इनसे मिलिए ये हैं आस्ट्रेलिया के धुरंधर मैथ्यू हेडेन, ये वो बल्लेबाज हैं जो भारत के लिए भारतीय सरजमीं पर हमेशा परेशान करते रहे हैं। इस बार भी भारतीय खेमा जिनको लेकर चिंतित था उनमे इनका नाम सबसे पहला था, बहरहाल पहला टेस्ट शुरू हुआ और जहीर के पहले ओवर में ही पकिस्तान के असद रउफ ने धोनी के हाथों इन्हें कैच आउट करार दिया। टी वी में देखने के बाद साफ़ पता चला की गेंद ने बल्ले का किनारा नही लिया था मगर अंपायर का निर्णय सर्वमान्य सो हेडेन पैवेलियन में थे।
प्रश्न यहाँ ये नही है की क्या हुआ कैसे हुआ और क्योँ हुआ क्यूंकि ये खेल का हिस्सा मात्र है जहाँ निर्णयदाता का निर्णय सर्वमान्य होता है। मगर हम अभी भी वो वाक्य भूले नही हैं जब वेस्टइंडीज के बकनर के ख़िलाफ़ मीडिया ने पक्षपात का मुहीम चलाया था और अन्तोगत्वा बकनर को भारतीय श्रृंखला के अम्पाइरिंग से अलग कर दिया गया था, एक भारतीय के ग़लत आउट देने पर मीडिया का ब्रेकिंग न्यूज़ और पहले पन्ने का बॉक्स दर्शनीय था, मगर कल उसी मीडिया के किसी पन्ने पर हेडेन की घटना का कोई जिक्र नही, तो क्या ये मीडिया का निष्पक्ष रवैया था या फ़िर खेल में हस्तक्षेप।
बहरहाल जिस प्रकार मीडिया हरेक कार्य में घुस कर सनसनी को लोगों में मुद्दा बनती है सोचनीय है और आने वाले दिनों में चिंताजनक भी, चाहे राजनीति हो या सामाजिक विषय या फ़िर अपराध अपनी खोज ख़बर और रपट पर निर्णय सुनानेवाली मीडिया क्या हमारे समाज की आवाज बनने मेनaपना योगदान दे रहा है। या फ़िर सिर्फ़ ख़बरों के माध्यम सी समाज मेन संदेश के बहने बेचने की आपाधापी।
आज भले ही हेडेन का मामला मीडिया में ना हो मगर चिंताजनक तो है की हम आउट तो बेईमान अंपायर पड़ोसी आउट तो बस आउट.
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