तुलसी-महाप्रज्ञ विचार मंच का आचार्य तुलसी सम्मान समारोह। मंच की ओर से वर्ष 2008 का आचार्य तुलसी सम्मान डा. कन्हैयालाल नंदन को व 2009 का पत्रकार शचीन्द्र त्रिपाठी को गुजरात की राज्यपाल कमला ने दिया। डा. कन्हैयालाल नंदन अस्वस्थ होने के कारण पुरस्कार लेने नहीं पहुंच पाए तो उनकी जगह प्रतिनिधि के तौर पर पत्रकार विश्वनाथ सचदेवा को पुरस्कार स्वरूप शॉल, श्रीफल व 51 हजार रुपए का चेक दिया गया।
आप इस बात को समझ पा रहे हैं या नहीं लेकिन ये बात एकदम साफ़ है कि किस तरह नवभारत टाइम्स के संपादक को सम्मान के नाम पर इक्यावन हजार रुपये दिये जाते हैं(टाइम्स समूह भी जैनियों का ही है) कि कहीं ऐसा न हो कि इस पत्रकार के भीतर का असल पत्रकार न जाग उठे इस लिये रुपये और सम्मान के लॉलीपॉप शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे लोगों को चूसने के लिये दिये जाते रहते हैं। ये वही शचीन्द्र त्रिपाठी है जिसने कि अपने सम्पादकत्व में निकलने वाले अखबार में हिन्दी भाषा की हत्या करने का ठेका ले रखा है दोष इसका नहीं है असल में लालच है ही बुरी बला। राक्षसों का पुराना तरीका है कि इंसान के भीतर के लालच को हवा दी जाए ताकि वह उनके पक्ष में आकर खड़ा हो जाए और भले बुरे की तमीज़ खो दे। पत्रकारिता को इस तरह से खरीद कर राक्षस जन अपने काले जादू को जनता के सामने लाए जाने के अनूप मंडल के अभियान को रोकने में लगे रहते हैं। शचीन्द्र त्रिपाठी जैसे ब्राह्मण जब तक अपने लालच पर जय नहीं पा लेते राक्षसी प्रवृत्तियाँ उन्हें इसी तरह से अपने हित में भ्रमित कर इस्तेमाल करती रहेंगी। शचीन्द्र त्रिपाठी यदि अपने पूर्वजों की धरोहर पर गर्व करते हैं तो तत्काल जैनों का साथ छोड़ दें।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास
nice
ReplyDeleteभाई सबकी अपनी अपनी कीमत है ऐसा लोग सोचते हैं पत्रकारिता भी सड़क पर खड़ी वेश्या की तरह बिक रही है तो इसमें दोष नहीं दिखता क्योंकि दर असल देश दलालों और भड़वों से भर चुका है। थू... थू... आक्थू... है इस भाषा के हत्यारे पर
ReplyDeleteजय जय भड़ास