मानव धर्म की सेवा करने वालों के अधर्मी कार्य
यह देर से उठाया जाने वाला एक अच्छा कदम है क्योंकि सफेदपोश कहलाए जाने वाले समाज के इस सम्मानित तबके के अंदर व्यवसायिक प्रवृत्ति इस दर्जे तक हो गई थी कि वह अपने धर्म व फर्ज को भूलकर हर समय दवा कम्पनियों के इशारें पर चलने लगा था। दवा कम्पनियों के इशारे पर चलने लगा था। दवा कम्पनियों ने परस्पर पनपती अपनी प्रतिस्पर्धाता के चलते गिरावट के सारे पैमाने तोड़ डाले हैं। डाक्टरों को गिफ्ट देने का सिस्टम तो बहुत पुराना है अब तो इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए डाक्टरों को उनकी सैर तफरीह व शौक के सभी संसाधन दवा निर्माता मुहैया कराते हैं।मेडिकल कौंसिल आफ इण्डिया द्वारा निर्णय लिया गया है कि अब दवा कम्पनियों द्वारा डाक्टरों को रिश्वत के तौर पर अपनी दवा की सेल प्रमोशन के लिए दिए जाने वाले तोहफों पर रोक लगाई जायेगी।
नाम न छापने की शर्त पर एक बड़ी दवा कम्पनी के एक बड़े सेल्स अधिकारी ने बताया कि उनको सेल्स लाइन में ट्रेनिंग देते समय 3 सी फार्मूला बताया जाता है जिसके मुताबिक पहले वह किसी भी डाक्टर को अपनी दवा के बारे में बताकर उसे कन्वेन्स करने का प्रयास करते हैं यदि इस सी के प्रयोग किया जाता है जिसके अंतर्गत डाक्टर को कामर्फिनस किया जाता है, अर्यात उस यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि जो दवा उसके पेन पर इसरा किसी कम्पनी की चढ़ी हुई है उससे यह केमिकल र्फामूले में बेहतर है। र्याद यह दोनों सी के र्फामूले काम न आए तो फिर अन्तिम सी र्फामूले का प्रयोग किया जाता है। उसका अर्थ यह है कि डाक्टर को कमपीलीट बनाना यानि उसे भ्रस्टाचार में लित्त कर देना। अब यह भ्रष्टाचार भी कई प्रकार का होजा है। एक भ्रस्टाचार यह है कि डाक्टर को उसके क्लिीनिक या घर उपयोग के आनेवाली वस्तओं को गिफ्ट में उसे मेंटकर के उससे मनमाफिक सेल करवाना। दूसरा प्रकार भ्रष्टाचार का यह होता है कि डाक्टर को साल में एक या दो बार देश या विदेश के किसी शहर में सपरिवार सैर सपाटा कराने का खर्चा उपलब्ध कराना और एक और भ्रष्टाचार अब दवा कंपनियों ने यह अभी चन्द वर्षो से आजमाना प्रारम्भ किया है कि डाक्टर को जिन्दा मांस का तोहफा दिया जाता है यानि सेक्स गिफ्ट। इसी के चलते दवा कम्पनियों ने अब बड़े पैमाने पर अच्छी मोटी पगार देकर सुन्दर लड़कियों की तैनाती कर ली है ताकि डाक्टरों से मर्जी की सेल इनके माध्यम से निकलवायी जा सके।
समाज के इस सफेदपोश तबके को लोग पृथ्वी पर भगवान का दर्जा देते हैं शायद इसलिए कि जीवन बचाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है परन्तु अपनी डिग्री लेते समय मानवता की सेवा करने की शपथ लेने वाले यह लोग अपनी व्यवसायी प्रवृत्ति व आर्थिक हवस के चलते अपने फर्ज पेशे के धर्म व इंसानियत सभी को भुलाकर केवल दोनों हाथों से धनोपार्जन में जुट जाते हैं।
मेडिकल कौंसिल ने इस ओर कदम बढ़ाकर एक अच्छा काम किया है। सरकार को भी डाक्टरों के रवैये में तबदीली लाने के लिए दवा कम्पनियों पर अपना अंकुश और मजबूत करना चाहिए।
-मोहम्मद तारिक खान
इन डाक्टरो पर किसी भी प्रकार की रोक नहीं है , कौंसिल भी सिर्फ नियम बना सकती है ,पर उस को लागु नहीं करवा सकती , अबतक हजारों लाखो अनपढ़ डाक्टर इस देश में इलाज कर रहे है , पहले उन्हें तो पकड़ ले की ये नया शिगूफा छोड दिया
ReplyDeleteआपकी बात से हमारे जैसे कई झोलाछाप डॉक्टर तो अपनी किस्मत पर खुश हो गये कि अच्छा है कोई दूसरा धंधा नहीं करा वरना ऐसी उम्मीद तक नहीं जगती, हर कुत्ते के दिन फिरते हैं तो कभी इनके भी फिरेंगे बहुरेंगे दिन....
ReplyDeleteजय जय भड़ास