लो क सं घ र्ष !: दीन पर भारी पड़ता मुसलमान का दुनियावी प्रेम

नवाबों के शहर लखनऊ में अमरीकी राजदूत रिमोथी जे0 रोमर ने गत सप्ताह मुस्लिम शैक्षिक संस्थानों व सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत इमाम बाड़े का दौरा कर कहा कि वह राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुहब्बत व अमन के पैगाम को लेकर यहां आए हैं। यह दौरा ठीक उस समय क्यों हुआ जब आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रीय अधिवेशन यहां आयोजित हो रहा था, यह एक विचारणीय प्रश्न है?
मुसलमानों के शरई अधिकारों को सुरक्षित रखने, उनके शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान की तदबीरे ढूढ़ने तथा मुस्लिम एकता को कायम रखने के दृष्टिकोण से आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के 21वें राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नदवा यूनीवर्सिटी में हुआ तदोपरान्त एक जलसे आम ऐशबाग ईदगाह में हुआ जहां एक लाख से ऊपर मुसलमानों के ढारे मारते समुद्र ने उलमाए ए दीन के उपदेश व वसीहते सुनी।
इससे तीन दिन पूर्व अमरीकी राजदूत रिमोथी जे0 रोमर ने लखनऊ में अपने दौरे के दौरान मुस्लिम शैक्षिक संस्थान शिया कालेज, करामत हुसैन गल्र्स डिग्री कालेज व ऐतिहासिक इमामबाड़ों का भ्रमण किया और शहर लखनऊ की गंगा जमुनी तहजीब की जमकर तारीफ की।
यह दोनों उल्लेखनीय घटनाएं परस्पर विरोधाभासी लगती है क्योंकि एक ओर अमरीका की विश्व स्तरीय मुस्लिम विरोधी नीतियों , जिसके चलते ईराक, अफगानिस्तान की ईंट से ईंट बज गई लाखों व्यक्ति शान्ति के नाम पर अमरीका के सैन्य अभियान में मारे गये जिनमें काफी संख्या में औरते व मासूम बच्चे थे और अब पाकिस्तान का नम्बर चल रहा है। ईरान व यमन दूसरा निशाना है जहाँ अमरीका किसी भी समय सैनिक कार्यवाई कर सकता है। दूसरी ओर मुस्लिम उलेमा का अधिवेशन जिसमें अमरीका व इजराइल के विरूद्ध प्रस्ताव पारित कर मुसलमानों के ऊपर जुल्म व अत्याचार ढाने का विरोध किया गया तथा इजरायल के साथ बढ़ती हिन्दुस्तानी दोस्ती पर चिंता व्यक्त की गई।
परन्तु इसके विपरीत अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा व आर्थिक अनुदान प्राप्त करामत मुस्लिम गर्ल्स डिग्री कालेज व शिया पी0जी0 कालेज में अमरीकी राजदूत का आदर सत्कार करना और छात्राओं के द्वारा उनके गले में मालाएं डालना एक विरोधाभासी बात लगती है। और सबसे अधिक तो इमामबाड़े में उनका खैर मकदम आश्चर्यजनक है जहाँ अनेक बार अमरीका के विरूद्ध उलेमा ने भाषण देकर अमरीका और उसके पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के पुतले जलाएं गये।
मुस्लिम समुदाय द्वारा ऐसे समय पर अमरीकी राजदूत का महिमामण्डप किया जाना जब अमरीका का संरक्षण प्राप्त इजरायल द्वारा मुसलमानों की अति पवित्र माने जाने वाली मस्जिद अक्सा से नमाजियों को मार भगाया गया और विरोध करने पर कई लोगों को जान भी गवानी पड़ी। परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में इसके विरूद्ध जोरदार आवाज उठी। परन्तु अमरीका खामोश है और इजरायल के विरूद्ध उठती हर आवाज को दबाने में लगा हुआ है।
दर हकीकत मुलसमानों की पूरे विश्व में थुकका फजीहत का मुख्य कारण यही है कि उनका चरित्र खोखला हो चुका है उसे दूसरी कौमों की भांति दुनिया के सुख-संसाधनों की चाह अधिक और दीन धर्म केवल सामाजिक आवश्यकता तक ही उनके अन्दर सीमित रह गया है। उस पर स्वार्थहित इतना हावी हो गया है कि किसी से भी उसे दो टके मिलने की उम्मीद हो तो वह अपनी लार टपकाने लगता है।


-मोहम्मद तारिक खान

1 comment:

हरभूषण said...

क्या हिंदू और क्या मुसलमान सबको जीवन में अधिकतम शान्ति और सुख चाहिये चाहे वो किसी भी रास्ते से मिले अमेरिकी के गले में माला डाल कर या ट्विन टावर पर बम डाल कर....
आप सिर्फ़ मुसलमानों की ही बात करके नजरिया संकुचित कर रहे है या सिर्फ़ मुसलमानों में ही ये बात दिख रही है आपको?
जय जय भड़ास

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