मुर्गा

मुर्गा


हर एक जन्मदिन पर मेरे


मुर्गा कटता है।


उसकी गर्दन पर


आहिस्ता-आहिस्ता फिरती छुरी


को महसूस किया जाता है अक्सर


खाना खाने के फौरन बाद


और मर्सिया गाता है पूरा परिवार;


फिर उसकी चबी हड्डियों को बचे चावल को और


गंधाती प्याज को फेंक देते हैं


पालतू कुत्ते के सामने लप-लप खाने के लिये;


रात भर जी भर के आती हैं


डकारे और सपने में दिखता है मुर्गे का तड़पना...


और .....सुबह होते ही


जुट जाते हैं हम सब


बचा हुआ मुर्गा खाने के लिये


क्योंकि सीज जाता है वह तब तक..।


प्रणव सक्सेना "amitraghat.blogspot.com"

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