शिरीष खरे
भूख से मौत और रोजीरोटी के लिए पलायन। ऐसा तब होता है जब लोगों के पास कोई काम नहीं होता। यकीनन गरीबी का यह सबसे भयानक रुप है। इससे निपटने के लिए भारत सरकार के पास ‘‘हर हाथ को काम और काम का पूरा दाम’’ देने वाली ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ है। यह योजना लोगों को उनके गांवों में ही काम देने की गांरटी भी देती है। योजना में श्रम पर आधारित कई तरह के कामों का ब्यौरा दिया गया है। इन्हीं में से बहुत सारे कामों से विकलांग साथियों को जोड़ा जा सकता है और उन्हें विकास के रास्ते पर साथ लाया जा सकता है। कैसे, नरेगा का यह तजुर्बा सामने है :
एक आदमी गरीब है, आदिवासी समुदाय से है, और विकलांग है तो उसका हाल आप समझ सकते हैं। उसे उसके हाल से उभारने के लिए आजीविका का कोई मुनासिब जरिया होना जरूरी है। इसलिए दिल्ली में जब गरीबी दूर करने के लिए नरेगा (अब मनरेगा) की बात उठी थी तो मध्यप्रदेश के आदिवासी जिले बड़वानी के ‘आशा ग्राम ट्रस्ट’ ने विकलांग साथियों का ध्यान रखा था और उन्हे रोजगार की गांरटी योजना से जोड़ने की पहल की थी। जहां तय हुआ था कि नरेगा में विकलांग साथियों को उनकी क्षमता और कार्यकुशलता के हिसाब से किस तरह के कामों में और किस तरीके से शामिल जा सकता है।
इसके लिए ब्लाक-स्तर पर एक चरणबद्ध योजना बनायी गई थी। योजना में विकलांग साथियों को न केवल भागीदार बनाया गया था बल्कि उन्हें निर्णायक मंडल में भी रखा गया। उन्होंने एक कार्यशाला के जरिए सबसे पहले वो सूची तैयार की जो बताती थी कि विकलांग साथी कौन-कौन से कामों को कर सकते हैं और कैसे-कैसे। इस सूची में कुल 25 प्रकार के कामों और उनके तरीकों को सुझाया गया था। बाद में सभी 25 प्रकार के कामों को वगीकृत किया गया और सूची को 'वगीकृत कार्यों वाली सूची' कहा गया। अब इस सूची की कई फोटोकापियों को ग्राम-स्तर पर संगठित विकलांग साथी समूहों तक पहुंचाया गया। इसके बाद विकलांग साथियों के लिए ‘जाब-कार्ड बनाओ आवेदन करो’ अभियान छेड़ा गया। दूसरी तरफ, इस अभियान में जन-प्रतिनिधियों की सहभागिता बढ़ाने के लिए ‘गांव-गांव की बैठक’ का सिलसिला भी चलाया गया। इसी दौरान विकलांग साथियों ने अपने जैसे कई और साथियों की पहचान करने के लिए एक सर्वे कार्यक्रम भी चलाया था। इससे जहां बड़ी तादाद में विकलांग साथियों की संख्या ज्ञात हो सकी, वहीं उन्हें जाब-कार्ड बनाने और आवेदन भरने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा सका। नतीजन, अकेले बड़वानी ब्लाक के 30 गांवों में 100 से ज्यादा विकलांग साथियों को नरेगा से जोड़ा जा सका। तब यहां के विकलांग कार्यकर्ताओं ने कार्य-स्थलों पर घूम घूमके नरेगा की गतिविधियों का मूल्यांकन भी किया था। आज इन्हीं कार्यकर्ताओं द्वारा जिलेभर के हजारों विकलांग साथियों को नरेगा से जोड़ने का काम प्रगति पर है।
रोजगार के लिए विकलांग कार्यकर्ताओं के सामने बाधाएं तो आज भी आती हैं। मगर ऐसी तमाम बाधाओं से पार पाने के लिए इनके पास जो रणनीति है, उसके खास बिन्दु इस तरह से हैं: (1) रोजगार गारंटी योजना के जरिए ज्यादा से ज्यादा विकलांग साथियों को काम दिलाना। (2) पंचायत स्तर पर सरपंच और सचिवों को संवेदनशील बनाना। (3) जन जागरण कार्यक्रमों को बढावा देना। (4) निगरानी तंत्र को त्रि-स्तरीय याने जिला, ब्लाक और पंचायत स्तर पर मजबूत बनाना। (5) लोक-शिकायत की प्रक्रिया को पारदर्शी और त्वरित कार्यवाही के लिए प्रोत्साहित करना। यह तर्जुबा बताता है कि जब एक छोटे से इलाके के विकलांग साथी नरेगा के रास्ते अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं, तो प्रदेश या देश भर के विकलांग साथी भी यही क्रम दोहरा सकते हैं।
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Shirish Khare
C/0- Child Rights and You
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(Near Chinchpokli Station)
Mumbai-400011
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I believe that every Indian child must be guaranteed equal rights to survival, protection, development and participation.
As a part of CRY, I dedicate myself to mobilising all sections of society to ensure justice for children.
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