१) क्या आप मुख्य पृष्ट पर मुफ्त में फोटो लगवाना चाहते हैं, लोगों को इसके लिए भुगतान करना पड़ता है !
पाल बेकेट (दिल्ली ब्यूरो प्रमुख, दी वाल स्ट्रीट जर्नल)
अनिल बैरवाल नेशनल इलेक्शन वाच के राष्ट्रिय संयोजक कहते हैं की सारे मीडिया एक जैसे नही हैं मगर अधिकतर पक्षपात भरी पत्रकारिता करते हैं और ये धारणा आम जनों में मजबूती से घर करती जा रही है। कुछ मीडिया इसे तरीके से और कुछ खुले आम करती है।
क्या लोकतंत्र के इस महापर्व में पत्रकारिता की संदिग्ध भूमिका लोकतंत्र पर नासूर बनता जा रहा है ?
2) अगर आप तस्वीर या समाचार में जगह चाहते हैं तो आपको पैसे देने होंगे !
३) हम आपका साक्षात्कार लगाने जा रहे हैं मगर आपको हमारे अखबार का ५००० कापी खरीदना होगा !
४) १.२ लाख रूपये का भुगतान कीजिये, अगले दो हप्ते तक आपको कवरेज़ मिलेगी!
पाल बेकेट (दिल्ली ब्यूरो प्रमुख, दी वाल स्ट्रीट जर्नल)
जरा एक नजर ऊपर के तथ्य पर डालें, ख़बर को सनसनी बनाने वाली मीडिया के ऊपर ये किसी आम आदमी का नही, किसी राजनेता का नही, विरोधी या पक्षधर का नही अपितु भारतीय मीडिया पर भारत में ही विदेशी मीडिया के दिल्ली प्रमुख की ख़बर है। पाल बेकेट अमेरिका के दी वाल स्ट्रीट जर्नल के दिल्ली कार्यालय प्रमुख है और उनकी ये ख़बर भारतीय पत्रकार और पत्रकारिता के साथ भारतीयता पर भी कालिख पोत रही है।
पाल बेकेट की रपट के मुताबिक..........
चंडीगढ़ से अजय गोयल स्वतंत्र और गंभीर उम्मीदवार हैं, मगर लोगों को उनके बारे में कुछ पता नही है? वजह उनसे कहा गया की अगर ख़बर चाहते हैं तो भुगतान करें। उन्होंने कुछ दलाल, कुछ जन संपर्क पधाधिकारी के अलावे पत्रकारों से संपर्क भी किया की ख़बर को जगह मिले क्यूंकि वो विज्ञापन नही बल्कि ख़बर के लिए आए हैं।
एक दलाल ने दस लाख रूपये में चार समाचार पत्रों में कवरेज़ पेशकश की। एक पत्रकार और छायाकार ने उन्हें कहा की १.५ लाख रूपये उनके लिए और तीन लाख रूपये अन्य पत्रकारों के लिए व्यवस्था कीजिये तो दो हप्ते तक आपके खबरों के लिए हम गारंटी लेते हैं।
रपट के मुताबिक, श्री गोयल ने कहा ये बड़ा ही निराशाजनक है की लोगों को ख़बर से दूर किया जा रहा है और वो भी शिक्षित और जिम्मेदार वर्ग के द्वारा।
ख़बर में ...
अनिल बैरवाल नेशनल इलेक्शन वाच के राष्ट्रिय संयोजक कहते हैं की सारे मीडिया एक जैसे नही हैं मगर अधिकतर पक्षपात भरी पत्रकारिता करते हैं और ये धारणा आम जनों में मजबूती से घर करती जा रही है। कुछ मीडिया इसे तरीके से और कुछ खुले आम करती है।
लोकतंत्र के सभी पक्षों पर एक नजर डालते हुए ख़बर ने भारतीय लोकतंत्र पर एक कठोर चोट किया है, भ्रष्ट राजनेता, सेना हो या पुलिस इनपर अपने ख़बर का धंधा करने वाली भरिता मीडिया का भ्रष्ट आचरण।
क्या पत्रकारिता इस का जवाब देगी ?
क्या लोकतंत्र के इस महापर्व में पत्रकारिता की संदिग्ध भूमिका लोकतंत्र पर नासूर बनता जा रहा है ?
देश हित में चिंतनीय है.....
कोई नयी बात नहीं है भाई बस ये लोग खुल कर सामने आकर नंगापन कर रहे हैं वरना होता तो यही है न?
ReplyDeleteजय जय भड़ास