हर शाम भी तुम्हारी तरह क्यों
सहमी सी चली आती है,
सामने बैठी रहती है,
बिन सवाल, बिन जवाब,
और फ़िर अंधेरा छोड़कर ऐसे चली जाती है,
जैसे कभी आई ही न थी।

1 comment:

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

सुन्दर,
लगे रहिये
जय जय भड़ास

Post a Comment