बिहार विकाश का सच (जी डी पी के हवाले से)

बिहार विकास का दावा किया जा रहा है और हवाला जी डी पी का जो कि आंकड़े को माने तो ११ प्रतिशत यानि कि गुजरात के बाद दूसरा नंबर और सरकार के इस दावे में मीडिया अपनी भूमिका सबसे आगे बढ़ कर निभा रही है या यूँ कहें कि नितीश सरकार का गुणगान कर रही है मगर इस गुणगान के पीछे क्या है? क्या वास्तव में हम विकास कि उस परिधी से आगे निकल गए हैं कि महिमा मंडन और गर्व धारण किया जा सके।

अभी अभी रविश कुमार कसबे में बिहारी होने का गर्व और बिहार विकाश की गाथा गा रहे थे वहीँ अपने गाँव से लौट कर आये अजय कुमार झा ने ग्रामीण बिहार की हकीकत को तस्वीरों से बताया, दोनों अलग कहानी कहती है। जहाँ अजय जी ने गाँव कि हकीकत पर रोशनी डाला और अपने दर्द को बयां किया वहीँ रविश जी अपने मीडिया हॉउस के कर्मठ और महिमामंडन करने वाले पत्रकार की भूमिका निभा गए।


पहले तस्वीरों से इस हकीकत को जानते हैं।


मधुबनी सदर अस्पताल का मैपक्या ये हकीकत है ?



विभिन्न मदों का ब्यौरा, अगर इस ब्योरे पर जाएँ तो मधुबनी वासी को अपने अस्पताल से इतर और कहीं जाना ही ना पड़े


सदर अस्पताल का मुख्य द्वार, नि:संदेह स्वस्थ्य मधुबनी की कहानी कहता है जहाँ रोगी और रोग दोनों से त्रान मिल चुका हो !



नवनिर्मित बाह्य रोगी विभाग, उद्घाटित और तालाबंद !!


नवनिर्मित भवन रोगी के लिए नहीं अपितु बच्चों के लिए क्रीडा स्थल !


भवन द्वार पर बड़े बड़े शब्दों में उद्घाटनकर्ता नितीश जी का नाम लटक रहा है और बंद द्वार आम लोगों का मूंह चिढ़ा रहा है



सामान्य वार्ड की टूटी खिरकी, आम लोगों के लिए यही भवन है


अस्पताल का मुख्य भवन बरामदा लोकों का विश्राम स्थल, शायद अस्पताल में जगह की कमी है ?



मुर्दे की चीड फार स्थल, अचम्भे में ना पड़ें, यहीं पोस्टमार्टम होता है!



लाखो की मशीन, रखरखाव के बजाय बाहर रख दिया गया, नया आये जिसमें कमीशन और बन्दर बाँट हो !



ये आइना है उस विकास का जिसमें आम आदमी अपनी तस्वीर नहीं देख सकता, विकास के नाम पर लाखो के वारे न्यारे हुए और उस वारे न्यारे के मुनाफाखोरों में से सरकार के अलावे मीडिया ने भी अपना हिस्सा लेकर महिमा मंडन किया, क्या आम आदमी इस विकाश का हिस्सा बन सका।

रविश बाबु आप लोगों को बिहारी होने पर गर्व होना ना सिखाएं ना बताएं, मीडिया के द्वारा महिमा मंडन और संभावित विज्ञापन के बड़े बाजार में अपनी हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने के लिए बेपेंदी के लोटे कि तरह लुढ़कती मीडिया का हिस्सा बनिए। चाहे नितीश मंडन हो या कुछ ही दिन पूर्व जब यु पी ए की सरकार बनने वाली थी तो दिग्गी राजा के साथ मिल कर राहुल और सोनिया मंडन की चापलूसी करना हो ऎसी व्यथा है जो कठघरे में लाती है।

आंकड़े से इतर बिहार का आम आदमी कहाँ है..............

5 comments:

  1. GDP से बड़ा कोई भ्रम नहीं

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  2. आम आदमी को तो कभी भी सही जानकारी नहीं मिल पाती है ! वह तो मिडिया के आईने से ही देखता है !

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  3. अच्छी तुलना लाएं हैं आप, आखिर सच्चाई की तस्वीरें जुटाना इताना आसान भी नहीं

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  4. सभी सरकारी विभागों का यही हाल है!

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  5. रजनीश भाई आपके तस्वीर में सच्चाई है...आलोचना अपनी जगह है, पर वास्तव में बिहार में बदलाव आया है, यह मेरा अनुभव कहता है...१४ महीने बाद मैंने बिहार की यात्रा की और मुझे परिवर्तन नज़र आया, मेरे पास दिखने कोई चित्र नहीं है, पर लोग अब विकास की भाषा समझने लगे हैं, जहाँ कोई तंत्र सुचारू ही नहीं था वहां परिवर्तन को धरातल पर आने में थोड़ा वक़्त तो लगता ही है..

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