जब तक श्रम और पूँजी के बीच लाभ के समीकरण निश्चित नहीं हो जाते सब इसी तरह घसड़-पसड़ होता रहेगा। मजदूर जीत के मुग़ालते में रहेंगे और धनवान उन्हें चूसते रहेंगे। एक और पक्ष है जो सपना लाल झंडा उठा कर कुछ लोग मजदूरों के नुमाइंदे बन रहे हैं उनमें से कितने लोग तो खुद ही मजदूरों का खून पाइप लगा कर पीते हैं। साम्राज्यवाद बनाम समाजवाद में ये भी अपनी चाँदी काटने से नहीं चूकते मजदूरों के हिमायती होने का खुला ढोंग करके। लाल झंडा लेकर आज देश में क्या नंगनाच चल रहा है ये किस अंधे से छिपा है??? जय जय भड़ास
जब तक श्रम और पूँजी के बीच लाभ के समीकरण निश्चित नहीं हो जाते सब इसी तरह घसड़-पसड़ होता रहेगा। मजदूर जीत के मुग़ालते में रहेंगे और धनवान उन्हें चूसते रहेंगे।
ReplyDeleteएक और पक्ष है जो सपना लाल झंडा उठा कर कुछ लोग मजदूरों के नुमाइंदे बन रहे हैं उनमें से कितने लोग तो खुद ही मजदूरों का खून पाइप लगा कर पीते हैं। साम्राज्यवाद बनाम समाजवाद में ये भी अपनी चाँदी काटने से नहीं चूकते मजदूरों के हिमायती होने का खुला ढोंग करके। लाल झंडा लेकर आज देश में क्या नंगनाच चल रहा है ये किस अंधे से छिपा है???
जय जय भड़ास