हर शाम भी तुम्हारी तरह क्यों
सहमी सी चली आती है,
सामने बैठी रहती है,
बिन सवाल, बिन जवाब,
और फ़िर अंधेरा छोड़कर ऐसे चली जाती है,
जैसे कभी आई ही न थी।

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