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लोकसंघर्ष !: छद्म पूँजीवाद बनाम वास्तविक पूँजी-5
आप ने अगर छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी -१ ,छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी- २,छद्म पूँजी बनामवास्तविक पूँजी- ३,छद्म पूँजीवाद बनाम वास्तविक पूँजी -४ नही पढ़ा है तो उन पर क्लिक करें ।
छद्म पूँजी बनाम उत्पादक पूँजी
सन 2005-08 के दौरान अमेरिका में वित्तीय संस्थाओ की क्रियाशीलता बेहद बढ़ गई । संपत्ति बाजार में पैसा लगाया जाने लगा । संपत्ति की कीमतों में पागलपन की हद तक वृधि हुई । लोग और कंपनिया अंधाधुंध कर्जे लेने और देने लगे। कंपनियों ने अपनी मूल पूँजी के 25-30 गुना अधिक पूँजी कर्ज पर लेकर निवेश करना आरम्भ किया। अमेरिका के वित्तीय केन्द्र तथा सबसे बड़े स्टॉक बाजार ''वाल स्ट्रीट '' तथा अमेरिका की विशालतम चार सबसे बड़ी वित्तीय संस्थाओ ने अकूत पैमाने पर शेयर बाजार,प्रतिभूति बाजार ,गिरवी बाजार इत्यादि में भारी पैमाने पर पूँजी लगा दी ।
उधर उत्पादक उद्यम और उत्पादक पूँजी अपेक्षित कर दी गई।
ऐसे में वित्तीय अर्थव्यवस्था के ''बैलून'' को कभी न कभी फूटना ही था।
इस बार ''अति उत्पादन '' का संकट उतना स्पष्ट नही दिखाई सेता है क्योंकि वितरण एवं सेवा दोनों का चक्र बड़ी तेजी से काम कर रहा है।
संकट और मंदी का चक्र अब उत्पादन के क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है। 'बेल आउट' और राज्य द्वारा हस्तक्षेप
1929-33 की महामंदी के दौरान और उसके बाद जान मेनार्ड केन्स और शुम्पीटर जैसे पश्चिम के पूंजीवादी अर्थशास्त्रियो ने संकट से उभरने के लिए राज्य के हस्तक्षेप का सिधान्त प्रस्तुत किया था। खासतौर से केन्स इस सिधान्त के लिए जाने जाते है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद , खासतौर पर पिछले दो दशको में पश्चिम में तथाकथित उदारवादी सिधान्तो की बाढ़ आई हुई है जिसके तहत राज्य से अर्थतंत्र से बहार जाने के लिय कहा गया। उससे पहले और अब आर्थिक मंदी के दौर राज्य से फिर अर्थतंत्र के हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है। साम्राज्यवादी राजनैतिक अर्थशास्त्र भी चक्रीय दौर से गुजरता है।
सर्वविदित है की अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशो में सरकारें खरबों डॉलर का विशेष कोष लेकर बड़े इजारेदार उद्यमों और वित्त पूँजी को बचने मैदान में उतर रही है। इस राहत कार्य को 'बेल-आउट' कहा जा रहा है। चीन की सरकार भी 600 अरब डॉलर का कोष बना चुकी है।
छद्म पूँजी पर अंकुश की आवश्यकता
दूसरे शब्दों में पूंजीवादी और साम्राज्यवाद का संकटाप्रन्न आर्थिक चक्र आज इस मंजिल में पहुँच गया है जहाँ राज्य और सरकारों द्वारा वित्तीय पूँजी पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है। वित्त पूँजी अर्थात छद्म पूँजी तथा उस पर आधारित 'कैसीनो' पूँजीवाद का प्रभुत्व कम करने और उन पर अंकुश लगाने के लिए राज्य द्वारा उत्पादन को सहायता देना आवश्यक है साथ ही अर्थतंत्र के उत्पादक हिस्सों कल कारखानों ,उद्यमों ,खेती,इत्यादि का विकास और उत्पादन जरूरी है। तभी जाकर मुक्त मुद्रा को वस्तुओं द्वारा संतुलित किया जा सकता है।
जाहिर इस दिशा में सम्पूर्ण आर्थिक नीतियाँ बदलने की आवश्यकता है।
भारत जैसे देशो ने दर्शा दिया है कि सार्वजानिक क्षेत्र का निर्माण देश के अर्थतंत्र के लिए कितना महत्वपूर्ण है। आज सार्वजनिक क्षेत्र और आधुनिक मशीन तथा ओद्योगिक एवं कृषि उत्पादन का निर्माण और विकास विश्व आर्थिक संकट से बचने के सबसे अच्छी उपाय है।
छद्म पूँजी के बनिस्बत वास्तविक पूँजी का विकास आवश्यक है ।
-अनिल राजिमवाले
मो नो -09868525812
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित ।
छद्म पूँजी बनाम उत्पादक पूँजी
सन 2005-08 के दौरान अमेरिका में वित्तीय संस्थाओ की क्रियाशीलता बेहद बढ़ गई । संपत्ति बाजार में पैसा लगाया जाने लगा । संपत्ति की कीमतों में पागलपन की हद तक वृधि हुई । लोग और कंपनिया अंधाधुंध कर्जे लेने और देने लगे। कंपनियों ने अपनी मूल पूँजी के 25-30 गुना अधिक पूँजी कर्ज पर लेकर निवेश करना आरम्भ किया। अमेरिका के वित्तीय केन्द्र तथा सबसे बड़े स्टॉक बाजार ''वाल स्ट्रीट '' तथा अमेरिका की विशालतम चार सबसे बड़ी वित्तीय संस्थाओ ने अकूत पैमाने पर शेयर बाजार,प्रतिभूति बाजार ,गिरवी बाजार इत्यादि में भारी पैमाने पर पूँजी लगा दी ।
उधर उत्पादक उद्यम और उत्पादक पूँजी अपेक्षित कर दी गई।
ऐसे में वित्तीय अर्थव्यवस्था के ''बैलून'' को कभी न कभी फूटना ही था।
इस बार ''अति उत्पादन '' का संकट उतना स्पष्ट नही दिखाई सेता है क्योंकि वितरण एवं सेवा दोनों का चक्र बड़ी तेजी से काम कर रहा है।
संकट और मंदी का चक्र अब उत्पादन के क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है। 'बेल आउट' और राज्य द्वारा हस्तक्षेप
1929-33 की महामंदी के दौरान और उसके बाद जान मेनार्ड केन्स और शुम्पीटर जैसे पश्चिम के पूंजीवादी अर्थशास्त्रियो ने संकट से उभरने के लिए राज्य के हस्तक्षेप का सिधान्त प्रस्तुत किया था। खासतौर से केन्स इस सिधान्त के लिए जाने जाते है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद , खासतौर पर पिछले दो दशको में पश्चिम में तथाकथित उदारवादी सिधान्तो की बाढ़ आई हुई है जिसके तहत राज्य से अर्थतंत्र से बहार जाने के लिय कहा गया। उससे पहले और अब आर्थिक मंदी के दौर राज्य से फिर अर्थतंत्र के हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है। साम्राज्यवादी राजनैतिक अर्थशास्त्र भी चक्रीय दौर से गुजरता है।
सर्वविदित है की अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशो में सरकारें खरबों डॉलर का विशेष कोष लेकर बड़े इजारेदार उद्यमों और वित्त पूँजी को बचने मैदान में उतर रही है। इस राहत कार्य को 'बेल-आउट' कहा जा रहा है। चीन की सरकार भी 600 अरब डॉलर का कोष बना चुकी है।
छद्म पूँजी पर अंकुश की आवश्यकता
दूसरे शब्दों में पूंजीवादी और साम्राज्यवाद का संकटाप्रन्न आर्थिक चक्र आज इस मंजिल में पहुँच गया है जहाँ राज्य और सरकारों द्वारा वित्तीय पूँजी पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है। वित्त पूँजी अर्थात छद्म पूँजी तथा उस पर आधारित 'कैसीनो' पूँजीवाद का प्रभुत्व कम करने और उन पर अंकुश लगाने के लिए राज्य द्वारा उत्पादन को सहायता देना आवश्यक है साथ ही अर्थतंत्र के उत्पादक हिस्सों कल कारखानों ,उद्यमों ,खेती,इत्यादि का विकास और उत्पादन जरूरी है। तभी जाकर मुक्त मुद्रा को वस्तुओं द्वारा संतुलित किया जा सकता है।
जाहिर इस दिशा में सम्पूर्ण आर्थिक नीतियाँ बदलने की आवश्यकता है।
भारत जैसे देशो ने दर्शा दिया है कि सार्वजानिक क्षेत्र का निर्माण देश के अर्थतंत्र के लिए कितना महत्वपूर्ण है। आज सार्वजनिक क्षेत्र और आधुनिक मशीन तथा ओद्योगिक एवं कृषि उत्पादन का निर्माण और विकास विश्व आर्थिक संकट से बचने के सबसे अच्छी उपाय है।
छद्म पूँजी के बनिस्बत वास्तविक पूँजी का विकास आवश्यक है ।
-अनिल राजिमवाले
मो नो -09868525812
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित ।
चुनाव परिणाम, एक परिवर्तन का संकेत !
नयी लोकसभा के लिए परिणाम आ चुका है, सरकार के बनने की गहमा गहमी है। परिणाम ने पूर्ण बहुमत तो नही दिया मगर लोकतंत्र को कलंकित करने वाले राजनेताओं की नकेल जरुर कस दी है। हिन्दुस्तान की आवाम ने पिछले कई लोकसभा में भारतीय लोकतंत्र का चीडहरण करते नेतोँ को देखा, आवाम के मतों को खरीदते और बिकते देखा, संसदीय गरिमा को नेताओं के द्बारा भंग करते देखा और इसी की परिणति की परिणाम में बदलाब के स्पष्ट संकेत दिखे।
नेताओं का आभाव और राष्ट्रिय स्तर पर देश को एक सूत्र में पिरोने वाले नेता की कमी ने पिछले कई वर्ष तक भारतीय राजनीति को पंगु बना कर रखा, क्षेत्रीय दल के साथ साथ कई राष्ट्रिय दल की सौदेबाजी देखी लोकसभा में नोटों के बण्डल देखे, राम राम करते नेता तो राम के नाम को बेचती राजनीति देखी बस अब और नही।
नया परिणाम एक संकेत है, युवाओं के लिए !
एक आशा है नयी पौध के लिए !
एक रोशिनी विकाश के लिए !
और एक पहल सर धर्म समभाव के लिए....
की
देखो ऐ दीवानों तुम ये काम ना करो, राम का नाम बदनाम न करो !
कांग्रेस ने राहुल को सामने किया और युवा का तुर्क नजरिया लोगों को भाया, अब बारी विपक्ष की युवा तुर्क इमानदार और स्पष्ट क्षवि वाले को नेतृत्व दे। जसमे इमानदारी और सभी को साथ लेकर कुछ कर गुजरने का माद्दा हो।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए पक्ष के साथ विपक्ष का भी मजबूत होना बेहद जरुरी।
आइये हम सब इस बदलाव का स्वागत करें।
नेताओं का आभाव और राष्ट्रिय स्तर पर देश को एक सूत्र में पिरोने वाले नेता की कमी ने पिछले कई वर्ष तक भारतीय राजनीति को पंगु बना कर रखा, क्षेत्रीय दल के साथ साथ कई राष्ट्रिय दल की सौदेबाजी देखी लोकसभा में नोटों के बण्डल देखे, राम राम करते नेता तो राम के नाम को बेचती राजनीति देखी बस अब और नही।
नया परिणाम एक संकेत है, युवाओं के लिए !
एक आशा है नयी पौध के लिए !
एक रोशिनी विकाश के लिए !
और एक पहल सर धर्म समभाव के लिए....
की
देखो ऐ दीवानों तुम ये काम ना करो, राम का नाम बदनाम न करो !
कांग्रेस ने राहुल को सामने किया और युवा का तुर्क नजरिया लोगों को भाया, अब बारी विपक्ष की युवा तुर्क इमानदार और स्पष्ट क्षवि वाले को नेतृत्व दे। जसमे इमानदारी और सभी को साथ लेकर कुछ कर गुजरने का माद्दा हो।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए पक्ष के साथ विपक्ष का भी मजबूत होना बेहद जरुरी।
आइये हम सब इस बदलाव का स्वागत करें।
मीरा कुमार का लोकसभा अध्यक्ष बनना तय !
देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष होंगी !
मीरा कुमार का देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्षा बनना तय हो गया है। कल शाम सोनियां गांधी के साथ हुए उनके मुलाक़ात के बाद सारे अटकलों पर तालाबंदी हो गयी। इस मुलाक़ात से पार्टी की और से आ रहे दावेदारों की सूची पर भी विराम लग गया। इस से पूर्व प्रधानमंत्री के साथ अन्य शीर्ष नेताओं के साथ हुए बैठक में दलित और महिला के साथ पूर्व राजनैतिक घराना ने मीरा जी के नाम को मजबूती दी। जिसके तुंरत बाद सोनिया जी से मीरा जी की बैठक ने इस पर मुहर लगा दी।
पूर्व उप प्रधानमंत्री और कद्दावर दलित नेता बाबु जगजीवन राम के बेटी मीरा कुमार बिहार के सासाराम से सांसद हैं। लोक सभा की अध्यक्षा पद पर चुने जाते ही वह देश की पहली महिला लोक सभा अध्यक्ष हो जायेंगी और बिहार के अभूतपूर्व इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ जाएगा।
इस से पूर्व मीरा जी का नाम सामने आना भी कम आर्श्चय जनक नही रहा, पहले आन्ध्र प्रदेश के सांसद किशोर चन्द्र देव के नाम पर चर्चा थी फ़िर गिरिजा व्यास मगर सारे अटकलों पर विराम मीरा कुमार के नाम के साथ।
परम्परा के अनुसार लोकसभा उपाध्यक्ष पद के लिए विपक्ष को पेशकश की गई है।
मीरा कुमार का लोकसभा अध्यक्ष बनना तय !
देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष होंगी !
मीरा कुमार का देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्षा बनना तय हो गया है। कल शाम सोनियां गांधी के साथ हुए उनके मुलाक़ात के बाद सारे अटकलों पर तालाबंदी हो गयी। इस मुलाक़ात से पार्टी की और से आ रहे दावेदारों की सूची पर भी विराम लग गया। इस से पूर्व प्रधानमंत्री के साथ अन्य शीर्ष नेताओं के साथ हुए बैठक में दलित और महिला के साथ पूर्व राजनैतिक घराना ने मीरा जी के नाम को मजबूती दी। जिसके तुंरत बाद सोनिया जी से मीरा जी की बैठक ने इस पर मुहर लगा दी।
पूर्व उप प्रधानमंत्री और कद्दावर दलित नेता बाबु जगजीवन राम के बेटी मीरा कुमार बिहार के सासाराम से सांसद हैं। लोक सभा की अध्यक्षा पद पर चुने जाते ही वह देश की पहली महिला लोक सभा अध्यक्ष हो जायेंगी और बिहार के अभूतपूर्व इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ जाएगा।
इस से पूर्व मीरा जी का नाम सामने आना भी कम आर्श्चय जनक नही रहा, पहले आन्ध्र प्रदेश के सांसद किशोर चन्द्र देव के नाम पर चर्चा थी फ़िर गिरिजा व्यास मगर सारे अटकलों पर विराम मीरा कुमार के नाम के साथ।
परम्परा के अनुसार लोकसभा उपाध्यक्ष पद के लिए विपक्ष को पेशकश की गई है।
लोकसंघर्ष !: माँ
जब छोटा था तब माँ की शैया गीली करता था।
अब बड़ा हुआ तो माँ की आँखें गीली करता हूँ ॥
माँ पहले जब आंसू आते थे तब तुम याद आती थी।
आज तुम याद आती हो....... तो पलकों से आंसू छलकते है....... ॥
जिन बेटो के जन्म पर माँ -बाप ने हँसी खुशी मिठाई बांटी ।
वही बेटे जवान होकर आज माँ-बाप को बांटे ...... ॥
लड़की घर छोडे और अब लड़का मुहँ मोडे ........... ।
माँ-बाप की करुण आँखों में बिखरे हुए ख्वाबो की माला टूटे ॥
चार वर्ष का तेर लाडला ,रखे तेरे प्रेम की आस।
साथ साल के तेरे माँ-बाप क्यों न रखे प्रेम की प्यास ?
जिस मुन्ने को माँ-बाप बोलना सिखाएं ......... ।
वही मुन्ना माँ-बाप को बड़ा होकर चुप कराए ॥
पत्नी पसंद से मिल सकती है .......... माँ पुण्य से ही मिलती है ।
पसंद से मिलने वाली के लिए,पुण्य से मिलने वाली माँ को मत ठुकराना....... ॥
अपने पाँच बेटे जिसे लगे नही भारी ......... वह है माँ ।
बेटो की पाँच थालियों में क्यों अपने लिए ढूंढें दाना ॥
माँ-बाप की आँखों से आए आंसू गवाह है।
एक दिन तुझे भी ये सब सहना है॥
घर की देवी को छोड़ मूर्ख ।
पत्थर पर चुनरी ओढ़ने क्यों जन है.... ॥
जीवन की संध्या में आज तू उसके साथ रह ले ।
जाते हुए साए का तू आज आशीष ले ले ॥
उसके अंधेरे पथ में सूरज बनकर रौशनी कर।
चार दिन और जीने की चाह की चाह उसमें निर्माण कर ....... ॥
तू ने माँ का दूध पिया है .............. ।
उसका फर्ज अदा कर .................. ।
उसका कर्ज अदा कर ................... ।-अनूप गोयल
लेबल: गोयल जी की कविता
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।
हाल हमरो न पूछौ बड़ी पीर है।
का बताई के मनमा केतनी पीर है।
बिन खेवैया के नैया भंवर मा फंसी-
न यहै तीर है न वैह तीर है।
हमरे मन माँ वसे जैसे दीया की लौ
दूरी यतनी गए जइसे रतिया से पौ,
सुधि के सागर माँ मन हे यूं गहिरे पैठ
इक लहर जौ उठी नैन माँ नीर है -
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।
सूखि फागुन गवा हो लाली गई,
आखिया सावन के बदरा सी बरसा करे ,
राह देखा करी निंदिया वैरन भई -
रतिया बीते नही जस कठिन चीर है।
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।
कान सुनिवे का गुन अखिया दर्शन चहै,
साँसे है आखिरी मौन मिलिवे कहै,
तुम्हरे कारन विसरि सारी दुनिया गई-
ऐसे अब्नाओ जस की दया नीर है।
का बताई की मामा केतनी पीर है...... ।
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
'छद्म' पूँजीवाद बनाम वास्तविक पूँजी-
आप ने अगर छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी -१ ,छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी- २,छद्म पूँजी बनामवास्तविक पूँजी- ३ नही पढ़ा है तो उन पर क्लिक करें ।
युद्धोत्तर - काल में आर्थिक चक्र की विशेषताएं -
इस प्रकार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और स्वयं दो विरोधी अंतर्विरोधी ध्रुवो में ध्रुवीकृत हो जाती है । उत्पादन से ही जनित वित्त पूँजी अब उत्पादन से जितनी दूर हो जाने की कोशिश करती है । पश्चिमी देशो के बड़े पूँजीवाद और नव-साम्राज्यवाद में एक नई विशेषता पैदा हो जाती है। वह वित्तीय और शेयर बाजार से ही अधिकाधिक मुनाफा कमाने का प्रयत्न करता है । फलस्वरूप ओद्योगिक एवं उत्पादक क्षेत्र की अधिकाधिक उपेक्षा होती जाती है।
यहाँ आज की विश्व अर्थव्यवस्था की कुछ खासियतो पर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है । तभी हम वर्तमान आर्थिक मंदी की भी ठीक से व्याख्या कर पायेंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की जो सबसे महत्वपूर्ण घटना है वह है वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति ( संक्षेप में अंग्रेजी अक्षरो से बना एस.टी.आर ) इस क्रांति और इसके तहत हुई संचार क्रांति ने विश्व बजार को एक दूसरे से जोड़कर स्थान और काल का अन्तर समाप्त कर दिया। इलेक्ट्रोनिक्स और कम्प्यूटर पर आधारित इस क्रांति ने नई उत्पादक शक्तियों को जन्म दिया। नई इलेक्ट्रोनिक मशीनों और उपकरणों की उत्पादकता पहले से कई गुना अधिक थी। उद्योगों ,बैंकिग ,वित्तीय संस्थाओ ,कार्यालयों इत्यादि के कार्य-कलापों की गति में असाधारण तेजी आ गई । दूसरे शब्दों में धन ,मुद्रा और पूँजी का उत्पादन कई गुना बढ़ गया तथा अत्यन्त द्रुत गति से होने लगा।
वित्तीय हितों ने इन घटनाओ का प्रयोग अपने हितों में किया । हालाँकि अन्य प्रकार की गतिविधियाँ बढ़ी लेकिन वित्तीय पूँजी और एकाधिकार कारोबार में असाधारण तेजी आई । साथ ही यह भी नही भूला जाना चाहिए की छोटे और मंझोले कारोबार में भारी तेजी आई । इजारेदारी और वित्त के विकास पर एकतरफा जोर नही दिया जाना चाहिए।
एक अन्य घटना थी बाजार और मुद्रा वस्तु विनिमय प्रथा मुद्रा-मुद्रा विनिमय में असाधारण तेजी । पहले नोटो,मुद्राओ ,सोना,इत्यादि से लेन-देन हुआ करता था। आज भी होता है। लेकिन आज की तकनीकी क्रांति के युग में मुद्रा के नए इलेक्ट्रोनिक्स स्वरूप विकसित हो रहे है। इलेक्ट्रोनिक्स मुद्रा,स्मार्ट कार्ड ,ए .टी .ऍम कार्ड ,कम्पयूटरों एवं मोबाइल के जरिये लेन-देन ,इ-मेल तथा इन्टरनेट का बड़े पैमाने पर प्रयोग इन नए मौद्रिक उपकरणों ने धातु और कागज की मुद्रा की भूमिका लगभग समाप्त कर दी है। अब अधिकाधिक लेन इलेक्ट्रोनिक संकेतो से होता है।
इससे जहाँ छोटे उद्धम को फायदा हुआ है वहीं वित्त पूँजी ने अपना प्रभुत्व जमाने के लिए इसका भरपूर फायदा उठाया है। इलेक्ट्रोनिक्स संकेत प्रणाली से स्टॉक बाजारों और वित्त पूँजी का स्वरूप बदल गया है। एक तरह से इलेक्ट्रोनिक्स पूँजीवाद का जन्म हुआ है जिसमें व्यक्तिगत और छोटे उध्योद्ग से लेकर विशालकाय बहुद्देशीय कंपनिया और वित्तीय संस्थाएं कार्यशील है।
इसका फायदा वित्त पूँजी ने मुद्रा से मुद्रा और पूँजी से पूँजी कमाने के लिए किया है। इसमें आरम्भ में तो उसे असाधारण सफलता उसकी असफलता और धराशाई होने का कारण बना।
पिछले 25 -30 वर्षो में इतना बड़ा विश्व्यापी बाजार निर्मित हुआ है जितना की इतिहास में कभी नही हुआ था। पिछले बीस वर्षो में वास्तु -उत्पादन ,लेन-देन तथा मुद्रा की मात्र एवं आवाजाही में,यानी बाजार की गतिविधि में चार से पाँच गुना वृद्धि हुई है।
फलस्वरूप बाजार से मुनाफा कमाने 'धन बनाने' की रुझान में अभूतपूर्व वृधि हुई है ।
-अनिल राजिमवाले
मो.नं.-09868525812
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित होगा
युद्धोत्तर - काल में आर्थिक चक्र की विशेषताएं -
इस प्रकार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और स्वयं दो विरोधी अंतर्विरोधी ध्रुवो में ध्रुवीकृत हो जाती है । उत्पादन से ही जनित वित्त पूँजी अब उत्पादन से जितनी दूर हो जाने की कोशिश करती है । पश्चिमी देशो के बड़े पूँजीवाद और नव-साम्राज्यवाद में एक नई विशेषता पैदा हो जाती है। वह वित्तीय और शेयर बाजार से ही अधिकाधिक मुनाफा कमाने का प्रयत्न करता है । फलस्वरूप ओद्योगिक एवं उत्पादक क्षेत्र की अधिकाधिक उपेक्षा होती जाती है।
यहाँ आज की विश्व अर्थव्यवस्था की कुछ खासियतो पर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है । तभी हम वर्तमान आर्थिक मंदी की भी ठीक से व्याख्या कर पायेंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की जो सबसे महत्वपूर्ण घटना है वह है वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति ( संक्षेप में अंग्रेजी अक्षरो से बना एस.टी.आर ) इस क्रांति और इसके तहत हुई संचार क्रांति ने विश्व बजार को एक दूसरे से जोड़कर स्थान और काल का अन्तर समाप्त कर दिया। इलेक्ट्रोनिक्स और कम्प्यूटर पर आधारित इस क्रांति ने नई उत्पादक शक्तियों को जन्म दिया। नई इलेक्ट्रोनिक मशीनों और उपकरणों की उत्पादकता पहले से कई गुना अधिक थी। उद्योगों ,बैंकिग ,वित्तीय संस्थाओ ,कार्यालयों इत्यादि के कार्य-कलापों की गति में असाधारण तेजी आ गई । दूसरे शब्दों में धन ,मुद्रा और पूँजी का उत्पादन कई गुना बढ़ गया तथा अत्यन्त द्रुत गति से होने लगा।
वित्तीय हितों ने इन घटनाओ का प्रयोग अपने हितों में किया । हालाँकि अन्य प्रकार की गतिविधियाँ बढ़ी लेकिन वित्तीय पूँजी और एकाधिकार कारोबार में असाधारण तेजी आई । साथ ही यह भी नही भूला जाना चाहिए की छोटे और मंझोले कारोबार में भारी तेजी आई । इजारेदारी और वित्त के विकास पर एकतरफा जोर नही दिया जाना चाहिए।
एक अन्य घटना थी बाजार और मुद्रा वस्तु विनिमय प्रथा मुद्रा-मुद्रा विनिमय में असाधारण तेजी । पहले नोटो,मुद्राओ ,सोना,इत्यादि से लेन-देन हुआ करता था। आज भी होता है। लेकिन आज की तकनीकी क्रांति के युग में मुद्रा के नए इलेक्ट्रोनिक्स स्वरूप विकसित हो रहे है। इलेक्ट्रोनिक्स मुद्रा,स्मार्ट कार्ड ,ए .टी .ऍम कार्ड ,कम्पयूटरों एवं मोबाइल के जरिये लेन-देन ,इ-मेल तथा इन्टरनेट का बड़े पैमाने पर प्रयोग इन नए मौद्रिक उपकरणों ने धातु और कागज की मुद्रा की भूमिका लगभग समाप्त कर दी है। अब अधिकाधिक लेन इलेक्ट्रोनिक संकेतो से होता है।
इससे जहाँ छोटे उद्धम को फायदा हुआ है वहीं वित्त पूँजी ने अपना प्रभुत्व जमाने के लिए इसका भरपूर फायदा उठाया है। इलेक्ट्रोनिक्स संकेत प्रणाली से स्टॉक बाजारों और वित्त पूँजी का स्वरूप बदल गया है। एक तरह से इलेक्ट्रोनिक्स पूँजीवाद का जन्म हुआ है जिसमें व्यक्तिगत और छोटे उध्योद्ग से लेकर विशालकाय बहुद्देशीय कंपनिया और वित्तीय संस्थाएं कार्यशील है।
इसका फायदा वित्त पूँजी ने मुद्रा से मुद्रा और पूँजी से पूँजी कमाने के लिए किया है। इसमें आरम्भ में तो उसे असाधारण सफलता उसकी असफलता और धराशाई होने का कारण बना।
पिछले 25 -30 वर्षो में इतना बड़ा विश्व्यापी बाजार निर्मित हुआ है जितना की इतिहास में कभी नही हुआ था। पिछले बीस वर्षो में वास्तु -उत्पादन ,लेन-देन तथा मुद्रा की मात्र एवं आवाजाही में,यानी बाजार की गतिविधि में चार से पाँच गुना वृद्धि हुई है।
फलस्वरूप बाजार से मुनाफा कमाने 'धन बनाने' की रुझान में अभूतपूर्व वृधि हुई है ।
-अनिल राजिमवाले
मो.नं.-09868525812
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित होगा
लेबल: अनिल राजिमवाले
राष्ट्रदामाद श्री अजमल कसाब कहते हैं....
उज्ज्वल निकम जो कि सरकारी वकील हैं जो कि खामखां ही ये सिद्ध करने पर उतारू हैं कि श्री अजमल कसाब जैसे सम्मानित और बेकुसूर टूरिस्ट ने मुंबई में आतंकी हमला करके कई लोगों को मार डाला। जब श्री निकम ने इस तरह के ऊल-जुलूल आरोप लगाए तो कल तंग आकर भारत के राष्ट्रदामाद श्री अजमल कसाब ने कह दिया कि आप झूठ बोल रहे हैं। अब कुछ समय बाद पूरी दुनिया के सामने एक और सच लाया जाएगा कि राष्ट्रदामाद श्री अजमल कसाब जी एक पर्यटक हैं जो कि भारत में यहां की प्रेम से भरी सभ्यता का अध्ययन करने के लिये आए थे। अब निकम साहब हैं कि अपना सा मुंह लेकर खिसियाए हुए चुप रह गये जब "जीजा जी" ने ये कहा कि आप कौन होते हैं ये कहने वाले कि मैंने आतंकी हमला करा या फिर हत्याएं करी हैं इसका फैसला तो माननीय अदालत करेगी। कसाब जीजा जी इस देश की कानूनी स्थिति को अच्छी तरह से समझ गये हैं जिसे हमारे देश के पढ़े-लिखे बंदे तक नहीं समझ सके; मुझे इंतजार है अपनी उस बहन का जो कल दुनिया के सामने आकर कहेगी कि मैं श्री अजमल कसाब के व्यक्तित्व से प्रभावित हूं और अपना जीवन उनके साथ बिताना चाहती हूं। इस बात पर भला हमारे देश का प्रेम का पक्षधर कानून मना कर सकता है? मासूम कसाब जी को उनकी पत्नी के साथ जीवन बिताने के लिये दिल्ली में एक सुंदर सा फ्लैट दिया जाएगा और अन्य अवसर दिये जाएंगे कि वे हमारे महान देश की सेवा कर सकें।
जय जय भड़ास
जय जय भड़ास
मायावती को झटके पे झटका !!
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना पर रोक लगा दी है, गंगा महासभा और विंध्य इंवायरमेंटल सोसाइटी की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायामूर्ति अशोक भूषण और अरुण टंडन ने यह आदेश पारित किया।
न्यायालय ने अपने आदेश में इस मायावती सरकार की सबसे महत्वकांक्षी परियोजना के निर्माण के लिए स्टेट लेवल इनवायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी की मंजूरी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। राज्य सरकार द्वारा गठित इस कमेटी ने गत जुलाई 2007 को परियोजना को अपनी मंजूरी दी थी। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि एक्सप्रेस वे के निर्माण में राज्य सरकार फिर से इस कमेटी की स्वीकृति ले।
याचिकाकर्ता राहुल मिश्रा ने कहा कि नोएडा से बलिया को जोड़ने वाली गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के निर्माण में प्रदेश सरकार ने पर्यावरण के नियमों की अनदेखी की। याचिका में परियोजना के निर्माण के लिए स्टेट लेबल इनवायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी की तरफ से दी गई स्वीकृति पर भी सवाल उठाए गए।
राज्य सरकार ने स्टेट लेवल इनवायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी का गठन केंद्र सरकार द्वारा 14 जुलाई 2006 को जारी अधिसूचना के निर्देशों के आधार पर किया था।
ज्ञात हो कि जनवरी 2008 में राज्य मंत्रिपरिषद ने 40,000 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले लगभग 1,000 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना को मंजूरी दी थी। नोएडा से बलिया को जोड़ने वाला यह एक्सप्रेसवे गंगा बेसिन के किनारे-किनारे राज्य के 19 जिलों से होकर गुजरेगा।
मायावती को झटके पे झटका !!
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गंगा एक्सप्रेस वे परियोजना पर रोक लगा दी है, गंगा महासभा और विंध्य इंवायरमेंटल सोसाइटी की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायामूर्ति अशोक भूषण और अरुण टंडन ने यह आदेश पारित किया।
न्यायालय ने अपने आदेश में इस मायावती सरकार की सबसे महत्वकांक्षी परियोजना के निर्माण के लिए स्टेट लेवल इनवायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी की मंजूरी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। राज्य सरकार द्वारा गठित इस कमेटी ने गत जुलाई 2007 को परियोजना को अपनी मंजूरी दी थी। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि एक्सप्रेस वे के निर्माण में राज्य सरकार फिर से इस कमेटी की स्वीकृति ले।
याचिकाकर्ता राहुल मिश्रा ने कहा कि नोएडा से बलिया को जोड़ने वाली गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के निर्माण में प्रदेश सरकार ने पर्यावरण के नियमों की अनदेखी की। याचिका में परियोजना के निर्माण के लिए स्टेट लेबल इनवायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी की तरफ से दी गई स्वीकृति पर भी सवाल उठाए गए।
राज्य सरकार ने स्टेट लेवल इनवायरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी का गठन केंद्र सरकार द्वारा 14 जुलाई 2006 को जारी अधिसूचना के निर्देशों के आधार पर किया था।
ज्ञात हो कि जनवरी 2008 में राज्य मंत्रिपरिषद ने 40,000 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले लगभग 1,000 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना को मंजूरी दी थी। नोएडा से बलिया को जोड़ने वाला यह एक्सप्रेसवे गंगा बेसिन के किनारे-किनारे राज्य के 19 जिलों से होकर गुजरेगा।
नीतिश का मुखौटा, लोगों के साथ धोखा !
कल लुधियाना में एनडीऐ का शक्ति प्रदर्शन था, घटक दलों के साथ राजनैतिक गलियारा हो या मीडिया की बैठकी, एक ही विषय एक ही चर्चा नीतिश और मोदी का मिलन कैसा, किस तरह और क्यूँकर होगा।
बहरहाल एनडीऐ के इस शक्ति प्रदर्शन में सभी शरीक थे और आम जनों की धारणा के विपरीत मोदी और नीतिश ने आलिंगन किया। नि:संदेह ये राजनीति के विपरीत नही था, राजनीति का तो ये पहला सिद्दांत है की विशवास जीतो और उसका घात करो, अपने फायदे के लिए किसी के साथ भी हाथ मिलाना हो तो जरूर मिलाओ आख़िर राजनीति ही तो है।
बिहार में सभी चरण का मतदान हो चुका है, नीतिश लोगों को ठग चुके हैं, अपनी क्षद्म चरित्र को दुहरा चुके हैं, राजनैतिक भ्रष्टता का नया उदाहरण पेश करते हुए, अपने सभी पुराने वायदे घोषणा और यहाँ तक की पार्टी के पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता तक की मनोभावना के विपरीत मोदी से गल बहलिया की, अब चुनाव समाप्त है और बारी सरकार बनने की है, गद्दी तक पहुँचने के लिए लोगों को ग़लत आश्वासन और विचारधारा की मृत्यु कर चुके हैं।
नीतिश का ये कोई नया चेहरा नही है, जनता दल के विभाजन से लेकर लालू के साथ मन मुटाव हो या समता पार्टी का गठन और विघटन ये सारा कारनामा नीतिश की तानाशाही और निरंकुशता के कारण ही तो हुआ था। आज भी नीतिश की तानाशाही जारी है। जद एस में इसकी साफ़ झलक दिखती है जब शरद यादव नीतिश के छाँव तले चुनाव लड़ने से लेकर पार्टी के मुखिया बनने तक की राह में नीतिश के मोहताज नजर आते हैं, एनडीऐ का कर्णधार और संयोजक जार्ज फर्नांडीज का उदाहरण ज्यादा पुराना तो नही जो पार्टी से नही बल्कि स्वनंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। नीतिश की तानाशाही ही तो है।
बिहार विकास के नाम पर पहले तो नीतिश बिहारवाशी को विकाश का झुनझुना पकडाते रहे, अब विरोधी भी नीतिश के विकाश का गुणगान कर रहे हैं राजनीति ही तो है। मगर क्या विकाश है ?
मीडिया में विकाश, राजनीति में विकाश, सरकार में विकाश विरोधी में विकाश मगर आम आदमी का विकाश ?
नीतिश के विकाश का पोल गाँव में जाने पर खुलता है जहाँ नीतिश के जात पात की राजनीति ने विकाश की धारा को कुंद कर रखा है, मगर कागजी विकाश तो है भले ही आम को विकाश न मिले।
राजनीति के सिद्दांतों का पालन करते हुए जिस तरह से नीतिश ने बिहार की जनता को छला है, आने वाले दिनों में नीतिश उत्तर देने की तैयारी कर लें।
बहरहाल एनडीऐ के इस शक्ति प्रदर्शन में सभी शरीक थे और आम जनों की धारणा के विपरीत मोदी और नीतिश ने आलिंगन किया। नि:संदेह ये राजनीति के विपरीत नही था, राजनीति का तो ये पहला सिद्दांत है की विशवास जीतो और उसका घात करो, अपने फायदे के लिए किसी के साथ भी हाथ मिलाना हो तो जरूर मिलाओ आख़िर राजनीति ही तो है।
बिहार में सभी चरण का मतदान हो चुका है, नीतिश लोगों को ठग चुके हैं, अपनी क्षद्म चरित्र को दुहरा चुके हैं, राजनैतिक भ्रष्टता का नया उदाहरण पेश करते हुए, अपने सभी पुराने वायदे घोषणा और यहाँ तक की पार्टी के पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता तक की मनोभावना के विपरीत मोदी से गल बहलिया की, अब चुनाव समाप्त है और बारी सरकार बनने की है, गद्दी तक पहुँचने के लिए लोगों को ग़लत आश्वासन और विचारधारा की मृत्यु कर चुके हैं।
नीतिश का ये कोई नया चेहरा नही है, जनता दल के विभाजन से लेकर लालू के साथ मन मुटाव हो या समता पार्टी का गठन और विघटन ये सारा कारनामा नीतिश की तानाशाही और निरंकुशता के कारण ही तो हुआ था। आज भी नीतिश की तानाशाही जारी है। जद एस में इसकी साफ़ झलक दिखती है जब शरद यादव नीतिश के छाँव तले चुनाव लड़ने से लेकर पार्टी के मुखिया बनने तक की राह में नीतिश के मोहताज नजर आते हैं, एनडीऐ का कर्णधार और संयोजक जार्ज फर्नांडीज का उदाहरण ज्यादा पुराना तो नही जो पार्टी से नही बल्कि स्वनंत्र उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। नीतिश की तानाशाही ही तो है।
बिहार विकास के नाम पर पहले तो नीतिश बिहारवाशी को विकाश का झुनझुना पकडाते रहे, अब विरोधी भी नीतिश के विकाश का गुणगान कर रहे हैं राजनीति ही तो है। मगर क्या विकाश है ?
मीडिया में विकाश, राजनीति में विकाश, सरकार में विकाश विरोधी में विकाश मगर आम आदमी का विकाश ?
नीतिश के विकाश का पोल गाँव में जाने पर खुलता है जहाँ नीतिश के जात पात की राजनीति ने विकाश की धारा को कुंद कर रखा है, मगर कागजी विकाश तो है भले ही आम को विकाश न मिले।
राजनीति के सिद्दांतों का पालन करते हुए जिस तरह से नीतिश ने बिहार की जनता को छला है, आने वाले दिनों में नीतिश उत्तर देने की तैयारी कर लें।
करूणानिधि ने पुत्र का राज्याभिषेक किया, स्तालिन उपमुख्यमंत्री !!
लंबे समय से चली आ रही अटकलों को सही साबित करते हुये डीएमके मुखिया एम करुणानिधि ने अपने छोटे बेटे स्टॉलिन को तमिलनाडु का उप-मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया है। पार्टी में लंबे समय से उन्हें करुणानिधि का उत्तराधिकारी माना जाता रहा है।
करुणानिधि ने 55 वर्षीय स्टॉलिन को उप-मुख्यमंत्री नियुक्त करने के साथ ही उद्योग, सामान्य प्रशासन, राजस्व और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालयों का उत्तरदायित्व भी सौंप दिया। ये सभी मंत्रालय करुणानिधि के पास थे।
राजभवन से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि नये मंत्रालयों के अतिरिक्त ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन विभाग भी पहले की ही तरह उन्हीं के पास बने रहेंगे।
इस साल फरवरी में करुणानिधि की पीठ की शल्यचिकित्सा के बाद से ही स्टॉलिन की ताजपोशी की अटकलें गर्म थीं। करुणानिधि की बीमारी की वजह से हाल में सपन्न हुये लोकसभा चुनावों में प्रचार कार्य का जिम्मा स्टॉलिन ने ही संभाल रखा था।
स्टॉलिन पार्टी की युवा शाखा के मुखिया हैं और 1975 में आपातकाल के दौरान जेल जाने की वजह से खबरों में आये थे। करुणानिधि के पिछले कार्यकाल के दौरान 1996 से 2001 तक वो चेन्नै के महापौर भी रह चुके हैं।
गुरुवार को दिल्ली में उनके बड़े भाई एमके अझगिरि को कैबिनेट मंत्री को शपथ दिलाये जाने के अगले ही दिन उनको उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई है।
भारतीय लोकतंत्र में परिवार का हावी होना और लोगों पर थोपने की ये ताजा और दमदार शुरुआत है।
करुणानिधि ने 55 वर्षीय स्टॉलिन को उप-मुख्यमंत्री नियुक्त करने के साथ ही उद्योग, सामान्य प्रशासन, राजस्व और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालयों का उत्तरदायित्व भी सौंप दिया। ये सभी मंत्रालय करुणानिधि के पास थे।
राजभवन से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि नये मंत्रालयों के अतिरिक्त ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन विभाग भी पहले की ही तरह उन्हीं के पास बने रहेंगे।
इस साल फरवरी में करुणानिधि की पीठ की शल्यचिकित्सा के बाद से ही स्टॉलिन की ताजपोशी की अटकलें गर्म थीं। करुणानिधि की बीमारी की वजह से हाल में सपन्न हुये लोकसभा चुनावों में प्रचार कार्य का जिम्मा स्टॉलिन ने ही संभाल रखा था।
स्टॉलिन पार्टी की युवा शाखा के मुखिया हैं और 1975 में आपातकाल के दौरान जेल जाने की वजह से खबरों में आये थे। करुणानिधि के पिछले कार्यकाल के दौरान 1996 से 2001 तक वो चेन्नै के महापौर भी रह चुके हैं।
गुरुवार को दिल्ली में उनके बड़े भाई एमके अझगिरि को कैबिनेट मंत्री को शपथ दिलाये जाने के अगले ही दिन उनको उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई है।
भारतीय लोकतंत्र में परिवार का हावी होना और लोगों पर थोपने की ये ताजा और दमदार शुरुआत है।
ह्रदय रोगियों व्यायाम करें !!
किसी को भी ये पता चले कि वो ह्रदयरोगी बन गया है तो उसे गहरा आघात पंहुचेगा...और सालों से चिकित्सक ये मानते आ रहे थे कि किसी भी ऐसे व्यायाम से बचना चाहिये जिससे ह्रदय पर ज़ोर पड़ता हो...लेकिन नये अध्ययन से पता चला है कि विशेषज्ञों की देख-रेख में किये गये व्यायाम से हालत सुधर सकती है...
जब लीज़े कोलमैन को पता चला कि वो ह्रदय रोगी हैं तो उन्हें ज्यादा भागदौड़ से बचने की सलाह दी गई...वो कहती हैं "मुझे कोई भी काम करने में दिल पर दबाव पड़ने का डर बना रहता था"...लेकिन उन्होंने धीमे-धीमे पैदल चलने की क्षमता को बढ़ाया...कोलमैन जैसे ही पचास लाख ह्रदय रोगी अकेले अमेरिका में हैं...जबकि दुनिया भर में इनकी संख्या 1 करोड़ पचास लाख है...लेकिन इनकी संख्या में जोरदार वृद्धि ने अमेरिका के ह्रदय, फेफड़े और रक्त संस्थान को ह्रदय रोग को "नयी महामारी" घोषित करने पर विवश कर दिया...
उत्तरी कैरोलॉइना स्थित ड्यूक विश्वविद्यालय के कॉर्थिन फ्लिन के अनुसार "ह्रदय रोग ऐसी अवस्था है जिसमें ह्रदय शरीर की आवश्यकतानुसार रक्त पंप नहीं कर पाता है"।
लीज़े कोलमैन थकान, सांस उखड़ना और पैरों में सूजन जैसे कुछ लक्षणों के उपचार के लिए दवाइयां खा रही हैं...वो 2300 लोगों पर किये जा रहे एक ऐसे अध्ययन में भी शामिल हैं...जिसमें ह्रदय रोगियों पर व्यायाम के असर का पता लगाने की कोशिश की जा रही है...इन लोगों को दो समूहों में बांटा गया है...एक समूह को नियंत्रित व्यायाम कराया जा रहा है...तथा दूसरे समूह को व्यायाम नहीं करना है....और इन दोनों समूहों पर इस प्रक्रिया के परिणामों का 30 महीने बाद तक अध्य्यन किया गया।
डॉ। क्रिस्टोफ़र ओ'कॉनर और काथरिन फ्लिन इसके मखिया थे...डॉ. क्रिस्टोफ़र बताते हैं कि परीक्षण से स्पष्ट हो गया कि ह्रदय रोगियों के लिए नियंत्रित व्यायाम सुरक्षित है दूसरा...इससे अस्पताल में भर्ती होने और रोगियों की मृत्यु होने के मामलों में कई आयी.
"जो रोगी व्यायाम कर रहे थे उन्होंने उन लोगों की तुलना में बेहतरी की बात मानी जो केवल दवाओं और साधारण देखभाल के भरोसे थे...हालांकि बेहतरी मामूली थी...लेकिन ये दीर्घकालिक थे..."
शोधकर्ताओं ने माना कि जिस समूह को व्यायाम करने के लिए कहा गया था...उसमें से केवल आधे लोग ही शोध खत्म होने के बाद व्यायाम कर रहे थे...बाकियों ने छोड़ दिया था...लीज़े कोलमैन कहती हैं कि वो व्यायाम के बाद बेहतर महसूस करती हैं...
साभार :- वॉइस ऑफ़ इंडिया
जब लीज़े कोलमैन को पता चला कि वो ह्रदय रोगी हैं तो उन्हें ज्यादा भागदौड़ से बचने की सलाह दी गई...वो कहती हैं "मुझे कोई भी काम करने में दिल पर दबाव पड़ने का डर बना रहता था"...लेकिन उन्होंने धीमे-धीमे पैदल चलने की क्षमता को बढ़ाया...कोलमैन जैसे ही पचास लाख ह्रदय रोगी अकेले अमेरिका में हैं...जबकि दुनिया भर में इनकी संख्या 1 करोड़ पचास लाख है...लेकिन इनकी संख्या में जोरदार वृद्धि ने अमेरिका के ह्रदय, फेफड़े और रक्त संस्थान को ह्रदय रोग को "नयी महामारी" घोषित करने पर विवश कर दिया...
उत्तरी कैरोलॉइना स्थित ड्यूक विश्वविद्यालय के कॉर्थिन फ्लिन के अनुसार "ह्रदय रोग ऐसी अवस्था है जिसमें ह्रदय शरीर की आवश्यकतानुसार रक्त पंप नहीं कर पाता है"।
लीज़े कोलमैन थकान, सांस उखड़ना और पैरों में सूजन जैसे कुछ लक्षणों के उपचार के लिए दवाइयां खा रही हैं...वो 2300 लोगों पर किये जा रहे एक ऐसे अध्ययन में भी शामिल हैं...जिसमें ह्रदय रोगियों पर व्यायाम के असर का पता लगाने की कोशिश की जा रही है...इन लोगों को दो समूहों में बांटा गया है...एक समूह को नियंत्रित व्यायाम कराया जा रहा है...तथा दूसरे समूह को व्यायाम नहीं करना है....और इन दोनों समूहों पर इस प्रक्रिया के परिणामों का 30 महीने बाद तक अध्य्यन किया गया।
डॉ। क्रिस्टोफ़र ओ'कॉनर और काथरिन फ्लिन इसके मखिया थे...डॉ. क्रिस्टोफ़र बताते हैं कि परीक्षण से स्पष्ट हो गया कि ह्रदय रोगियों के लिए नियंत्रित व्यायाम सुरक्षित है दूसरा...इससे अस्पताल में भर्ती होने और रोगियों की मृत्यु होने के मामलों में कई आयी.
"जो रोगी व्यायाम कर रहे थे उन्होंने उन लोगों की तुलना में बेहतरी की बात मानी जो केवल दवाओं और साधारण देखभाल के भरोसे थे...हालांकि बेहतरी मामूली थी...लेकिन ये दीर्घकालिक थे..."
शोधकर्ताओं ने माना कि जिस समूह को व्यायाम करने के लिए कहा गया था...उसमें से केवल आधे लोग ही शोध खत्म होने के बाद व्यायाम कर रहे थे...बाकियों ने छोड़ दिया था...लीज़े कोलमैन कहती हैं कि वो व्यायाम के बाद बेहतर महसूस करती हैं...
साभार :- वॉइस ऑफ़ इंडिया
करूणानिधि ने पुत्र का राज्याभिषेक किया, स्तालिन उपमुख्यमंत्री !!
लंबे समय से चली आ रही अटकलों को सही साबित करते हुये डीएमके मुखिया एम करुणानिधि ने अपने छोटे बेटे स्टॉलिन को तमिलनाडु का उप-मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया है। पार्टी में लंबे समय से उन्हें करुणानिधि का उत्तराधिकारी माना जाता रहा है।
करुणानिधि ने 55 वर्षीय स्टॉलिन को उप-मुख्यमंत्री नियुक्त करने के साथ ही उद्योग, सामान्य प्रशासन, राजस्व और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालयों का उत्तरदायित्व भी सौंप दिया। ये सभी मंत्रालय करुणानिधि के पास थे।
राजभवन से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि नये मंत्रालयों के अतिरिक्त ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन विभाग भी पहले की ही तरह उन्हीं के पास बने रहेंगे।
इस साल फरवरी में करुणानिधि की पीठ की शल्यचिकित्सा के बाद से ही स्टॉलिन की ताजपोशी की अटकलें गर्म थीं। करुणानिधि की बीमारी की वजह से हाल में सपन्न हुये लोकसभा चुनावों में प्रचार कार्य का जिम्मा स्टॉलिन ने ही संभाल रखा था।
स्टॉलिन पार्टी की युवा शाखा के मुखिया हैं और 1975 में आपातकाल के दौरान जेल जाने की वजह से खबरों में आये थे। करुणानिधि के पिछले कार्यकाल के दौरान 1996 से 2001 तक वो चेन्नै के महापौर भी रह चुके हैं।
गुरुवार को दिल्ली में उनके बड़े भाई एमके अझगिरि को कैबिनेट मंत्री को शपथ दिलाये जाने के अगले ही दिन उनको उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई है।
भारतीय लोकतंत्र में परिवार का हावी होना और लोगों पर थोपने की ये ताजा और दमदार शुरुआत है।
करुणानिधि ने 55 वर्षीय स्टॉलिन को उप-मुख्यमंत्री नियुक्त करने के साथ ही उद्योग, सामान्य प्रशासन, राजस्व और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालयों का उत्तरदायित्व भी सौंप दिया। ये सभी मंत्रालय करुणानिधि के पास थे।
राजभवन से जारी एक वक्तव्य में कहा गया है कि नये मंत्रालयों के अतिरिक्त ग्रामीण विकास और स्थानीय प्रशासन विभाग भी पहले की ही तरह उन्हीं के पास बने रहेंगे।
इस साल फरवरी में करुणानिधि की पीठ की शल्यचिकित्सा के बाद से ही स्टॉलिन की ताजपोशी की अटकलें गर्म थीं। करुणानिधि की बीमारी की वजह से हाल में सपन्न हुये लोकसभा चुनावों में प्रचार कार्य का जिम्मा स्टॉलिन ने ही संभाल रखा था।
स्टॉलिन पार्टी की युवा शाखा के मुखिया हैं और 1975 में आपातकाल के दौरान जेल जाने की वजह से खबरों में आये थे। करुणानिधि के पिछले कार्यकाल के दौरान 1996 से 2001 तक वो चेन्नै के महापौर भी रह चुके हैं।
गुरुवार को दिल्ली में उनके बड़े भाई एमके अझगिरि को कैबिनेट मंत्री को शपथ दिलाये जाने के अगले ही दिन उनको उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई है।
भारतीय लोकतंत्र में परिवार का हावी होना और लोगों पर थोपने की ये ताजा और दमदार शुरुआत है।
ह्रदय रोगियों व्यायाम करें !!
किसी को भी ये पता चले कि वो ह्रदयरोगी बन गया है तो उसे गहरा आघात पंहुचेगा...और सालों से चिकित्सक ये मानते आ रहे थे कि किसी भी ऐसे व्यायाम से बचना चाहिये जिससे ह्रदय पर ज़ोर पड़ता हो...लेकिन नये अध्ययन से पता चला है कि विशेषज्ञों की देख-रेख में किये गये व्यायाम से हालत सुधर सकती है...
जब लीज़े कोलमैन को पता चला कि वो ह्रदय रोगी हैं तो उन्हें ज्यादा भागदौड़ से बचने की सलाह दी गई...वो कहती हैं "मुझे कोई भी काम करने में दिल पर दबाव पड़ने का डर बना रहता था"...लेकिन उन्होंने धीमे-धीमे पैदल चलने की क्षमता को बढ़ाया...कोलमैन जैसे ही पचास लाख ह्रदय रोगी अकेले अमेरिका में हैं...जबकि दुनिया भर में इनकी संख्या 1 करोड़ पचास लाख है...लेकिन इनकी संख्या में जोरदार वृद्धि ने अमेरिका के ह्रदय, फेफड़े और रक्त संस्थान को ह्रदय रोग को "नयी महामारी" घोषित करने पर विवश कर दिया...
उत्तरी कैरोलॉइना स्थित ड्यूक विश्वविद्यालय के कॉर्थिन फ्लिन के अनुसार "ह्रदय रोग ऐसी अवस्था है जिसमें ह्रदय शरीर की आवश्यकतानुसार रक्त पंप नहीं कर पाता है"।
लीज़े कोलमैन थकान, सांस उखड़ना और पैरों में सूजन जैसे कुछ लक्षणों के उपचार के लिए दवाइयां खा रही हैं...वो 2300 लोगों पर किये जा रहे एक ऐसे अध्ययन में भी शामिल हैं...जिसमें ह्रदय रोगियों पर व्यायाम के असर का पता लगाने की कोशिश की जा रही है...इन लोगों को दो समूहों में बांटा गया है...एक समूह को नियंत्रित व्यायाम कराया जा रहा है...तथा दूसरे समूह को व्यायाम नहीं करना है....और इन दोनों समूहों पर इस प्रक्रिया के परिणामों का 30 महीने बाद तक अध्य्यन किया गया।
डॉ। क्रिस्टोफ़र ओ'कॉनर और काथरिन फ्लिन इसके मखिया थे...डॉ. क्रिस्टोफ़र बताते हैं कि परीक्षण से स्पष्ट हो गया कि ह्रदय रोगियों के लिए नियंत्रित व्यायाम सुरक्षित है दूसरा...इससे अस्पताल में भर्ती होने और रोगियों की मृत्यु होने के मामलों में कई आयी.
"जो रोगी व्यायाम कर रहे थे उन्होंने उन लोगों की तुलना में बेहतरी की बात मानी जो केवल दवाओं और साधारण देखभाल के भरोसे थे...हालांकि बेहतरी मामूली थी...लेकिन ये दीर्घकालिक थे..."
शोधकर्ताओं ने माना कि जिस समूह को व्यायाम करने के लिए कहा गया था...उसमें से केवल आधे लोग ही शोध खत्म होने के बाद व्यायाम कर रहे थे...बाकियों ने छोड़ दिया था...लीज़े कोलमैन कहती हैं कि वो व्यायाम के बाद बेहतर महसूस करती हैं...
साभार :- वॉइस ऑफ़ इंडिया
जब लीज़े कोलमैन को पता चला कि वो ह्रदय रोगी हैं तो उन्हें ज्यादा भागदौड़ से बचने की सलाह दी गई...वो कहती हैं "मुझे कोई भी काम करने में दिल पर दबाव पड़ने का डर बना रहता था"...लेकिन उन्होंने धीमे-धीमे पैदल चलने की क्षमता को बढ़ाया...कोलमैन जैसे ही पचास लाख ह्रदय रोगी अकेले अमेरिका में हैं...जबकि दुनिया भर में इनकी संख्या 1 करोड़ पचास लाख है...लेकिन इनकी संख्या में जोरदार वृद्धि ने अमेरिका के ह्रदय, फेफड़े और रक्त संस्थान को ह्रदय रोग को "नयी महामारी" घोषित करने पर विवश कर दिया...
उत्तरी कैरोलॉइना स्थित ड्यूक विश्वविद्यालय के कॉर्थिन फ्लिन के अनुसार "ह्रदय रोग ऐसी अवस्था है जिसमें ह्रदय शरीर की आवश्यकतानुसार रक्त पंप नहीं कर पाता है"।
लीज़े कोलमैन थकान, सांस उखड़ना और पैरों में सूजन जैसे कुछ लक्षणों के उपचार के लिए दवाइयां खा रही हैं...वो 2300 लोगों पर किये जा रहे एक ऐसे अध्ययन में भी शामिल हैं...जिसमें ह्रदय रोगियों पर व्यायाम के असर का पता लगाने की कोशिश की जा रही है...इन लोगों को दो समूहों में बांटा गया है...एक समूह को नियंत्रित व्यायाम कराया जा रहा है...तथा दूसरे समूह को व्यायाम नहीं करना है....और इन दोनों समूहों पर इस प्रक्रिया के परिणामों का 30 महीने बाद तक अध्य्यन किया गया।
डॉ। क्रिस्टोफ़र ओ'कॉनर और काथरिन फ्लिन इसके मखिया थे...डॉ. क्रिस्टोफ़र बताते हैं कि परीक्षण से स्पष्ट हो गया कि ह्रदय रोगियों के लिए नियंत्रित व्यायाम सुरक्षित है दूसरा...इससे अस्पताल में भर्ती होने और रोगियों की मृत्यु होने के मामलों में कई आयी.
"जो रोगी व्यायाम कर रहे थे उन्होंने उन लोगों की तुलना में बेहतरी की बात मानी जो केवल दवाओं और साधारण देखभाल के भरोसे थे...हालांकि बेहतरी मामूली थी...लेकिन ये दीर्घकालिक थे..."
शोधकर्ताओं ने माना कि जिस समूह को व्यायाम करने के लिए कहा गया था...उसमें से केवल आधे लोग ही शोध खत्म होने के बाद व्यायाम कर रहे थे...बाकियों ने छोड़ दिया था...लीज़े कोलमैन कहती हैं कि वो व्यायाम के बाद बेहतर महसूस करती हैं...
साभार :- वॉइस ऑफ़ इंडिया
मुक्केबाज़ राहुल गांधी
राहुल गांधी ने चुनाव के पहले 2 महीने तक द्रोणाचार्य पुरूस्कार विजेता मुक्केबाजी कोच श्री ओम प्रकाश भरद्वाज से मुक्केबाजी का विधिवत प्रशिक्षण लिया था अपने आप को चुस्त दुरूस्त रखने के लिए और आत्मरक्षा की कला सीखने के लिए ।
– हें ! जे बात थी । तभी मैं सोचूं कि हम जैसे खुर्राट अखाड़ेबाजों को कोई कैसे दिन में तारे दिखा सकता है । जाय छोरो ने तो मोको एकइ पंच में धूल चटाये दियो । – मुलायम सिंह यादव ।
क्या पत्रकारिता राजनीति की दलाली कर रहा है?
१) क्या आप मुख्य पृष्ट पर मुफ्त में फोटो लगवाना चाहते हैं, लोगों को इसके लिए भुगतान करना पड़ता है !
पाल बेकेट (दिल्ली ब्यूरो प्रमुख, दी वाल स्ट्रीट जर्नल)
अनिल बैरवाल नेशनल इलेक्शन वाच के राष्ट्रिय संयोजक कहते हैं की सारे मीडिया एक जैसे नही हैं मगर अधिकतर पक्षपात भरी पत्रकारिता करते हैं और ये धारणा आम जनों में मजबूती से घर करती जा रही है। कुछ मीडिया इसे तरीके से और कुछ खुले आम करती है।
क्या लोकतंत्र के इस महापर्व में पत्रकारिता की संदिग्ध भूमिका लोकतंत्र पर नासूर बनता जा रहा है ?
2) अगर आप तस्वीर या समाचार में जगह चाहते हैं तो आपको पैसे देने होंगे !
३) हम आपका साक्षात्कार लगाने जा रहे हैं मगर आपको हमारे अखबार का ५००० कापी खरीदना होगा !
४) १.२ लाख रूपये का भुगतान कीजिये, अगले दो हप्ते तक आपको कवरेज़ मिलेगी!
पाल बेकेट (दिल्ली ब्यूरो प्रमुख, दी वाल स्ट्रीट जर्नल)
जरा एक नजर ऊपर के तथ्य पर डालें, ख़बर को सनसनी बनाने वाली मीडिया के ऊपर ये किसी आम आदमी का नही, किसी राजनेता का नही, विरोधी या पक्षधर का नही अपितु भारतीय मीडिया पर भारत में ही विदेशी मीडिया के दिल्ली प्रमुख की ख़बर है। पाल बेकेट अमेरिका के दी वाल स्ट्रीट जर्नल के दिल्ली कार्यालय प्रमुख है और उनकी ये ख़बर भारतीय पत्रकार और पत्रकारिता के साथ भारतीयता पर भी कालिख पोत रही है।
पाल बेकेट की रपट के मुताबिक..........
चंडीगढ़ से अजय गोयल स्वतंत्र और गंभीर उम्मीदवार हैं, मगर लोगों को उनके बारे में कुछ पता नही है? वजह उनसे कहा गया की अगर ख़बर चाहते हैं तो भुगतान करें। उन्होंने कुछ दलाल, कुछ जन संपर्क पधाधिकारी के अलावे पत्रकारों से संपर्क भी किया की ख़बर को जगह मिले क्यूंकि वो विज्ञापन नही बल्कि ख़बर के लिए आए हैं।
एक दलाल ने दस लाख रूपये में चार समाचार पत्रों में कवरेज़ पेशकश की। एक पत्रकार और छायाकार ने उन्हें कहा की १.५ लाख रूपये उनके लिए और तीन लाख रूपये अन्य पत्रकारों के लिए व्यवस्था कीजिये तो दो हप्ते तक आपके खबरों के लिए हम गारंटी लेते हैं।
रपट के मुताबिक, श्री गोयल ने कहा ये बड़ा ही निराशाजनक है की लोगों को ख़बर से दूर किया जा रहा है और वो भी शिक्षित और जिम्मेदार वर्ग के द्वारा।
ख़बर में ...
अनिल बैरवाल नेशनल इलेक्शन वाच के राष्ट्रिय संयोजक कहते हैं की सारे मीडिया एक जैसे नही हैं मगर अधिकतर पक्षपात भरी पत्रकारिता करते हैं और ये धारणा आम जनों में मजबूती से घर करती जा रही है। कुछ मीडिया इसे तरीके से और कुछ खुले आम करती है।
लोकतंत्र के सभी पक्षों पर एक नजर डालते हुए ख़बर ने भारतीय लोकतंत्र पर एक कठोर चोट किया है, भ्रष्ट राजनेता, सेना हो या पुलिस इनपर अपने ख़बर का धंधा करने वाली भरिता मीडिया का भ्रष्ट आचरण।
क्या पत्रकारिता इस का जवाब देगी ?
क्या लोकतंत्र के इस महापर्व में पत्रकारिता की संदिग्ध भूमिका लोकतंत्र पर नासूर बनता जा रहा है ?
देश हित में चिंतनीय है.....