मटुक साहब ! प्रेम भी बलशाली लोग ही करते हैं और पा लेते हैं

निरीह और असहाय को अधिकार दिलाया जाता है. शक्तिशाली लोग अधिकार स्वयं ले लेते हैं. हत्या करने वाले लोग बलशाली होते हैं. उन्हें अधिकार दिलाने की तो बात ही बेमानी है. जज के द्वारा मृत्युदंड देना एक व्यवस्था का अंग है. कोई भी व्यवस्था बनेगी तो उसमें न्यायाधीश होंगे और जब तक दुनिया में आततायी हैं, तब तक दंड का प्रावधान भी रहेगा.मेरा मामला तो आत्महत्या के अधिकार से जुड़ा है.

मटुक साहब, आपने मुनव्वर सुल्ताना आपा को लिखा है कि हत्या बलशाली लोग करते हैं उन्हें अधिकार दिलाने की बात बेमानी है वे स्वयं ही अधिकार ले लेते हैं। आपकी वह उपलब्धि जिसे आपने हासिल कर के इतनी ख्याति हासिल करी है यानि प्रेम प्राप्ति क्या वह किसी व्यवस्था के अंतर्गत हुआ है(आशय कानूनी अथवा सामाजिक व्यवस्था से है) अथवा आपने स्वयं ले लिया है? मैं मानता हूं कि प्रेम भी बलशाली लोग ही करते हैं और पा लेते हैं महादीन दीनबंधु जैसे लोग तो बस टीवी पर ही आपकी प्रेयसी को देख कर आहें भर लेते हैं और मन में कुंठाएं पाले जीवन बिता लेते हैं या ढो लेते हैं। मन में आपकी प्रेयसी बसी है और जीवन पत्नी के साथ बीत रहा है और "बिताऊ जीवन" के परिणाम मुन्ना, पप्पू और बबली भी आते जाते रहते हैं। क्या ये एक मानसिक आत्महत्या जैसी स्थिति नहीं है? आप सचमुच शरीर को स्वेच्छा से त्याग देने के कानूनी अधिकार के समर्थन में हैं? वास्तव में आप मान रहे हैं कि सामाजिक मनुष्य इतना निजी हो जाए तो काफ़ी हद तक स्थिति सामान्य हो जाएगी? बस इतना और कि क्या आप जो कुछ भी करते हैं या सोचते हैं उस पर संविधान की मुहर लगवाने के विषय में चिंतित रहते हैं। ये कानून के प्रति चिंता और कानूनी अधिकार का भाव सिर्फ़ इसी विषय पर है या अन्य विषयों पर भी? प्रतीक्षा में......
जय जय भड़ास

2 comments:

  1. दीनबंधुji जैसे लोग तो बस टीवी पर ही आपकी प्रेयसी को देख कर आहें भर लेते हैं और मन में कुंठाएं पाले जीवन बिता लेते हैं या ढो लेते हैं।kya such hai?

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  2. आपको क्यों ऐसा लगता है मुनेन्द्र भाई कि आपकी किसी भी बात का उत्तर मिलने वाला है?
    जय जय भड़ास

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