विश्वाश क्या है? एक येसा रिश्ता जिसमे आप सामने वाले को वो सब कुछ बता देते है जिसके द्वारा आपको कभी भीहानि पहुचाया जा सकता है पर उसी वक्त आपको यह भी पता होता है की वह येसा कुछ नही करने वाला है। जिसदिन आपको लगने लगता है कि अब आप सामने वाले को कुछ नही बता सकते है क्यूंकि उससे आपकी स्वतंत्रताखतरे मे पड़ जायेगी अथवा उससे आपको हानि पहुचाई जा सकती है, उसी वक्त विश्वाश ख़त्म हो जाता है। औरविश्वाश ख़त्म होने के साथ साथ सारे रिश्ते भी, क्योकि रिश्तों कि बुनियाद ही विश्वाश पर रखी जाती है.
पर अक्सर येसा होता कि जैसे ही रिश्तों से स्पेस (एक दुसरे के लिए जगह) ख़त्म होने लगता है वैसे वैसे बुनियादभी कमजोर होने लगती है। पर विश्वाश और स्पेस तो देखने मे एक दुसरे के विरोधी लगते है। विश्वाश का मतलबएक दुसरे से सब कुछ सच सच बता देना। उसी वक्त स्पेस का अर्थ है कि जिंदगी मे अपने लिए भी कुछ बचा कररखना। क्या यह सम्भव है कि विश्वाश के साथ स्पेस का संतुलन रखा जा सके?
मुझे लगता है कि विश्वाश ख़ुद मे भ्रामक शब्द है। क्या यह सम्भव है कि हम किसी से अपने सारे भेद खोल कर रखदे? अगर नही तो विश्वाश कहा रह पाता है? यहाँ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि अगर हम रिश्तो मे स्पेस नहीरखते तो उनके टूटने का खतरा बन जाता है। यहाँ बाध्यता भी हो जाती है विश्वाश को सिमित करने का। और सचकहे तो विश्वाश को सिमित अर्थो मे ही लिया जा सकता है। जब इसे इसके वास्तविक अर्थ मे प्रयुक्त करते है तो यहबोझ बनने लगता है।
इस वक्त लिखने का कारण मेरे एक दोस्त है। उनका नाम यहाँ लिखना सम्भव नही है। उन्होंने किसी पर इतनाविश्वाश किया कि जिंदगी मे उनका अपना कुछ रह ही नही गया। कुछ समय तक सब सही रहा पर वही जब स्पेसकी समस्या उठने लगी तो वह समझौता की जगह आदर्शवादी हो गए। और आज उनके ऊपर उनकी प्रेमिका ने नाजाने कितने आरोपों की बौछार कर दी है। वो मेरे अच्छे दोस्त है और उन्होंने मुझ पर भी विश्वाश (!) किया है। इसनाते मुझे पता है कि उनपर जो भी आरोप लगाये गए है वो थोड़ा भी सच नही है। वह व्यक्ति इतना आदर्शवादी है किइस प्रकार की टुच्ची हरकत कर ही नही सकता।
कुछ समय पहले तक उनकी प्रेमिका भी इस बात को मानती थी पर ना जाने क्या हुआ कि चंद लम्हों मे फिजाबदल गई। खैर मै बात कर रहा था विश्वाश और स्पेस की। मुझे लग रहा है कि उनहोने इतना विश्वाश कर के ग़लतकिया और दूसरी गलती रिश्तों मे स्पेस नही रख के की। आज अक्सर येसा हो रहा है। और ना केवल प्रेमी प्रेमिकामे बल्कि पति पत्नी, पिता पुत्र और भी कई सारे रिश्तों मे। मेरी समझ तो यही कहती है कि किसी को वक्त से पहलेन समझाने की कोशिश करो ना ही उसके लिए इतना सोचो कि उसे लगने लगे कि उसकी सवतंत्रता चीनी जा रहीहै। कई बार देख कर भी मक्खी निगलना अच्छे रिश्ते बनने के लिए आवश्यक है। वैसे मेरे प्रिया दोस्त के साथआगे क्या होता है और इस रिश्ते का अंजाम क्या होता है यह मै वक्त वक्त पर आप सभी को बताता रहूँगा।
तब तक के लिए बंद चला सोने।
अभिशेक भाई आप तो सोने चले गये लेकिन बहुत सारे लोगों की नींद उड़ा दी होगी मुझे पक्का यकीन है। आप जब विश्वास कर पाने की मनोस्थिति में होते हैं तब शेष बातों पर विचार के लिये मन में स्थान ही नहीं रहता ये तो तब उपजता है जब कुछ अप्रिय सा हो जाए। एक बात और कि विश्वासघात शब्द के गर्भ में भी तो कहीं विश्वास रहता है जब आप किसी पर विश्वास करते हैं और वह धोखा दे तभी तो विश्वासघात होगा जिस पर विश्वास ही नहीं करा वह क्या विश्वासघात करेगा; ऐसे अनुभव हमें परख के लिये परिपक्व करते जाते हैं और यही अनुभव हम आगे की पीढ़ी में हस्तांतरित करते हैं अपने आग्रहों को आधार बना कर...
ReplyDeleteकई बार ये लाभदायक होते हैं और कई बार हानिकारक.....
सुंदर लिखा है आपका स्वागत है
एक प्रिय को आपकी लेखन शैली से भ्रम हो गया कि मैं ही अभिषेक आनंद नाम से दूसरा छद्मनाम रखकर लिख रहा हूं, मैं इस तुलना को प्रशंसा मान कर स्वीकार कर रहा हूं क्योंकि मैं इतना विवेचनात्मक लेखन नहीं कर सकता।
जय जय भड़ास
डाक्टर साहब सबसे पहले धन्यवाद मेरा उत्साह्वाधन के लिए. वैसे यह तो सूरज को दिया दिखाने की बात होगी अगर कोई आपकी लेखनी से मेरी तुलना कर दे. और यह आपकी महानता की आप इसे यहाँ लिख रहे है. अभी जुम्मा जुम्मा चार दिन तो हुए है ब्लागिंग में आए हुए और अगर आप हमारी गलतियों को देख कर मार्गदर्शन कर सके तो यही मेरे लिए आपका सबसे बड़ा आशीर्वाद होगा
ReplyDeleteअभिषेक भाई आपका तहेदिल से स्वागत है आपकी शैली काफ़ी हद तक हमारे भाईसाहब से मिलती है तो ऐसा भ्रम होना स्वाभाविक है
ReplyDeleteजय जय भड़ास
धन्यवाद रम्भा जी आपलोगों का साथ रहेगा तो मै भी भडासी बन जाऊंगा.
ReplyDeleteधन्यवाद रम्भा जी आपलोगों का साथ रहेगा तो मै भी भडासी बन जाऊंगा.
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