उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक अधिवक्ता के ऊपर अपहरण व हत्या का वाद दर्ज होता है ।पुलिस ने जांच की और कहा कि अधिवक्ता ने अपना जुर्म इकबाल कर लिया है। लाश का पंचायतनामा और उसके बाद पोस्मार्टम हुआ । अभियुक्त को कारागार में निरुद्ध कर दिया गया। न्यायलय में आरोप पत्र दाखिल हो गया बाद में जिस व्यक्ति की अपहरण व हत्या अधिवक्ता को 55 दिन जेल में रहना पड़ा हो, वह व्यक्ति जिन्दा है ।
कारागार में हजारो व्यक्ति बेगुनाह निरुद्ध हैं। उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है । जिस अपराध में निरुद्ध हैं , उस अपराध के घटनास्थल को भी उन्होंने नहीं देखा है। विवेचना में पुलिस ने उनके ऊपर लगाये गए आरोप मय साक्ष्य के सही पाए गए हैं । कुछ अपराधो में विवेचना अधिकारी पुलिस उपाधीक्षक होते हैं उन अपराधो में विवेचना का स्तर और भी घटिया है । कथित दहेज़ हत्या के मामलो में हजारो बेगुनाह स्त्रियाँ व पुरुष कारागार में निरुद्ध हैं। विवेचना अधिकारी ने कार्यालय के अन्दर ही बैठ कर विवेचनाएं कर डाली हैं। उनके लिए गुनाहगार व बेगुनाह व्यक्ति में कोई अंतर नहीं है जब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक अधिवक्ता के साथ ऐसा हो सकता है तो पूरे प्रदेश का हाल क्या होगा ? इसलिए ऐसी पुलिस को सलाम करने की जरूरत है, सम्मान करने की जरूरत है अन्यथा हमारा और आपका भी नंबर आ सकता है ।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
भाई आप तो बस इतना खुलासा कर दीजिये कि इतने दिनों से किस टोटके के कारण आप और आपके जैसे लोग बचे हुए हैं क्या गले में टाई के साथ निम्बू-मिर्ची भी लटकाते हैं कि पुलिसिया नजर से बच सकें???
ReplyDeleteजय जय भड़ास
good
ReplyDeleteबहुत खूब,
ReplyDeleteमाया की राज की माया.
वैसे ये माया पूर्ववर्ती सरकारों में भी होती रही है.
हम तो ऐसे पुलिसिये को जरूर सलाम करेंगे जो खाकी में सियारों की जमात हैं.
जय जय भड़ास