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं। असल में दोष तो मेरे डी.एन.ए. में ही है कि सीधी बातें समझ में ही नहीं आती हैं। सवाल यह है कि जब प्रभु अवतार ले ही चुके थे तो ये बात अस्सी-पिच्यासी साल तक मुझ जैसे भक्तजनों से छिपा कर क्यों रखी थी? कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम जैसे पाखंडी खुद को महर्षि विश्वामित्र का अवतार घोषित करके भगवन बाल ठाकरे के पास चले जाएंगे कि प्रभु विश्व को आतंक के दानव से मुक्ति दिलाओ? ऐसा भी हो सकता है कि भगवन बाल ठाकरे का एक पैर तो अब कब्र में है और दूसरा केले के छिलके पर तो अब आतंक के दानव से मुक्ति ये न दिलायें बल्कि इनकी अगली पीढ़ी यानि कि लव-कुश के अवतार म.न.से. प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना के कार्यकारी प्रमुख उद्धव ठाकरे दिलवाएं? अब देखना जल्द ही विश्व को ये शुभ समाचार मिलने वाला है कि दोनो अवतारी लव-कुश(राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे) ने मिल कर दशानन रावण के अवतार ओसामा बिन लादेन का वध कर दिया है या फिर बराक ओबामा के अश्वमेघ का घोड़ा पकड़ लिया है। हम भड़ासी भक्तजन तो भावविभोर हो उठे हैं और कल से बाल(राम)चरित मानस का नया वर्ज़न लिखने में जुट गये है हो सकता है हमें भी अस्सी साल का होने पर ये पता चले कि हम भी तुलसीदास के अवतार हैं।
जय जय भड़ास

इजरायल का अस्तित्व

नोट- यह लेख विकिपीडिया के अंग्रेजी लेख का ट्रांसलेशन है, और इसे जानकारी के लिए ud


इजरायल दुनिया का एकमात्र यहूदी देश है. अपनी आजादी से पहले भी और आजादी के बाद भी इजराइल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. यूं कहे तो इजरायल का अस्तित्व संघर्ष और सिर्फ संघर्ष पर टिका है. उसका आज तक का इतिहास अत्यंत ही रक्त-रंजित रहा है. इसके बावजूद भविष्य शांतिपूर्ण होगा, इसकी सिर्फ शुभकामना ही दी जा सकती है.


वीओ.. इजरायल पश्चिमी एशिया का एक छोटा सा देश है. यह भूमध्यसागर के किनारे स्थित है. इसकी उत्तरी सीमा पर लेबनान, उत्तर-पूर्व में सीरिया, पूर्व में जॉर्डन और दक्षिण-पश्चिम में मिश्र स्थित है. क्षेत्रफल के हिसाब छोटा होने के बावजूद इजरायल काफी विविधतओं भरा देश है. पश्चिमी तट और गजा पट्टी इजरायल से सटा हुआ है.

इजरायल की आबादी बहत्तर लाख अस्सी हजार है. इनमें यहूदी बहुसंख्यक हैं. इजरायल दुनिया का एकमात्र यहूदी राष्ट्र है. यहूदी के अलावा यहां अरबी मुस्लिम, ईसाई और अन्य जातियां भी रहती हैं.

आधुनिक इजरायल प्राचीनकाल के यहूदी भूमि की परिकल्पना पर आधारित है. कभी समूचा इयरायल यहूदी धर्मावलंबियों का देश माना जाता था. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्रसंघ ने यहूदियों के लिए एक अलग देश के रूप में इजरायल के गठन के ब्रिटेन के प्रस्ताव को मान्यता दे दी. 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल के विभाजन को मंजूरी दे दी. जिसके तहत यहूदियों और अरबों के लिए अलग राज्य को मंजूरी दे दी. 14 मई 1948 को यहूदी बहुल राज्य इजरायल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. इजरायल के इस घोषणा को आस-पास के अरब राष्ट्रों ने मानने से इनकार कर दिया और इजरायल के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.

इजरायल ने अरब राष्ट्रों के साथ एक ही समय कई मोर्चों पर युद्ध लड़ा और सभी युद्धों में जीत हासिल की. इस जीत ने अलग इजरायल की स्वतंत्रता को पुख्ता कर दिया. इतना ही नहीं, इस जीत के बाद इजरायल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के बाहर भी अपनी सीमा का विस्तार किया. इसके बाद से इजरायल को अपने पड़ोसी अरब देशों से लगातार संघर्ष करना पड़ा. ये संघर्ष बड़े युद्धों और रक्तपात के अंतहीन सिलसिले के रूप में सामने आया और आज भी जारी है.

सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो इजयराल की स्थापना और उसका अस्तित्व संघर्षों पर ही टिका है. इजरायल ने मिश्र और जॉर्डन के साथ कई शांति-संधि भी किए, लेकिन शांति के ये प्रयास इजरायल और फिलीस्तीनियों में दीर्घकालीन शांति

लाने में नाकामयाब रहे.

इजरायल में संसदीय शासन व्यवस्था है. प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है. सकलू घरेलू उत्पाद के हिसाब से इजरायल दुनिया का चौवालिसवां सबसे बड़ा देश है. मानव विकास सूचकांक, प्रेस की स्वतंत्रताऔर आर्थिक प्रतिस्पर्धा के हिसाब से मध्यपूर्व के देशों में इजरायल का स्थान सबसे ऊपर है. देश का सबसे बड़ा शहर येरूसलम इसकी राजधानी है, जबकि तेल अवीव इसकी वित्तीय राजधानी है.





इतिहास

इयरायल का इतिहास तीन हजार साल से भी पुराना है. यह इजरायलियों की धरती का प्रतीक रहा है. बाइबिल के मुताबिक देवदूत से लड़ने के बाद जैकोब का नाम इजरायल रखा गया. प्राचीनतम पुरा-तात्विक प्रमाणों के मुताबिक इजरायल किसी अन्य व्यक्ति का नाम था.

इजरायल ईसापूर्व से ही यहूदियों की पवित्र भूमि मानी जाती है. प्राचीन मान्यता के अनुसार, ईश्वर ने तीन यहूदियों को रहने के लिए ये धरती दी थी. विद्वान मानते हैं कि यह समय ईसा पूर्व दूसरी सहस्त्राब्दी की हो सकती है. यहूदी परंपरा के मुताबिक ईसापूर्व ग्यारहवी सदी में इस भूमि पर इजरायली साम्राज्य स्थापित हुआ था और इन शासकों ने करीब एक हजार साल तक इजराइल पर शासन किया था. इजरायल के ये स्थल यहूदियों के लिए सबसे पवित्र माना जाता है.

इजरायली साम्राज्य और सातवीं शताब्दी में इस्लामी विजय के मध्य इजरायल पर सीरिया, बेबीलोनिया, पर्सिया, ग्रीक, रोम, ससेनिया और बायजेनटाइन का शासन रहा. 132 ईस्वी में रोमन साम्राज्य के खिलाफ बार कोखबा विद्रोह की असफलता के बाद इस क्षेत्र में यहूदियों की उपस्थिति घट गई. यहूदियों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ. 628-29 ईस्वी में बायजेनटाइन शासक हेराक्ल्यूस ने वृहत पैमाने पर यहूदियों का संहार किया, जिसके कारण यहूदियों को वहां से भागना पड़ा. इस घटना के बाद यहां यहूदियों की संख्या नगण्य हो गई. 1260 में इजरायल मामलुक सल्तनत का हिस्सा बन गया और 1516 में यह ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा बन गया, जिसने बीसवीं सदी तक इस क्षेत्र पर शासन किया.

इजरायलियों को करीब पंद्रह सौ सालों तक अपनी जमीन से अलग रहना पड़ा, लेकिन सांस्कृतिक एकता ने इनके दिलों में मातृभूमि के प्रति प्रेम की लौ को जलाये रखा. बाइबिल और यहूदी प्रार्थना पुस्तिका ने इनकी आशा और विश्वास को बरकरार रखा. बारहवीं सदी की शुरुआत में कैथोलिक ईसाईयों की प्रताड़ना से पीड़ित होकर यहूदी एकबार फिर इजरायल लौटने लगे. 1492 में स्पेन ने यहूदियों को खदेड़ दिया. सोलहवी शताब्दी में इजरायल चार शहरों में यहूदियों ने जड़ें जमा ली और अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारी संख्या में लोग इजरायल में आ बसे.

उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में यहूदियों ने एक अलग यहूदी राष्ट्र की मांग शुरू कर दी. 1896 में हर्जल ने अपनी किताब द जेविस स्टेट में भावी यहूदी राष्ट्र की रूप रेखा रखी. अगले ही साल वर्ल्ड जियोनिस्ट कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसकी अध्यक्षता हर्जल ने की.

1904-14 के दौरान करीब चालीस हजार यहूदी फिलीस्तीन में आकर बस गए. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन के विदेशमंत्री आर्थर बलफोर ने एक घोषणा पत्र जारी किया, जिसे बलफोर घोषणापत्र के नाम से जाना जाता है. इस घोषणा पत्र में फिलीस्तीन के अंदर एक यहूदी राष्ट्र की बात कही गई थी. इस घोषणा पत्र में ये बात भी शामिल की गई कि कुछ भी ऐसा नहीं किया जाए जिससे फिलीस्तीन में यहूदियों के नागरिक अधिकारों के खिलाफ हो, चाहे यहूदी दुनिया के किसी भी भाग में भी क्यों न हो. यहूदी स्वयंसेवकों की मदद से जेविस लीगन नाम से सेना की बटालियन बनी, जिसने फिलीस्तीन को जीतने में ब्रिटिश सेना की मदद की. इसका अरबों ने विरोध किया और 1920 का फिलीस्तीन युद्ध हुआ.

1922 लीग ऑफ नेशन्स ने बलफोर घोषणा पत्र से मिलते जुलते ब्रिटेन के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. इस क्षेत्र में अरब मुस्लिमों की आबादी ज्यादा थी, लेकिन इस क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर येरूसलम यहूदी बहुल था. इधर, यहूदियों का फिलीस्तीन आना जारी रहा और फिलीस्तीन में यहूदियों की आबादी एक लाख हो गई. 1930 में नाजीवाद के उदय के कारण यूरोप से भारी संख्या में यहूदियों का पलायन हुआ और फिलीस्तीन में यहूदियों की संख्या बढ़कर ढाई लाख से भी ज्यादा हो गई. यहूदियों आबादी के विस्तार ने 1936-39 के अरब क्रांति को जन्म दिया. इधर, दुनियाभर में यहूदियों के संहार का सिलसिला जारी रहा. द्वितीय विश्व आते-आते फिलीस्तीन में यहूदियों की आबादी बढ़कर तैंतीस प्रतिशत तक आ पहुंची.

इजरायल की आजादी

1945 के बाद ब्रिटेन का यहूदियों का साथ मतभेद बढ़ गया. 1947 में ब्रिटेन ने यह कहकर फिलीस्तीन शासनादेश को वापस ले लिया कि वह अरबों और यहूदियों के बीच सर्वसम्मत हल निकालने में नाकामयाब रहा. नवगठित संयुक्त राष्ट्र संघ ने 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र विभाजन प्रस्ताव(संयुक्त राष्ट्र आमसभा प्रस्ताव 181) को मंजूरी दे दी और इस प्रकार अरब और यहूदियों के लिए दो राष्ट्रों ने निर्माण हुआ. इस प्रस्ताव के तहत संघर्ष रोकने के लिए येरूसलम को अंतर्राष्ट्रीय शहर घोषित कर दिया गया और स्वयं संयुक्त राष्ट्र ने इसके प्रशासन की जिम्मेदारी संभाल ली. इस प्रस्ताव को अरब लीग और अरब उच्च समिति ने खारिज कर दिया. एक दिसंबर, 1947 से अरब उच्च समिति ने तीन दिवसीय हड़ताल शुरू की और अरब लड़ाकाओं नें यहूदियों पर हमला कर दिया. यहूदियों ने भी रक्षात्मक रुख अपनाया और अरबों को जवाब देना शुरू किया. इस तरह यहां गृहयुद्ध भड़क उठा. इस गृहयुद्ध की वजह से फिलीस्तीन-अरब अर्थव्यवस्था ढह गई और फिलीस्तीन-अरब को भागना पड़ा.

14 मई, 1948 को यहूदी एजेंसी ने इजरायल की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. इधर, मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, लेबनान और इराक ने एक साथ इजरायल पर हमला कर दिया. इस युद्ध को 1948 का अरब-इजरायल युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. इस युद्ध में अरब देशों की सहायता के लिए मोरक्को, सूडान, यमन और सऊदी अरब ने भी अपने सैनिक भेजे. यह युद्ध एक साल तक चला. और अंत में युद्धविराम की घोषणा हुई. ग्रीन-लाइन के नाम के अस्थायी सीमा रेखा पर सहमति बनी. अलग जॉर्डन को पश्चिम तट और गजा नाम दिया गया. गजा पट्टी पर मिस्र ने नियंत्रण कर लिया. 11 मई, 1949 को संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल को अपनी सदस्यता प्रदान की. संघर्ष के दौरान अस्सी प्रतिशत अरब आबादी (7,11,000) को वहां से भागना पड़ा. इस समय फिलीस्तीन शरणार्थी की समस्या इजराइल-फिलीस्तीन संघर्ष की मुख्य वजह माना जा रहा है.

अपनी आजादी के शुरुआती सालों में इजरायल शरणार्थी समस्या से जूझना पड़ा. 1948 से 1958 के दौरान इजरायल की आबादी आठ लाख से बढ़कर बीस लाख हो गई. 1952 में दो लाख लोग टेंटों में रह रहे थे. समस्या के समाधान के लिए प्रधानमंत्री डैविड बेन-गुरियन ने जर्मनी के साथ एक समझौता किया, जिसका यहूदियों ने व्यापक विरोध किया

1950 के दशक में इजरायल पर आत्मघाती फिलीस्तीनियों का हमला शुरू हो गया. ये आत्मघाती हमलावर मिस्र के अधिकार वाले गजा पट्टी में रहते थे.

अरब देशों ने इजरायल को मान्यता देने से इनकार कर दिया और इजरायल को नष्ट करने का आह्वान किया. 1967 में मिस्र, सीरिया और जॉर्डन की सेना इजरायली सीमा पर पहुंच गई. और संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों को वहां से भगा दिया. साथ ही, उन्होंने लालसागर तक इजरायल की आवाजाही पर रोक लगा दी. इजरायल ने अरबों के इस कार्रवाई का जवाब दिया और छह दिनों तक चले युद्ध में उसे निर्णायक जीत मिली. उसने पश्चिमतट, गजा पट्टी, सिनाई प्रायद्वीप और गोलन की पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया. 1949 में ग्रीन लाईन इजरायल और विजित क्षेत्र की प्रशासनिक सीमा बन गयी. पूर्व येरूसलम के साथ येरूसलम की सीमा में भी विस्तार हुआ. 1980 में पारित येरूसलम कानून ने इस सीमा को मंजूरी दे दी, जिसने येरूसलम की स्थिति पर विवाद खड़ा कर दिया.

1967 के युद्ध में अरबों की हार ने अरब में गैर-सरकारी तत्वों के संघर्ष को बढ़ावा दिया. फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने तो हथियार बंद संघर्ष को ही आजादी का एकमात्र रास्ता करार दिया. साठ के दशक के शुरू और सत्तर के दशक के अंत में फिलीस्तीनियों ने इजरायलियों के खिलाफ दुनियाभर में श्रृंखलाबद्ध हमले किये. 1972 के ग्रीमकालीन ओलंपिक में इजरायली खिलाड़ियों का संहार इसमें शामिल है. उधर, इजरायल ने भी इन हमलों का जवाब दिया.

6 अक्टूबर 1973 को मिस्र और सीरिया की सेना ने इजरायल पर हमला कर दिया. यह दिन यहूदियों के कैलेंडर में सबसे पवित्र दिन माना जाता है. हालांकि इस युद्ध में इजरायल को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन उसने दुश्मनों को अपनी जमीन से खदेड़ दिया. इस युद्ध के बाद प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर को जनाक्रोश के चलते इस्तीफा देना पड़ा.

1977 के संसदीय चुनाव के बाद मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल सादत ने इजरायली संसद में भाषण देते हुए कहा कि अरब देश इजरायल को पहलीबार मान्यता दे रहे हैं. बाद में एक समझौते के मुताबिक इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप से सेना हटा लिया और ग्रीन लाइन के पार फिलीस्तीन की स्वायत्ता पर बाचीत के लिए तैयार हो गया. हालांकि फिलीस्तीन की स्वायत्तता पर कभी बातचीत नहीं हो पाई. सरकारों ने इजरायलियों को पश्चिमी तट में बसाना शुरू किया, जिसकी वजह से फिर संघर्ष शुरू हो गया.

7 जून 1981 को इजरायल ने इराक के ओसिराक परमाणु रिएक्टर पर हमला कर दिया. इसकी वजह इजरायल का वो खुफिया रिपोर्ट है जिसमें इराक द्वारा परमाणु बम विकसित करने और इजरायल के खिलाफ प्रयोग करने की बात कही गई थी. 1982 में इजरायल ने लेबनान के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप करते हुए कई युद्ध शिविरों को नष्ट कर दिया, जहां से फिलीस्तीनी लड़ाके इजरायल पर मिसाईल से हमले करते थे.

1987 में फिलीस्तीनियों ने एकबार फिर हिंसा भड़क उठी. छह साल तक चले इस युद्ध में एक हजार लोग मारे गए.

1993 में इजरायल की ओर से शिमॉन पैरेस और फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन की ओर से महमूद अब्बास ने ओस्लो संधि पर हस्ताक्षर किया. इस संधि ने फिलीस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण को पश्चिमी तट और गजा पट्टी पर स्व-शासन का अधिकार दिया. इस संधि का मकसद आतंकवाद को खत्म करना था. 1994 में इजरायल-जॉर्डन संधि अस्तित्व में आया जिसके तहत जॉर्डन ने इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ाया. ये संधि दोनों पक्ष के लोगों को स्वीकार था. लेकिन 1995 में यहूदियों के नेता यित्जिहाक रबिन की हत्या ने शांति संधि को नुकसान पहुंचाया.

1990 के अंत में इजरायल ने बेंजामिन नेतनयाहु की अगुवाई में हेब्रॉन से अपना सैनिक हटा लिया और फिलीस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकारण को शासन का अधिकार दे दिया.

1991 में प्रधानमंत्री यहुद बराक ने दक्षिणी लेबनान से सैन्य वापसी कर नए युग की शुरुआत की. बाद में भी उन्होंने फिलीस्तीन प्राधिकरण के अध्यक्ष यासर यराफात से बातचीत जारी रखी. जुलाई 2000 में कैंप डैविड में यासर अराफात और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के बीच हो रहे सम्मेलन में बराक ने फिलीस्तीनी राज्य की स्थापना का प्रस्ताव दिया, जिसे अराफात ने नामंजूर कर दिया और इस तरह बातचीत भंग हो गई.

2001 में एरियल शैरॉन नए प्रधानमंत्री बने. शैरॉन ने गजा पट्टी से एकतरफा अपने सैनिकों को हटा लिया. मगर 2006 में हृदयाघात से वे कॉमा में चले गए और सत्ता यहुद ओल्मर्ट को सौंप दिया..

नवीन घटनाचक्र

जुलाई 2006 में हिजबुल्ला लड़ाकाओं ने इजरायल पर मिसाइल से हमले किए और दो इजरायलियों का अपहरण कर लिया. इससे द्वितीय लेबनान युद्ध भड़क उठा और लड़ाई महीने भर चली.

नवंबर 2007 में इजराइली प्रधानमंत्री यहुद ऑल्मर्ट और फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए राजी हो गए और दोनों ने संघर्ष विराम कर दिया.

मगर, दिसंबर 2008 के अंत में हमास ने युद्ध विराम का उल्लंघन करते हुए गजा पट्टी से इजरायल पर मिसाइल से हमले शुरू कर दिए. इजराइल ने भी जवाबी हमले किए. अठारह दिनों तक चले इस युद्ध में कम से कम ग्यारह सौ लोग मारे गए, जबकि कोई पांच हजार घायल हुए. गजा पट्टी में ढाई लाख मकान ध्वस्त हो गए.





अरे भाई ये सुभाष चंद्र बोस कौन है...

अरे भाई ये सुभाष चंद्र बोस कौन है कुछ सुना सुना नाम लग रहा है! हाँ याद आया बचपन में गुरु जी ने हम लोगों की किताब में कोई कहानी पढाई थी कोई था देश के लिए बहोत बड़ी कोई सेना बनाने वाला क्या नाम था सेना का ..........हाँ 'आजाद हिंद फौज' आज अख़बारों के माध्यम से पता चला की उनकी जन्मशती है वो भी किसी भी राष्ट्रीय अखबार के मुख्या पृष्ठ पर नही बल्कि बीच के पन्ने पर छोटा सा दिया हुवा था ! अब ये कोई राज नेता तो हैं नही की बहेनजी , भाई साहब , चाचा फलाने , काका फलाने, अम्मा , बाबु जी , साहब और भई न जाने क्या क्या नाम होते हैं जब इन नेताओं का जन्मदिन होता है और पुरा प्रदेश , देश इनकी जय जय कार करते हैं और हमारे खबरिया माध्यम पुरा दिन टी.वी.पर इनको दिखाते रहते हैं और अखबार उनकी जय जय कार से पटे पड़े रहते हैं !ऐसे में हमको ऐसे आदमी को याद करने से क्या मिलेगा जिसको हमारी अपनी सरकार ने कभी देश भक्त मानने से इनकार कर दिया था और पता नही कहाँ उन्होंने अपनी जीवन की अन्तिम सांसे ली !
कुछ लोग कहते हैं की फैजाबाद में गुमनामी बाबा की समाधी उन्ही की है सो हम भी आज के दिन कुछ पलों के लिए वहां चहेल कदमी कर आए और लगे हाथ कुछ बात चीत भी कर ली गुमनामी बाबा से लेकिन बाबा जी ने मुझे कोई जवाब नही दिया हाँ वापसी पर अलबत उस समाधी से आवाज़ आई की अबे नालायक तू क्यों मेरी चिंता में घुला जा रहा है जब मेरे देश ने ही मुझे भुला दिया तो तू तो अभी ठीक से देशवासी भी नही हो पाया है ! जा पहले इन तथा कथित देश भक्तों से नेताओं से देशवासी होने का पहचान पत्र ले कर आ फ़िर मुझसे बात करना और हाँ रात के अंधेरे में ही आना नही तो तेरा भी सौदा कर दिया जाएगा और फ़िर तुझे भी मरने से पहले यूँ ही गुमनामी की ज़िन्दगी बितानी होगी और मरने के बाद भी सरकार ही घोषित करेगी की तू है कौन और वो भी १००-२०० सालों की जाँच करने के बाद.........,,ये वो नेता जी थे जिनको शायद हम सभी भुला चुके हैं और चिरकुट सरकारी मदद लेने वाले क्रांतिकारियों से भी गया गुजरा समझते हैं.....................,,,,,,,,,,,,

सपनों की दुनिया में बिकती गरीबी हकीकत में बिकता गरीब

हकीकत में किसी झोपड़ पट्टी का लड़का भले ही करोड़पति पाया हो, लेकिन स्लाम्दोग मिल्लानिओर ने ऐसे लड़के की कहानी बेचकर करोडो जरुर बना लिए हैंये कोई पहला मौका नही है जब गरीबों की गरीबी को रुपहले परदे पर उतारकर, दर्शकों की भावनाओ को उबारकर लाखों और करोडो का कारोबार किया गया हैबॉलीवुड फिल्मों में भी राज कपूर ने अनाडी, छलिया , लोफ़र और श्री ४२० में गरीबी को मुद्दा बनाकर बेचाइसी तरह की अन्य कोशिशों पर सरसरी नज़र डाली जाय तो हकीकत सामने जाती हैभारत सहित दुनिया के कई ख्यातिप्राप्त लेखकों ने भी गरीबी को आधार बनाकर जाने कितने पुरस्कार जीते हैं। हाल ही में भारत के युवा लेखक को पहली उपन्यास के लिए यदि बुकर मिलता है तो इसका श्रेय भी गरीबी को ही देना होगा क्योंकि उपन्यास के मूल में गरीब ही था। ये तो है सपनों की रंगीन दुनिया जिसने फिल्मों और लेखों के जरिये गरीबी को बार-बार बेचा है, लेकिन जब आप हकीकत को सामने देखते हैं तो ये स्पष्ट हो जाता है की हकीकत सिर्फ़ गरीबी बिकती है बल्कि गरीब भी बिकते हैं। समाज के तथाकथित सेवक कैसे गरीबों को बेचते हैं ये किसी से छुपा हुआ नही हैनेता पैसे के बल पर गरीबों का वोट खरीदतें हैं, दुसरे शब्दों में यहाँ गरीब चंद पैसों के लिए ख़ुद को बेचता हैसरकारी कर्मचारी गरीब की गरीबी दर्शाकर करोड़ों की सरकारी योजनाओं का पैसा गड़प कर जाते हैं। यहाँ भी गरीब बिका क्योंकि उसके नाम पर पैसा जारी किया जाता हैव्यापारी रद्दी सामानों को गरीबों के बिच ही खपाते हैं, यहाँ गरीब पैसा देकर भी बिक रहा हैसेठ महाजन काले धन को दान देने का नाटक करके गरीबों को भंडारा और कम्बल बताते हैं, यहाँ भी गरीब जाने अनजाने अपना और अपने सम्मान का सौदा करते हैहमारे देश में प्रतिवर्ष लाखो, करोड़ों सैलानी आते हैं जो यहाँ की गरीबी और गरीबों का हाल अपने कमरे में कैद करके अपने देश में इससे लाखों बनाते हैंकौन कहता है की गरीबी अभिशाप होती हैं ? अजी होती होगी अभिशाप गरीबों, जरुरतमंदों और फान्कामारी कर रहे लोगों के लिए! गरीबी तो वरदान है, हमारे बुद्धजीवी लोगों के लिए, विजेता लेखकों के लिए, फिल्मवालों के लिए, टीवी और विज्ञापन वालों के लिए, सरकार