शब्द ब्रहम हैं इनसे न खेलो

आजकल टीवी मीडिया को लेकर बहुत तू-तू , मै- मै मची हुई है। ख़ुद मीडिया वाले भी इनके पीछे पड़े हुए हैं। जो की बिल्कुल भी सही नहीं है। विरोध होना चाहिए लेकिन द्वेष नहीं। इससे आपसी सहयोग प्रभावित होता है। ये सही है की टीवी मीडिया में टी.र.पि के लिए मारामारी होती रहती है। लेकिन इसका दोष किसी एक पत्रकार या किसी एक टीवी चैनल को देना कही से भी उचित नही लगता। चीजों को समझाना बहुत जरुरी है। पत्रकार सिर्फ़ अलख जगाने का कम नही करता ( पहले सिर्फ़ येही करता था) अब उसे रोटी भी कमानी पड़ती है , अपने लिए अपने परिवार के लिए , वैसे भी आजकल बोटियों का भी शौक रखा जाता है। करना पड़ता है, जो मालिक कहता है उसे नहीं करेंगे तो कौन इनकी तनख्वाह देगा? ये बात साफ है की टीवी मीडिया हो या प्रिंट मीडिया सबको कमाई का चस्का लग चुका है। ऐसे में कोई एक ही व्यक्ति दोषी नहीं है। पुरी व्यवस्था ऐसी बन चुकी है की पत्रकारिता का गौरव खतरे में है। अब तो विदेशी मीडिया भी हाथ अजमाने की पुरी तय्यारी कर चुकी है। कल्पना कीजिये की तब क्या स्थिति होने वाली है? किसी दार्शनिक ने ठीक ही कहा है- देशवासियों जब शाशन सत्ता पर पूंजीवाद हावी हो जाए तो समझिये देश का मिटाना तय है। पूंजीवाद शासन तंत्र को नपुंसक बना देता है, जैसा की आजकल देश का शासनतंत्र बन चुका है। ये ही पूंजीवाद की संस्कृति टीवी मीडिया को रसातल ले जा रही है। ये समय टीवी मीडिया के पत्रकारों से लड़ने का नहीं बल्कि इसमे घुसे पूंजीवाद से लड़ने का है। जैसा की मैंने शीर्षक दिया है - शब्द ब्रहम है इससे मत खेलो। ये सुझाव मैं अपने टीवी मीडिया के पत्रकारों को देना चाहूँगा की ठीक है परिस्थितियां आपके विपरीत हैं। फिर भी पत्रकारिता से भटके बिना खबरों का तथ्यात्मक विश्लेषण करें , बजाये की विचारात्मक विश्लेषण के। विसुअल को फाड़ के निकलते शब्दों से ही सब गुड़गोबर हो जाता है। इसीलिए शब्दों को ब्रहम मानिये और इनकी पूजा करिए सब कुछ ठीक हो जाएगा।

4 comments:

  1. भाई आपको पढ़ कर याद आ रहा है कि मेरे पत्रकारिता-गुरू कहा करते थे -
    पतनात त्रायते इति पत्रकारः
    यानि जो पतन से मुक्ति दिलाए वही पत्रकार है न कि व्यर्थ कलम घिसायी करने वाला...
    जय जय भड़ास

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  2. मनोज भइया आपने तो चित्त प्रसन्न कर दिया। आग है आपकी लेखनी में

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  3. dr. sahab
    apne bilkul sahi yukti batai hai. sachmuch patrkar samaj ko disha deta hai. apka ye mantra bhi ab jehan mein rahega. sukriya.

    zainub sheikh ji yehi kahana chahunga ki ap jaiso ka sahyog raha to age bhi apko prasanna rakhane ki bharpur koshish karunga
    himmat badhane ke liye apka tah-e-dil se sukriya.....

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  4. मनोज भाई,
    बहुत सही लिखा है,
    व्यावसायिकता ने हमारे देश की पत्रकारिता का चीरहरण ही तो किया है, हमारा चौथा खम्भा पूंजीवादी के हाथों में गिरवी हो चला है, इस पर विशेष लिखूंगा.
    आपको धन्यवाद.
    जय जय bhadas

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