देख तमाशा अंदर का

तमाशा तो तमाशा ही होता है। चाहे वो बाहर का हो या अंदर का, लेकिन गुरु बात चल रही हो अंदर के तमाशे की तो तम्शाबिनो की दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही बढ़ जाया कराती है। दर्शक ये जानने के लिए उतावले भये जाते हैं की ऐसा कौन सा तमाशा है , अंदर का जो हम अभी तक नहीं जानते थे। तो मैं गुजारिश करना चाहूँगा उन तमाम तमाशबीनों से की ऐसी बहुत सी बाते हैं जो अंदर खाते होती रहतीं हैं और हमें पता भी नही चलता। लेकिन मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले से बहुत सारा मटेरिअल मीडिया में आने लगा है जिसे हम तमाशा कह सकतें हैं। तो शुरू होता है पहला तमाशा जब फायरिंग चल रही थी तभी पूर्व गृहमंत्री पाटिल साहेब बोलते हैं की मेरे आने से पहले ही आतंकवादी भाग गए थे। ओफ्हो कितना सटीक लाइन बोला था। अब बारी थी दुसरे पाटिल की उन्होंने कहा की बड़े शहरों में ऐसी छोटी बातें होती रहतीं हैं। क्या जानदार डैलोग था । काफी दिनों तक ये डैलोग लोगों की जुबान पर चढा रहेगा। ये दोनों किरदार अब परदे के पीछे चले गए हैं। लेकिन तमाशा जरी है । रुपये की खनक पर ता-ता-थैय्या कराने वाले मशहूर डांसर को अचानक स्टंट कराने को बोल दिया गया है। किरदार ने मना करना चाहा था मगर क्या करे डिरेक्टर तो सीन देखकर स्क्रिप्ट लिखता है। अब ये तमाशा कितना हित होता है ये तो बाद में पता चल ही जाएगा। अगर तमाशे में ट्विस्ट न हो तो मज़ा नही आता ,धीरे - धीरे आगे बढ़ रही थी । हीरो ने विलेन को चेतावनी देना शुरू कर दिया था। अचानक ही विदेशी हेरोइन शायद अमेरिका से ई हुई हैं , दोनों के बिच में आ जाती हैं। अब हीरो भी चुप और विलेन भी गुप्प। लेकिन तमाशा चल रहा है, अरे भाई ये कोई फ़िल्म थोड़े ही है की तीन घंटे में ख़त्म हो जायेगी। ये तो तमाशा है ... कभी यहाँ कभी वहां अनवरत चल रहा है । लेकिन आपको एक बात स्पष्ट बता देना चाहता हूँ की तमाशा किया ही जाता है मनोरंजन के लिए । जैसे ही हमारे मनोरंजन का डोज़ पुरा हो जाएगा , तमाशा अपने आप ही ख़त्म हो जाएगा।

2 comments:

  1. फाड़ो मनोज भाई...जम कर फाड़ो ये साले मुखौटे लगा कर शरीफ़ बनते हैं इन्हें इसी तरह जब तक न पेला जाए ये अपना हरामीपन नहीं छोड़ेंगे...
    जय जय भड़ास

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  2. शानदार पेला है गुरु,

    लगे रहो ऐसे ही, इन मोटी चमरी वालों के ऊपर किसी का फर्क पड़े या न परे मगर कसम भड़ास की पेलने में कमी न होने पाये.

    जय जय भड़ास

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