हम दुनिया के सबसे बड़े आलोचक हैं.......

हम हिन्दुस्तानियों में एक चीज़ बड़ी ही कॉमन है, दूसरो की आलोचना। हम सब कभी अपने कार्यकलाप पर शर्मसार नही होते हैं, हमें अंपनी हर वो चीज़ भी अच्छी लगती है जिसका नुक्सान ख़ुद ही झेलना पड़ा हो परन्तु हर वो कार्य दूसरो ने किया हो में हम सब लोगों को कुछ ना होते हुए भी हज़ार कमियाँ दिख ही जाती है।

आख़िर वो कौन सी बात है जो कि हमें नाहक ही आलोचना करने पर बाध्य कर देती है, कुछ ने कहा कि ये जेनेटिक है, यानि की हमारे खून मैं निहित है, कुछ ने कहा कि अपनी असफलता छुपाने और दुसरे सफल लोगों के सामने identity crisis से ग्रस्त हम सब आलोचना करने को बाध्य होते हैं।

वैसे अगर देखा जाए तो ये इतनी ग़लत बात नही है परन्तु ये objectively हो तब, समस्या यह है कि हम सब इसे बहुत subjectively लेते हैं। दुसरे शब्दों में अदाकारी का अ भी नही जानने वाले लोग हर कोने में आपको कलाकारों पर टिप्पणी करते हुए मिल जायेंगे, (सोहराब मोदी से दिलीप कुमार तक और शाहरुख़ खान से इमरान खान तक)। क्रिकेट का सी भी नही जानने वाले हर कोने में धोनी की और उसके रणनीतियों की धज्जियाँ उड़ाते हुए दिख जायेंगे, लेखक से फ़िल्म दिग्द्दर्शक तक, खिलाड़ियों से राजनेताओं तक, व्यवसाईयों से बेरोजगारों तक, इस मुल्क में हर आदमी शिकार है आलोचनाओं का। वैसे अगर आलोचना करने वाला मार्गदर्शक, प्रेरक या फ़िर समाधान के साथ अपने राय रखे तो शायद किसी को भी ये अखरेगा नही।

वैसे जब मैं ये लिख रहा हूँ तब मुझे भी एहसास है कि किस कदर नकारात्मकता मेरी जिंदगी का भी एक अटूट हिस्सा है और इसको स्वीकार करने से कुछ हल्का महसूस कर रहा हूँ।

सवाल है कि हम आख़िर चाहते क्या हैं?
जो चीज़ हमें पसंद न हो वो बहुत दुसरे लोगों के मतलब की हो सकती है।

अगर हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोग चाहें तो हमारे इस आदत में बहुत बदलाव आ सकता है , लेकिन फ़िर उनके घरों में रोटी कौन देगा। दुसरे शब्दों मैं, आलोचना बहुत से घरों का चूल्हा जलाता है इसलिए इसे constructive analysis में बदलने में दिलचस्पी कौन ले......

क्या आप आलोचक हैं, या आलोचना की खाते हैं???

रणधीर झा

12 comments:

वन्दना said...

gud going.

Mohammed Umar Kairanvi said...

भाई सोचा था यहाँ हमसे बडा आलोचक होगा, वह तो नहीं मिला पर कुछ ज्ञान लेके जा रहा हूँ,
धन्यवाद

Mahendra Gaur said...

Very true. Crab mentality.

anuradha srivastav said...

हर कोई किसी ना किसी रुप में छिद्रान्वेषण में लगा रहता है। इस पर तुर्रा ये कि ज़नाब हम कभी आलोचना नहीं करते।

anuradha srivastav said...

हर कोई किसी ना किसी रुप में छिद्रान्वेषण में लगा रहता है। इस पर तुर्रा ये कि ज़नाब हम कभी आलोचना नहीं करते।

Diben Singh said...

ghata ne chupke aake jaane kya kaha,
phool saare hans pade!

प्रवीण त्रिवेदी Praveen Trivedi said...

हम भी भैया अब तक तो यही समझते तो ही ठीक था .

हिमांशु । Himanshu said...

प्रशंसनीय आलेख । बहुत आभार ।

निर्मला कपिला said...

bahut baDiyaa chintanyogya alekh hai

अग्नि बाण said...

भाई,
हम तो अब तक आलोचक ही थे मगर आपने मुहँ बंद कर दिया,
सोचनीय लेख.
आभार

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...

प्रतिक्रया के लिए सभी साथी का आभार

रंजनी कुमार झा (Ranjani Kumar Jha) said...

विचारणीय लेख,
आइना दिखाया,
आभार

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