धर्म क्या है? कुछ लोगों को जीवन पर्यंत यह बात समझ में नही आती है। क्या रामायण, गीता , कुरान, बाइबल, गुरु ग्रन्थ साहेब में लिखी बातें ही धर्म है? या कुछ और है जो हम जान ही नही पाते है। यदि इन सद्ग्रंथों में लिखी लाइंस ही धर्म है तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की आज के समय में कोई धार्मिक नही है। सारे के सारे विधर्मी है । क्यूंकि जहाँ तक मैंने अध्ययन किया है तो पाया है की सभी धर्म ग्रंथों में झूठ बोलना महपाप बताया गया है। क्या सरे धार्मिक चोल पहने लोगो अपने ह्रदय पर हाथ रखकर ईमानदारी से ये कह सकते है की उन्होंने कभी झूठ नही बोला। यदि नही कह सकते तो वे किस धर्म की बात करते है? क्या धर्म येही सिखलाता है की दूसरो को धार्मिक होने का पाठ पठाये और ख़ुद रात को मधुशाला में जश्न मनाएं। अगर येही धर्म है तो हम तिरस्कार करते है ऐसे धर्म का और ऐसे धार्मिक पाखंडियों का। बचपन में मेरे एक गुरु हुआ करते थे, रोज़ भोर में ३ बजे उठ जाया करते थे। नहा-धोकर पुरे मनोयोग से ३ घंटे तक दुर्गा सप्तशती का पाठ किया करते थे। लेकिन उन्होंने कभी भी ये नही कहा की तुम्हे भी ऐसे ही धर्म को मानना है। उनका सीधा कथन रहता था की जो जीवन शैली लोग जीते हैं वो ही उनका धर्म है। इससे बढाकर कोई धर्म नही है। उनका मानना था की किसी भी धर्म का पालन करना और उसके अनुसार आचरण करना दोनों व्यक्ति का निजी मामला होता है । गुरूजी हमेश मुझे समझाते थे भगवन का नाम कभी भी और कहीं भी लिया जा सकता है। यहाँ तक की आप गुसलखाने में भी भगवन का भजन कर सकते है। सिर्फ़ दिखावे के लिए चंदन पतिका लगाकर मंदिरों , मस्जिदों और गुरद्वारों में मत्था टेकने से धर्म की पूर्ति नही हो जाती उसके लिए मन विश्वास और श्रद्धा होना निहायत जरुरी है। आज के समय में धर्म को लेकर बहुत खिचातानी मची हुई है और ये आदिकाल से ही चला आ रहा है और उम्मीद है की आगे भी युही चलता रहेगा। कोई धर्म को दोष देता है तो कोई धार्मिक पाखंडियों को और कोई-कोई दुसरे धर्मो को अपने धर्म के लिए खतरा मान हिंसा करने लगते है। मगर मेरा सिर्फ़ इतना ही पूछना है की सभी धर्मो की एक बात- झूठ नही बोलना चाहिए, को न मानने वाले लोग कैसे अन्य परम्पराओं को नही छोड़ना चाहते। क्यों लकीर के फ़कीर बने धर्म की दुहाई देकर दूसरो का जीना मुहाल किए रहते है? मैं हिंदू ब्रह्मण हूँ मुझे मांस खाना तो क्या इसके बारे में न सोचने तक की ट्रेनिंग दी गई है। लेकिन एक दिन मेरी बीमारी से बचने के लिए डॉक्टर ने कहा की हप्ते भर मीट खा लो सब ठीक हो जाएगा । मैंने वैसा ही किया आज स्वस्थ हूँ। क्या मेरा धर्म भ्रस्त हो गया या मैं हिंदू से कुछ और हो गया? धर्म कभी किसी को मजबूर नही करता की तुम्हे ये करना ही है। धर्म कहता है की जीवन को नियम से जियेंगे तो अच्छा होगा, लेकिन आप नियम बिरुद्ध जाते हैं तो आपको रोकने वाला कोई नही होता। फिर भी धर्म हमेशा आपके साथ होता है, परे कभी नही । इसीलिए तो हरिबंश राय बच्चन की मधुशाला ने सबको अपनी और खिंचा लेकिन धार्मिक कठमुल्ले और पाखंडी इसके पास भी नही भटक पाए। क्युकी येही इनकी जीवन शैली है और हम इनके विरोधी नही........
धर्मग्रंथ सब जला चुकी है जिसके अंदर की ज्वाला
मन्दिर, मस्जिद, गिरजे सबको तोड़ चुका जो मतवाला
पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो कट चुका
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला ......हरिबंस राय बच्चन की मधुशाला से
जय भड़ास जय जय भड़ास
मनोज भाई सत्य है कि जो जीवन शैली इंसान को इंसान बनाए रखे और हरेक का दुख दर्द समझने में सहायक हो वही सच्ची धार्मिकता है
ReplyDeleteजय जय भड़ास
सच कहा प्यारे... यही तो सत्य है बाकी सब टोटल भंकस:)
ReplyDeleteजय जय भड़ास
बढ़िया है भाई शानदार लिखा है अच्छा है... भड़ास पर दकियानूसी ख्यालात लात मार कर भगा दिये जाते हैं और आप और हम इस क्रांति की शुरूआत कर चुके हैं
ReplyDeleteजय जय भड़ास
बहुत खूब मनोज जी,
ReplyDeleteसत्य और दर्शन योग्य, धार्मिक ठेकेदार हमारी आत्मा को बेचना चाहते हैं, मगर धर्म मानवता से ऊपर तो नही, मानवता सर्वोपरी है. आपको बधाई.
जय जय भड़ास
भैई,
ReplyDeleteधर्म है भाईचारा, इंसानियत, सहधर्मिता और सह्कर्मिता, आपसी प्यार ओए सभी का सम्मान मगर धर्म के ठेकेदार इन सब को तो खा गए और रह गयी बस डफली.
बेहतर लिखा है.
जय जय भड़ास