गुरूभाई यानि हमारे प्यारे गुरुदत्त तिवारी जी जो अब तक मुंबई में "बिजनेस स्टैन्डर्ड" दैनिक समाचार पत्र में शोभायमान थे भोपाल जाने की तैयारी में हैं। जाने से पहले तो कम से कम एक बार मिल लो ऐसी विनती घिघिया कर करी तो गुरूभाई को मुझ पर दया आ गयी और कल आ ही गये प्रभु दर्शन देने। गुरूभाई एकदम सीधे आदमी हैं यानि कि कोई लाग-लपेट नहीं जो बात जैसी है उसे वैसा ही देखते हैं पूर्वाग्रहों का चश्मा प्रयोग नहीं करते। अब एक जैसे लोगों के मिलने पर जो बाते होती थी वही हुई, मुखौटों को प्रयोग करने वालों के ऊपर गुरूभाई अगर चाहें तो एक मोटी सी किताब लिख सकते हैं। रोटी बनाई और शिमला मिर्च की सब्जी खाई और खूब गपियाए, इस बीच में रजनीश भाई, मुनव्वर आपा और कृष्णा शर्मा जी से भी गपिया लिया गया। सुबह जब मैं उन्हें स्टेशन भेजने गया तो आदत के मुताबिक पनवेल से वाशी तक साथ गया। वाशी में गुरूभाई बस के इंतजार में खड़े तो एक सयाना कंडक्टर आकर उन्हें टिकट थमा गया.....एक घंटा हो गया बस थी कि आने का नाम ही न ले। भाई परेशान...दुविधा में कि अगर टैक्सी से निकले तो तुरंत अगर बस आ गयी तो अपना ही पोपट हो जाएगा। इसी बीच भिखारी बच्चों ने भी दो राउंड लगा लिये अपने धंधे के(दर असल तीन लेकिन तीसरे बच्चे का पहले वालों से टाई-अप नहीं था वो अलग कंपनी से था)। एक बस आयी तो कंडक्टर ने साफ़ कह दिया कि पहले लिया टिकट नहीं चलेगा। गुरूभाई ने तत्काल(डेढ़ घंटे बाद) निर्णय लिया और टिकट फाड़ते हुए बस में अपने पत्रकार मन पर विजय प्राप्त करके खिड़की की सीट पकड़ ली, अब ये बस साली चलने का नाम ले... चली...चली....छह सात मीटर फिर रुक गयी। गुरूभाई विदाई के पोज़ में हाथ हिला-हिला कर मन ही मन शायद गरिया रहे होंगे कि किस पनौती का सुबह मुंह देख लिया दिन की शुरूआत ही खराब हो गई(भाई ने मेरा ही मुंह देखा होगा अपना तो देखने से रहे क्योंकि साथ में तो मैं ही था)। हम दोनो ने उसी जगह चाय चूसी और उस दिन को याद करा जब भाई रजनीश झा मुंबई से दिल्ली वापिस जा रहे थे। गुरूभाई से बहुत कुछ सीखा जाना समझा। भाई भड़ासियों इसी तरह आते रहना ताकि जीवन में रंग महसूस होते रहें। आप लोग देख सकते हैं कि गुरूभाई ने विदाई के कितने सारे पोज़ दिये तब कहीं जाकर बस चली। हम सब भाई की भोपाली पारी की सफलता की कामना करते हैं। मनीषा दीदी ने न मिल पाने का अफ़सोस करा और भाई,भाभी और बचऊ को प्यार बोला है।
सभी भड़ास सदस्यों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteविनय जी शुभकामनाओं का पुलिंदा भड़ास पर आकर खोलिये हमने आपके लिये पेज पर सबसे ऊपर बांयी ओर न्योता लगा रखा है उसे क्लिक करिये और जुड़ जाइये फिर कस कर शुभेच्छाएं बरसाइये
ReplyDeleteजय जय भड़ास
गुरू भाई तो एकदम हीरो दिखते हैं भाईसाहब....
ReplyDeleteजय हो भड़ास की, गुरु भाई ऐसे ही भड़ास की आत्मा को बनाए रखो,
ReplyDeleteडाक्टर साहब को धन्यवाद की भडासी को जो आत्मा वो देते हैं वो तथाकथित भडासी कभी नही दे सकता, बनिए की दूकान चलाने वाला भडासी नही बल्कि पैसे का दलाल होता है और भड़ास की आत्मा मानवीय संवेदना और सहकार से है.
जय जय भड़ास