आनंद फिर बने विश्व विजेता !!


विश्वनाथ आनंद ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि वह ही शतरांज के विश्व विजेता हैं।

आनंद ने सोफिया में हुए विश्व शतरंज प्रतियोगिता जीतकर यह खिताब अपने पास बरकरार रखा है। आखिरी मैच के 12वें एवं अंतिम खेल में उन्होंने रूस से वेसेलिन टोपालोव को 57 चालों में हराया।

40 वर्षीय आनंद इससे पहले 2000, 2007 और 2008 में यह प्रतियोगिता जीत चुके हैं।

प्रतियोगिता के आयोजन स्थल तक आनंद 40 घंटे की सड़क से यात्रा करने के बाद पहुंचे थे। क्योंकि आइसलैंड में ज्वालामुखी विस्फोट के चलते यूरोप में हवाई यातायात स्थगित हो गया था। वह अपना पहला खेल हार गए थे लेकिन जोरदार वापसी करते हुए उन्होंने दूसरा और तीसरा खेल जीत लिय़ा । 



श्री आनंद ने कहा कुछ कर गुजरने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है आत्मविश्वास। यह आत्मविश्वास मुझे चेस खेलने से ही आता है। मैं ही नहीं बल्कि बहुत से भारतीय लगातार कड़ी मेहनत कर रहे हैं, बेहतर परिणाम देने के लिए। हम एनआईआईटी माइंड चेस एकेडमी के माध्यम से स्कूलों में चेस ले आए। देश के पूर्वी भाग के स्कूलों में परंपरागत रूप से शतरंज नहीं खेली जाती। वहां के बच्चों ने भी इस एकेडमी द्वारा तैयार विशेष किट की मदद से अपने आप चेस खेलना सीखा। और उन्होंने ने एनआईआईटी चेस मास्टर 2009 कप भी जीता।

पढ़ाई और खेल एक-दूसरे के पूरक हैं। खासकर इसलिए कि खेलों में भी दिमाग का खूब उपयोग होता है। यकीनन शतरंज ऐसा खेल है जो दिमाग को विकसित करने का काम करता है। एनआईआईटी माइंड चैंपियंस एकेडमी के दौरान हमने 8000 बच्चों पर एक सर्वे भी किया था। उसमें सभी बच्चों का कहना था कि चेस के कारण उनमें ज्यादा आत्मविश्वास और धैर्य है। परीक्षा में विशेषकर साइंस और मैथ्स में बेहतर अंक लाने में मदद भी मिली है।

हमें वल्र्ड लीडर बनाने में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। वैसे भी, परिवार और देश की प्रगति में महिला की अहम् भूमिका है। उन परिवारों में जहां महिलाओं को मूलभूत शिक्षा और हेल्थकेयर दी जाती है, उनके बच्चे स्वाभाविक रूप से ही शिक्षित और स्वस्थ होते हैं। साफ-सफाई के प्रति उनका लगाव भी ज्यादा होता है। शिक्षित महिला पारिवारिक फैसले को प्रभावित करने में सक्षम होती है।

हम सभी दिशाओं और क्षेत्रों में बेहतर काम कर रहे हैं, इसके बावजूद हमें अभी भी गरीबों के रहन-सहन के स्तर में सुधार करना है। पानी-बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं उन तक पहुंचानी हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर को महत्व दिया गया है, लेकिन उसमें काफी काम होना है। मुझे लगता है कि अगले कुछ ही सालों में हमारे शहरों की स्थिति एक निश्चित सुधरे हुए स्तर तक पहुंच जाएगी। हम ‘संपेरों और साधुओं के देश’ की पहचान वाले दौर से बहुत आगे निकल आए हैं। अब भारतीय कंपनियां ग्लोबल ब्रांड बन चुकी हैं। भारत का जिक्र अक्सर नए एवं महत्वपूर्ण विचारों के संदर्भ में होता है। हमारा समाज बहुत बुद्धिमानों का है। और हममें दुनिया की नॉलेज कैपिटल बनने की भरपूर संभावना है।

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