हो सकता है कि आप में से कई लोगों ने देखा और खाया होगा लेकिन मैंने कल पहली बार "रामफल" देखा और खाया। जो आदिवासी महिला सड़क पर वो फल बेच रही थी उसने भावविभोर होकर बताया, दादा ! जब भगवान राम वनवास के दौरान महाराष्ट्र आए थे तब उन्होंने, माता सीता और लक्ष्मण जी ने जंगली फल खा कर ही समय निकाला था बड़े कष्ट में दिन गुजारे थे। याद आता है कि जब रमजान माह आता है तो रोज़ा खोलते समय भी खजूर का फल हाथ में आने पर ऐसी ही चर्चा अक्सर निकल पड़ती थी कि नबी मुहम्मद साहब ने भी अपने कष्ट के दिनों में इस फल पर दिन गुजारे थे। आस्था की जड़े समाज में इतनी गहरी होती हैं कि हर आयाम में समाई हुई हैं हमारे आचरण से लेकर भोजन तक में इसके निशान हैं। मुनव्वर आपा ने मुस्करा कर कहा कि देखिये भगवान राम के अस्तित्व पर हमारी सरकार सवालिया निशान लगा सकती है लेकिन इस बात का क्या करेंगे कि उनके वजूद की छाप हमारे देश में जगह-जगह है। रामफल खाकर हमने भी भगवान राम को एक बार याद कर ही लिया जिन्होंने आर्यों के समाज में एक आदर्श स्थापित करा है।
जय जय भड़ास
nice
ReplyDeleteमटन खाकर दारू पीकर रावण को याद कर लेना चाहिये उसके द्वारा लिखित क्रष्ण यजुर्वेद में ये सब जायज कर दिया गया था। अनूप मंडल वाले सही कहते हैं कि आजकल हम जो ग्रन्थ पढ़ रहे हैं उनमें घालमेल करा गया है
ReplyDeleteजय जय भड़ास
वाह बहुत खूब,
ReplyDeleteहम तो खाने से रह गए लेकिन भड़ास माता और गुरुदेव ने चखा तो हम भी तृप्त हो गए.
नि:संदेह आस्था का ये सागर ही है जो देश के विघटनकारी, आतंकी देशद्रोही और वैमनाश्वी लोगों को पनपने का मौका देती है.
जय जय भड़ास