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अब आठवीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का क़ानून लागू !!
अब आठवीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का क़ानून लागू !!
भारत सरकार मृत्युदंड प्राप्त 17 भारतीयों के साथ !!
विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि इन 17 लोगों से मिलने की अनुमति प्राप्त करली गई है और दुबई स्थित दूतावास उनसे संपर्क में है।
उन्होंने कहा कि हमने उन्हें आश्वासन दिया है कि अगर वह उच्च न्यायालय में अपील करेंगे तो भारत सरकार उनका साथ देगी।
इन 17 लोगों में से अधिकतर पंजाब प्रांत के हैं। शारजाह की शरिया अदालत ने अवैध शराब के धंधे में हुई लड़ाई में एक पाकिस्तानी की हत्या और तीन अन्य को घायल करने के आरोप में इन सबको मृत्यु दंड सुनाया है।
भारत सरकार मृत्युदंड प्राप्त 17 भारतीयों के साथ !!
विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि इन 17 लोगों से मिलने की अनुमति प्राप्त करली गई है और दुबई स्थित दूतावास उनसे संपर्क में है।
उन्होंने कहा कि हमने उन्हें आश्वासन दिया है कि अगर वह उच्च न्यायालय में अपील करेंगे तो भारत सरकार उनका साथ देगी।
इन 17 लोगों में से अधिकतर पंजाब प्रांत के हैं। शारजाह की शरिया अदालत ने अवैध शराब के धंधे में हुई लड़ाई में एक पाकिस्तानी की हत्या और तीन अन्य को घायल करने के आरोप में इन सबको मृत्यु दंड सुनाया है।
लन्दन में 2012 ओलम्पिक के लिए एक यादगार मीनार !!
लन्दन में 2012 ओलम्पिक के लिए एक यादगार मीनार !!
बाबरी मस्जिद टूटने के दौरान दो राक्षस कोठारी जैन मरे थे उनका वहाँ क्या काम था?
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
बाबरी मस्जिद टूटने के दौरान दो राक्षस कोठारी जैन मरे थे उनका वहाँ क्या काम था?
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
नवभारत टाइम्स(मुंबई) के सम्पादक त्रिपाठी को करा जैनों ने सम्मानित,इक्यावन हजार में बिक गयी पत्रकारिता
आप इस बात को समझ पा रहे हैं या नहीं लेकिन ये बात एकदम साफ़ है कि किस तरह नवभारत टाइम्स के संपादक को सम्मान के नाम पर इक्यावन हजार रुपये दिये जाते हैं(टाइम्स समूह भी जैनियों का ही है) कि कहीं ऐसा न हो कि इस पत्रकार के भीतर का असल पत्रकार न जाग उठे इस लिये रुपये और सम्मान के लॉलीपॉप शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे लोगों को चूसने के लिये दिये जाते रहते हैं। ये वही शचीन्द्र त्रिपाठी है जिसने कि अपने सम्पादकत्व में निकलने वाले अखबार में हिन्दी भाषा की हत्या करने का ठेका ले रखा है दोष इसका नहीं है असल में लालच है ही बुरी बला। राक्षसों का पुराना तरीका है कि इंसान के भीतर के लालच को हवा दी जाए ताकि वह उनके पक्ष में आकर खड़ा हो जाए और भले बुरे की तमीज़ खो दे। पत्रकारिता को इस तरह से खरीद कर राक्षस जन अपने काले जादू को जनता के सामने लाए जाने के अनूप मंडल के अभियान को रोकने में लगे रहते हैं। शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे ब्राह्मण जब तक अपने लालच पर जय नहीं पा लेते राक्षसी प्रवृत्तियाँ उन्हें इसी तरह से अपने हित में भ्रमित कर इस्तेमाल करती रहेंगी। शचीन्द्र त्रिपाठी यदि अपने पूर्वजों की धरोहर पर गर्व करते हैं तो तत्काल जैनों का साथ छोड़ दें।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
नवभारत टाइम्स(मुंबई) के सम्पादक त्रिपाठी को करा जैनों ने सम्मानित,इक्यावन हजार में बिक गयी पत्रकारिता
आप इस बात को समझ पा रहे हैं या नहीं लेकिन ये बात एकदम साफ़ है कि किस तरह नवभारत टाइम्स के संपादक को सम्मान के नाम पर इक्यावन हजार रुपये दिये जाते हैं(टाइम्स समूह भी जैनियों का ही है) कि कहीं ऐसा न हो कि इस पत्रकार के भीतर का असल पत्रकार न जाग उठे इस लिये रुपये और सम्मान के लॉलीपॉप शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे लोगों को चूसने के लिये दिये जाते रहते हैं। ये वही शचीन्द्र त्रिपाठी है जिसने कि अपने सम्पादकत्व में निकलने वाले अखबार में हिन्दी भाषा की हत्या करने का ठेका ले रखा है दोष इसका नहीं है असल में लालच है ही बुरी बला। राक्षसों का पुराना तरीका है कि इंसान के भीतर के लालच को हवा दी जाए ताकि वह उनके पक्ष में आकर खड़ा हो जाए और भले बुरे की तमीज़ खो दे। पत्रकारिता को इस तरह से खरीद कर राक्षस जन अपने काले जादू को जनता के सामने लाए जाने के अनूप मंडल के अभियान को रोकने में लगे रहते हैं। शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे ब्राह्मण जब तक अपने लालच पर जय नहीं पा लेते राक्षसी प्रवृत्तियाँ उन्हें इसी तरह से अपने हित में भ्रमित कर इस्तेमाल करती रहेंगी। शचीन्द्र त्रिपाठी यदि अपने पूर्वजों की धरोहर पर गर्व करते हैं तो तत्काल जैनों का साथ छोड़ दें।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
महिला आरक्षण विधेयक के मद्देनज़र सर्वदलीय बैठक !!
विरोध
महिला आरक्षण विधेयक के मद्देनज़र सर्वदलीय बैठक !!
विरोध
अजमल कसाव का ट्रायल पूरा !!
मले में 3 मई को फैसला आएगा। सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने बुधवार को कहा कि कसाब के खिलाफ ट्रायल पूरा हो गया है और 3 मई को अदालत उसे दोषी पाती है, तो सज़ा का एलान होगा।
निकम ने कहा कि दुनिया में संभवत: पहली बार किसी खूंखार आतंकवादी के खिलाफ सात महीने में ही प्रॉसिक्यूशन पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि इस दौरान कसाब ने अदालत की कार्यवाही को पटरी से उतारने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए लेकिन हमने सब बेकार कर दिए।
अजमल कसाव का ट्रायल पूरा !!
मले में 3 मई को फैसला आएगा। सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने बुधवार को कहा कि कसाब के खिलाफ ट्रायल पूरा हो गया है और 3 मई को अदालत उसे दोषी पाती है, तो सज़ा का एलान होगा।
निकम ने कहा कि दुनिया में संभवत: पहली बार किसी खूंखार आतंकवादी के खिलाफ सात महीने में ही प्रॉसिक्यूशन पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि इस दौरान कसाब ने अदालत की कार्यवाही को पटरी से उतारने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए लेकिन हमने सब बेकार कर दिए।
लो क सं घ र्ष !: सत्ता की डोली का कहार, बुखारी साहब आप जैसे लोग हैं
बुखारी जी आपका बयान बिल्कुल ठीक है परन्तु क्या आप इस बात से इत्तेफाक़ करेंगे कि सियासी पार्टियों को यह मौका फराहम कौन करता है? आप और आपके बुज़रगवार वालिद मोहतरम जो हर चुनाव के पूर्व अपने फतवे जारी करके इन्हीं राजनीतिक पार्टियों, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं, को लाभ पहुँचाते थे। लगभग हर चुनाव से पूर्व जामा मस्जिद में आपकी डयोढ़ी पर राजनेता माथा टेक कर आप लोगों से फतवा जारी करने की भीख मांगा करते थें। वह तो कहिए मुस्लिम जनता ने आपके फतवों को नजरअंदाज करके इस सिलसिले का अन्त कर दिया।
सही मायनों में राजनीतिक पार्टियों की डोली के कहार की भूमिका तो मुस्लिम लीडरों व धर्मगुरूओं ने ही सदैव निभाई जो कभी भाजपा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी या एन0डी0ए0 के लिए जुटते दिखायी दिये तो कभी गुजरात में नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती की डोली के कहार।
मुसलमानो की बदहाल जिन्दगी पर अफसोस करने के बजाए उसकी बदहाली की विरासत पर आप जैसे लोग आजादी के बाद से ही अपनी रोटियाँ सेकते आए हैं। शायद यही कारण है कि हर राजनीतिक पार्टी अब अपने पास एक मुस्लिम मुखौटे के तौर पर मुसलमान दिखने वाली एक दाढ़ी दार सूरत सजा कर स्टेज पर रखता है और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का शोषण राजनीतिक दल इन्हीं लोगों के माध्यम से कराते आए हैं। लगभग हर चुनाव के अवसर पर आप जैसे मुस्लिम लीडरों की बयानबाजी ही मुसलमानों की धर्मनिरपेक्ष व देश प्रेम की छवि को सशंकित कर डालती है और अपने विवेक से वोट डालने के बावजूद उसके वोटों की गिनती जीतने वाला उम्मीदवार अपने पाले में नहीं करता।
-मोहम्मद तारिक खान
लो क सं घ र्ष !: सत्ता की डोली का कहार, बुखारी साहब आप जैसे लोग हैं
बुखारी जी आपका बयान बिल्कुल ठीक है परन्तु क्या आप इस बात से इत्तेफाक़ करेंगे कि सियासी पार्टियों को यह मौका फराहम कौन करता है? आप और आपके बुज़रगवार वालिद मोहतरम जो हर चुनाव के पूर्व अपने फतवे जारी करके इन्हीं राजनीतिक पार्टियों, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं, को लाभ पहुँचाते थे। लगभग हर चुनाव से पूर्व जामा मस्जिद में आपकी डयोढ़ी पर राजनेता माथा टेक कर आप लोगों से फतवा जारी करने की भीख मांगा करते थें। वह तो कहिए मुस्लिम जनता ने आपके फतवों को नजरअंदाज करके इस सिलसिले का अन्त कर दिया।
सही मायनों में राजनीतिक पार्टियों की डोली के कहार की भूमिका तो मुस्लिम लीडरों व धर्मगुरूओं ने ही सदैव निभाई जो कभी भाजपा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी या एन0डी0ए0 के लिए जुटते दिखायी दिये तो कभी गुजरात में नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती की डोली के कहार।
मुसलमानो की बदहाल जिन्दगी पर अफसोस करने के बजाए उसकी बदहाली की विरासत पर आप जैसे लोग आजादी के बाद से ही अपनी रोटियाँ सेकते आए हैं। शायद यही कारण है कि हर राजनीतिक पार्टी अब अपने पास एक मुस्लिम मुखौटे के तौर पर मुसलमान दिखने वाली एक दाढ़ी दार सूरत सजा कर स्टेज पर रखता है और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का शोषण राजनीतिक दल इन्हीं लोगों के माध्यम से कराते आए हैं। लगभग हर चुनाव के अवसर पर आप जैसे मुस्लिम लीडरों की बयानबाजी ही मुसलमानों की धर्मनिरपेक्ष व देश प्रेम की छवि को सशंकित कर डालती है और अपने विवेक से वोट डालने के बावजूद उसके वोटों की गिनती जीतने वाला उम्मीदवार अपने पाले में नहीं करता।
-मोहम्मद तारिक खान
Today’s Punch by Captain:
MINDBLOWING: VIJAYAKANTH'S Dialogues in English
1) U can study and get any certificates. But ucannot get ur death certificate |
दोहे और उक्तियाँ !!
आडम्बर तजि कीजिए, गुण-संग्रह चित चाय।
छीर रहित गउ ना बिकै, आनिय घंट बंधाय।।
(वृंद कवि)
~~~~~
दोहे और उक्तियाँ !!
आडम्बर तजि कीजिए, गुण-संग्रह चित चाय।
छीर रहित गउ ना बिकै, आनिय घंट बंधाय।।
(वृंद कवि)
~~~~~
लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष परिवार ने अपना शुभचिंतक खो दिया
लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष परिवार ने अपना शुभचिंतक खो दिया
सोमालिया जल दस्युओं ने फिर १५० भारतीयों को बंधक बना लिया है !!
बंधक बनाए गई भारतीय नाव सेयचेल्स के पास होने की खबर है। नावों पर सवाल भारतीय गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के बताए गए हैं। इस नाविकों ने सोमालिया के किसमायो में आखरी बार लंगर डाला था और यहीं से अपनी नावों पर सामान भी लादा था। तट छोड़ते ही जलदस्युओं ने उनका अपहरण कर लिया।
अब तक दस्युओं ने उनसे किसी तरह की फिरौती नहीं मांगी है। भारतीय नौसेना ने अपहरण की घटना की पुष्टी की है। नौसेना अधिकारियों के अनुसार वह बंधकों को छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रही है और उन्हें पूरा भरोसा है कि सभी भारतीयों को सुरक्षित छुड़ा लिया जाएगा।
सोमालिया जल दस्युओं ने फिर १५० भारतीयों को बंधक बना लिया है !!
बंधक बनाए गई भारतीय नाव सेयचेल्स के पास होने की खबर है। नावों पर सवाल भारतीय गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के बताए गए हैं। इस नाविकों ने सोमालिया के किसमायो में आखरी बार लंगर डाला था और यहीं से अपनी नावों पर सामान भी लादा था। तट छोड़ते ही जलदस्युओं ने उनका अपहरण कर लिया।
अब तक दस्युओं ने उनसे किसी तरह की फिरौती नहीं मांगी है। भारतीय नौसेना ने अपहरण की घटना की पुष्टी की है। नौसेना अधिकारियों के अनुसार वह बंधकों को छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रही है और उन्हें पूरा भरोसा है कि सभी भारतीयों को सुरक्षित छुड़ा लिया जाएगा।
बच्चन परिवार और मीडिया !!
मीडिया क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |
किसी भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |
धर्म तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?
पूर्णिमा शर्मा
बच्चन परिवार और मीडिया !!
मीडिया क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |
किसी भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |
धर्म तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?
पूर्णिमा शर्मा
बच्चन परिवार और मीडिया !!
मीडिया क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |
किसी भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |
धर्म तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?
पूर्णिमा शर्मा
बच्चन परिवार और मीडिया !!
मीडिया क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |
किसी भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |
धर्म तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?