जूतम-पैजार मची महफ़िल में

देश के सीने में आतंकवाद की एक और कील ठुक चुकी है। नेताओं ने बार-बार सीना ठोंक-ठोंक कर कहा- हम आतंकवाद का डटकर मुकाबला करेंगे। जितना वक्त नेताओं को अपनी बात कहने में लगता है , उससे कही त्वरित गति से आतंकवादियों ने गोलियां बरसायीं हैं। इन महानुभावों को अब जाकर शर्म ई है। एक थे लालबहादुर शास्त्री जिन्होंने रेल मंत्री रहते हुए एक मामूली रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। लोग बता रहे हैं की शिवराज पाटिल साब ने भी नैतिक तौरपे इस्तीफा दिया है। इसका सीधा मतलब ये हुआ की अब तक वे अनैतिक ढंग से गृहमंत्री बने बैठे थे। आतंकियों ने अपनी क्रूरता से जो नरसंघार किया इसके बिरोध में देश की जनता प्रतिक्रिया दे रही है। ज्यादातर लोगों का येही मानना है की नेताओं ने देश को बर्बाद कर दिया है। जगह-जगह नेताओं की छि-छलेदर हो रही है। ऐसे में जनता को शांत रखने के लिए नेताओं से इस्तीफे मांगे जा रहे हैं। पुरी महफ़िल में ही जूतम- पैजार मची हुई है। कोई कह रहा है की फलाने के समय में ये हुआ था तो उसने इस्तीफा नहीं दिया था। तो हम क्योँ दे ? नेताओं का इतना विरोध हो रहा है के एक नेता तो बिलबिला उठे उनका कहना है के इस समय पाकिस्तान मुर्दाबाद होना चाहिए, की नेता मुर्दाबाद होना चाहिए? जनाब नेताजी ये बताइए की वोट मँगाने के लिए तो आप गला- फाड़कर कर चिल्ला उठाते हैं। अब पाकिस्तान मुर्दाबाद कहने में आपकी जुबान को लकवा मार गया क्या ? जो जनता से नारे लगाने की बात कर रहें हैं। एक वो घटना हुई थी जिसमे एक गोलीबारी की ख़बर धीरे- धीरे देश पर सबसे बड़े आतंकवादी हमले की ख़बर बन गई थी और पुरे उन्सठ घंटे तक वीर जाबांज सैनिकों ने इस ख़बर का सामना किया था। अंत में विजय सत्य की हुई थी। कुछ ऐसी ही सुरुआत नेताओं के विरोध का हुआ है। हो सकता है के यह विरोध स्वतंत्र भारत के इतिहास में नेताओं के खिलाफ सबसे बड़ा विरोध बन जाए। इसकी कुछ बानगी पिछले दिनों देखने को मिली और कुछ जारी आहे ..................

4 comments:

  1. हम सभी इंसान जो इस भारत की जनता कहलाते हैं आज दुखी हैं, हमारी संवेदनाये हमरी कलम के माध्यम से स्फुटित हो रही है. लेकिन मोटी खाल वाले नेता, जिनकी शायद इंसानियत भी खत्म हो गयी है. न जाने कब समझेंगे हमारे दर्द को. सहमत हूँ आपके विचारों से .... सहमत होगा हर इंसान जिसने इस मिट्टी में जन्म लिया.
    - अनुराग

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  2. भाई आप यकीन मानिये कि ये जो भी फ़ुसुर-फ़ुसुर हो रहा है वो मात्र कुछ दिनों की बात है फिर सब पुराने ढर्रे पर आ जाएगा और देश वैसे ही चलने लगेगा:(

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  3. भाई जूत तो चला है इस बार, और अच्छे से चला है. कम से कम एक उम्मीद है कि लोगों को जूता चलाने की अच्छी ट्रेनिंग दे दी है मीडिया ने, और अगर जरुरत पङी लोग दोबारा चलायेंगे.

    @ रूपेश
    मेरे भाई खुसुर फुसुर भले ही ठंडी पङ जाये, आप अगले चुनाव तक ये ध्यान रख्नना कि कौन अभी मुंह खोल के क्या भंकस उगल रहा है और दूसरों को भी याद दिलाते रहना, मुंहजबानी भी और ब्लोग पर भी. मैं तो याद रखुंगा और ईश्वर ने चाहा तो मौका आने पे याद भी दिलाउंगा. हो सके तो संपर्क मे रहो.

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  4. फ़्र्स्ट्रू भाई,

    जो जूता उठाती हो वो जूता चलाना नही सीखा सकती, जब अति होता है तो घडा फूटता है, बस.
    वैसे भी जिन्हें जूता खाने की आदत पड़ चुकी हो, कोई फर्क नही पड़ने वाला.

    वैसे एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा की ये पूरा प्रकरण तंत्र की असफलता है सो सिर्फ़ नेता को कोस कर खाज मिटाना भी समझदारी नही.

    जय जय भड़ास

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