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महाराष्ट्र की भाषा अकादमियों की दुर्दशा
जिस राज्य में भाषा की ही राजनीति की कबड्डी खेल कर खुद को चमकाने के जतन करने वाले नेता हों वहां हिन्दी साहित्य अकादमी या उर्दू साहित्य अकादमी की क्या हालत होगी इसका तो कोई बेवकूफ़ भी अंदाज लगा सकता है। महाराष्ट्र में हिंदी की बात करने वालों को तो जुतिआया जाता है
ये बात करना कि यहां हिंदी साहित्य अकादमी की क्या हालत है वो साहित्य प्रेमी स्वयं समझ सकते हैं। रही बात उर्दू साहित्य अकादमी की तो एक कार्यक्रम में जाने का मौका लगा जहां कि मंच पर तीन राज्यस्तरीय मंत्री मौजूद थे और "उर्दू महफ़िल" नाम से आयोजित इस कार्यक्रम में कितने लोग थे ये तो आप तस्वीरों से जान जाएंगे। आयोजन करने वाले लोग मंत्रियों के आगे रिरिया रहे थे कि उर्दू के नाम पर काम करने वालों को बड़ा स्थान दिया जाना चाहिये कार्यालय के लिये क्योंकि अभी जो स्थान दिया गया है वह मछेरों की बस्ती के बीच में एक बहुत छोटा और खस्ताहाल है जिस कारण बड़ी दिक्कतें होती हैं। मंच पर हाल ही में अंजुमन इस्लाम नाम की एक बहुत बड़ी संस्था के अध्यक्ष बने श्री ज़हीर काज़ी ने इस बात पर बड़ी विचित्र प्रतिक्रिया दी कि उर्दू स्कूल के बच्चे अच्छी अंग्रेजी नहीं जानते जिस कारण वे पिछड़ जाते हैं। ये देख कर अफ़सोस हुआ कि महाशय काज़ी साहब अभी भी दिमागी तौर पर ये मान कर गुलामी ही कर रहे हैं कि अंग्रेजी न जानने वाला साहब नहीं बन सकता और पिछड़ा ही रहता है। कुल मिला कर यही रोना चलता रहा कि किस तरह उर्दू विद्यालयों के बच्चों को अंग्रेजी सिखा-पढ़ा कर बाबूसाहब बनाया जाए। मुझे लगा कि इस महफ़िल का नाम यदि अंग्रेजी महफ़िल रखा जाता तो बेहतर रहता। हम हमारे देश में स्वतंत्रता के इतने साल बाद भी ये मान रहे हैं कि भारतीय भाषाओं में पढ़ाई करके तरक्की नहीं करी जा सकती तो ऐसे लोगों के लिये क्या चीन एक बड़ा उदाहरण नहीं है जो कि अपने कम्प्यूटर के सौफ़्टवेयर अपनी ही लिपि और भाषा में बनाता है। ये पता नहीं कि आम आदमी कितना समझ पाता है लेकिन जो पुरोधा हैं नेता हैं भाषा के क्षेत्र में वे भी अपनी भाषा और लिपियों को दोयम दर्ज़े का बड़ी ही खुशी से स्वीकार रहे हैं।
जय जय भड़ास
आप भी भाई कहां कहां चले जाते हैं ये मतलबी और लालची लोगों का जमावड़ा है जो मंत्रियों के आगे तेल की बोतल लिये मालिश के लिये हर पल तैयार खड़े रहते हैं ताकि कुछ पैसा और ताकत हासिल हो जाए
ReplyDeleteजय जय भड़ास
गुरुदेव महाराष्ट्र जिस तरह से भाषायी विवाद का अखाडा बन भाषा में दरिद्र होता जा रहा है चिंतनीय है. मंत्री और संतरी तो अपने खाने पकाने के इए कहीं भी पहुँच जाएँ मगर हमारे भाषा के प्रति बेरुखी नि:संदेह निंदनीय है.
ReplyDeleteतथ्यपरक लेख.
जय जय भड़ास