दिमाग का दही बन जाता है लेकिन दूध का दही बना पाने की इजाज़त तो धीरे धीरे जेब बंद करती जा रही है। दूध की कीमत एक बार फिर से तीन रुपये बढ़ा दी जाएगी इस बात का निर्णय लिया गया द बाम्बे मिल्क प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन की बैठक में; लेकिन साला एक बात समझ में आती नहीं कि इस बैठक में न तो एक भी गाय को आमंत्रित करा गया न ही एक भी भैंस बुलायी गयी, ये साले तबेले वाले कभी भी चारा-भूसा मंहगा हो गया कह कर मूल्य बढ़ा देते हैं। भाई हमने तो खुन्नसिया कर चाय पीना ही छोड़ दिया है। अब ससुरा कोई मंत्री संत्री तो हैं नहीं कि चीजों के दाम घटाना बढ़ाना हमारे हाथ में हो। गरीब आदमी की तरह कटौती कर लेते हैं और एक एक करके छोड़ते जाते हैं एक दिन देखियेगा जब जिंदगी मंहगी हो जाएगी तो जीना भी छोड़ देंगे और निकल पड़ेंगे भगवान कृष्ण के गोलोकधाम इस उम्मीद में कि कम से कम उधर तो दूध फ़ोकट में मिला करेगा लेकिन क्या भरोसा उधर पर चाय की पत्ती न मिले और शक्कर की भी मारामारी हो अगर ये सब सुलभ हुआ तो गैस और मिट्टी के तेल की समस्या तो नहीं होगी बगल में नर्क होगा सुना है कि वहाँ हमेशा आग जलती रहती है तो अपनी चाय भी उसी आग में पकवा लिया करेंगे।
जय जय भड़ास
sala golok me bhi dodh nahi molega.
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