२६२ के साथ युपीऐ सबसे बड़ी मगर बहुमत के लिए दस कम तो मामला फ़िर आंकडे से। सरकार से सहयोग या सरकार से स्वयंहित की सिद्धि की समर्थनों का तांता, मामला यहाँ भी आंकडे का। चुनाव पूर्व गठबंधन और चुनाव के बाद समझौता सरकार बनाने के लिए चाहे इसके लिए राष्ट्र से समझौता क्यूँ न करने पड़े।
एक नजर चुनाव में हुए मतदान के आंकडों पर.....
पहले चरण के मतदान में ६० फीसदी मतदाता ने अपने मतदान का उपयोग किया यानि की ४० फीसदी लोगों ने अपना मत नही डाला। दुसरे चरण में ये प्रतिशत और गिरा और सिर्फ़ ५५ प्रतिशत लोगों ने मत गिराए इस बार मत ना डालने वालों का आंकडा ४५ प्रतिशत का रहा। तीसरे चरण में आंकडा आधे आधे पर आ गया यानि की ५०-५०। चौथे चरण में कुछ इजाफा हुआ और ५७ प्रतिशत लोगों ने मत डाले यानि की ४३ प्रतिशत ने मत नही डाले। अन्तिम चरण भी उत्साहवर्द्धक नही रहा और ५५ प्रतिशत मतदान हुआ ४५ प्रतिशत शिफर रहे।
अब जरा इस आंकडे को लोकतंत्र के नजरिये से समीक्षा करें तो कुल जमा ५५ प्रतिशत के करीब मतदान हुआ और ४५ प्रतिशत लोगों ने वोट नही डाले। चलिए इस आंकडे को जरा और नजदीक से देखते हैं...
१०० प्रतिशत लोगों में से ५५ प्रतिशत लोग ने मत का उपयोग किया और ४५ प्रतिशत ने नही किया। अब जरा ५५ प्रतिशत को आगे बढायें तो ५५ में से ४० प्रतिशत ला कर आप सरकार बना लें। अब इस आंकडे को आगे बढायें तो ५५ का ४० प्रर्तिशत यानि २२ प्रतिशत।
आप कह रहे होंगे मैं किस नम्बर के खेल में आपको उलझा रहा हूँ तो नि:संदेह ये नंबर का ही तो खेल है अब जरा पुरे भारतवर्ष को एक कर इस आंकडे पर नजर डालें तो २२ फीसदी मत लाकर आप जनता की सरकार बन जाते हैं।
क्या ये वाजिब लोकतंत्र है ?
यानि की लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ़ सत्ता का समीकरण और इस खेल में लोकतंत्र के चारो पाये सहभागी, आम जन शोसित रहा है और पुन:स्च शोषण के लिए हो जाए तैयार।
अगर आंकडे पर नजर डालें तो इसके लिए हमारा संविधान, कानून, न्यायपालिका, विधायिका के संग मीडिया ही जिम्मेदार है। हम विभीन्न देशों से तुलना तो कर लेते हैं मगर जब बात आम आदमी की आती है तो लोकतंत्र का खम्भा अपने पाने हित के लिए नदारद हो जाता है।
क्या समूचे भारत वर्ष में सही मतदान की पद्दति हो सकती है की पुरे देश के लोग मतदान करें और सच्चे अर्थों में अपना नेता चुने! एक राज्य से दुसरे राज्य जाने वाले लोग भी मतदान कर सकें ! देश हित में जब नियम कानून कायदे की बात आए तो शायद ही हमारे लोकतंत्र के खम्भे साथ हों मगर हाँ अपने अपने हित के लिए कोई भी किसी के भी साथ जा सकता है।
ये आंकडे अपने आप में कहानी हैं हमारे देश के लाचार लोकतंत्र के जहाँ १०० में से २४ लोगों की पसंद बहुमत हो जाती है।
क्या ये लोकतंत्र है ?
baat to shi kahi hai aapne..........magar yeh kisi ki samajh aaye tab na.
ReplyDeletebadlaav har koi chahta hai magar pahal karne ki kisi mein himmat nhi hai tabhi deshka ye haal hai.
bahut aache aap to rajniti me bhi dakahl rakhte hai
ReplyDelete्रजनीश जी बिलकुल सही आंकलन है देश की इस त्रास्दी का कोई हल भी तो नज़र नहींआता इसके लिये जिन्हें आप कसूरवार मान रहे हैं वो तो ठीक है मगर मेरी नज़र मे इसके लिये हम लोग भी जिम्मेदार हैं जो मत का प्रयोग नहीं करते हमारी उदासीनता का लाभ नेता लोग उठा रहे हैं1ाभार बहुतच्छा प्रयास है अपनी कलम से लोगों को जागरुक करते रहिये शुभकामनायें
ReplyDeleteसही कह रहे हैं आप । निश्चय ही वाजिब लोकतंत्र का उदाहरण तो नहीं होना चाहिये ।
ReplyDeleteyah jo pratishat wali baat aapne kahi wah poori jansankhya ke aadhaar par ya us jansankhya ke aadhaar par jinke naam matdata soochi me hain ????
ReplyDeletekyonki abhi bhi bahut badi sankhya un logon kee hai,jinke naam matdata soochi me hi nahi..
waise bahut sahi baat kahi hai aapne,par ispar sochkar bhi bahut kuchh nahi kar sakte hain ham... jabtak aam janta jaagrook nahi hogee yah khel aise hi chalta rahega.
बहुत खूब,
ReplyDeleteआपके आंकडे ने लोकतंत्र की कलई खोल दी.
बधाई स्वीकारिये.
बहुत खूब,
ReplyDeleteआपके आंकडे ने लोकतंत्र की कलई खोल दी.
बधाई स्वीकारिये.