दिल्ली की सडकों पर नहीं दिखेंगे भिखमंगे !!


दिल्ली सरकार की एक मुहिम के तहत सडकों से भीख माँगने   वालों को हटाया जा रहा है
राष्ट्र मंडल खेलों को ध्यान में रखकर यह मुहिम चलाई जा रही है।  
दिल्ली की सड़कों पर क़रीब 60,000 भीख मांगने वाले हैं । पुलिस  के 13 ऐसे दल बनाए गए हैं जो भीख मांगने वालों को पकड़कर कोर्ट के सामने पेश करते हैं कुछ को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता है तो कुछ को सज़ा सुनाई जाती है जिसके तहत उन्हें भिक्षुगृह भेज दिया जाता है
मैं दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री मंगत राम सिंघल से मिली जिन्होंने बताया कि वो दिल्ली से सभी भिखारियों को हटा देना चाहते हैं
मंगत राम सिंघल ने कहा, "हमारी ये मुहिम सिर्फ़ राष्ट्रमंडल खेलों के लिए ही नहीं है. हम तो पहले भी ऐसा करते थे और करते रहेंगे।"
"राष्ट्रमंडल खेलों के लिए हमारे शहर में बहुत मेहमान आएंगे. कितना बुरा लगेगा अगर भीख मांगने वाले उन्हें तंग करें"
"हम इन्हें पकड़कर पहले इनकी डॉक्टरी जांच करवाते हैं फिर ये कोर्ट के सामने पेश होतें हैं. जिन्हें सज़ा मिलती है उन्हें हम भिक्षुगृह भेज देते हैं. हमने इन सब के लिए 11 भिक्षुगृह बनाए हैं जिनमें तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं."
भारतीय परंपरा में भिक्षा देना पुण्य का काम माना जाता है. शायद इसी वजह से ग़ैरक़ानूनी होने के बावजूद भीख मांगना एक आम बात है 
लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी पर इतना ज़ोर है कि सरकार ने मंदिरों और गुरुद्वारों जैसी धार्मिक जगहों से भी कहा है कि वो अपने परिसर में भीख मांगने पर प्रतिबंध लगाएं. दिल्ली के बाहर से आए भिखारियों को उनके राज्य वापस भेजने की भी योजना है.
ये पहली बार है कि दिल्ली में 1982 में हुए एशियाई खेलों के बाद कोई इतनी बड़ी खेल प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है - और सरकार इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.
लेकिन कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस क़दम पर कड़ी आपत्ति जताई है.
इनमें से एक हैं हर्ष मंडर जो कि एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में एक जन हित याचिका दर्ज की है कि भीख मांगने वालों को अपराधी न माना जाए.
हर्ष मंडर कहते हैं, "मौजूदा क़ानून, जो कि भीख मांगने को अपराध मानता है, अंग्रेज़ों के ज़माने के एक क़ानून की नकल है. इसमें ये मान लिया गया है कि ग़रीब अपनी ग़रीबी के लिए ख़ुद ही ज़िम्मेदार है, सरकार या समाज नहीं."
उनका कहना है, "किसी भीख मांगने वाले को अपराधी मानने से पहले क्या हमने उसे कुछ और करने का मौक़ा दिया है. ये सरकार और समाज का दायित्व है कि वो उनकी मदद करें."
सरकार भीख मांगने वालों को विदेशी मेहमानों की नज़र से तो दूर कर सकती है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या वो इनकी ज़िंदगी से ग़रीबी दूर कर सकती है? - या उन हालात को दूर कर सकती है जो लोगों को भीख मांगने पर मजबूर करते हैं?

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