जीवन से संघर्ष, विकलांगता को किया विकलांग.

कहते हैं हस्तरेखा यानि की हाथों की लकीरें आपके भविष्य को बताती है, जीवन की लडाई में इन लकीरों के फकीर की कमी नही है मगर क्या जिन्दगी इन लकीरों के सहारे ही चलती है।





मेल से मिले इन तस्वीरों ने सोचने को विवश कर दिया, निसंदेह जिन्दगी की राह में हम ही सेनापति होते हैं और बस जीत का जज्बा, आपको कभी असहाय नही होने देता।





पैरों से जिन्दगी की जंग




हाथों का न होना जीवन की रूकावट नही।


साइकल का पंक्चर पैर से बन सकता है।


हथोडी और कील भी पैरों से लगाना।


रेती चलाने के लिए भी पैर ही।



ट्यूब में गोंद भी पैर से ही।


चिप्पी का खोल पैर से ही हटाना।


गोंद को ट्यूब पर कलाकारी एक लगना।


चिप्पी लगा हथोडी चला


कलाकारी हाथों के बगैर


जीवन रण में जौहर


किसी से कम नही


कर दिया ठीक


जिन्दगी की जंग जारी


एक काम ख़तम किया, लम्बी जिन्दगी में और भी लडाइयां लड़नी है, ऐसा जोश और उत्साह रहा तो हर कदम पर जिन्दगी जीतती रहेगी,सलाम इस जज्बे को।



15 comments:

  1. अरे वाह। मान गये।

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  2. जिजीविषा अदम्य होती है। इस जुझारू व्यक्तित्व को सलाम। पैसे के लिए अपराध करने वालों को इससे सीख लेनि चाहिए। आपको साधुवाद।

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  3. जिजीविषा अदम्य होती है। इस जुझारू व्यक्तित्व को सलाम। पैसे के लिए अपराध करने वालों को इससे सीख लेनी चाहिए। आपको साधुवाद।

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  4. मन में संकल्प और विश्वास हो तो मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। रजनीश जी आपको धन्यवाद।

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  5. रजनीश जी आपने जिन्दगी को तलाशने का जो काम जारी रखा है, नई-नई खोज-खबर, वैसे व्यक्तित्व की, जो समाज में आशा जागते है, युवा पीढियों में उत्साह जागते है. निश्चित ही ऐसा काम कोई सच्चा साधु ही कर सकता है. और फिर समाज को बिभिन्न आयामों में देखने और उसे प्रकाश में लाने का कार्य से कोई भी संवेदनशील प्राणी अभिभूत होगा, आपको लाख-लाख आशीष देगा,
    मेरा सादर अभिवादन स्वीकार कीजिये,


    Arun Kumar jha.
    Chief Editor
    www.drishtipat.com &
    Drishtipat Hindi Monnthly Magazine.

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  6. bahut hi dil ko choo lene wali post lagayi hai.......adamya sahas aur dridh ichcha shakti ke balboote par kya nhi kiya ja sakta ye uska udaharan hai..........ek baar sankalp kar to lein........salaam hei us saahas ko..........koti koti naman..........aap aise hi post lagate rahiye........pata nhi kahan se late hain......sach aapka zindagi ko dekhne ka nazariya kabil-e-tarif hai.

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  7. यह वाकई अनकही सी है.. सलाम ज़िन्दगी

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  8. बिलकुल सही है आपकी बात लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि कर्म प्रधान है मगर फल अपने हाथ मे नहीं बस वही वो लकीरें हैं चाहे इसे माथे की कहें या हाथ की फल तो तकदीर से ही मिलता है किसी को कर्म कर के भी नहीं मिलता किसी को बैठे बिठाये मिल जाता है ये कर्म की प्रधानता है बहुत विस्त्रित दायरा है इस विशय का कुछ अनकहरब भी है इसमे आभार्

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  9. आपका यह कार्य सराहनीय है |
    ये सज्जन एक मिसाल हैं, कर्मठता की | कभी हर न मानने वाले जज्बे की |साथ ही हमारे युवा साथियों के लिए प्रेरणा श्रोत भी जो हष्ट-पुष्ट होते हुए भी बेरोजगारी से परेशां होकर निराश हो जाते हैं |

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  10. बहुत खूब,
    एक सबक,
    जिजीविषा की उत्कट इच्छा,
    संघर्ष जीविन की.
    सुन्दर और प्रेरनादायी पोस्ट

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  11. Pratibimba BarthwalAugust 25, 2009 at 2:05 AM

    जहा चाह वहा राह..

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  12. सभी साथी का प्रतिक्रया के लिए आभार

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  13. Rajeshwar Singh ThakurAugust 25, 2009 at 2:07 AM

    inspiring, we can learn to fight the adversity,very good collection.

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  14. रजनीश भाई आप को और रुपेश भाई को बड़े दिनों से ढूँढ रहा था परसों ही आप का पता ठिकाना मिला |बड़ा अच्छा लगा | जिन्दगी जीने वालों के लिए ही होती है हाथों से लाचार मगर दिलो दिमाग से से कतई नहीं यही जज्बा उसको सभी से जुदा रखता है |
    अमित्रघात.ब्लागस्पाट.कॉम

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