शाहरुख खान के बहाने

मैं हाल ही में अमरीका से लौटा हूं. यह मेरी चौथी अमरीका यात्रा थी. हर बार मैं सुरक्षा जांच की प्रक्रियाओं से गुज़रा हूं. मैं भी और मेरी पत्नी भी. बावज़ूद इस बात के कि हमारे नाम के आगे या पीछे कहीं भी खान नहीं लगा है. आतंकवाद की बढती घटनाओं के कारण सारी दुनिया में सुरक्षा प्रबंध कड़े होते जा रहे हैं, और कहीं भी इसका बुरा नहीं माना जाता. आपका सामान जांचा जाता है, आपको मेटल डिटेक्टर्स से गुज़ारा जाता है, कुछ सवाल पूछे जाते हैं और यह सब सामान्य प्रक्रिया का अंग होता है. हर रोज़ बेपनाह लोगों के साथ ऐसा होता है. हर देश को यह हक़ है कि वह अपनी सुरक्षा की फिक्र करे. अमरीका को भी है. भारत को भी. अब अगर भारत उतनी फिक़्र नहीं करता, या सुरक्षा जांच में ढिलाई देता है, या कोताही बरतता है तो इसका ठीकरा अमरीका के सर क्यों फोड़ा जाना चाहिए?

शाहरुख खान क्या हैं? यानि अमरीका के लिए क्या हैं? वे एक सुपर स्टार हैं, लेकिन हमारे लिए, हिंदी भाषी सिने दर्शकों के लिए. अगर अमरीकी सुरक्षा कर्मी उनको नहीं पहचानते हैं तो नाराज़ होने की क्या बात है? और अगर पहचानते भी हों तो उन्हें सुरक्षा जांच से छूट क्यों दी जानी चाहिये? क्या वे किसी अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशन के आधार पर ऐसी किसी छूट के हक़दार हैं? नहीं. तो फिर?

असल में हमारे यहां हल्ला इसलिए होता है कि हमारी मानसिकता ही यह है कि हम आम और खास को अलग करके देखने के अभ्यस्त हैं. वी आई पी सिण्ड्रोम हमारे खून में ही घुला हुआ है. अगर कोई खास है तो न वह कतार में खड़ा होगा, न अपनी बारी की प्रतीक्षा करेगा, न उसकी सुरक्षा जांच होगी और न उस पर कोई भी आम प्रक्रिया लागू होगी. अगर कर दी तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ेगा. नियम, कानून कायदे और प्रक्रियाएं तो ‘बेचारे’ आम आदमी के लिए हैं. हसरत उसकी भी खास बनने की बनी रहती है. बन नहीं पाता, यह अलग बात है.

अमरीका में आम और खास के बीच यह भेद नज़र नहीं आता. हाल ही में पढा कि प्रख्यात गायक बॉब डिलन को सुरक्षा के लिए रोका गया. अब बॉब डिलन की हैसियत को कम करके मत आंकें. शाहरुख से कम क़द नहीं है उनका. लेकिन इस पर अमरीका में ज़रा भी चूं तक नहीं हुई. इसलिए कि व्यवस्था का सम्मान वहां सामान्य बात है. मुझे तो लगता है कि इस मामले में हमें अमरीका से सीखना चाहिए. हमारी लस्टम पस्टम सुरक्षा व्यवस्था गर्व का नहीं चिंता का विषय होनी चाहिए और अमरीका की चाक चौबन्द सुरक्षा व्यवस्था को हमें अपना आदर्श बनाना चाहिए. कल को अगर अमरीका या कहीं से भी कोई बड़ा या छोटा आदमी आए, उसके लिए हमें अपनी व्यवस्था में कोई गली नहीं निकालनी चाहिए. लेकिन यह करने से पहले ज़रूरी होगा कि हम अपने लोगों पर भी इस व्यवस्था को कड़ाई और ईमानदारी से लागू करें.

10 comments:

  1. sahi likha aapane...main yahan hi rahati hun aur is prakriya ko sahi manati hun. Akhir ye hamari suraksha ke kiye hi hai...
    USA me aam khas ka koee mahatva nahi hai sab barabar hai...
    rahi bat jaat ki ya surname ki to sabako yah janaja hoga ki, hamase bhi ye log "Mangalsutra" nikalwa dete hai... isliye kyonki kuchh bahut bhari hote hai aur metal detector se nikalate hai...islye...
    maine bhi isis prakar ka kuchh likha hai, jab aaj subah ne khabar maine padhai...

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  2. आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
    रचना गौड़ ‘भारती’

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  3. आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
    रचना गौड़ ‘भारती’

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  4. डॉ.साहब! बिलकुल सही फ़रमाया आपने। सुरक्षा को लेकर जिस तरह भारतीय नेता, अधिकारी आदि छूट चाहते हैं तो उसका परिणाम उन्हें नहीं बल्कि मासूम जनता को भुगतना पड़ता है। आपको याद होगा कि कुछ दिन पहले अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा के एक डुप्लीकेट ने बड़े मजे से निषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश करके दिखा दिया था और हमारे सुरक्षाकर्मियों ने उसे खूब सैल्यूट ठोंके थे। खुद को नागरिक से ऊपर मानते हैं अगर शाहरुख खान तो ये उनकी महाभयंकर मूर्खता है, भांड मिरासी और नचनिया भी अब नागरिक सुरक्षा में ढील चाहते हैं। आपको साधुवाद
    जय जय भड़ास

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  5. MY NAME IS KHAN ki publicity ke liye yah sab ho raha hai (ya karvaya ja raha hai)

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  6. भाईसाहब मैं आपकी बातों से सहमत हूं कि किसी को बी वी.आई.पी.सिन्द्रोम हो तो वह अमेरिका चला जाए उसे ठीक कर दिया जाता है। सही अर्थों में वहां है लोकतंत्र जिधर राष्ट्रपति और गवर्नर का चुनाव भी आम जनता के द्वारा करा जाता है, भारत में तो कोई भी चोर-बदमाश बलात्कारी हत्यारा प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपतितक बन सकता है दर असल सच तो ये है कि हमारे देश के लोग लोकतंत्र के लायक नहीं हैं ये सामंतवादी सोच में जीने वाले लोग हैं तो ऐसी व्यवस्थाओं से इनका बौखला जाना एकदम सामान्य है
    जय जय भड़ास

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  7. @रचना गौड़ ’भारती’जी आप "जिन्दगी लाइव" जैसी प्रख्यात पत्रिका की संपादिका हैं क्या ये वाकई आपकी जानकारी में आजादी की बासठवीं सालगिरह है? मैं सोचता था मेरी ही घड़ी लेट रहती हैं लेकिन इन बहन जी की घड़ी तो पूरा एक साल पीछे हैं, बहन जी घड़ी मिला लीजिये
    जय जय भड़ास

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  8. hahah,, bob dylan is a legend, a living legend, shah rukh khan is a bollywood hero, where bollywood is not even ours :P :D
    Bob Dylan vs, Shah RUkh, OMG what a comparision
    YE to wahi baat hai ki Nusrat Fateh ALi Khan sahab ka comparison Altaf Raja se ho jaye :P

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  9. I agree. Why do we assume that whole world would know who is SRK?
    And even if they do, Why would they compromise security of their country? There is a reason why these security measures are formed and the people who should be exempt are exempted.

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  10. सही कहा है आपने,
    वैसे देखा जाय तो तो ये मीडिया की खाबड़ हड़पने की हद्कत से ज्यादा नहीं थी, हम अगर अपने देश में कानून का पालन करने में ढिलाई करते हैं तो निसंदेह ये मीडिया के लिए फायदेमंद होता है, सख्ती हो तो भी,
    इस छोटे से मुद्दे को जिस तरह से स्वतंत्रता दिवस पर हमारे देश की वर्षगाँठ को भुलाकर मीडिया ने एक आम सिनेमा हीरो पर खबर केन्द्रित रखा नि:संदेह हमारे देश के मिडिया का ये पतित आचरण रहा.
    बुश की बेटी शराब पीती हुई गिरफ्तार हुई थी, बुश साहब राष्ट्रपति थे मगर मीडिया के किसी कोने में इस खबर को देखना नसीब नहीं हुआ,

    मुद्दे को बढा चढा कर दिखा मिडिया जिस तरह से अपने उल्लू को सीधा करने में लगी हुई है निसंदेह चिंतनीय है, और भारतीय प्रतिष्ठा को वैश्विक स्तर पर इन टुच्चे मीडिया के कारण नुक्सान उठाना पड़ रहा है,
    सटीक लेख

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