भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को घोषित मौद्रिक नीति में रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और कैश-रिज़र्व-रेश्यो (सीआरआर) में 25 आधार अंकों यानी 0.25 फीसदी की वृद्धि कर दी है ।
इससे अब बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों में पहले से अधिक निवेश करना होगा, इसका नतीजा ये होगा कि सभी तरह की ब्याज दरों में वृद्धि होगी । इस समय मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी के कारण केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक पर दबाव बढ़ रहा था । ब्याज दरें बढ़ने से मुद्रा बाज़ार में नकदी की कमी होती है और इससे माँग घटती है जिससे कीमतों पर अंकुश लगता है ।
उल्लेखनीय है कि रिज़र्व बैंक ने इस साल के कुछ महीनों में ही कई बार वृद्धि की है । आरबीआई ने जनवरी और फिर मार्च में ब्याज दरों में बढोत्तरी की थी । रेपो रेट में वृद्धि तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है जबकि कैश रिज़र्व रेश्यो में बढ़ोत्तरी 24 अप्रैल से प्रभावी होगी । कैश-रिज़र्व-रेश्यो (सीआरआर) की दर 5.75 से बढ़ाकर छह फ़ीसदी कर दी है ।
रेपो रेट को पाँच से बढ़ाकर 5.25 फ़ीसदी कर दिया गया है जबकि रिवर्स रेपो रेट दर 3.50 से बढ़ाकर 3.75 फ़ीसदी कर दी गई है ।
विभिन्न वाणिज्यिक बैंक अपना पैसा रिज़र्व बैंक के ख़जाने में जमा करते हैं. इस पर रिज़र्व बैंक जिस दर से ब्याज़ देता है उसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं । जबकि रेपो दर ठीक इसके उलट होती है. जब रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों को कम अवधि के लिए उधार देता है तो उस पर जिस दर से ब्याज लिया जाता है उसे रेपो दर कहते हैं । रेपो दर बढ़ने से खुदरा कारोबार करने वाले बैंक रिज़र्व बैंक में ही पैसा रखना फ़ायदेमंद समझते हैं क्योंकि उन्हें अधिक ब्याज मिलता है ।
दूसरी ओर रिवर्स रेपो दर बढ़ने से बैंकों को रिज़र्व बैंक से उधार लेने पर अधिक ब्याज का भुगतान करना पड़ता है ।
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