यहाँ हर साख पे उल्लू हैं,
ऐसा देश है मेरा ।
जहाँ लीडर कम नेता हैं ज्यादा,
ऐसा देश है मेरा ।
लोगों के मरने पर घडियाली आँसू बहाते हैं जहाँ फन्डू नेता,
ऐसा देश है मेरा ।
राज्य कम पार्टीयां हैं ज्यादा,
ऐसा देश है मेरा ।
शहीदों को कुता बनायें (कुता)नेता,
ऐसा देश है मेरा ।
मर के,पिट के भी,जूता खा के भीखुस रहते हैं लोग जहाँ,
ऐसा देश है मेरा ।
चारा खायें जहाँ के नेता ,ऐसा देश है मेरा ।
उनके ड्रेस बदल के आने से पहलेभाग जायें आतंकवादी ,
ऐसा देश है मेरा ।बडे़- बडे़ सहरों में ऐसा होता है,
शायद इसी लिये ऐसा देश है मेरा ।
भाईसाहब,हमें उल्लुओं को उड़ाने और भगाने का मंत्र सिखाइये ताकि इन्हें इनके कोटरों का रास्ता दिखा सकें।
ReplyDeleteजय जय भड़ास
भाई,किस्सागोई और कविताओं से यदि समाज को प्रगति की दिशा मिलती है तो बिलकुल सही है अन्यथा तो ये सब मात्र शब्दप्रपंच रहता है। हम भड़ासी मिल कर समाज को रचना्त्मक दिशा दें वो बात है आप की रचना में....
ReplyDeleteइसी तरह शानदार जानदार लेखन करते रहिये
जय जय भड़ास
सही है बच्चों कि दिशा और दशा आप सबको ही तय करनी होगी। लिखते रहो ताकि जहालत खत्म हो
ReplyDeleteभैये,
ReplyDeleteबहुत खूब व्याख्या की है, मगर अब समय आता जा रहा है और हम भडासियों का कर्तव्य भी की उल्लुओं को कोटर में भगा दो, जिसका हक जो मारे उसे लगाओ जूते चार.
बढिया भड़ास है.
जय जय भड़ास