भडासी भाई लोगों, अपुन ने अपने रुपेश भैया को देखा है भड़ास के लिए दिल दिमाग और आत्मा तक को भड़ास में लगा दिया था, जो आज भी बरकरार है। भड़ास के मोडरेटर ने हमारे भैया को भाई बनाया, फ़िर मोडरेटर, और प्रधान संरक्षक का लोलीपोप दिया और हमारे रुपेश भैया हो गए यशवंत के दास।
यशवंत ने इसी संवेदना का फायदा उठाया और रुपेश भैया को सब जगह हथियार के तौर पर किया इस्तेमाल, और जब हथियार ने संवेदना को बेचने से मना कर दिया तो, उपयोग करने के बाद भड़ास का ही सौदा कर दिया।
अब हमारे भैया अपनी आत्मा को तो बेचने से रहे सो अपना कुनबा ही अलग कर लिया, और छोड़ दिया बनिए की दुकान, जिसने भड़ास की संवेदना और आत्मा ( तमाम भड़ास के लेखक) को ही अपनी दुकान के लिए बेच दिया और खड़ा कर लिया दो दुकान जिसे आज भी भड़ास के मुखौटा वाले ब्लॉग पर देखा जा सकता है। पहले जहाँ भड़ास का संचालक मंडल हुआ करता था, भड़ास को अपनी आत्मा से सींचने वालों के दर्शन हुआ करते थे वहां अब सिर्फ़ और सिर्फ़ यशवंत का दुकान रह गया है।
मगर लोगों का हुजूम अब भी इस मुगालते में की भड़ास एक मंच है, अरे चेतो और भड़ास के पंखे बनने से बेहतर है की अपना चेहरा ख़ुद बनो, ये बनिया है इस जमात का अग्रिम दलाल है जो तुम्हारी आत्मा को अपनी दुकान के लिए कभी भी बेच सकता है।
अग्नि बेटा! तुम्हारी कलम मुझे धमकवा रही है,मुझे फोन करा जा रहा है मेल-(फी)मेल भेजे जा रहे हैं। क्या मुझे डराया जा सकता है? शायद नशा ज्यादा करने लगे हैं हमारे मुखौटेवाले विरोधी कि ये भूलने लगे कि रुद्राक्षनाथ से सामना है जिसके पास खोने के लिये कुछ नहीं है। इनके पास खोने के लिये धन से लेकर परिवार तक सब कुछ है मेरे पास फकीर के पास क्या है जो खोकर शोक करेगा सिवाय मेरे प्रेम के? सावधान रहें वे लोग कि अगर उनके प्रति मेरा प्रेम खो गया तो अधिक कष्ट होगा और अगर तैयारी है उनकी तो चलो सत्यानाश-सत्यानाश खेलते हैं मायाजाल में इस खेल का भी आनंद ले लिया जाए
ReplyDeleteजय जय भड़ास
भाई बनिया होना बुरा नहीं है लेकिन विचार शुभ लाभ से जुड़ा हो तो राष्ट्र ही नहीं अपितु सारे विश्व का कल्याण होगा अन्यथा पतन से कोई रोक नहीं सकता है।
ReplyDeleteजय जय भड़ास
डाक्टर साहब,
ReplyDeleteएक बार और हमें इस तरह की धमकी मिली थी, मेल के अम्बार लगे थे, निसंदेह पंखे की भड़ास ने वो दिन भूले नही होंगे, सायबर क्राइम और पुलिस के साथ अदालत की धमकी, सो इसे समझ लेना चाहिए कि इसका असर भडासी पर नही होता, कानून पुत्र जस्टिस साहब जिन्हें मैं भड़ास पिता मानता हूँ से अनभिग्य लोग भिग्य हो जाएँ.
रही बात दुकानदारी की तो हमें क्या ऐतराज हो सकता है दुकानदारी पर, मगर वो भड़ास कि आत्मा की कीमत पर नही, हम अपनी आत्मा नही बेच सकते.
एक धमकी का असर देख चुकने के बाद भी अगर ये बनिया फ़िर से धमकी धमकी खेलना चाहता है, तो अपने अंजाम को पुरानी कहानी के साथ जोड़ कर ही रखे.
जय जय भड़ास