यह स्वार्थ सिन्धु का गौरव
अति पारावार प्रबल है।
सर्वश्व समाहित इसमें,
आतप मार्तंड सबल है॥
मृदुभाषा का मुख मंडल,
है अंहकार की दारा।
सिंदूर -मोह-मद-चूनर,
भुजपाश क्रोध की करा॥
आश्वाशन आभा मंडित,
इर्ष्या से अधर सजाये।
पर द्रोही कंचन काया,
सुख शान्ति जलाती जाए॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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