अब आठवीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का क़ानून लागू !!



भारत में ऐतिहासिक शिक्षा का अधिकार क़ानून गुरुवार से लागू हो रहा है. इसके तहत आठवीं कक्षा तक मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है.
अनिवार्य शिक्षा अधिकार विधेयक पिछले साल संसद से पारित हो गया था और इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी भी मिल चुकी है.
इसके तहत छह से चौदह साल तक के सभी बच्चों को शिक्षा मुहैया कराना संवैधानिक अधिकार बना दिया गया है.
इससे भारत के आठ करोड़ से ज़्यादा बच्चों को फायदा होने की उम्मीद है और यह प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में मील का पत्थर साबित हो सकती है.
इस क़ानून में शिक्षा की गुणवत्ता, सामाजिक दायित्व, निजी स्कूलों में आरक्षण और स्कूलों में बच्चों के प्रवेश को नौकरशाही से मुक्त कराने का प्रावधान भी शामिल है.
इस क़ानून के लागू होने के बाद कोई निर्धारित उम्र सीमा के भीतर अगर किसी बच्चे को शिक्षा का अवसर नहीं मिलता है, तो इसे सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी होगी.
कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को मुफ़्त शिक्षा दिलाने के लिए अदालत तक का दरवाज़ा खटखटा सकता है. 

अब आठवीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का क़ानून लागू !!



भारत में ऐतिहासिक शिक्षा का अधिकार क़ानून गुरुवार से लागू हो रहा है. इसके तहत आठवीं कक्षा तक मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है.
अनिवार्य शिक्षा अधिकार विधेयक पिछले साल संसद से पारित हो गया था और इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी भी मिल चुकी है.
इसके तहत छह से चौदह साल तक के सभी बच्चों को शिक्षा मुहैया कराना संवैधानिक अधिकार बना दिया गया है.
इससे भारत के आठ करोड़ से ज़्यादा बच्चों को फायदा होने की उम्मीद है और यह प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में मील का पत्थर साबित हो सकती है.
इस क़ानून में शिक्षा की गुणवत्ता, सामाजिक दायित्व, निजी स्कूलों में आरक्षण और स्कूलों में बच्चों के प्रवेश को नौकरशाही से मुक्त कराने का प्रावधान भी शामिल है.
इस क़ानून के लागू होने के बाद कोई निर्धारित उम्र सीमा के भीतर अगर किसी बच्चे को शिक्षा का अवसर नहीं मिलता है, तो इसे सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी होगी.
कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को मुफ़्त शिक्षा दिलाने के लिए अदालत तक का दरवाज़ा खटखटा सकता है. 

भारत सरकार मृत्युदंड प्राप्त 17 भारतीयों के साथ !!




संयुक्त अरब अमीरात में एक पाकिस्तानी की हत्या के जुर्म में जिन 17 भारतीयों को मृत्यु दंड सुनाया गया है उन्हें भारत सरकार ने आश्वासन दिया है कि अगर वे इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगे तो वह उनका साथ देगी।
विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि इन 17 लोगों से मिलने की अनुमति प्राप्त करली गई है और दुबई स्थित दूतावास उनसे संपर्क में है।

उन्होंने कहा कि हमने उन्हें आश्वासन दिया है कि अगर वह उच्च न्यायालय में अपील करेंगे तो भारत सरकार उनका साथ देगी।
इन 17 लोगों में से अधिकतर पंजाब प्रांत के हैं। शारजाह की शरिया अदालत ने अवैध शराब के धंधे में हुई लड़ाई में एक पाकिस्तानी की हत्या और तीन अन्य को घायल करने के आरोप में इन सबको मृत्यु दंड सुनाया है।
 

भारत सरकार मृत्युदंड प्राप्त 17 भारतीयों के साथ !!




संयुक्त अरब अमीरात में एक पाकिस्तानी की हत्या के जुर्म में जिन 17 भारतीयों को मृत्यु दंड सुनाया गया है उन्हें भारत सरकार ने आश्वासन दिया है कि अगर वे इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगे तो वह उनका साथ देगी।
विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि इन 17 लोगों से मिलने की अनुमति प्राप्त करली गई है और दुबई स्थित दूतावास उनसे संपर्क में है।

उन्होंने कहा कि हमने उन्हें आश्वासन दिया है कि अगर वह उच्च न्यायालय में अपील करेंगे तो भारत सरकार उनका साथ देगी।
इन 17 लोगों में से अधिकतर पंजाब प्रांत के हैं। शारजाह की शरिया अदालत ने अवैध शराब के धंधे में हुई लड़ाई में एक पाकिस्तानी की हत्या और तीन अन्य को घायल करने के आरोप में इन सबको मृत्यु दंड सुनाया है।
 

लन्दन में 2012 ओलम्पिक के लिए एक यादगार मीनार !!



लंदन में 2012 के ओलंपिक को हमेशा के लिए यादगार बनाने के इरादे से दो करोड़ पाउंड यानी लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए की लागत से एक ख़ास मीनार तैयार की जा रही है, जिसका नाम होगा आर्सेलर मित्तल ऑर्बिट.
115 मीटर ऊँची लोहे की मीनार के बारे में कहा जा रहा है कि वह लंदन की पहचान से वैसे ही जुड़ जाएगा जैसे पेरिस से आइफ़िल टावर जुड़ा है.
इस मीनार की ख़ास बात ये भी है कि इसके लिए पैसा लगा रहे हैं भारतीय उद्योगपति लक्ष्मीनिवास मित्तल और इसका डिज़ाइन तैयार किया है भारतीय मूल के जानेमाने शिल्पकार अनीश कपूर ने.
बीबीसी हिंदी से बातचीत में लक्ष्मी निवास मित्तल और अनीश कपूर दोनों ने कहा कि ये सिर्फ़ एक संयोग है कि इस योजना के पीछे दो मुख्य व्यक्ति भारतीय हैं.
मित्तल ने कहा, "अनीश कपूर दुनिया भर में मशहूर कलाकार हैं, हमारे सामने और भी कई प्रस्ताव थे, विशेषज्ञों ने बहुत सोच-समझकर अनीश कपूर के डिज़ाइन को चुना है क्योंकि वही सबसे अच्छा डिज़ाइन था, उनका भारतीय होना एक संयोग है लेकिन यह गर्व की बात है कि दो भारतीय लोग इससे जुड़े हुए हैं."
अनीश कपूर के अलावा एंटनी ग्राम्ली जैसे मशहूर शिल्पकार इस योजना के लिए दौड़ में शामिल थे. अनीश कपूर न सिर्फ़ चर्चित कलाकार हैं बल्कि ख़ासे लोकप्रिय भी हैं, पिछले वर्ष उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनी ने लंदन में रिकॉर्डतोड़ कमाई की थी.
मेयर बोरिस जॉनसन ने लंदन में इसकी घोषणा करते हुए कहा कि "ओलंपिक खेलों के दौरान उसके बाद हमेशा के लिए ओलंपिक की यादगार के तौर पर हम एक ऐसी चीज़ चाहते थे जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाए."
दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी आर्सेलर मित्तल के चेयरमैन लक्ष्मीनिवास मित्तल ने बीबीसी से एक ख़ास बातचीत में बताया कि संयोगवश ही वे इस योजना से जुड़ गए.
उन्होंने कहा, "स्विट्ज़रलैंड के दावोस में अपना कोट टाँग रहा था तभी किसी ने मेरी पीठ पर हाथ रखकर हैलो कहा, मैंने देखा कि लंदन के मेयर बोरिस जॉनसन थे, उनसे मुश्किल से एक मिनट की बात हुई, उन्होंने कहा कि वे लंदन ओलंपिक के लिए एक यादगार टावर खड़ा करना चाहते हैं और उसके लिए उन्हें स्टील चाहिए."
मित्तल कहते हैं, "लंदन के लिए यह आर्सेलर मित्तल का एक स्थायी योगदान होगा. ओलंपिक खेलों के ख़त्म होने बाद भी उस क्षेत्र में इस टावर की वजह से व्यावसायिक गतिविधियाँ होंगी, आर्थिक विकास होगा और यह टावर सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन जाएगा."
वर्ष 2009 में जिस योजना की कल्पना की जा रही थी वह नवंबर 2011 में पर्यटकों के लिए तैयार हो जाएगा. गीज़ा के पिरामिड जितनी ऊँचाई वाले टावर पर दो रेस्त्रां होंगे और दो लिफ़्टों के ज़रिए हर घंटे 700 लोग टावर के ऊपर बने पैवेलियन पर जा सकेंगे.
लोगों को अपने बोल्ड और बड़े डिज़ाइनों से चौंकाने वाले कलाकार अनीश कपूर की कल्पना को साकार रूप देने का काम जाने-माने इंजीनियर सेसिल बॉलमोंड को सौंपा गया है.
1400 टन इस्पात लगाकर बनने वाले लाल रंग के इस टावर को लंदन के स्ट्रेटफर्ड इलाक़े में ओलंपिक स्टेडियम के ठीक पास बनाया जाएगा. मेयर बोरिस जॉनसन का कहना है कि आगे चलकर यह टावर व्यावसायिक स्तर पर चलाया जाएगा और उससे "काफ़ी कमाई" होने की उम्मीद है . 

लन्दन में 2012 ओलम्पिक के लिए एक यादगार मीनार !!



लंदन में 2012 के ओलंपिक को हमेशा के लिए यादगार बनाने के इरादे से दो करोड़ पाउंड यानी लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए की लागत से एक ख़ास मीनार तैयार की जा रही है, जिसका नाम होगा आर्सेलर मित्तल ऑर्बिट.
115 मीटर ऊँची लोहे की मीनार के बारे में कहा जा रहा है कि वह लंदन की पहचान से वैसे ही जुड़ जाएगा जैसे पेरिस से आइफ़िल टावर जुड़ा है.
इस मीनार की ख़ास बात ये भी है कि इसके लिए पैसा लगा रहे हैं भारतीय उद्योगपति लक्ष्मीनिवास मित्तल और इसका डिज़ाइन तैयार किया है भारतीय मूल के जानेमाने शिल्पकार अनीश कपूर ने.
बीबीसी हिंदी से बातचीत में लक्ष्मी निवास मित्तल और अनीश कपूर दोनों ने कहा कि ये सिर्फ़ एक संयोग है कि इस योजना के पीछे दो मुख्य व्यक्ति भारतीय हैं.
मित्तल ने कहा, "अनीश कपूर दुनिया भर में मशहूर कलाकार हैं, हमारे सामने और भी कई प्रस्ताव थे, विशेषज्ञों ने बहुत सोच-समझकर अनीश कपूर के डिज़ाइन को चुना है क्योंकि वही सबसे अच्छा डिज़ाइन था, उनका भारतीय होना एक संयोग है लेकिन यह गर्व की बात है कि दो भारतीय लोग इससे जुड़े हुए हैं."
अनीश कपूर के अलावा एंटनी ग्राम्ली जैसे मशहूर शिल्पकार इस योजना के लिए दौड़ में शामिल थे. अनीश कपूर न सिर्फ़ चर्चित कलाकार हैं बल्कि ख़ासे लोकप्रिय भी हैं, पिछले वर्ष उनकी कलाकृतियों की प्रदर्शनी ने लंदन में रिकॉर्डतोड़ कमाई की थी.
मेयर बोरिस जॉनसन ने लंदन में इसकी घोषणा करते हुए कहा कि "ओलंपिक खेलों के दौरान उसके बाद हमेशा के लिए ओलंपिक की यादगार के तौर पर हम एक ऐसी चीज़ चाहते थे जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाए."
दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी आर्सेलर मित्तल के चेयरमैन लक्ष्मीनिवास मित्तल ने बीबीसी से एक ख़ास बातचीत में बताया कि संयोगवश ही वे इस योजना से जुड़ गए.
उन्होंने कहा, "स्विट्ज़रलैंड के दावोस में अपना कोट टाँग रहा था तभी किसी ने मेरी पीठ पर हाथ रखकर हैलो कहा, मैंने देखा कि लंदन के मेयर बोरिस जॉनसन थे, उनसे मुश्किल से एक मिनट की बात हुई, उन्होंने कहा कि वे लंदन ओलंपिक के लिए एक यादगार टावर खड़ा करना चाहते हैं और उसके लिए उन्हें स्टील चाहिए."
मित्तल कहते हैं, "लंदन के लिए यह आर्सेलर मित्तल का एक स्थायी योगदान होगा. ओलंपिक खेलों के ख़त्म होने बाद भी उस क्षेत्र में इस टावर की वजह से व्यावसायिक गतिविधियाँ होंगी, आर्थिक विकास होगा और यह टावर सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन जाएगा."
वर्ष 2009 में जिस योजना की कल्पना की जा रही थी वह नवंबर 2011 में पर्यटकों के लिए तैयार हो जाएगा. गीज़ा के पिरामिड जितनी ऊँचाई वाले टावर पर दो रेस्त्रां होंगे और दो लिफ़्टों के ज़रिए हर घंटे 700 लोग टावर के ऊपर बने पैवेलियन पर जा सकेंगे.
लोगों को अपने बोल्ड और बड़े डिज़ाइनों से चौंकाने वाले कलाकार अनीश कपूर की कल्पना को साकार रूप देने का काम जाने-माने इंजीनियर सेसिल बॉलमोंड को सौंपा गया है.
1400 टन इस्पात लगाकर बनने वाले लाल रंग के इस टावर को लंदन के स्ट्रेटफर्ड इलाक़े में ओलंपिक स्टेडियम के ठीक पास बनाया जाएगा. मेयर बोरिस जॉनसन का कहना है कि आगे चलकर यह टावर व्यावसायिक स्तर पर चलाया जाएगा और उससे "काफ़ी कमाई" होने की उम्मीद है . 

बाबरी मस्जिद टूटने के दौरान दो राक्षस कोठारी जैन मरे थे उनका वहाँ क्या काम था?

बाबरी मस्जिद को गिराने वालों में जैन राक्षसों का क्या काम था कभी न तो किसी हिंदू ने सवाल करा न ही किसी मुसलमान ने। आप सब जानते हैं कि जैन हिंदू नहीं होते हैं वे मूर्तिपूजक होते हैं लेकिन वेदों को नहीं मानते उनके अपने नग्न देवी-देवता हैं(दुनिया में शायद ही कोई सभ्यता नग्नता को उपास्य बताती हो लेकिन इन लोगों ने हिन्दुओं में भी मूर्तिपूजा,लिंगपूजा आदि घुसा दिया,इनके राक्षस साधुओं के वेश में अनेक सम्प्रदाय बना कर हिन्दू बने बैठे रहे जिससे कि वेदों को मानने वाले निराकार ब्रह्म के उपासक भी नग्नता से जुड़े माने जाएं और इनको सम्बल मिले) मुस्लिम लोग इन्हें हिंदू ही मानते हैं ये उनका भ्रम है। अब देखिये कि किस तरह इन राक्षसों ने बाबरी मस्जिद के टूटने के प्रकरण में अपना राक्षसी कार्य करा है। आप सब जानते हैं कि कारसेवकों में दो कोठारी बन्धु थे जो कि मारे गए, बाबरी मस्जिद के टूटने के बारे में यदि सत्य विवरण जानना है तो उस समय अयोध्या में तैनात एस.एस.पी. श्री देवेन्द्र बहादुर राय की लिखी पुस्तक पढ़ें( अयोध्या-६ दिसम्बर का सत्य, प्रकाशक- सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली ११०००२)। पुस्तक के लेखक लिखते हैं कि कारसेवा सामान्य तरीके से प्रतीकात्मक हो रही थी तभी कुछ उपद्रवी लोगों ने बैरीकेड तोड़ कर विवादित स्थल पर तोड़फोड़ शुरू कर दी। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि ये उपद्रवी कोई और नहीमं बल्कि कारसेवकों के बीच में रामभक्त बन कर घुसे राक्षस ही थे जिनमेम से दो राक्षस कोठारी बंधु(जैन) मारे गये लेकिन इन राक्षसों ने आत्मघाती तरीका अपना कर भारत के निर्मल लोकतांत्रिक चेहरे पर कलंक लगा दिया बाबरी मस्जिद को तुड़वा कर। अब ये समस्या कभी नहीं सुलझेगी और राक्षसों का मनोरथ पूरा हो गया है हिन्दू-मुसलमानों मे बीच जो दूरी अंग्रेजों ने लायी थी उसे शायद समय मिटा देता लेकिन ये राक्षसी घाव कभी नहीं भरेगा। आप लोग हिन्दू धार्मिक कार्यों में जैनों की मौजूदगी को क्यों नहीं समझते???????
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

बाबरी मस्जिद टूटने के दौरान दो राक्षस कोठारी जैन मरे थे उनका वहाँ क्या काम था?

बाबरी मस्जिद को गिराने वालों में जैन राक्षसों का क्या काम था कभी न तो किसी हिंदू ने सवाल करा न ही किसी मुसलमान ने। आप सब जानते हैं कि जैन हिंदू नहीं होते हैं वे मूर्तिपूजक होते हैं लेकिन वेदों को नहीं मानते उनके अपने नग्न देवी-देवता हैं(दुनिया में शायद ही कोई सभ्यता नग्नता को उपास्य बताती हो लेकिन इन लोगों ने हिन्दुओं में भी मूर्तिपूजा,लिंगपूजा आदि घुसा दिया,इनके राक्षस साधुओं के वेश में अनेक सम्प्रदाय बना कर हिन्दू बने बैठे रहे जिससे कि वेदों को मानने वाले निराकार ब्रह्म के उपासक भी नग्नता से जुड़े माने जाएं और इनको सम्बल मिले) मुस्लिम लोग इन्हें हिंदू ही मानते हैं ये उनका भ्रम है। अब देखिये कि किस तरह इन राक्षसों ने बाबरी मस्जिद के टूटने के प्रकरण में अपना राक्षसी कार्य करा है। आप सब जानते हैं कि कारसेवकों में दो कोठारी बन्धु थे जो कि मारे गए, बाबरी मस्जिद के टूटने के बारे में यदि सत्य विवरण जानना है तो उस समय अयोध्या में तैनात एस.एस.पी. श्री देवेन्द्र बहादुर राय की लिखी पुस्तक पढ़ें( अयोध्या-६ दिसम्बर का सत्य, प्रकाशक- सामयिक प्रकाशन नई दिल्ली ११०००२)। पुस्तक के लेखक लिखते हैं कि कारसेवा सामान्य तरीके से प्रतीकात्मक हो रही थी तभी कुछ उपद्रवी लोगों ने बैरीकेड तोड़ कर विवादित स्थल पर तोड़फोड़ शुरू कर दी। हम दावे के साथ कह सकते हैं कि ये उपद्रवी कोई और नहीमं बल्कि कारसेवकों के बीच में रामभक्त बन कर घुसे राक्षस ही थे जिनमेम से दो राक्षस कोठारी बंधु(जैन) मारे गये लेकिन इन राक्षसों ने आत्मघाती तरीका अपना कर भारत के निर्मल लोकतांत्रिक चेहरे पर कलंक लगा दिया बाबरी मस्जिद को तुड़वा कर। अब ये समस्या कभी नहीं सुलझेगी और राक्षसों का मनोरथ पूरा हो गया है हिन्दू-मुसलमानों मे बीच जो दूरी अंग्रेजों ने लायी थी उसे शायद समय मिटा देता लेकिन ये राक्षसी घाव कभी नहीं भरेगा। आप लोग हिन्दू धार्मिक कार्यों में जैनों की मौजूदगी को क्यों नहीं समझते???????
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

नवभारत टाइम्स(मुंबई) के सम्पादक त्रिपाठी को करा जैनों ने सम्मानित,इक्यावन हजार में बिक गयी पत्रकारिता

तुलसी-महाप्रज्ञ विचार मंच का आचार्य तुलसी सम्मान समारोह। मंच की ओर से वर्ष 2008 का आचार्य तुलसी सम्मान डा. कन्हैयालाल नंदन को व 2009 का पत्रकार शचीन्द्र त्रिपाठी को गुजरात की राज्यपाल कमला ने दिया। डा. कन्हैयालाल नंदन अस्वस्थ होने के कारण पुरस्कार लेने नहीं पहुंच पाए तो उनकी जगह प्रतिनिधि के तौर पर पत्रकार विश्वनाथ सचदेवा को पुरस्कार स्वरूप शॉल, श्रीफल व 51 हजार रुपए का चेक दिया गया।
आप इस बात को समझ पा रहे हैं या नहीं लेकिन ये बात एकदम साफ़ है कि किस तरह नवभारत टाइम्स के संपादक को सम्मान के नाम पर इक्यावन हजार रुपये दिये जाते हैं(टाइम्स समूह भी जैनियों का ही है) कि कहीं ऐसा न हो कि इस पत्रकार के भीतर का असल पत्रकार न जाग उठे इस लिये रुपये और सम्मान के लॉलीपॉप शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे लोगों को चूसने के लिये दिये जाते रहते हैं। ये वही शचीन्द्र त्रिपाठी है जिसने कि अपने सम्पादकत्व में निकलने वाले अखबार में हिन्दी भाषा की हत्या करने का ठेका ले रखा है दोष इसका नहीं है असल में लालच है ही बुरी बला। राक्षसों का पुराना तरीका है कि इंसान के भीतर के लालच को हवा दी जाए ताकि वह उनके पक्ष में आकर खड़ा हो जाए और भले बुरे की तमीज़ खो दे। पत्रकारिता को इस तरह से खरीद कर राक्षस जन अपने काले जादू को जनता के सामने लाए जाने के अनूप मंडल के अभियान को रोकने में लगे रहते हैं। शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे ब्राह्मण जब तक अपने लालच पर जय नहीं पा लेते राक्षसी प्रवृत्तियाँ उन्हें इसी तरह से अपने हित में भ्रमित कर इस्तेमाल करती रहेंगी। शचीन्द्र त्रिपाठी यदि अपने पूर्वजों की धरोहर पर गर्व करते हैं तो तत्काल जैनों का साथ छोड़ दें।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास


नवभारत टाइम्स(मुंबई) के सम्पादक त्रिपाठी को करा जैनों ने सम्मानित,इक्यावन हजार में बिक गयी पत्रकारिता

तुलसी-महाप्रज्ञ विचार मंच का आचार्य तुलसी सम्मान समारोह। मंच की ओर से वर्ष 2008 का आचार्य तुलसी सम्मान डा. कन्हैयालाल नंदन को व 2009 का पत्रकार शचीन्द्र त्रिपाठी को गुजरात की राज्यपाल कमला ने दिया। डा. कन्हैयालाल नंदन अस्वस्थ होने के कारण पुरस्कार लेने नहीं पहुंच पाए तो उनकी जगह प्रतिनिधि के तौर पर पत्रकार विश्वनाथ सचदेवा को पुरस्कार स्वरूप शॉल, श्रीफल व 51 हजार रुपए का चेक दिया गया।
आप इस बात को समझ पा रहे हैं या नहीं लेकिन ये बात एकदम साफ़ है कि किस तरह नवभारत टाइम्स के संपादक को सम्मान के नाम पर इक्यावन हजार रुपये दिये जाते हैं(टाइम्स समूह भी जैनियों का ही है) कि कहीं ऐसा न हो कि इस पत्रकार के भीतर का असल पत्रकार न जाग उठे इस लिये रुपये और सम्मान के लॉलीपॉप शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे लोगों को चूसने के लिये दिये जाते रहते हैं। ये वही शचीन्द्र त्रिपाठी है जिसने कि अपने सम्पादकत्व में निकलने वाले अखबार में हिन्दी भाषा की हत्या करने का ठेका ले रखा है दोष इसका नहीं है असल में लालच है ही बुरी बला। राक्षसों का पुराना तरीका है कि इंसान के भीतर के लालच को हवा दी जाए ताकि वह उनके पक्ष में आकर खड़ा हो जाए और भले बुरे की तमीज़ खो दे। पत्रकारिता को इस तरह से खरीद कर राक्षस जन अपने काले जादू को जनता के सामने लाए जाने के अनूप मंडल के अभियान को रोकने में लगे रहते हैं। शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे ब्राह्मण जब तक अपने लालच पर जय नहीं पा लेते राक्षसी प्रवृत्तियाँ उन्हें इसी तरह से अपने हित में भ्रमित कर इस्तेमाल करती रहेंगी। शचीन्द्र त्रिपाठी यदि अपने पूर्वजों की धरोहर पर गर्व करते हैं तो तत्काल जैनों का साथ छोड़ दें।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास


महिला आरक्षण विधेयक के मद्देनज़र सर्वदलीय बैठक !!


सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने बजट सत्र के दूसरे चरण में महिला आरक्षण विधेयक को लोक सभा में पारित कराने के मद्देनज़र सर्वदलीय बैठक बुलाई है.
लोकसभा में संसदीय दल के नेता और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ये बैठक पांच अप्रैल को बुलाई है.
बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत 12 अप्रैल को हो रही है.
महिला आरक्षण विधयेक भारी विरोध के बीच नौ मार्च को राज्य सभा में पारित किया जा चुका है और अब इसका अगला पड़ाव लोकसभा है जहाँ इसे पारित किया जाना है.
महिला आरक्षण विधेयक में संसद और राज्य विधानमंडलों में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रवाधान है.

विरोध

महिला आरक्षण के मौजूदा स्वरूप का विरोध समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव और जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव ज़ोरदार ढ़ंग से कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी भी इस विधेयक का विरोध कर रही है.
इन नेताओं का कहना है कि महिला आरक्षण के मौजूदा सवरुप से केवल अगड़ी जाति की महिलाओं को फ़ायदा होगा.
इन पार्टियों की मांग है कि महिला आरक्षण के अंदर ही पिछड़े, दलित और मुसलमान वर्ग की महिलाओं के लिए भी सीटें आरक्षित की जाए, ताकि इस आरक्षण का फ़ायदा समाज के कमज़ोर तबक़े को मिल सके.
हालांकि सत्ताधारी और विपक्ष की अधिकतर पार्टियाँ इस विधेयक के पक्ष में हैं और राज्य सभा में इस विधेयक के पक्ष में 186 वोट पड़े थे जबकि विपक्ष में केवल एक वोट पड़े थे. कुछ छोटी पार्टियों ने राज्य सभा में इस विधेयक के मतदान का विरोध किया था और वोटिंग के दौरान इस पार्टी के नेता सदन से वॉकआउट कर गए थे. 

महिला आरक्षण विधेयक के मद्देनज़र सर्वदलीय बैठक !!


सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने बजट सत्र के दूसरे चरण में महिला आरक्षण विधेयक को लोक सभा में पारित कराने के मद्देनज़र सर्वदलीय बैठक बुलाई है.
लोकसभा में संसदीय दल के नेता और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ये बैठक पांच अप्रैल को बुलाई है.
बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत 12 अप्रैल को हो रही है.
महिला आरक्षण विधयेक भारी विरोध के बीच नौ मार्च को राज्य सभा में पारित किया जा चुका है और अब इसका अगला पड़ाव लोकसभा है जहाँ इसे पारित किया जाना है.
महिला आरक्षण विधेयक में संसद और राज्य विधानमंडलों में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रवाधान है.

विरोध

महिला आरक्षण के मौजूदा स्वरूप का विरोध समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव और जनता दल यूनाइटेड के नेता शरद यादव ज़ोरदार ढ़ंग से कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी भी इस विधेयक का विरोध कर रही है.
इन नेताओं का कहना है कि महिला आरक्षण के मौजूदा सवरुप से केवल अगड़ी जाति की महिलाओं को फ़ायदा होगा.
इन पार्टियों की मांग है कि महिला आरक्षण के अंदर ही पिछड़े, दलित और मुसलमान वर्ग की महिलाओं के लिए भी सीटें आरक्षित की जाए, ताकि इस आरक्षण का फ़ायदा समाज के कमज़ोर तबक़े को मिल सके.
हालांकि सत्ताधारी और विपक्ष की अधिकतर पार्टियाँ इस विधेयक के पक्ष में हैं और राज्य सभा में इस विधेयक के पक्ष में 186 वोट पड़े थे जबकि विपक्ष में केवल एक वोट पड़े थे. कुछ छोटी पार्टियों ने राज्य सभा में इस विधेयक के मतदान का विरोध किया था और वोटिंग के दौरान इस पार्टी के नेता सदन से वॉकआउट कर गए थे. 

अजमल कसाव का ट्रायल पूरा !!


मुंबई हमले के आरोपी आमिर अजमल कसाब के खिलाफ स्पेशल कोर्ट में ट्रायल पूरा हो गया है और अब इस मा

मले में 3 मई को फैसला आएगा। सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने बुधवार को कहा कि कसाब के खिलाफ ट्रायल पूरा हो गया है और 3 मई को अदालत उसे दोषी पाती है, तो सज़ा का एलान होगा।

निकम ने कहा कि दुनिया में संभवत: पहली बार किसी खूंखार आतंकवादी के खिलाफ सात महीने में ही प्रॉसिक्यूशन पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि इस दौरान कसाब ने अदालत की कार्यवाही को पटरी से उतारने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए लेकिन हमने सब बेकार कर दिए। 
 

अजमल कसाव का ट्रायल पूरा !!


मुंबई हमले के आरोपी आमिर अजमल कसाब के खिलाफ स्पेशल कोर्ट में ट्रायल पूरा हो गया है और अब इस मा

मले में 3 मई को फैसला आएगा। सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने बुधवार को कहा कि कसाब के खिलाफ ट्रायल पूरा हो गया है और 3 मई को अदालत उसे दोषी पाती है, तो सज़ा का एलान होगा।

निकम ने कहा कि दुनिया में संभवत: पहली बार किसी खूंखार आतंकवादी के खिलाफ सात महीने में ही प्रॉसिक्यूशन पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि इस दौरान कसाब ने अदालत की कार्यवाही को पटरी से उतारने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए लेकिन हमने सब बेकार कर दिए। 
 

लो क सं घ र्ष !: सत्ता की डोली का कहार, बुखारी साहब आप जैसे लोग हैं

दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद उल्ला बुखारी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचने वाली सियासी पार्टियों ने आजादी के बाद से मुसलमानों को अपनी सत्ता की डोली का कहार बना दिया है।
बुखारी जी आपका बयान बिल्कुल ठीक है परन्तु क्या आप इस बात से इत्तेफाक़ करेंगे कि सियासी पार्टियों को यह मौका फराहम कौन करता है? आप और आपके बुज़रगवार वालिद मोहतरम जो हर चुनाव के पूर्व अपने फतवे जारी करके इन्हीं राजनीतिक पार्टियों, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं, को लाभ पहुँचाते थे। लगभग हर चुनाव से पूर्व जामा मस्जिद में आपकी डयोढ़ी पर राजनेता माथा टेक कर आप लोगों से फतवा जारी करने की भीख मांगा करते थें। वह तो कहिए मुस्लिम जनता ने आपके फतवों को नजरअंदाज करके इस सिलसिले का अन्त कर दिया।
सही मायनों में राजनीतिक पार्टियों की डोली के कहार की भूमिका तो मुस्लिम लीडरों व धर्मगुरूओं ने ही सदैव निभाई जो कभी भाजपा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी या एन0डी0ए0 के लिए जुटते दिखायी दिये तो कभी गुजरात में नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती की डोली के कहार।
मुसलमानो की बदहाल जिन्दगी पर अफसोस करने के बजाए उसकी बदहाली की विरासत पर आप जैसे लोग आजादी के बाद से ही अपनी रोटियाँ सेकते आए हैं। शायद यही कारण है कि हर राजनीतिक पार्टी अब अपने पास एक मुस्लिम मुखौटे के तौर पर मुसलमान दिखने वाली एक दाढ़ी दार सूरत सजा कर स्टेज पर रखता है और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का शोषण राजनीतिक दल इन्हीं लोगों के माध्यम से कराते आए हैं। लगभग हर चुनाव के अवसर पर आप जैसे मुस्लिम लीडरों की बयानबाजी ही मुसलमानों की धर्मनिरपेक्ष व देश प्रेम की छवि को सशंकित कर डालती है और अपने विवेक से वोट डालने के बावजूद उसके वोटों की गिनती जीतने वाला उम्मीदवार अपने पाले में नहीं करता।


-मोहम्मद तारिक खान

लो क सं घ र्ष !: सत्ता की डोली का कहार, बुखारी साहब आप जैसे लोग हैं

दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद उल्ला बुखारी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचने वाली सियासी पार्टियों ने आजादी के बाद से मुसलमानों को अपनी सत्ता की डोली का कहार बना दिया है।
बुखारी जी आपका बयान बिल्कुल ठीक है परन्तु क्या आप इस बात से इत्तेफाक़ करेंगे कि सियासी पार्टियों को यह मौका फराहम कौन करता है? आप और आपके बुज़रगवार वालिद मोहतरम जो हर चुनाव के पूर्व अपने फतवे जारी करके इन्हीं राजनीतिक पार्टियों, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं, को लाभ पहुँचाते थे। लगभग हर चुनाव से पूर्व जामा मस्जिद में आपकी डयोढ़ी पर राजनेता माथा टेक कर आप लोगों से फतवा जारी करने की भीख मांगा करते थें। वह तो कहिए मुस्लिम जनता ने आपके फतवों को नजरअंदाज करके इस सिलसिले का अन्त कर दिया।
सही मायनों में राजनीतिक पार्टियों की डोली के कहार की भूमिका तो मुस्लिम लीडरों व धर्मगुरूओं ने ही सदैव निभाई जो कभी भाजपा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी या एन0डी0ए0 के लिए जुटते दिखायी दिये तो कभी गुजरात में नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती की डोली के कहार।
मुसलमानो की बदहाल जिन्दगी पर अफसोस करने के बजाए उसकी बदहाली की विरासत पर आप जैसे लोग आजादी के बाद से ही अपनी रोटियाँ सेकते आए हैं। शायद यही कारण है कि हर राजनीतिक पार्टी अब अपने पास एक मुस्लिम मुखौटे के तौर पर मुसलमान दिखने वाली एक दाढ़ी दार सूरत सजा कर स्टेज पर रखता है और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का शोषण राजनीतिक दल इन्हीं लोगों के माध्यम से कराते आए हैं। लगभग हर चुनाव के अवसर पर आप जैसे मुस्लिम लीडरों की बयानबाजी ही मुसलमानों की धर्मनिरपेक्ष व देश प्रेम की छवि को सशंकित कर डालती है और अपने विवेक से वोट डालने के बावजूद उसके वोटों की गिनती जीतने वाला उम्मीदवार अपने पाले में नहीं करता।


-मोहम्मद तारिक खान

Today’s Punch by Captain:

MINDBLOWING: VIJAYAKANTH'S Dialogues in English

1) U can study and get any certificates. But ucannot get ur death certificate


2) U may have AIRTEL or BSNL connection but when u

sneeze u ll say HUTCH



3 ) U can bcome an engineer if u study in

engineering college. U cannot bcom a president if
u studies in Presidency College



4 ) U can expect a BUS from a BUS stop ... u

cannot expect a FULL from FULL stop



5) A mechanical engineer can bcom a mechanic but a

software engineer cannot bcom a software



6 ) U can find tea in teacup. But cannot find world

in world cup



7) U can find keys in Keyboard but u cannot find mother in motherboard.




cid:9.552006539@web8407.mail.in.yahoo.com
WHY I OPENED THIS MAIL

दोहे और उक्तियाँ !!


आडम्बर तजि कीजिए, गुण-संग्रह चित चाय।


छीर रहित गउ ना बिकै, आनिय घंट बंधाय।।


(वृंद कवि)

~~~~~

दोहे और उक्तियाँ !!


आडम्बर तजि कीजिए, गुण-संग्रह चित चाय।


छीर रहित गउ ना बिकै, आनिय घंट बंधाय।।


(वृंद कवि)

~~~~~

लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष परिवार ने अपना शुभचिंतक खो दिया

लोकसंघर्ष पत्रिका के कार्यक्रम को संबोधित करती मोना. .हार्वे


लोकसंघर्ष परिवार की शुभचिंतक तथा पत्रिका के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान अदा करने वाली अदाकारा मोना. .हार्वे की हत्या उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बदमाशों ने उनके सर को मेज के पाये से कूंच कर कर डाली। मोना फिल्म उमराव जान में रेखा की सहेली का रोल किया था। वह हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर थी। लालबाग के कंधारी लेन के मकान नंबर 26 में 62 वर्षीय मोना अकेले रहती थी। इससे पूर्व लखनऊ में ही अंतर्राष्ट्रीय महिला संगठन की पूर्व अंतर्राष्ट्रीय महासचिव सुरजीत कौर की हत्या रात को उनके मकान में कैंची से गला काट कर कर दी गयी थी। उत्तर प्रदेश में सरकारें चाहे जो भी दावा करें, कानून व्यवस्था की स्तिथि ठीक नहीं है। अकेले रहने वाली महिलाओं का जीवन सुरक्षित नहीं रह गया है। राह चलते महिलाओं के साथ बदतमीजी, चेन स्नेचिंग आम बात है। प्रदेश के पुलिस मुखिया चाहे जो राग अलापे एक मामूली चोरी का खुलासा करने में असमर्थ हैं लोकसंघर्ष परिवार मोना जी हत्या से अत्यंत दुखी है और हमारे परिवार ने अपना एक शुभचिंतक खो दिया है।


नवाब वाजिद अली शाह की वाल पेंटिंग के साथ मोना.ए.हार्वे

लो क सं घ र्ष !: लोकसंघर्ष परिवार ने अपना शुभचिंतक खो दिया

लोकसंघर्ष पत्रिका के कार्यक्रम को संबोधित करती मोना. .हार्वे


लोकसंघर्ष परिवार की शुभचिंतक तथा पत्रिका के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान अदा करने वाली अदाकारा मोना. .हार्वे की हत्या उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बदमाशों ने उनके सर को मेज के पाये से कूंच कर कर डाली। मोना फिल्म उमराव जान में रेखा की सहेली का रोल किया था। वह हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर थी। लालबाग के कंधारी लेन के मकान नंबर 26 में 62 वर्षीय मोना अकेले रहती थी। इससे पूर्व लखनऊ में ही अंतर्राष्ट्रीय महिला संगठन की पूर्व अंतर्राष्ट्रीय महासचिव सुरजीत कौर की हत्या रात को उनके मकान में कैंची से गला काट कर कर दी गयी थी। उत्तर प्रदेश में सरकारें चाहे जो भी दावा करें, कानून व्यवस्था की स्तिथि ठीक नहीं है। अकेले रहने वाली महिलाओं का जीवन सुरक्षित नहीं रह गया है। राह चलते महिलाओं के साथ बदतमीजी, चेन स्नेचिंग आम बात है। प्रदेश के पुलिस मुखिया चाहे जो राग अलापे एक मामूली चोरी का खुलासा करने में असमर्थ हैं लोकसंघर्ष परिवार मोना जी हत्या से अत्यंत दुखी है और हमारे परिवार ने अपना एक शुभचिंतक खो दिया है।


नवाब वाजिद अली शाह की वाल पेंटिंग के साथ मोना.ए.हार्वे

सोमालिया जल दस्युओं ने फिर १५० भारतीयों को बंधक बना लिया है !!

सोमालियाई जलदस्युओं ने अब तक की सबसे बड़ी अपहरण की घटना को अंजाम देते हुए 8 नावों पर सवार 120 भारतीय नाविकों को बंधक बना लिया है। ये नाविक सोमालिया से दुबई लौट रहे थे। एक अंग्रेजी न्यूज चैनल के अनुसार नाविकों के परिवारवालों ने सरकार से उन्हें छुड़वाने की अपील की है।

बंधक बनाए गई भारतीय नाव सेयचेल्स के पास होने की खबर है। नावों पर सवाल भारतीय गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के बताए गए हैं। इस नाविकों ने सोमालिया के किसमायो में आखरी बार लंगर डाला था और यहीं से अपनी नावों पर सामान भी लादा था। तट छोड़ते ही जलदस्युओं ने उनका अपहरण कर लिया।

अब तक दस्युओं ने उनसे किसी तरह की फिरौती नहीं मांगी है। भारतीय नौसेना ने अपहरण की घटना की पुष्टी की है। नौसेना अधिकारियों के अनुसार वह बंधकों को छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रही है और उन्हें पूरा भरोसा है कि सभी भारतीयों को सुरक्षित छुड़ा लिया जाएगा।

सोमालिया जल दस्युओं ने फिर १५० भारतीयों को बंधक बना लिया है !!

सोमालियाई जलदस्युओं ने अब तक की सबसे बड़ी अपहरण की घटना को अंजाम देते हुए 8 नावों पर सवार 120 भारतीय नाविकों को बंधक बना लिया है। ये नाविक सोमालिया से दुबई लौट रहे थे। एक अंग्रेजी न्यूज चैनल के अनुसार नाविकों के परिवारवालों ने सरकार से उन्हें छुड़वाने की अपील की है।

बंधक बनाए गई भारतीय नाव सेयचेल्स के पास होने की खबर है। नावों पर सवाल भारतीय गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के बताए गए हैं। इस नाविकों ने सोमालिया के किसमायो में आखरी बार लंगर डाला था और यहीं से अपनी नावों पर सामान भी लादा था। तट छोड़ते ही जलदस्युओं ने उनका अपहरण कर लिया।

अब तक दस्युओं ने उनसे किसी तरह की फिरौती नहीं मांगी है। भारतीय नौसेना ने अपहरण की घटना की पुष्टी की है। नौसेना अधिकारियों के अनुसार वह बंधकों को छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रही है और उन्हें पूरा भरोसा है कि सभी भारतीयों को सुरक्षित छुड़ा लिया जाएगा।

बच्चन परिवार और मीडिया !!

पिछले दिनों श्री अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के साथ विभिन्न राजनीतिक मंचों पर जोकुछ हुआ, ग़लत हुआ, पर जिस तरह मीडिया हाथ धोकर इस घटना के पीछे पड़ा हुआ है, वो कहाँतक उचित है ? हर चेनल पर यही समाचार है |

मीडिया
क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |


किसी
भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |


धर्म
तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?

पूर्णिमा शर्मा

बच्चन परिवार और मीडिया !!

पिछले दिनों श्री अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के साथ विभिन्न राजनीतिक मंचों पर जोकुछ हुआ, ग़लत हुआ, पर जिस तरह मीडिया हाथ धोकर इस घटना के पीछे पड़ा हुआ है, वो कहाँतक उचित है ? हर चेनल पर यही समाचार है |

मीडिया
क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |


किसी
भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |


धर्म
तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?

पूर्णिमा शर्मा

बच्चन परिवार और मीडिया !!

पिछले दिनों श्री अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के साथ विभिन्न राजनीतिक मंचों पर जोकुछ हुआ, ग़लत हुआ, पर जिस तरह मीडिया हाथ धोकर इस घटना के पीछे पड़ा हुआ है, वो कहाँतक उचित है ? हर चेनल पर यही समाचार है |

मीडिया
क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |


किसी
भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |


धर्म
तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?

पूर्णिमा शर्मा

बच्चन परिवार और मीडिया !!

पिछले दिनों श्री अमिताभ बच्चन और उनके परिवार के साथ विभिन्न राजनीतिक मंचों पर जोकुछ हुआ, ग़लत हुआ, पर जिस तरह मीडिया हाथ धोकर इस घटना के पीछे पड़ा हुआ है, वो कहाँतक उचित है ? हर चेनल पर यही समाचार है |

मीडिया
क्यों भूल जाता है कि अमिताभ बच्चन और उबके परिवार के लोग कलाकार हैं, और कलाकारों को किसी भी प्रकार की राजनीति में घसीटना अच्छी बात नहीं | कलाकार किसी राजनीतिक दल की मिलकियत तो होता नहीं, वो तो देश का सम्मान होता है | उनके अपमान को इस तरह हर चेनल पर लगातार दिखाया जाना, राजनेताओं को बुलाकर इस विषय पर परिचर्चाएं करना, हमारे विचार से तो अच्छी बात नहीं | और बहुत सी समस्याएं हैं जिनके विषय में यदि मीडिया चाहे तो लोगों में जागरूकता पैदा कर सकता है | मसलन, देश या समाज के प्रति आम आदमी के क्या कर्तव्य हैं और क्या अधिकार हैं - यदि मीडिया इस सबके विषय में लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाये, बजाय इसके कि किस फिल्म कलाकार के साथ क्या कुछ घट रहा है, तो क्या सकारात्मक नहीं होगा ? आज आलम ये है कि हम लोग कारों में घूमते हुए कुछ खाते पीते हैं और कार का शीशा खोलकर खाने पीने के खाली पैकेट्स बाहर सड़क पर फेंक देते हैं, इतना भी नहीं देखने का प्रयास करते कि कोई पैदल या स्कूटर पर आ रहा होगा तो उसके सर पर जाकर गिरेगा कूड़ा |


किसी
भोज में जाएंगे तो डस्टबिन रखी होने पर भी खाने के दौने डस्टबिन के बाहर ही डालेंगे | किसी पर्वतीय स्थल पर सैर के लिए जाएंगे तो सैर करते समय जो भी पान मसाला या चिप्स आदि खा रहे होंगे उसके खाली पाउच वहीं फेंक देंगे | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिस जगह वो पाउच गिरेंगे उस जगह तो ज़मीन में फिर कभी घास भी नहीं उगेगी | इतना भी नहीं सोचेंगे कि जिन पर्वतीय स्थलों की प्राकृतिक सुषमा निहारने आते हैं उनका कितना नुक्सान कर रहे हैं, कितना उजाड़ बना रहे हैं उसे और अपनी अगली पीढी को कितना कुछ देखने से वंचित कर रहे हैं | धार्मिक अनुष्ठान होते हैं तो पूरी आवाज़ में लाउडस्पीकर लगाकर भजन गाते हैं | ज़रा सोचिये किसी के घर में कोई मरीज़ हो सकता है, किसी को अगली सुबह इंटरव्यू के लिए जाना हो सकता है, किसी के बच्चे की परीक्षा हो सकती है अगली सुबह, क्या होगा उन लोगों का ? धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला होता है, क्यों चाहते हैं कि दूसरे भी न चाहते हुए भी उस शोर को सुनें ? यदि ऐसा ही करना है तो किसी ऑडीटोरियम में जाकर कर सकते हैं | पर नहीं, करेंगे तो अपनी सोसायटी या कालोनी में ही, और दूसरों की नीद खराब करेंगे |


धर्म
तो यह सब नहीं सिखाता | इसी तरह की न जाने कितनी सामाजिक समस्याओं से आम आदमी को आए दिन रू-बरू होना पड़ता है | मीडिया क्यों नहीं फिल्म कलाकारों को उनके हाल पर छोड़कर इसी प्रकार की समस्यायों पर विचार करता और जन साधारण को जागरूक करने का प्रयास करता ?

पूर्णिमा शर्मा