आदरणीय पिता श्री के महान व्यक्तित्त्व की गहन सामाजिकता का परिचय इनकी एक बात से और मिलता है कि ये पहले मुझे अपना पुत्र स्वीकार लेते हैं लेकिन इन्हें जैसे ही पता चलता है कि पुत्र बीमार है तो उसे छोड़ कर पलायन करने का इरादा जाहिर कर देते हैं। पिता श्री अपने बीमार रुग्ण बच्चे को छोड़ कर भागे जा रहे हैं तो भला हमारी बीमारी दूर कैसे होगी? शायद यही इनकी सामाजिक समझ है कि कि यदि बच्चा असाध्य रोग से ग्रस्त हो तो उसे चौराहे पर भटकता छोड़ कर भाग जाओ। मुझे तो लगता है कि अभी हाल ही में अहमदाबाद में कचरे के ढेर में मिले चौदह कन्या भ्रूण जो कि भविष्य में स्त्रीत्व की लाइलाज बीमारी से ग्रस्त मनुष्य बनते इन्ही जैसे आदरणीय सामाजिक पिताओं की देन होंगे। बड़ी गहन सामाजिकता है जो कि हम जैसे तुच्छ मूर्ख लोगों की समझ में नहीं आती है। ये इनका बड़प्पन है तभी तो सामान्य जन न कहला कर "महा"जन कहलाते हैं। पिता श्री की एक और भी महानता है कि वे किसी को भी उत्तर अवश्य देते हैं अब आदरणीय पिताजी सभा में मुझ नासमझ,कुंदबुद्धि,कमअक्ल जिसे ये डॉक्टर तक नहीं कहना चाहते उसके नन्हें-मुन्ने सवालों का सामाजिक व बौद्धिक उत्तर देंगे या कहीं भाग जाएंगे दूसरी जगह बाप बनने की चाहत लिये। हम सबको प्रतीक्षा है।
जय जय भड़ास
गुरुवर,
ReplyDeleteप्रतीक्षा मत कीजिये, समाज का दोजख कहीं और गंध फैला रहा होगा, ऐसी कीड़े मकौड़े का इलाज नितांत जरूरी है, दवाई या फिर जूते से ही सही.
जय जय भड़ास