एक हसीना जो आइना देखने में हिचकिचाती है : न्यायपालिका

आजकल भड़ास पर बड़ी-बड़ी बातें नहीं हो रही हैं कुछ लोगों को ऐसा लगने लगा कि भड़ास को ठंड लग गयी है जिस कारण ठिठुरते हुए दिन भर में एक पोस्ट लोकसंघर्ष के रास्ते आ जाती है। कल भाईसाहब सुमन जी की पोस्ट पढ़ा जिसमें उन्होंने साफ़ शब्दों में लिखा है कि यदि उन्होंने अक्षरशः सत्य स्थिति को लिख दिया तो उनकी जगह जेल में होगी। ये बात कितनी लज्जास्पद है कि हमारे महान देश के लोकतंत्र का एक स्तंभ इतना हेकड़ीबाज है कि अपनी समीक्षा या आलोचना करने वालों को उठा कर जेल में ठूंस देता है। जबकि सब देख रहे हैं कि कोर्ट कचहरी में किस तरह काम हो रहा है। भाई सुमन जी ने लिखा कि कानून का पालन करवाने वाली एजेंसियों में सदाचरण की दरकार है तो क्या इस खंभे की ईंटों को मरम्मत की जरूरत नहीं है? जज अपनी सम्पत्ति का खुलासा करने में दुनिया भर का नाटक कर लेते हैं,लम्बी लम्बी बहसें हो जाती हैं। कोई कहता है कि अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिये जो कानून बनाए थे वो अब तक चल रहे हैं आदि..आदि। मैंने संविधान पर समीक्षात्मक शैली में लिखी दो पुस्तकें बड़े भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव के घर पर पढ़ी हैं जिसमें से एक मुंबई के एक पुराने पत्रकार सक्सेना(नाम याद नहीं) जिसका नाम था "संविधान समीक्षा" और दूसरी है कनक तिवारी जी की लिखी हुई "संविधान का सच" और तीसरी किताब "भारत का आइन" मैं पढ़ न सकी क्योंकि व उर्दू में है। मैं मानती हूं कि जब इस तरह की पुस्तकें प्रकाशित हो सकती हैं तो फिर हम क्यों नहीं लिख सकते? यदि हमारा संविधान हमें सत्य वस्तुस्थिति बताने से रोक रहा है तो निःसंदेह वह "लोगों के लिये, लोगों के द्वारा, लोगों का" तो हरगिज़ नहीं हो सकता है। कुछ लोग जो कि सत्ता और न्यायप्रणाली को जान समझ गये हैं वो वहां पीढ़ी दर पीढ़ी आसीन रह कर देश की जनता का दोहन करेंगे ये कह कर कि हमारे बारे में चूं चपड़ करी तो जेल में डाल दिया जाएगा, ऐसी स्थिति में आप सब खुद आंकलन कर लें कि हम सब किस हद तक स्वतंत्र हैं।
सुमन भाईसाहब जरा स्थिति बताएं स्पष्टतः कि यदि हम ऐसी हसीना को आइना दिखाने का दुःसाहस करते हैं तो अधिकतम क्या सजा होगी यानि क्रूर से क्रूर न्यायाधीश (यहां न्यायाधीश के लिये क्रूर शब्द परिस्थितिवश प्रयोग करा गया है )क्या कड़ी से कड़ी सजा देगा?
जय जय भड़ास

No comments:

Post a Comment