तुम्हारी चाहतो ने मुझे चैन से न रहने दिया
खौफे रुसवाई ने कुछ भी...कहने नही दिया.
बेदर्द दुनिया में किस तरह से गुजारा करते है
तेरी जुदाई का दर्द दुनिया ने सहने नही दिया.
कोई मूरत गुजरती नही है दिल बहुत उदास है
कही भी हर पल मेरी जिन्दगी ठहरती नही है.
रोता है मेरा ये दिल जब मै दिल से हँसता हूँ
जालिम बेदर्द दुनिया मेरा दर्द जानती नही है.
अपने अरमानो की ख़ाक मै उडाता चला गया
अपने ख्वाबो की चिता मै जलाता चला गया.
जिन्दगी भर का बन न जाए दिले नाशूर कही
हर हसरत को मै अपने दिलो में दफना रहा हूँ.
पंडित जी महाराज,स्वागत है। ई का लिक्खे पड़े हैं आप :)
ReplyDeleteहर हसरत को मै अपने दिलो में दफना रहा हूँ
अरे भाई भड़ासी तो गड़े मुर्दे उखाड़ते फिरते हैं और आप भड़ासी होकर भी अपनी हसरतों को दफन कर रहे हैं। ऐसा मत करो प्रा’जी इन्ने दुक्खी ना हो :)
फिर हसरतों को जगाओ मेरे भाई और........
जय जय भड़ास
मिश्रा जी,बड़े ही टैक्नीशियन किस्म के शायर हैं आप तो..... साइकल में चैन,घड़ी में चैन,पतलून में चैन लेकिन अगर दिल में चैन न हो तो देखिये कैसी शायरी फूट पड़ती है :)
ReplyDeleteसुंदर लिखा है जारी रहिये
लिखिये ताकि अगर हममें से किसी का दिल लीवर किडनी फेफड़ा कुछ टूट जाए तो हमारे काम आ सके इस तरह की के काव्य मरहम :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा है सर जी।
महेंद्र भाई,
ReplyDeleteज़माने का दर्द समेत लिया आपने, और ज़माने को बेदर्द बना दिया. बहुत खूब.
जरा सा भडासाना हो जाए :-)
जय जय भड़ास