चुनाव, नक्सल आतंकवाद, लोकतंत्र, और आम जनता !!!!

चुनाव के आते ही नक्सल आतंक बढ़ जाता है, सरकार की सारी व्यवस्था धरी की धरी रह जाती है और नक्सली अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहते हैं। बीच में पिसते हैं वो आम जन जो ना ही सरकार, पुलिस प्रशासन और ना ही नक्सलियों पर भरोसा करते हैं मगर उनकी जिन्दगी ही इन घुनों के बीच पिसने जैसी हो गयी है।
लाल सलाम या रक्त रंजित भारत, देश का नासूर !

पहले दौर के मतदान से पूर्व भी नक्सलियों ने अपनी मर्जी चलायी औरसरकार को धत्ता बताया , दुसरे दौर के मतदान से पहले भी कल नक्सलियों ने जम कर तूफ़ान मचाया और एक बार फ़िर से प्रश्न छोर गया की सरकार प्रशाशन पुलिस और व्यवस्था कहाँ है? किसके लिए है ?

बिहार के औरंगाबाद जिले के देव ब्लॉक ऑफिस की बिल्डिंग को विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया और गया में आठ ट्रकों को आग के हवाले कर दिया। रात करीब 50-60 की संख्या में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)के नक्सली देव देव ब्लॉक ऑफिस की परिसर में आए और बिल्डिंग को विस्फोटक से उड़ा दिए।


झारखण्ड के पलामू के बरवाडीह में नक्सलियों द्वारा बारूदी सुरंग विस्फोट के जवाब में पुलिस कार्रवाई में पांच ग्रामीण मारे गए थे। इसके विरोध में नक्सलियों ने बुधवार से झारखंड और बिहार में बेमियादी बंद का आह्वान किया ।


नक्सलियों ने झारखंड और बिहार में मंगलवार की रात से तांडव मचाना शुरू कर दिया है। ट्रेन पर कब्जा करने से पहले मंगलवार देर रात नक्सलियों ने पलामू में उंटारी रोड स्टेशन और वहीं के एक स्कूल की बिल्डिंग को उड़ा दिया। विस्फोट के कारण उंटारी स्टेशन पर सिग्नल व्यवस्था ध्वस्त हो गई है।


नक्सलियों ने औरंगाबाद जिले के देव ब्लॉक ऑफिस की बिल्डिंग को विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया। गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र में मंगलवार रात नक्सलियों ने आठ ट्रकों को आग के हवाले कर दिया। नक्सलियों ने एक ट्रक ड्राइवर को गोली मारकर हत्या भी कर दी।


पूर्वी सिंहभूम जिले के अंतर्गत बोटा गांव में मतदानकर्मियों पर हमला किया। माओवादियों ने जिले के बांसडेरा क्षेत्र में चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की। घंटे भर चले मुठभेड़ के सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के प्रयास को नाकामयाब कर दिया। पलामू जिले के एक स्टेशन और रेल लाइन को गुरुवार को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया। नक्सलियों ने रेल लाइन को
उड़ा दिया।


नक्सलवाद पर राज्यों और केंद्र सरकार में हमेशा से मतभेद रहे है। केंद्र सरकार इसे सामाजिक समस्या मानकर इसके मानवीय हल की बात पर जोर देती रही है जबकि प्रभावित राज्यों का कहना है कि नक्सलवाद को राष्ट्रीय समसया मानकर इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समग्र रणनीति बनानी चाहिए क्योंकि देश के तीन चौथाई राज्य इस समस्या की गिरफ्त में है। सरकारों के मतभेद का पूरा लाभ नक्सली उठा रहे है और आम जन का इस क्रस्दी को झेलना मज़बूरी मगर सरकारों के मतभेद का खामियाजा हम कब तक भुगतते रहेंगे ?

2 comments:

  1. आज तक साला समझ में न आया कि ये ढक्कन चाहते क्या हैं?बस खून बहाना या फिर नए राष्ट्र की रचना? अगर कोई रचनात्मकता है तो सरकार में हिस्सा क्यों नहीं लेने आगे आते....
    जय जय भड़ास

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  2. रजनीश भाई नक्सली आन्दोलनों का सच क्या है ..........कभी ये लड़े किसानो के लिए और मजदूरों के लिए लेकिन ये करना क्या चाह रहे हैं आज तक समझ नहीं आया और सरकार आँखों पर पट्टी बाँध कर इन्ही में से किसी के प्रभाकरन बनने का इन्तिज़ार कर रही है और उस पर कई संगठन ऐसे हैं जिनको राजनितिक पार्टियों का समर्थन प्राप्त है और हम लोगों को खुल कर इनके बारे में बहस करते सुन सकते हैं अब सवाल ये उठता है की सरकार या प्रशाशन क्यों इनसे बेखबर है जबकि ये नक्सली किसी भी मामले में पुलिस से कम नहीं हैं.............
    न हथियार में और न ही संख्या में ..........तो इलाज कब होगा जब छोटा सा घाव कैंसर बन कर पुरे शरीर में फ़ैल चूका होगा.........


    आपका हमवतन भाई ....गुफरान....अवध पीपुल्स फोरम...फैजाबाद.

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