इन मोटरमैनों के कार्य की प्रकृति को जानिये तो आपको शायद इन पर दया आ जाएगी न तो इनके खाने का समय निर्धारित होता है न ही दैनिक कर्मों का, इनकी सामाजिक और पारिवारिक जिन्दगी
ये मोटरमैन जितने लोगों की जान की जिम्मेदारी लेकर चलते हैं उससे कहीं बहुत कम लोगों की जिम्मेदारी एक एयर पायलट पर होती है जबकि पदनाम इन्हें भी "ट्रेन पायलट"(मोटरमैन कोई पदनाम नहीं है) दे रखा है लेकिन एक एयर पायलट के साथ को-पायलट भी रहता है जबकि उसे तो ऑटो-पायल्ट जैसी यान्त्रिक व्यवस्था भी हासिल है। इन गरीबों को सहायक चालक नहीं दिया जाता जिसकी ये माँग जमाने से कर रहे हैं जो कि जायज़ भी है लेकिन कमीनी सरकार को उसके लिये रोजगार बढ़ाना होगा कुछ और बेकार नौकरी पा जाएंगे इस लिये ये मांग नहीं पूरी करी जाती। दूसरी बात जन सुरक्षा की है किसी बस में आप निश्चित संख्या से अधिक सवारी नहीं भर सकते यहाँ तक कि यदि आप अपनी स्कूटर पर चार लोग बैठा कर निकल जाएं तो ट्रैफ़िक पुलिस आपका चालान कर देती है, हवाई जहाज़ में आप मुंबई से दिल्ली तक का मात्र डेढ़ घंटे का सफ़र स्टैंडिंग का टिकट लेकर क्यों नहीं कर सकते ये दूरी तो बस इतनी ही हुई न जितनी पनवेल से अंधेरी। इसकी वजह है कि कोई भी यातायात व्यवस्था आपको अपनी जान जोखिम में डाल कर यात्रा की अनुमति नहीं देती लेकिन मुंबई की लोकल ट्रेन में हमारी प्यारी सरकारें इस जनसुरक्षा के मामले को शिथिल कर देती हैं और बिना ट्रेन की संख्या बढ़ाये आपको उन्हीं ट्रेनों में हजारों टिकट जारी करके कीड़े-मकोड़ों की तरह यात्रा करने को बाध्य कर देती है। क्या कभी किसी प्रवासी संगठन ने इस बात की तरफ ध्यान दिया है???
(चित्र में आप देख सकते हैं कि डॉ.रूपेश श्रीवास्तव ने खुद लोकल ट्रेन के ड्राइविंग कैब में बैठ कर उस पीड़ा को बाँटा है जो एक सच्चा भड़ासी ही कर सकता है)
ऐसी ही सैकड़ों बाते हम लोगों ने उनको नजदीक से जान कर समझ पायी हैं जो कि यदि आप संवेदनशील हैं तब ही समझ सकते हैं अन्यथा तो देश में गृहयुद्ध भी होता रहे तो आप सब मुंबईकर आई.पी.एल. मैच ही देखेंगे।
जय जय भड़ास
Kehte sab hain magar karne ka sahas sabmein nahi hota.
ReplyDeleteRupesh bhai hamesha jo kehte hain wo kar ke dikhate hain
aur Manisha didi, aapka lekh padhna mujhe bahot achcha lagta hai. Kripya likhti rahiye :)